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पश्चाताप - उपन्यास
Meena Pathak
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
अमिता फूट फूट कर रो रही थी अब उसे अपने किये पर पश्चाताप हो रहा था शायद उसे उन बुजुर्गों की हाय लगी थी जिसे रोता बिलखता वह छोड़ आई थी कितना रोका था उन लोगों ने पर उसने उनकी एक ना सुनी नेत्रों से अश्रु बहते जा रहे थे, हृदय हाहाकार कर उठा था वह कितनी स्वार्थी हो गयी थी उस समय, एक बार भी उसने उन वृद्ध माता-पिता के बारे में नहीं सोचा जिन्होंने अपना इकलौता बेटा खोया था आज वो दोनों बुजुर्ग ना जाने किस हाल में होंगे होंगे भी या..!
अमिता फूट फूट कर रो रही थी अब उसे अपने किये पर पश्चाताप हो रहा था शायद उसे उन बुजुर्गों की हाय लगी थी जिसे रोता बिलखता वह छोड़ आई थी कितना रोका ...और पढ़ेउन लोगों ने पर उसने उनकी एक ना सुनी नेत्रों से अश्रु बहते जा रहे थे, हृदय हाहाकार कर उठा था वह कितनी स्वार्थी हो गयी थी उस समय, एक बार भी उसने उन वृद्ध माता-पिता के बारे में नहीं सोचा जिन्होंने अपना इकलौता बेटा खोया था आज वो दोनों बुजुर्ग ना जाने किस हाल में होंगे होंगे भी या..!
शहर के पॉश एरिया में भव्य और सुंदर सा बंगला, नौकर-चाकर, हर सुख-सुविधा और क्या चाहिए था उसे ! गेट से प्रवेश करते ही बड़ा सा बगीचा जिसमे देशी-विदेशी पुष्पों से ले कर अमलतास, गुलमोहर, खजूर और पारिजात के ...और पढ़ेभी शान से खड़े बंगले की शोभा बढ़ा रहे थे मधुमालती के नन्हे-नन्हे पुष्पों के गुच्छे उसे देख मुस्कुरा रहे थे बंगले के भीतर की साज-सज्जा और रख-रखाव देख कर उसे ऐसा आभास हुआ जैसे वह किसी बंगले में नहीं, महल में आ गयी हो खुशी से वह फूली नहीं समा रही थी अपने भाग्य पर इतरा रही थी