जो घर फूंके अपना 1 चीनी हमले से लुप्त हुई फ़ौजी जीवन की मीठास उन्नीस सौ बासठ में भारत पर चीनी आक्रमण के लिए भारतीय सेनायें कतई तैयार नहीं थीं. चीनी थलसेना ने भारतीय थलसेना पर एक-एक पर तीन-तीन की तर्ज़ पर ‘मानवीय लहरों ‘के रूप में जब धावा बोला तो उनके साथ हिमालय की दुर्गम ढलानों से नीचे उतरने की सहूलियत भी थी. फिर तो भारतीय सेना का तबला धीन-धीन करके बजना ही था. चीनियों की स्वचालित रायफल्स का सामना भारतीय सिपाही द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की ‘थ्री नॉट थ्री’ बंदूकों से कर रहे थे. न उनके पास पैरों

Full Novel

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जो घर फूंके अपना - 1 - चीनी हमले से लुप्त हुई फ़ौजी जीवन की मीठास

जो घर फूंके अपना 1 चीनी हमले से लुप्त हुई फ़ौजी जीवन की मीठास उन्नीस सौ बासठ में भारत चीनी आक्रमण के लिए भारतीय सेनायें कतई तैयार नहीं थीं. चीनी थलसेना ने भारतीय थलसेना पर एक-एक पर तीन-तीन की तर्ज़ पर ‘मानवीय लहरों ‘के रूप में जब धावा बोला तो उनके साथ हिमालय की दुर्गम ढलानों से नीचे उतरने की सहूलियत भी थी. फिर तो भारतीय सेना का तबला धीन-धीन करके बजना ही था. चीनियों की स्वचालित रायफल्स का सामना भारतीय सिपाही द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की ‘थ्री नॉट थ्री’ बंदूकों से कर रहे थे. न उनके पास पैरों ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 2 - फ़ौजी ग्लेमर की दुनिया पर चीनी बमबारी

जो घर फूंके अपना 2 फ़ौजी ग्लेमर की दुनिया पर चीनी बमबारी एक बूढ़े आदमी ने लाठी टेक टेक चलते हुए सारे देश में अहिंसा और स्वराज की ऐसी अलख जगाई कि अंग्रेजों को अंततः भारत छोड़ कर जाना ही पड़ा. वे खुद तो गए पर अपने पीछे देश भर में फ़ैली हुई छावनियों में अपनी अद्भुत और अमिट छाप छोड़ गए. इन छावनियों में फ़ौजी अफसरों की अपनी एक अलग ही दुनिया थी. एक शानदार ग्लेमर – चकाचौंध से भरी दुनिया. कैंटोनमेंट या फ़ौजी छावनियां भीडभाड भरे शहरी इलाकों से बाहर होती थीं जहां साधारण नागरिक को जाने ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 3 - दिन तो घूरे के भी पलटते हैं.

जो घर फूंके अपना 3 दिन तो घूरे के भी पलटते हैं. बात हो रही थी राष्ट्रीय प्रतिरक्षा अकादमी प्रशिक्षण के उन दिनों की जबतक चीनी थलसेना ने हम फौजियों के जीवन में रोमांस की मिटटी पलीद नहीं की थी. मज़े की बात ये थी कि सिर्फ कैडेटों या नौजवान अफसरों की अक्ल पर रूमानियत का यह पर्दा नहीं पड़ा हुआ था. बाहर से झाँकने वालों की नज़रें भी उसी रूमानियत के परदे में फंसकर रह जाती थीं. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह था कि उन दिनों एन डी ए या आई एम ए ( इन्डियन मिलिटरी अकादेमी ) में ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 4 - दूर हटो ओ कन्या वालों हम मिग 21 उड़ाते हैं !

जो घर फूंके अपना 4 दूर हटो ओ कन्या वालों हम मिग 21 उड़ाते हैं ! फौजियों के जीवन रोमांस के पनपने के लिए शान्ति का दौर उतना ही आवश्यक होता है जितना देश के विकास के लिए स्थायी सरकार का होना. तभी सारी कठिनाइयों के बावजूद ’71 से ‘78’ तक के लम्बे शान्ति के दौर में थलसेना- जलसेना के अफसरों की शादी के बाज़ार का सूचकांक थोडा बहुत तो ऊपर चढ़ा ही. शादी के मामले में उनकी पूछ कुछ बढ़ने का कारण शायद ये भी था कि युद्ध के बाद विधवाओं के नाम घोषित रिहायशी प्लाट, या गैस ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 5 - ह्मसफर की तलाश--लखनऊ से गुवाहाटी तक

जो घर फूंके अपना 5 ह्मसफर की तलाश--लखनऊ से गुवाहाटी तक सन 65 के युद्ध के बाद जब शादी बाज़ार में फौजियों के लिए घोर मंदी के दिन थे तब हमारे बैच के अफसर मुश्किल से 21, 22 वर्ष के थे. विवाह का प्रश्न ही नहीं था. कहने को तो ये हमारे खेलने खाने के दिन थे पर स्थिति ये थी कि जो खेल हम खेलना चाहते थे उसके लिए साथी मिलना दुष्कर कार्य था. शायद इसी वास्तविकता को छिपाने के लिये देर से शादी देर से करने का फैशन था. 1960-70 के दशक में फ़ौजी अफसर 30-32 वर्ष ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 6 - जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को ---

जो घर फूंके अपना 6 जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को --- गौहाटी में ताश के खेल हारकर जिन खुशकिस्मतों को अपनी मोटरबाइक्स बेचने की नौबत का सामना नहीं करना पड़ा उन्ही में से एकाध ने यह सुसमाचार दिया कि गौहाटी से चार घंटे मोटरसाइकिल चलाकर यदि सप्ताहांत में शिलोंग जाने का कष्ट किया जाए तो रोमांस का स्कोप कहीं बेहतर था. शिलोंग की खासी लडकियां जितनी सुन्दर और स्मार्ट होती थीं उतना ही अपने व्यवहार में खुलापन लिए हुए और दोस्ती करने में प्रगतिशील थीं. पर यहाँ कबाब में हड्डी थे स्थानीय खासी लड़के जिनकी एयरफोर्स ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 7 - गौहाटी की अंधेरी रातों में बिजली की चमकार

