Sulochna - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

सुलोचना - 1

वैसे तो राकेश लगभग हर साल गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर मिर्जापुर जाता था पर इस बार दो साल बाद आया था तो मन कुछ ज्यादा ही खुश था, मामा मामी और सभी बच्चे किसी शादी में गए थे घर पर सिर्फ नानी नाना ही थे थोड़ी देर उनसे यहां वहां की बात करके राकेश खेत और बाग घूमने अकेले ही निकल गया , जेठ की तपती धूप जैसे शीशे सी चमक रही थी सर पर गमछा बंधे राकेश वर्षो पुराने आम के पेड़ के नीचे छाँह में रुक गया ऊपर देखा तो आम की छोटी छोटी अमोरी निकल रही थी उन्हें तोड़ने की सोच रहा था कि पीछे से आई आवाज ने चौका दिया उसे, "कब आये राकेश भैया" मुड़ के देखा तो बनवारी काका की सबसे छोटी लड़की सुलोचना खड़ी थी, अरे सुलोचना कित्ति बड़ी हो गयी बिट्टी तुम, राकेश सुलोचना को देखते हुए बोला, और यहां का कर रही इतनी दुपहरी में ...सुलोचना ने रूपट्टे के कोने से पीसा नमक मिर्च निकाला और आंखे घुमा के बोली अमोरी खाने आये है भैया रुको हम तोड़ते है जब तक राकेश कुछ कहता सुलोचना कूदते फांदते पेड़ पर चढ़ी और अमोरी तोड़ के नीचे गिराने लगी बटोर लो भैया पर लेकर भाग न जाना ऊपर से हस के बोली सुलोचना राकेश ने जल्दी जल्दी आम की छोटी अमोरी उठा ली , नीचे उतर कर सुलोचना ने 2 अमोरी अपने हाथ मे ली बाकी राकेश को देकर बोली आप ले जाओ भैया और ये नमक मिर्चा भी ले जाओ कल आना फिर से और अमोरी खिलाऊंगी कह कर उछलते कूदते सुलोचना बाग से बाहर हो गयी नमक मिर्च की पूड़ियाव और अमोरी पैंट की जेब मे रखकर राकेश घर की ओर मुड़ गया
मामा मामी बच्चे वापस आ गए थे राकेश सभी से मिलकर हँसी मजाक में लग गया और कब शाम हो गयी पता ही नही चला तभी मामी ने छोटे बेटे से कहा जा जल्दी से अमोरी ले आ आज भैया को चटनी खिलाएंगे, राकेश को ध्यान आया ...अरे मामी रुको मेरे पास अमोरी है दोपहर में सुलोचना बिट्टी ने तोड़ के दिया था, रोटियां बेल रही मामी ने घूम के राकेश को देख और पूछा कौन सुलोचना लल्ला ...अरे मामी बनवारी काका की बिटिया छोटी वाली ...पास ही खड़े मामा ने एक बार मामी की ओर देखा फिर राकेश से बोले क्या लल्ला हमहि मिले उल्लू बनाये खातिर अरे सुलोचना तो डेढ़ साल पहले मर गयी रही .... क्या राकेश को विश्वास न हुआ दौड़ के गया अपने पैंट की जेब से नमकमिर्च और अमोरी निकालने पेंट की जेब मे थोड़ी सी मिट्टी की सिवा कुछ नही था तेज चल रहे कूलर की हवा में भी राकेश पसीने पसीने हो गया था धीरे से हिम्मत जुटा के मामा से पूछा ...कैसे मरी थी सु..लोचना जबाब मामी ने दिया लल्ला उ तो बगिया में पेड़ से गिर गयीं रही...राकेश के कानो में अब भी सुलोचना की आवाज गूंज रही थी ....कल आना फिर से और अमोरी खिलाऊंगी...राकेश ने अपने को जैसे तैसे सम्हाला पर मन ही मन तय कर लिया कि कल वो जरूर जाएगा बाग में ठीक उसी समय ........
राकेश की आंखों में नींद गायब थी उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि सुलोचना नही रही अभी दो साल पहले की ही तो बात है जब राकेश शादी में आया था और सुलोचना भैया भैया करते नही थक रही थी राकेश तो बस सुबह के इंतजार में था कि कितनी जल्दी सुबह हो और वो बाग में जाकर सुलोचना का सच जाने यही सब सोचते सोचते राकेश की आंख लग गयी
