सुलोचना - 2 Pandit Devanand Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सुलोचना - 2

अगले दिन राकेश सुबह सुबह गांव घूमने निकल पड़ा कोशिश थी कोई तो ऐसा होगा जो सुलोचना के बारे में कुछ जानता होगा इसी उधेड़बुन में घूमते घूमते राकेश सुलोचना के घर के नजदीक पहुँच गया गांव से अलग वीरान में घर था सुलोचना का सुबह से मौसम खराब था तो बारिश भी शुरू हो गयी थी राकेश ने बाहर से आवाज लगाई काका वो काका अंदर से सुलोचना के पिता जगत महतो ने आवाज दी आ जाओ बचवा अंदर आ जाओ काहे भीग रहे लल्ला जूते उतार कर राकेश अंदर चला गया
एक कमरे के छोटे से मकान में जगत महतो और उनकी पत्नी दोनों रह रहे थे गरीबी घर के कोने कोने से झांक रही थी राकेश ने पूछा काका कइसन हो ...जगत महतो ने सपाट से जबाब दे दिया ठीक हूँ लल्ला कैसे आना हुआ ..राकेश समझ नही पा रहा था कहाँ से बात शुरू करे ..सुलोचना के बारे में कुछ जानना था काका एक सांस में अपनी बात खत्म कर दी राकेश ने पर ....जैसे जगत महतो और उसकी पत्नी ने सुना ही नही वैसा ही सन्नाटा और कोई जबाब नही है ..अनमने मन से उठ गया राकेश ..अच्छा काका पायलागो चलते है...ठीक है बचवा ख्याल राखी आपन...बाहर जूते पहन ही रहा था राकेश की अंदर से जगत महतो की कर्कश आवाज सुनाई दी ...जाने कहाँ से आ जात है मुँह उठाये दूसरे के घर मे झांकने की आदत न गयी इन लोगो की ...कड़वा सा घुट पीकर राकेश आगे बढ़ गया आगे कुएं पर गांव की औरतें पानी भर रही थी राकेश को देख कर सब हालचाल पूछने लगी कब आये भैया और शहर में सब कैसे है राकेश भी बात करने में लग गया और सुलोचना का खयाल मन से कब निकल गया जान भी नही पाया..नानी मामी और कई हम उम्र की मौसी सब राकेश को घेर कर घंटो बात करती रही तभी बारिश तेज होने लगी थी सभी अपना अपना बर्तन बाल्टी लेकर घर को निकल पड़ी नन्हे मामा की नई नवेली बहु से पानी की बाल्टी उठ ही न रही थी हस पड़ा राकेश अरे मामी काहे इतना बोझ उठा रही है हम है न लाओ हम पहुँचा दे घर तक बाल्टी...साड़ी में लिपटी शर्मीली सी बहु ने घूंघट के अंदर से ही कहा चलो लल्ला चाय भी पिलायेंगे राकेश बाल्टी उठाये पीछे पीछे और मामी आगे चल रही थी तभी राकेश का माथा ठनका इस बारिश में ये अकेले रह गयी और मुझे ठीक से जानती भी नही कही ये सुलोचना तो नही...सोचते ही बारिश में भी पसीना आ गया राकेश को सुना था चुड़ैल का पैर उल्टा होता है उसने धीरे से पैर देखा वो तो सीधे थे पर फिर भी मन की तसल्ली के लिए वो बोल पड़ा वो मामी सुलोचना को जानती हो ...कौन सुलोचना उ जो बगिया में मर गयी रही ..हाँ मामी वही....अरे लल्ला उसे काहे पूछ रहे ...कुछ नहीं मामी बस सब कह रहे थे भूत बन गयी है बगिया में घूमती रहती है...लल्ला पता नही पर तुम जरा ई सब से दूर रहो ...तुम्हे पता है सुलोचना के मरे के 7 दिन बाद ऊके अम्मा और बाबु दुनो फांसी लगा के कोठरी में मर गए रहे तबसे बीरान पड़ी है कोठरी की आवत जात नही उधर से ...क्या आंखे फैला गयी राकेश की मामी सुलोचना के पापा मम्मी फांसी लगा लिए थे...नही मामी ऐसे कैसे सम्भव न गलत है न डराओ न मामी... सच्ची लल्ला तुमहारे मामा की कसम अच्छा छोड़ो ई सब आओ घर मा अंदर चाय बना रहे है बाल्टी रख कर बिना कुछ बोले राकेश बदहवास से सुलोचना के घर की ओर भागा घर के सामने पहुँचा दरवाजा अब भी आधा खुला था हिम्मत करके राकेश आगे बढ़ा एक काली बिल्ली जोर से चीखती घर से बाहर निकली अंदर सब उथला पुथला पड़ा था न जगत महतो थे न उनकी पत्नी बस एक दीवार पर सुलोचना की धूल भरी फ़ोटो लटक रही थी जैसे कह रही हो खोज लिए मेरा रहस्य ...तभी बाहर से किसी ने आवाज दिया राकेश यंहा क्या कर रहे बाहर आओ देखा तो बड़े मामा खड़े थे...अरे मामा कुछ नही वो बस...ऐसा है लल्ला बड़े जासूस करमचंद न बनो कुछ ऊँच नीच हो गया तो बिट्टी को का जबाब देंगे ये सुलोचना का भुत मन से निकाल दो ...अब राकेश कैसे बताये की सुलोचना के साथ साथ अब जगत महतो और उनकी पत्नी को भी उसने देखा है उनका रहस्य भी अब उसके लिए जानना जरूरी है ...जगत महतो उनकी पत्नी और बेटी सुलोचना की मौत और अपने साथ घटी घटना को लेकर राकेश अब डरने से ज्यादा रोमांचित महसूस कर रहा था मन ही मन ठान चुका था कि इस गुत्थी को सुलझा के ही अब दम लेगा
क्रमशः