जो घर फूंके अपना 7 गौहाटी की अंधेरी रातों में बिजली की चमकार बरुआ दम्पति ने गौहाटी के संभ्रांत में वायुसेना के अफसरों की किन शब्दों में तारीफ़ की ये तो नहीं मालूम किन्तु नटराजन के उस अभागे निमंत्रण के बाद गौहाटी के ऑफिसर्स मेस में मुर्दनी छा गयी. वे नौजवान अफसर जिन्होंने बरुआ कन्याओं और उनकी सहेलियों के साथ थोड़ी बहुत पेंगें बढ़ाई थीं लुटे लुटे से दीखते थे. कइयों ने उनसे फोन पर संपर्क साधने का प्रयास भी किया पर हर बार उत्तर मिलता था कि वे घर पर नहीं हैं. भारतीय दूरसंचार के आकाश से मोबाइलों ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 8 - और बिजली सचमुच गिरी !

जो घर फूंके अपना 8 और बिजली सचमुच गिरी ! इतना पता लगाने में कौन सी मुश्किल थी कि कमांडर साहेब की एक नहीं, दो-दो बेटियाँ थीं जो दिल्ली में रहकर पढाई कर रही थीं. लेकिन इसके आगे उनका विशेष विवरण नहीं मिल सका. नटराजन की मुश्कें फिर कसी गयीं तो आखीर में उसने उगल दिया कि स्टेशन कमांडर साहेब की दो बेटियाँ वास्तव में इन छुट्टियों में आनेवाली थीं. कमांडर साहेब ने नटराजन से मशविरा किया था कि उनके मनोरंजन के लिए क्या प्रबंध करना उचित होगा तो उसी ने बैडमिन्टन कोर्ट शीघ्रातिशीघ्र बनवाने का सुझाव दिया था. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 9 - चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस

जो घर फूंके अपना 9 चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस बैडमिन्टन का नशा ठीक से चढ़ने पहले ही उतर गया. जवानी दीवानी उदास हुई तो आसानी से मुस्करा न सकी. दो एक महीनों के बाद ही आया नया साल. मेस में पार्टी के साथ उसका स्वागत हुआ. पर वह पहले जैसी बात कहाँ? फिर दो तीन महीनों के बाद “बीहू“ का उत्सव आ गया. असम का फाल्गुनी उत्सव. धान की फसल पकने के उल्लास का उत्सव. केदार नाथ अग्रवाल की बेहद खूबसूरत कविता ‘ बसन्ती हवा’ के बोलों पर इठलाकर झूमने नाचने का उत्सव. बीहू नृत्य ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 10 - सौ सौ सवाल लड़ाकू विमानों पर !

जो घर फूंके अपना 10 सौ सौ सवाल लड़ाकू विमानों पर ! बहुत जल्दी ही समझ में आ गया कठिन था पूरे दो महीने की छुट्टी अपने छोटे से ‘देस’ में बिताना. बस एक सहारा था गंगा के घाटों का जहां संध्या समय घूमने में बहुत मज़ा आता था. सुबह सुबह जाता तो और ज़्यादा मज़ा आता. पर मैं उस बदनामी से डरता था जो सुबह सुबह घाटों की सीढ़ियों पर बैठकर प्राकृतिक कम और मानवीय सौन्दर्य अधिक निहारने वालों की उस छोटे से शहर में हो जाती थी. पिताजी के क्लिनिक जाने के बाद अर्थात नौ दस बजे ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 11 - ऐसी अफसरी से तो क्लर्की भली!

जो घर फूंके अपना 11 ऐसी अफसरी से तो क्लर्की भली! गाजीपुर में छुट्टियां बिताने के लिए टाइपराइटिंग सीखने शौक भी महँगा पडा. बताता हूँ कैसे. एक तेज़ तर्रार लोमड़ी को आलसी कुत्ते पर कुदाते हुए अर्थात A quick brown fox jumps over the lazy dog वाली इबारत जिसमे अंग्रेज़ी वर्णमाला के छब्बीसों अक्षर आ जाते हैं टाइप करते हुए मुझे एक सप्ताह भी नहीं हुआ था. अब तक टाइपिंग योग्यता केवल इतनी हुई थी कि तेज़ तर्रार लोमड़ी बजाय कुत्ते पर कूदने के प्रायः स्वयं मुंह के बल गिर पड़ती थी कि एक दिन वहाँ एक प्रशिक्षार्थी बहुत ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 12 - मेरे सपनों की रानी, तू न आई, तो अब मैं ही आता हूँ

जो घर फूंके अपना 12 मेरे सपनों की रानी, तू न आई, तो अब मैं ही आता हूँ सैद्धांतिक से विवाह करने की हामी मुझसे लेने के बाद पिता जी ने भांप लिया कि मैं यह काम उनके जिम्मे नहीं छोड़ना चाहता था. अतः जीजा जी को इसकी ज़िम्मेदारी सौंप दी गई. जीजा जी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में अधिकारी थे अतः विशेष कार्यव्यस्तता के सताये हुए नहीं थे. भारत की जड़ें खोद देने के लिए सरकार के पी डब्ल्यू डी और नहर विभाग आदि ही काफी थे. पुरातत्व विभाग के पास कहीं नयी खुदाई करने के लिए कोई बजट ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 13 - पहली मुलाक़ात है जी, पहली मुलाक़ात है

