Mere hisse ki dhoop book and story is written by Zakia Zubairi in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mere hisse ki dhoop is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मेरे हिस्से की धूप - उपन्यास
Zakia Zubairi
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
मेरे हिस्से की धूप ज़किया ज़ुबैरी (1) गरमी और उस पर बला की उमस! कपड़े जैसे शरीर से चिपके जा रहे थे। शम्मों उन कपड़ों को संभाल कर शरीर से अलग करती, कहीं पसीने की तेज़ी से गल न जाएँ। आम्मा ने कह दिया था, "अब शादी तक इसी जोड़े से गुज़ारा करना है।" ज़िन्दगी भर जो लोगों के यहाँ से जमा किए चार जोड़े थे वह शम्मों के दहेज के लिए रख दिये गए – टीन के ज़ंग लगे संदूक में कपड़ा बिछा कर। कहीं लड़की की ही तरह कपड़ों को भी ज़ंग न लग जाए। अम्मा की उम्र
मेरे हिस्से की धूप ज़किया ज़ुबैरी (1) गरमी और उस पर बला की उमस! कपड़े जैसे शरीर से चिपके जा रहे थे। शम्मों उन कपड़ों को संभाल कर शरीर से अलग करती, कहीं पसीने की तेज़ी से गल न ...और पढ़ेआम्मा ने कह दिया था, "अब शादी तक इसी जोड़े से गुज़ारा करना है।" ज़िन्दगी भर जो लोगों के यहाँ से जमा किए चार जोड़े थे वह शम्मों के दहेज के लिए रख दिये गए – टीन के ज़ंग लगे संदूक में कपड़ा बिछा कर। कहीं लड़की की ही तरह कपड़ों को भी ज़ंग न लग जाए। अम्मा की उम्र
मेरे हिस्से की धूप ज़किया ज़ुबैरी (2) अम्मा का पेट अकसर फूला और जी कांपता रहता कि वह दूसरी लड़कियों को कैसे संभालेगी। अगर रानी को लगाम न लगा सकी तो होगा क्या ? चुन्नी – मुन्नी तो पैदा ...और पढ़ेही पोलियो की मार खा गईं। आजतक घिसट घिसट कर चल लेती हैं, तो वो भी अल्लाह मियाँ की कृपा ही है। वर्ना इन चारों टांगों की भी देखभाल करनी पड़ती। कौन देता पहरा इतनी सारी लड़कियों की किस्मत पर ? लड़कियों के तो देखते ही देखते पंख निकल आते हैं – चिड़ियों की तरह आज़ाद उड़ना चाहती हैं। पता
मेरे हिस्से की धूप ज़किया ज़ुबैरी (3) अंकल जी की आवाज़ जैसे किसी गहरे कुंएँ में से बाहर आई, "अच्छा! " उन्होंने कह तो दिया, परन्तु लगा जैसे कुएँ में झांकते हुए गहराई से आवाज़ गूँज कर बार बार ...और पढ़ेसे टकरा रही है, और पानी में खिचड़ी बाल, चेहरे की गहरी लकीरें भी नज़र आ रही हैं। रंग अपने चेहरे का दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि कुएँ के अंधेरे में घुलमिल गया था। रानी को आंटी जी पर रहम आने लगा, "अंकल जी फिर आंटी जी का क्या होगा? " "अरे होना क्या है, पहली बीवी के तमाम