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सिर्फ जिस्म नहीं मैं - उपन्यास
Divya Sharma
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
मैं सिर्फ एक जिस्म नहीं..शॉवर के नीचे खड़ी हो अपने शरीर को तेज हाथों से रगड़ने लगी।हाथों का दबाव लगातार बढता जा रहा था और आँखों से निकलता सैलाब बंध तोड़कर बह रहा था।शरीर के हर हिस्से पर साबुन मलती शैली शरीर पर लगी उस गंदगी को साफ करने की कोशिश कर रही थी जो पिछले बीस सालों से रोज उससे आ लगती।जिसे वह अपना प्यार समझ रही थी।वह तो असल में कोई था ही नहीं!पानी की तेज आवाज में उसे कुछ शब्द सुनाई देने लगे..."औरत की अपनी एक सीमा होती है।उसके कुछ फर्ज होते है उनमें सबसे पहले अपने
मैं सिर्फ एक जिस्म नहीं..शॉवर के नीचे खड़ी हो अपने शरीर को तेज हाथों से रगड़ने लगी।हाथों का दबाव लगातार बढता जा रहा था और आँखों से निकलता सैलाब बंध तोड़कर बह रहा था।शरीर के हर हिस्से पर साबुन ...और पढ़ेशैली शरीर पर लगी उस गंदगी को साफ करने की कोशिश कर रही थी जो पिछले बीस सालों से रोज उससे आ लगती।जिसे वह अपना प्यार समझ रही थी।वह तो असल में कोई था ही नहीं!पानी की तेज आवाज में उसे कुछ शब्द सुनाई देने लगे... औरत की अपनी एक सीमा होती है।उसके कुछ फर्ज होते है उनमें सबसे पहले अपने
फोन को डिसकनेक्ट कर वह आरती के बगल में बैठ जाता है।माथे पर पसीने की बूंद उभर आती है।टेंशन में आरती के हाथ पर दबाव डालने लगता है।दर्द से आरती कराह उठती है और विवेक को बोलती है.."विवेक!ऐसे हाथ ...और पढ़ेदबा रहे हो क्या हुआ तुम्हें?""वो.. फोन!"वह जवाब देता है।" फोन!...फोन क्या विवेक?""अभी फोन आया था उसका।""किसका फोन!क्या बोल रहे हो ठीक से बताओ।""विशू का।"विवेक ने अटकते हुए कहा।"विशू!विवेक दिमाग खराब है क्या।क्या अनापशनाप बोल रहे हो।""मैं सच कह रहा हूं विश्वास करो।""कूल डाउन विवेक।बहुत समय से यह सब झेल रहे हो आप ऐसा भ्रम हो जाता है रिलैक्स।"आरती उसे