जो घर फूंके अपना 13 पहली मुलाक़ात है जी, पहली मुलाक़ात है डिफेन्स कोलोनी के उस मकान तक चौहान साथ टैक्सी में बैठ कर जाते हुए मुझे वायुसेना सेलेक्शन बोर्ड देहरादून की याद आती रही जहाँ एन डी ए ( राष्ट्रीय प्रतिरक्षा अकादमी ) में चुने जाने के लिए लगभग दस साल पहले गया था. सेलेक्शन बोर्ड में हमें चार दिन तक रुकना पडा था. लगातार एक के बाद एक कई मनोवैज्ञानिक और शारीरिक, लिखित और प्रैक्टिकल टेस्ट्स से गुज़रने के बाद अंत में सेलेक्शन बोर्ड के प्रेसिडेंट के साथ निजी इंटरव्यू का नंबर आया तो मेरा किशोर मन ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 14 - नं जाने इनमे कौन हैं मेरे लिए

जो घर फूंके अपना 14 नं जाने इनमे कौन हैं मेरे लिए कहानी सुना रहा हूँ मैं वायुसेना के चालक की तो उसका पूरा रस ले सकें इसके लिए आवश्यक होगा कि फ़ौजी वैमानिक के पेशेवर जीवन (प्रोफेशनल लाइफ) के विषय में भी कुछ बता दूँ. परिवहन विमान उड़ाने वाले पाईलटों और नेवीगेटरों की हर साल लिखित व मौखिक परीक्षा के अतिरिक्त फ़्लाइंग की प्रैक्टिकल परीक्षा होती है. योग्यतानुसार उन्हें चार श्रेणियों मे वर्गीकृत किया जाता है. बी श्रेणी वाले विशिष्ट व्यक्तियों की उड़ान भर सकते हैं और ए श्रेणी वाले अतिविशिष्ट व्यक्तियों की जैसे राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री आदि. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 15 - सरकारी ठाठ बाट की बात ही कुछ और है.

जो घर फूंके अपना 15 सरकारी ठाठ बाट की बात ही कुछ और है. "और फिर इलाहाबाद जाकर लड़की की तय्यारियाँ शुरू हो गईं. ” कायदे से तो मेरी कहानी की पिछाड़ी को देखते हुए उसकी अगाडी यही होनी चाहिए थी, पर ऐसा हुआ नहीं. बात ये थी कि लड़की इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एम ए की छात्रा थी. उसकी फ़ाइनल परीक्षा अभी महीनों दूर थी. लड़की वाले तेज़ लोग लगते थे. मुझे लगाए-बझाए भी रखना चाहते थे और साथ ही ये भी कहते थे कि कोई जल्दी नहीं है, कभी भी फुर्सत से देखना दिखाना हो जाएगा. विवाह फ़ाइनल ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 16 - प्रसंग हेलेन और हेमा मालिनी का हो तो विषयांतर किसे बुरा लगता है !

जो घर फूंके अपना 16 प्रसंग हेलेन और हेमा मालिनी का हो तो विषयांतर किसे बुरा लगता है ! की उड़ान की प्रतीक्षा कर रहा था तभी इस बीच एक उड़ान पर अचानक बम्बई (तब तक मुंबई नहीं कहलाता था) गया तो लगा कि यह मेरे सितारों की तरफ नारी जाति के सितारों के झुकाव का शुभ संकेत था जो तबतक कभी नहीं मिला था. विषयांतर तो होगा पर वह किस्सा भी सुना ही डालूँ वापस आकर इलाहाबाद तो चलना ही है. हमारी वी. आई. पी. स्क्वाड्रन में HS 748 और TU 124 जेट विमान थे जो वायुसेना की ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 17 - क्या क्या न सहे हमने सितम आपकी खातिर !

जो घर फूंके अपना 17 क्या क्या न सहे हमने सितम आपकी खातिर ! इलाहाबाद जाने की तय्यारी तो विशेष करनी नहीं थी. लडकी के पिताजी को फोन मंगलवार को किया था. जाने में चार दिन बाकी थे. इन चार दिनों का सदुपयोग मैंने शोभा की तस्वीर देर-देर तक निहार कर किया. शोभा की तस्वीर के साथ की जो चार अन्य तस्वीरें बूमरैंगी फिंकाई और बन्दर-नुचवाई से बच गयी थीं यदि पास रही होतीं तो रोज़ उनकी दूकान सजा कर बैठता और सोचता कि किसी के होंठ रसीले लगते हैं,किसी की आँखें नशीली हैं पर मुझे पसंद आने वाली ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 18 - आग के दरिया से संगम के शीतल पानी तक

जो घर फूंके अपना 18 आग के दरिया से संगम के शीतल पानी तक ट्रेन चल पड़ी तो मैं कुछ मिनटों में किसी तरह उठ कर खड़ा हो गया. पहले एक अंगूठे के ऊपर, फिर दो मिनट के बाद पूरे एक पैर पर और फिर आधे घंटे के बाद दोनों पैरों पर खड़ा होने की जगह बनती गयी. बैठने का प्रश्न नहीं था. माथे से पसीना पोंछ कर, अस्त व्यस्त कपडे ठीक करके जब सहयात्रियों पर नज़र डाली तो देखा कि अधिकाँश पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग थे -दिल्ली में छोटी मोटी नौकरियाँ करने वाले. एकाध मिनट ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 19 - झूठ बोले कौवा काटे

जो घर फूंके अपना 19 झूठ बोले कौवा काटे त्रिवेणी के ठंढे पानी में डुबकी लगाने से जैसे जैसे कम होती गयी पछतावा वैसे वैसे बढ़ता गया. क्या ज़रूरत थी बेकार में इतना झूठ बोलने की? मैंने अतीत में झांका तो पाया कि जब भी कभी कोई छोटा सा झूठ भी बोला था बुरा फंसा था. ऐसा ही कुछ दिन पहले लखनऊ में हुआ था जहां एक थानेदार साहेब मेरी और मेरे एक दोस्त की तलाश शायद अभी भी कर रहे हों. नहीं, कोई ह्त्या या डकैती का मामला नहीं था. बस एक छोटा सा झूठ बोला था मैंने. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 20 - बाप रे बाप !