सुबह सारे घर मे चहल पहल मची थी हाथ मे चाय का गिलास लिए राकेश खोया खोया था मामा ने धीरे से कंधे पर हाथ रख कर राकेश से कहा जो हुआ भूल जाओ तुम्हारा भरम होगा मैं सामान लेने शहर जा रहा हूँ बागिया मै अकेले न चले जाना हिदायत देते हुए मामा वहां से चले गए
अब दोपहर के करीब 12 बज रहे थे तेज धूप के कारण रास्ते पगडंडी सब खाली पड़े थे सबकी नजर बचा के राकेश बाग की ओर निकल गया लंबे लंबे तेज कदमो से चलता हुआ राकेश ठीक उसी पेड़ के नीचे पहुच गया जहां कल सुलोचना मिली थी इधर उधर देखा कुछ भी नही थी उसने एक दो बार आवाज भी दी सुलोचना वो सुलोचना कहाँ हो फिर ये सोच के चुप हो गया कि ये भूत तो मन की बात भी सुन लेते है उसने अब मन ही मन सुलोचना को याद किया पर कोई हलचल न हुई मन मसोस के राकेश पेड़ के नीचे छाया में ही लेट गया तेज धूप में चलती ठंडी पुरवाई से कब नींद आ गयी उसे पता भी नही चला
लल्ला वो लल्ला मामी की आवाज सुन कर चौक गया राकेश अरे मामी क्या हुआ लल्ला तुम्हारे मामा मना किये थे यहां अकेले न आना काहे आ गए अब जो हो गया सो हो गया अब न आना यंहा भैया ये सब भूत प्रेत का चक्कर अच्छा नही है राकेश तब तक सम्हल चुका था अरे नही मामी मैं तो बस ठंडी हवा के कारण आया था बाकी....अच्छा छोड़ो उसकी बात बीच मे काटती हुई मामी बोली सुनो अम्मा की तबियत खराब हो रही है दवाई लाना था इसीलिए तुम्हे ढूंढ रही थी ये लो पर्ची और जल्दी से चौराहे वाले मेडिकल स्टोर से दवा ले आओ फिर सब लोग चाय पीते है तब तक मैं चटनी के लिए आम तोड़ लूं....कहते हुए मामी ने पर्ची राकेश की शर्ट की जेब मे रख दी नानी की तबियत खराब है सुनते ही राकेश सब कुछ भूल गया और नजदीक के चौराहे की तरफ दवा लेने चल दिया मेडिकल स्टोर पर पहुचते ही राकेश ने जेब से पर्ची निकाली और दुकानदार को देकर बोला भाई तीन खुराक दे दो, दुकानदार हाथ मे पर्ची लेकर हस पड़ा अरे दवा तो लिखा लाओ भाई पर्ची पर तो केवल नाम लिखा है राकेश ने पर्ची अपने हाथ मे ली पर्ची में गहरे काले रंग की स्याही से लिखा था सुलोचना......एकबारगी राकेश के आंखों के आगे अंधेरा छा सा तो क्या वो सुलोचना ?...मतलब वो मामी नही सुलोचना थी नही ऐसे कैसे हो सकता है मन ही मन बड़बड़ाते हुए राकेश तेज कदम से घर आया सामने ही मामी बैठी मसाले कूट रही थी राकेश को देखते ही बोल पड़ी अरे लल्ला कहाँ घूम रहे सब तुम्हे पूछ रहे थे चलो हाथ पैर धो के आ जाओ शरबत बनाने जा रही हूं ....मामी वो दवा...कैसी दवा लल्ला क्या हो गया तुम्हे ? कुछ ....कुछ नही मामी वही पड़ी चारपाई पर धम से बैठ गया राकेश तो वो सच मे सुलोचना थी अब उसे उस समय कि बात याद आ रही कि "भैया अब मत आना यंहा, राकेश ने सोच लिया कि अब सुलोचना का सारा किस्सा पता करेगा, ननिहाल में शादी में आया साधारण युवा अब मिशन सुलोचना की राह की ओर बढ़ गया था
अगले दिन ......
क्रमशः

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