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ईश्वर चुप है - उपन्यास
Neela Prasad
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
ईश्वर चुप है नीला प्रसाद (1) रंजना मंदिर की सीढ़ियां चढ़ती ठिठक रही है। ईश्वर से उसका रिश्ता बहुत पेचीदा होता जा रहा है। उसे इस रिश्ते को रेशे - रेशे कर समझने का मन होता है। हर बार यह ठानकर भी कि ईश्वर के दरबार में ये आखिरी हाजिरी है, वह अपने निश्चय पर अडिग नहीं रह पाती। अवशता की कोई लहर आती है और उसे ईश्वर के सामने ला पटकती है। तू है कि नहीं है? कहां है, कैसा है, खुश कैसे होता है और अच्छे काम करते रहने पर भी दुख - ही - दुख क्यों देता
ईश्वर चुप है नीला प्रसाद (1) रंजना मंदिर की सीढ़ियां चढ़ती ठिठक रही है। ईश्वर से उसका रिश्ता बहुत पेचीदा होता जा रहा है। उसे इस रिश्ते को रेशे - रेशे कर समझने का मन होता है। हर बार ...और पढ़ेठानकर भी कि ईश्वर के दरबार में ये आखिरी हाजिरी है, वह अपने निश्चय पर अडिग नहीं रह पाती। अवशता की कोई लहर आती है और उसे ईश्वर के सामने ला पटकती है। तू है कि नहीं है? कहां है, कैसा है, खुश कैसे होता है और अच्छे काम करते रहने पर भी दुख - ही - दुख क्यों देता
ईश्वर चुप है नीला प्रसाद (2) ‘ढूंढिए न, जरूर मिल जायेंगे’, वह रट लगाए रही। इसी बीच पापाजी का फोन आया। वे दिल्ली पहुंच गए थे और किराएदारों वाले हिस्से में चाय पीने को रुक गए थे। फिर अपने ...और पढ़ेचले जाते, जहां सफाई वगैरह का काम किराएदारों ने करवा दिया था। रंजना फोन उठाकर रोने लगी, कुछ बोल ही नहीं पाई। मिसेज शर्मा ने फोन उसके हाथ से लेकर पापाजी को सारी बात बताई। वे अपने बंधे सामान को जस - का - तस वापस टैक्सी में रख, मम्मीजी और मान्या के साथ स्टेशन की ओर चल दिए। बिना
ईश्वर चुप है नीला प्रसाद (3) रंजना मंदिर की सीढ़ियां तय कर चुकी है। आंगन में प्रवेश कर रही है। अब देहरी पर घंटी बजा रही है। सिर पर दुपट्टा ओढ़ लिया है। आंखें बंद करके उस भगवान को ...और पढ़ेचाहती है, जिसकी इतनी महत्ता है.. उसे महसूसना, पा लेना चाहती है वह! वह उसमें प्रविष्ट हो जाए और उसे अपना ले - जैसे इतनों को अपनाया है। वह उसे उसी शांति से भर दे जिसकी खोज में यह मंदिर इतने लोगों से भरा हुआ है। वह उसके मनमोहन को ला दे। नहीं ला पाए तो इतना तो बता ही
ईश्वर चुप है नीला प्रसाद (4) ‘सॉरी मम्मा... पर मेरी भी तो सोचो। मैं नहीं मान पाती कि पापा जिंदा हैं। अब मुझे पापा को जिंदा मानना नाटक जैसा लगता है। आन्या तो आपसे लिपट सकती है, आपके दुख ...और पढ़ेशरीक हो सकती है, मैं वह भी नहीं कर सकती क्योंकि मुझे हर क्षण याद है कि वह मैं हूं, जिसने आपको दूसरी शादी करने से मना कर दिया। वह मैं हूं जिसके कारण आज हमारे पास न अपने पापा हैं, न दूसरे पापा। ये गिल्ट मुझे अंदर - ही - अंदर खाता रहता है कि मेरी मम्मा दुखी रहती