जो घर फूंके अपना 20 बाप रे बाप ! लखनऊ में नाका हिंडोला थाने के थानेदार साहब मेरे लिए अपिरिचित थे और अपिरिचितों से गाली सुनने में कैसी शर्म. समस्या तो तब उठ खड़ी होती है जब अपनों को कुछ ग़लत बोलने के बाद उनसे बेभाव की पड़े. जैसी कि मेरे दोस्त तरलोक सिंह को पडी थी अपने ही पिताजी से. तरलोक भी मेरी स्क्वाड्रन में फ्लाईट लेफ्टिनेंट था. उसके पिताजी ने कलकत्ते में तीस साल पहले टैक्सी चलाना शुरू किया था. धीरे धीरे अपनी मेहनत के बल पर इन तीस सालों में वे तीस टैक्सियों के मालिक बन ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 21 - कई कई अवतार बापों के

जो घर फूंके अपना 21 कई कई अवतार बापों के बापों की इस चर्चा से याद आया कि जीवन हर क्षेत्र में लोगों को कोई न कोई मिल जाता है ‘जो मान न मान तू मेरी संतान’ कह कर सिंदबाद जहाजी के कंधे पर चढ़ कर बैठ जाने वाले बुड्ढे की तरह हाबी हो जाए. लाख अनुशासित पर्यावरण हो फ़ौजी जीवन का लेकिन वहां भी बाप बनने और ज़रूरत पड़े तो किसी को बाप बनाने का चलन खूब है. वायु सेना में हम जूनियर अफसरों को सी. ओ (कमान अधिकारी), फ्लाईट कमांडर इत्यादि अवतारों में बाप के दर्शन हो ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 22 - टेलर तो टेलर, बार्बर भी सुभान अल्लाह !

जो घर फूंके अपना 22 टेलर तो टेलर, बार्बर भी सुभान अल्लाह ! पालम वाले टेलर मास्टर जी का धंधा ही फिटिंग का था. लगे हाथ मुझे भी फिट कर गए. पर गनीमत थी कि फिटिंग अकेले में की, किसी के सामने नहीं. इतनी शराफत मुझे फौजी अफसरों को विभिन्न सेवाएँ देनेवाले सभी लोगों में दिखती थी. कोयम्बतूर में, जब मैं बाद में एयर फ़ोर्स प्रशासनिक कालेज में नियुक्त था, वहाँ की एक महान विभूति से परिचय हुआ था. इस कालेज में वायुसेना की हर ब्रांच के अफसर ‘जूनियर कमांडर्स कोर्स’ नामक एक कोर्स करने के लिए आते थे. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 23 - बार्बर बनाम नाई

जो घर फूंके अपना 23 बार्बर बनाम नाई पिताजी के सर पर रुपहले बालों की जगह केवल उनकी धूमिल याद को देखकर मेरी तुरत प्रतिक्रिया तो यही थी कि मेरे द्वारा हुई उनके हुनर की नाक़द्री का बदला जांसन ने मेरे पिताजी से निकाला था पर राष्ट्रीय प्रतिरक्षा अकादेमी (एन. डी. ए) के दिनो की एक घटना याद आ गयी तो लगा कि मुझे भी हंसकर इस घटना को लेना चाहिए. एन डी ए के उस बार्बर ने मेरी और मेरे एक मित्र की एक हरक़त की सूचना हमारे अधिकारियों को दी होती तो जाने कितनी सज़ा भुगतनी पड़ती. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 24 - फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी

जो घर फूंके अपना 24 फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी आपको अपने साथ रूस की यात्रा करने का निमंत्रण मैंने दे दिया पर मेरी पीढी के लिये विदेश यात्रा का क्या अर्थ था,कितना रोमांस और तिलिस्म था इस शब्द में इसका अंदाज़ लगाना भी आज के परिवेश में आपके लिए मुश्किल होगा. संभव है आप अपनी सारी रातें विदेशियों के साथ उन्ही की भाषा में, उन्ही के क्षेत्र की ऐक्सेंट में बात करते हुए किसी कालसेंटर में बिताते हों और मानसिक रूप से विदेश में ही रहते हों. आपके कार्य से खुश होकर हर साल आपकी कंपनी आपको बैंगकाक ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 25 - विदेश यात्रा : अपने अपने टोटके, अपना अपना जुगाड़

जो घर फूंके अपना 25 विदेश यात्रा : अपने अपने टोटके, अपना अपना जुगाड़ आज की तरह ही उस में भी केवल मंत्रियों और उनके चमचों का ही विदेश यात्राओं पर कब्ज़ा रहता हो ऐसा बिलकुल नहीं था. इस स्वादिष्ट हड्डी को विरोधी दलों के एक से एक बढ़कर भौंकने और गुर्रानेवाले नेताओं के मुंह में ठूंस दिया जाता था तो उनके मुंह से निकलती गुर्राहट फिल्टर होकर मीठी म्याऊँ म्याऊँ में बदल जाती थी. फिर इसके लिए वे केवल सरकारी कृपा पर ही नहीं निर्भर करते थे. साम्यवादी देशों में मास्को, हवाना (क्यूबा ), बेजिंग आदि की सैर ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 26 - कम खर्च बालानशीन

जो घर फूंके अपना 26 कम खर्च बालानशीन रूस में हमारे ठहरने का प्रबंध पांचसितारा होटलों में होता था अलग से दैनिक भत्ता मिलता था जो खाने के लिए पर्याप्त से अधिक होता था. प्रवास की अवधि पूर्वनिर्धारित अवधि से लम्बी खीचने पर ये भत्ता हमें वहीं भारतीय दूतावास में नकद मिल जाता था. पर डटकर खाने में ही सारी विदेशी मुद्रा खर्च कर देते तो खरीदारी कहाँ से होती. इसका इलाज होता था सस्ते से सस्ता जलपान करके. सोवियत पांचसितारा होटलों की एक विशेषता ये थी कि उनमे हर फ्लोर पर एक सेल्फ-सर्विस कैफेटेरिया होती थी जिनमे जलपान ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 27 - गरम ओवरकोट

