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सुलोचना - उपन्यास
Dev Sharma
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
वैसे तो राकेश लगभग हर साल गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर मिर्जापुर जाता था पर इस बार दो साल बाद आया था तो मन कुछ ज्यादा ही खुश था, मामा मामी और सभी बच्चे किसी शादी में गए थे घर पर सिर्फ नानी नाना ही थे थोड़ी देर उनसे यहां वहां की बात करके राकेश खेत और बाग घूमने अकेले ही निकल गया , जेठ की तपती धूप जैसे शीशे सी चमक रही थी सर पर गमछा बंधे राकेश वर्षो पुराने आम के पेड़ के नीचे छाँह में रुक गया ऊपर देखा तो आम की छोटी छोटी अमोरी
वैसे तो राकेश लगभग हर साल गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर मिर्जापुर जाता था पर इस बार दो साल बाद आया था तो मन कुछ ज्यादा ही खुश था, मामा मामी और सभी बच्चे किसी शादी में ...और पढ़ेथे घर पर सिर्फ नानी नाना ही थे थोड़ी देर उनसे यहां वहां की बात करके राकेश खेत और बाग घूमने अकेले ही निकल गया , जेठ की तपती धूप जैसे शीशे सी चमक रही थी सर पर गमछा बंधे राकेश वर्षो पुराने आम के पेड़ के नीचे छाँह में रुक गया ऊपर देखा तो आम की छोटी छोटी अमोरी
अगले दिन राकेश सुबह सुबह गांव घूमने निकल पड़ा कोशिश थी कोई तो ऐसा होगा जो सुलोचना के बारे में कुछ जानता होगा इसी उधेड़बुन में घूमते घूमते राकेश सुलोचना के घर के नजदीक पहुँच गया गांव से अलग ...और पढ़ेमें घर था सुलोचना का सुबह से मौसम खराब था तो बारिश भी शुरू हो गयी थी राकेश ने बाहर से आवाज लगाई काका वो काका अंदर से सुलोचना के पिता जगत महतो ने आवाज दी आ जाओ बचवा अंदर आ जाओ काहे भीग रहे लल्ला जूते उतार कर राकेश अंदर चला गया एक कमरे के छोटे से मकान में