जो घर फूंके अपना 27 गरम ओवरकोट अगले दिन हम दोनों गुप्ता के चाचाजी के घर गए. रास्ते भर राजकपूर की फिल्मों के गाने गुनगुनाता रहा. हालांकि उसके गले में स्वर कोई विशेष नहीं था पर उसके गाने का फायदा ये था कि मोटरबाइक का हॉर्न नहीं बजाना पड रहा था. चाचाजी के घर के ड्राइंग रूम में घुसे तो दीवान के ऊपर पालथी लगाए, सद्यःस्नात, माथे पर लाल तिलक लगाए, कम्बल लपेटे बैठे सज्जन प्रोफेस्सर विद्याविनाश जी को छोड़कर अन्य कोई हो ही नहीं सकते थे. हम दोनों ने बढ़कर पैर छुए, आशीर्वाद मिला. बात शुरू करने के ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 28 - विदेश की राह में वो लड़खड़ाता पहला कदम

जो घर फूंके अपना 28 विदेश की राह में वो लड़खड़ाता पहला कदम हमारी यात्रा का प्रथम चरण दिल्ली दुबई का था, जहां जहाज़ में ईंधन भरवा कर हमे तेहरान के रास्ते रूस में तिबलिसी तक की उड़ान भरनी थी और फिर वहाँ से मास्को की. दुबई उन दिनों भी कस्टमड्यूटीमुक्त (ड्यूटीफ्री) दूकानों के लिए मशहूर था. दूकानदार ज़ियादातर सिंधी और दक्षिण भारतीय थे. शराबबंदी गुजरात जैसी कड़ी थी अतः करेंसी में भारतीय रूपये और भारतीय शराब दोनों चलते थे. अर्थात हम अपने साथ लाइ हुई फौजी रम चाहते तो आसानी से स्काच व्हिस्की में बदल पाते. ये काम ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 29 - तू तू मैं मैं

जो घर फूंके अपना 29 तू तू मैं मैं मुखर्जी का टीवी चकनाचूर होकर कितने टुकड़ों में बिखरा इसकी करना अब बेकार था. इतना साफ़ होते ही हम बाकी के तीन साथियों ने अपने अपने किरदार संभाले और वही करना शुरू कर दिया जो सारे अच्छे दोस्त और निकट संबंधी ऐसे दुखद अवसरों पर करना अपना कर्तव्य समझते हैं. अर्थात जोर जोर से मुखर्जी को बताना शुरू किया कि वह कितना बेवकूफ है. ‘हमने तो पहले ही कहा था’ की टेक पर बोले हुए अगले कई वाक्य ऐसे थे:- ‘लौटते समय खरीदना था, पता नहीं अभी लेने की ऐसी ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 30 - हाय री किस्मत !

जो घर फूंके अपना 30 हाय री किस्मत ! बिल्ली के भाग्य से आखीर एक दिन छींका टूटा. पिछली को होटल के सबसे अच्छे रेस्तरा में हम पाँचों की रूसी फौजी अफसरों के एक बहुत भारत- प्रेमी ग्रुप से दोस्ती हो गयी थी. राजकपूर की फिल्मों के हिन्दी गाने और उस ज़माने के अतिलोकप्रिय रूसी गीत “रास्विताली याव्ली ना इक्रुश्की,पाप्लिली कमानी नाद रिकोई ------“ जो हम लोग भी सुनते सुनते सीख गए थे एक के बाद एक गाते हुए हम लोग ‘इंदो रूस्कीय द्रूज्बा’ अर्थात भारत रूस मैत्री के नाम जाने कितने शैम्पेन और वोदका के जाम पीते रहे. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 31 - गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में

जो घर फूंके अपना 31 गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में लीना का स्थान जब कोमरेड वोरोशिलोव ने तो हम सभी का ख्याल था कि यह केवल उस दिन के लिए एक अस्थायी व्यवस्था थी. पर फैक्टरी जाने पर हमारे संपर्क अधिकारी ने बताया कि हम जब तक वहां रुकेंगे वोरोशिलोव ही हमारे साथ रहेंगे. लीना ने किसी व्यक्तिगत काम से एक सप्ताह की छुट्टी ले ली थी. उस अधिकारी की बात का अंग्रेज़ी में अनुवाद करते हुए वोरोशिलोव ने अपना नाम आने पर हमें बड़े प्यार से अपने निकोटिन से पीले पड़ गए दांत दिखाए और सर ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 32 - एक छोटी सी मुलाक़ात की लम्बी दास्तान

जो घर फूंके अपना 32 एक छोटी सी मुलाक़ात की लम्बी दास्तान तो फिर उस दिन कपूर की मांग हम सब फैक्टरी से दोपहर तक वापस अपने होटल आ गए. हम तो खा पीकर सोना चाहते थे पर कपूर मुझे और गुप्ता को बार बार हमारे कमरे में आकर डिस्टर्ब करता रहा. पहले उसने दुबारा दाढी बनायी (ये महज़ मेरा ख्याल है, हो सकता है तिबारा बनाई हो) फिर देर तक अपने जूते में पालिश करता हुआ उनमे जवान आँखों की सी चमक पैदा करने की कोशिश में लगा रहा. फिर उसने तीन चार शर्ट्स और पैंटें निकालीं और ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 33 - अब आयेगा असली मज़ा!

जो घर फूंके अपना 33 अब आयेगा असली मज़ा! लिफ्ट के अंदर एकदम करीब चिपकी हुई नादिया की परफ्यूम को मदहोश करती रही. यदि एवरेस्ट की चोटी तक भी उस लिफ्ट में चढ़ते ही जाना होता तब भी कपूर भगवान् से यही मनाता जाता कि एवरेस्ट को थोड़ी और ऊंचाई बख्शे. आठवीं मंजिल पर पहुंचकर जब लिफ्ट रुकी, वे बाहर निकले और नादिया ने अपना सिल्वर फॉक्स के फर वाला कोट उतार कर रेस्तौरेंट के बाहर परिचारिका को पकडाया तो कपूर उसे देखता ही रह गया. उसे लगा जैसे सूर्य की पहली किरण के स्पर्श से कमल के फूल ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 34 - लौट के बुद्धू घर को आये -दिल्ली में दिलवाली की तलाश

जो घर फूंके अपना 34 लौट के बुद्धू घर को आये -दिल्ली में दिलवाली की तलाश मैं उस शायर पूरी तरह सहमत हूँ जिसका ख्याल है कि “हरेक रंज में राहत है आदमी के लिए. ” रूस में बाकी के बिताये हुए दिनों में कपूर ने मुकर्जी की जूती उसी के सर लगाई अर्थात उससे पैसे उधार लेकर स्वान लेक बैले उसी के साथ देखा. गुप्ता ने अपनी मंगेतर के लिये लोंजरी और ‘निज्न्येये वेलेये’ के साथ अन्य बहुत कुछ खरीदा. बिस्वास साहेब ने ‘देत्स्कीय मीर’ से बच्चों के लिए बहुत से कपडे और खिलौने लिए और मैंने माँ-पिताजी ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 35 - गणित के फंदे में लटकती सांस

जो घर फूंके अपना 35 गणित के फंदे में लटकती सांस धीरज बनाए रखिये. मुझे पता है आप ज्योति साथ मेरे रोमांस का किस्सा सुनने के लिए उतावले हो रहे होंगे. गणित से मेरी खानदानी दुश्मनी रही हो तो आपको उससे क्या लेना देना. पर दास्ताने मोहब्बत को जितना उलझाया जाए उसमे बाहर से झांकने में उतना ही ज़्यादा मज़ा आता है. अलिफ़ लैला की हज़ार रातों तक कहानी खींचते जाने वाली शाहजादी हो या पंचतंत्र की एक पशु पक्षी से अनगिनत पशुपक्षियों तक फुदकती हुई चली जाने वाली कहानियां, पेंच पैदा करना किस्सागोई की अनिवार्य आवश्यकता होती है. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 36 - डूबना कमल सरोवर में रोमांस का

जो घर फूंके अपना 36 डूबना कमल सरोवर में रोमांस का बारहवीं की गणित की परीक्षा का वह दिन आज का दिन ! मुझे अच्छी तरह समझ में आ गया है कि मेरे दिमाग की बनावट भी उस बाल्टी के जैसी त्रिशंकु के आकार की है जिसमे गणित का गोला कभी पूरी तरह नहीं समाएगा, बीच में फंसेगा ज़रूर. आज भी अपने शहर की दीवारों पर मरदाना ताक़त बढानेवाली गोलियों से अधिक कोई विज्ञापन दीखते हैं तो गणित के ट्यूशन देने वाले अध्यापकों और संस्थाओं के. ”गणित वही जो शर्मा जी पढ़ाएं “ और “गणित तो मैं भटनागर सर ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 37 - घरवाली बनाम अर्दली

जो घर फूंके अपना 37 घरवाली बनाम अर्दली बुद्ध जयन्ती पार्क में ज्योति के साथ बिताया हुआ वह थोडा समय मुझे बहुत दिनों तक मीठा मीठा दर्द देकर सालता रहा. तबतक किसी लडकी के सान्निध्य का अवसर मुझे केवल सोवियत रूस में मिला था. उसे भी लीना के साथ अपनी गलत सलत रूसी भाषा बोलकर मैंने बर्बाद कर दिया था. अपने देश में तो ज्योति ही वो पहली लडकी थी जिसके साथ मैंने एकांत के कुछ पल बिताये थे. नूरजहाँ ने भोलेपन से अपने नाज़ुक हाथों में पकडे कबूतर को उड़ाया था तो जहांगीर उस पर मर मिटा था. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 38 - अर्दली गाथा चालू आहे !

जो घर फूंके अपना 38 अर्दली गाथा चालू आहे ! स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से भारत में सैन्य सेवाओं अधिकारियों की वर्दी की शान में सरकारी प्रोटोकोल में लगातार गिरती हुई उनकी साख के साथ खूब बट्टा लगा है. सिविल सेवाओंवाले बाबुओं के मुकाबिले में उनकी प्रतिष्ठा ऐसे ही लगातार घटाई जाती रही तो जल्दी ही वे पूरे के पूरे दिगंबर दिखाई देने लगेंगे. खैरियत है कि यह उपक्रम अभी पूरा रंग नहीं लाया है वर्ना सेना की मर्यादा बचाने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे देने वाले उप थलसेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जेनरल एस के सिन्हा कौपीन धारण किये ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 39 - फिल्म कैसी है? ट्रेलर बतायेगा

जो घर फूंके अपना 39 फिल्म कैसी है? ट्रेलर बतायेगा बहुत हो गयी अर्दली गाथा, चलिये वापस पालम के मेस में चलते हैं. वह एक रविवार का दिन था. ज्योति के साथ बुद्धजयंती पार्क में बिताए हुए वे कुछ क्षण उस रविवार को मुझे बार बार याद आ रहे थे और गणित के प्रति मेरा गुस्सा बढा रहे थे. स्वयं मेरे आईने के अतिरिक्त मेरे चेहरे के भाव जो सबसे अच्छी तरह पढ़ सकता था वह था मेरा अर्दली हरिराम. पिछले कई दिनों से वह मुझे उदास और अनमना देख रहा था. मैं अपने कमरे के बाहर छोटे से ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 40 - लज्जा की लज्जा

जो घर फूंके अपना 40 लज्जा की लज्जा मेरे मन में तस्वीर बन रही थी एक बहुत चुपचाप, हर पति और ससुराल वालों की इच्छा से करने वाली एक मध्यकालीन बहू की. ज़रूर वह गौतम को पतिपरमेश्वर के समकक्ष मानती होगी. शाली, नहीं- नहीं, अतिशालीन किस्म की होगी. आजकल की लड़कियों से बिलकुल फरक ! पर शाम को गौतम के घर पर जिस उन्मुक्त मुस्कान के साथ उसकी नयी नवेली पत्नी ने मेरा स्वागत किया उसके लिए मैं तैयार नहीं था. उसके स्वागत से स्पष्ट था कि गौतम ने मेरे पहुँचने के पहले ही विस्तार से मेरा परिचय दे ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 41 - सिक्के की खनक और कमरदर्द की खुन्नस

जो घर फूंके अपना 41 सिक्के की खनक और कमरदर्द की खुन्नस गौतम ने उस घटना का बयान जारी जिसने लज्जा की लज्जा को खनखनाती हँसी में बदल दिया था- “तो मैं बता रहा था कि हम दोनों ऊपर नीचे की बर्थ पर अलग अलग लेटे तो चंद मिनटों में ही थकावट के मारे सो गए. दो तीन घंटे के बाद नींद खुली. बाहर झांका तो देखा गाडी किसी छोटे स्टेशन पर रुकी हुई थी. मुझे जोर से चयास लगी, सोचा उतर कर देखूं कोइ टी स्टाल है क्या. टी स्टाल दिखा पर प्लेटफोर्म पर बहुत दूर था. तभी ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 42 - आग के बिना सप्तपदी कैसी ?

जो घर फूंके अपना 42 आग के बिना सप्तपदी कैसी ? रवि की दास्तान में भावनात्मक और शारीरिक दोनों का दर्द भरा हुआ था. सुनकर मुझे लगा कि इश्क के बारे में कही गयी बात दरअसल शादी पर लागू होती है कि “इक आग का दरिया है और डूब के जाना है. ” पर इस शेर में आग का ज़िक्र आने से मुझे अपने एक रिश्तेदार की याद आ गयी जिनके यहाँ वर वधू को उसके सामने शपथ लेने और उसकी सात बार प्रदक्षिणा करने के लिए आग जुटाने में इतनी मुश्किल हुई कि शादी ही टल जाने की ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 43 - गुरु की तलाश में

जो घर फूंके अपना 43 गुरु की तलाश में ऑफिसर्स मेस में साथ रहने के लिए अब मेरे दो अविवाहित दोस्त भी नहीं बचे थे. गुप्ता की शादी की तारीख भी निश्चित हो गयी थी और अधिकाँश समय वह गायब रहता था. मैं मेस में अकेलापन महसूस करने लगा था. घर से माँ का आग्रह लगातार बना हुआ था कि दिल्ली से फिर कहीं दूर-दराज़ पोस्टिंग होने से पहले मैं अब शादी कर डालूँ. मेरे अर्दली हरिराम का सुझाया हुआ जीवन दर्शन यदि सही था कि “साथ रहते रहते हर मर्द औरत को आपस में मोहब्बत हो ही जावे ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 44 - सच्ची संगिनी वही जो जीवन भर साथ दे

जो घर फूंके अपना 44 सच्ची संगिनी वही जो जीवन भर साथ दे उन्ही दिनों पिताजी ने फोन करके कि उन्होंने, और माँ ने भाई साहेब, जीजाजी आदि की सहमति से एक लडकी पसंद की थी. उसके पिता को मेरा पता और फोन नम्बर दे दिया गया था और कह दिया गया था कि सीधे मुझसे मिलने का समय तय कर लें ताकि लड़की मुझे देख सके. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पहले लडकी के पिता मुझसे मिलेंगे, लडकी से मुलाक़ात बाद में करा देंगे. मैंने चैन की सांस ली. कम से कम मुझे इस चक्कर में ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 45 - बड़ी कठिन थी डगर एयरपोर्ट की - 1

जो घर फूंके अपना 45 बड़ी कठिन थी डगर एयरपोर्ट की -1 स्थायी/ अस्थायी प्रोपोज़ल वाली दुर्घटना के बाद कुछ दिनों तक प्रतीक्षा करता रहा कि भाई साहेब से वे शिकायत करेंगें और मुझे अपनी सफ़ाई पेश करनी होगी, पर जब कई दिनों तक भाई साहेब से फोन पर बात नहीं की तो चैन आया. भाई साहेब थे तो हैदराबाद में पर मेरा वहाँ का चक्कर अक्सर लगता रहता था. सोचा मिलूंगा तो समझा लूंगा कि गलतफहमी कैसे हुई थी. हमारी वी आई पी स्कवाड्रन कई सारी विशिष्ट व्यक्तियों को हैदराबाद की उड़ान पर ले जाती रहती थी. इन ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 46 - बड़ी कठिन थी डगर एयरपोर्ट की - 2

जो घर फूंके अपना 46 बड़ी कठिन थी डगर एयरपोर्ट की - 2 पता नहीं मेरा गिडगिडाना सुनकर उन्हें आ गई या उन्हें लगा कि वह दूधवाला हमें कुछ ज़्यादा ही परेशान कर रहा था. उन्होंने पहले तो भीड़ लगानेवालों को तेलगु में दांत लगाई, फिर दूधवाले को समझाया “ये लोग दो सौ रुपये दे रहे हैं, तेरा कम से कम सौ प्रतिशत मुनाफ़ा हो रहा है. रुपये पकड़ और चलता बन. ” उनकी बात में असर था. दूधवाले ने हमारे हाथों से नोट झपट लिये और भुनभुनाते हुए कार के सामने धराशायी साइकिल को उठाने लग गया. जैसे ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 47 - गरजत बरसत सावन आयो री !

जो घर फूंके अपना 47 गरजत बरसत सावन आयो री ! घड़ी की सेकेण्ड वाली सुई ने घूमकर इधर आठ बजाए और समय की अतीव पाबंदी के साथ, जिसके लिए हमारी वी आई पी स्क्वाड्रन विख्यात थी, विमान का इंजन चालू कर दिया गया. पश्चिमी हवा चल रही थी अतः पश्चिमोन्मुख रन वे 28 से जहाज़ के टेक ऑफ़ करने के बाद हमने सामान्य रूप से बाईं तरफ ( पोर्ट साइड) मुड़ने की बजाय विशिष्ट फ्लाईट को मिलने वाली छूट का लाभ उठाते हुए विमान को दाहिनी तरफ ( स्टारबोर्ड साइड) घुमाते हुए उत्तर दिशा की तरफ रुख किया. ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 48 - जान बची तो लाखों पाए

जो घर फूंके अपना 48 जान बची तो लाखों पाए हम जल्दी ही भोपाल के ऊपर उड़ते हुए भोपाल को अपनी पोजीशन रिपोर्ट देते लेकिन भोपाल के ठीक ऊपर दैत्याकार बादल क्रुद्ध शेषनाग जैसे फन काढ़कर फुंफकार रहे थे. सीटबेल्ट बाँध लेने का निर्देश देने वाली पट्टिका स्विच ऑन कर ली गयी. राष्ट्रपति जी को आगाह करने के लिए कोपायलट स्वयं गया और विशिष्ट कक्ष के पीछे दूसरे कक्ष में बैठे उनके दल के अन्य सदस्यों को आगाह करने के लिए केबिन क्र्यू का वरिष्ट सदस्य भेजा गया. वह सुनिश्चित करेगा कि सबने सीट बेल्ट बाँध ली है. कोपायलट ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 49 - और अब पुलिस पीछे पड़ गयी

जो घर फूंके अपना 49 और अब पुलिस पीछे पड़ गयी दिल्ली वापस पहुंचकर हैदराबाद की उड़ान वाले उस प्रसंग को भूलने की कोशिश कर ही रहा था कि लगभग पंद्रह दिनों के बाद मेरे पास ऑफिस में एक फोन आया. फोन करनेवाले ने अपना परिचय अशोक सक्सेना कहकर दिया. मेरे दिमाग में इस नाम से कोई घंटी नहीं बजी. इसे वे मेरी क्षण भर की चुप्पी से भांप गए. उन्होंने कहा “ आपको शायद नाम ध्यान न हो, मैं वही पुलिस ऑफिसर हूँ जिसने जीप में आपको हैदराबाद एयरपोर्ट पहुंचाया था” मेरे दिमाग की बत्ती जली. कुछ लज्जित ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 50 - ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो

जो घर फूंके अपना 50 ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो --- शाम को ठीक सात बजे मैं वोल्गा रेस्तरां दाखिल हुआ तो एक नीची टेबुल के सामने सोफे में धंसे हुए अशोक सक्सेना दिखे. पर वे अकेले नहीं थे. उनके साथ एक महिला और एक बीस बाईस वर्षीया लडकी भी थी. महिला अधेड़ थीं, संभ्रांत परिवार की, सौम्य मुखमुद्रा वाली. चेहरे से सुनहले फ्रेम का चश्मा उतारकर रुमाल से साफ़ कर रही थीं. लडकी पहली नज़र में मुझे बहुत सुन्दर लगी पर ये कबूल करता हूँ कि आज की तरह ही उन दिनों भी मुझे हर जवान लडकी बहुत ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 51 - फिर वही चक्कर

जो घर फूंके अपना 51 फिर वही चक्कर इसके बाद दो एक महीने बिना कुछ असामान्य घटना के बीत पिताजी ने बताया तो था कि मुझसे मिलने किसी लड़की के घरवाले पहले से सूचित कर के आयेंगे पर मैं प्रतीक्षा ही करता रहा,कोई आया नहीं. संकोचवश मैं पिताजी को याद नहीं दिला पाया. बस मैं अपने रोज़मर्रा के काम में व्यस्त रहा. उड़ाने रोज़ ही कहीं न कहीं ले जाती रहती थीं. अब तक मैं वायुसेना में छः साल से अधिक बिता चुका था. भारत जैसे बड़े देश के कोने कोने से परिचित होने का अवसर इतना मिल चुका ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 52 - चक्कर पर चक्कर, पेंच में पेंच

जो घर फूंके अपना 52 चक्कर पर चक्कर, पेंच में पेंच इस बार लक्षण अच्छे थे. प्रधानमंत्री के कार्यक्रम कोई फेर बदल नहीं हुआ. नियत दिन हमने पालम हवाई अड्डे से संध्या को चार बजे उड़ान भरी. इलाहाबाद में बमरौली हवाई अड्डे पर हमने शाम को पांच बजने में पांच मिनट पर लैंड किया. इलाहाबाद के छोटे रनवे और टैक्सीट्रैक के कारण भूमि पर विमान को तीन चार मिनट ही चलना पडा. अपनी स्क्वाड्रन की समय की घोर पाबंदी की परंपरा के अनुसार सेकेण्ड की सुई ने चार बजकर उन्सठ मिनट पैंतालीस सेकेण्ड दिखाए और ‘पार्किंग बे’ में रुकने ...और पढ़े

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जो घर फूंके अपना - 53 - चले हमारे साथ! - अंतिम भाग

जो घर फूंके अपना 53 ----------चले हमारे साथ! पर अगले ही क्षण आई असली मुसीबत ! उस पार की छोडिये, इस पार ही, यानी रेस्तरां के दरवाज़े से, उसी क्षण दो जल्लादों ने प्रवेश किया. आप वहाँ होते तो शायद पूछते कि यदि मैं इतना ही एक्सीडेंट प्रोन यानी दुर्घटनासम्भावी व्यक्ति हूँ तो वायुसेना में फ़्लाइंग ब्रांच में क्या सोच कर आया था. पर उस समय मेरे पास ऐसे सवालों को सुनने और उनका उत्तर देने का समय कहाँ था. मैं चारो तरफ नज़रें दौड़ा कर देख रहा था कि कहाँ से निकल भागूं पर एल चिको में प्रवेश ...और पढ़े

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