जो घर फूंके अपना - 11 - ऐसी अफसरी से तो क्लर्की भली! Arunendra Nath Verma द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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जो घर फूंके अपना - 11 - ऐसी अफसरी से तो क्लर्की भली!

जो घर फूंके अपना

11

ऐसी अफसरी से तो क्लर्की भली!

गाजीपुर में छुट्टियां बिताने के लिए टाइपराइटिंग सीखने का शौक भी महँगा पडा. बताता हूँ कैसे. एक तेज़ तर्रार लोमड़ी को आलसी कुत्ते पर कुदाते हुए अर्थात A quick brown fox jumps over the lazy dog वाली इबारत जिसमे अंग्रेज़ी वर्णमाला के छब्बीसों अक्षर आ जाते हैं टाइप करते हुए मुझे एक सप्ताह भी नहीं हुआ था. अब तक टाइपिंग योग्यता केवल इतनी हुई थी कि तेज़ तर्रार लोमड़ी बजाय कुत्ते पर कूदने के प्रायः स्वयं मुंह के बल गिर पड़ती थी कि एक दिन वहाँ एक प्रशिक्षार्थी बहुत परेशानहाल दिखा. अन्य लड़कों से अपनी समस्या बयान करते हुए बोला “ मुझे एक नौकरी के आवेदनपत्र के साथ हाई स्कूल सर्टिफिकेट की प्रति आज ही भेजनी है जो किसी गजेटेड ऑफिसर द्वारा प्रमाणित हो. मेंरे क्षेत्र के विधायक नैनीताल गए हुए हैं. एक और परिचित अधिकारी थे, वे लखनऊ गए हुए हैं. समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूँ. क्या तुम लोग किसी को जानते हो जो इसे प्रमाणित कर सके?”सभी प्रशिक्षणार्थी चुपचाप बैठे रहे. प्रायः सभी निर्धन आय वर्ग के थे जो हाईस्कूल या इंटर पास करके टाइपराइटिंग सीख कर क्लर्की पाने का सपना पूरा करना चाहते थे. उनमे कौन था जो कह सकता “चलो मेरे साथ, मेरे मित्र या संबंधी राजपत्रित अधिकारी हैं उनसे करा देता हूँ. ” कुछ देर तक टाइपराइटरों की पिट-पिट बंद रही जैसे विधानसभाओं में या संसद में लगातार हंगामे के बीच भूले भटके से एकाध शान्ति के क्षण आ जाते हैं. सभी उसकी मदद करना चाहते थे. ऐसी परेशानियां उन सबके सामने आती थीं. मुझसे चुप न रहते बना. बोल पड़ा “लाओ मैं कर देता हूँ” वह लड़का बहुत नाराज़ हो गया. बोला “अरे, मैं पहले से ही बहुत परेशान हूँ, क्यूँ बेवक्त का मज़ाक कर रहे हो? इसमें गजेटेड अफसर का हस्ताक्षर चाहिए. ” मैंने संजीदगी से कहा “भाई, मैं कमीशंड ऑफिसर हूँ अर्थात वायुसेना का राजपत्रित अधिकारी. ” वह चिढ गया. बड़े तिरस्कार और व्यंग के साथ बोला “क्यूँ नहीं, तुम तो यहाँ के कलेक्टर साहेब हो, तभी यहाँ बैठकर टाइपराइटर पर तबला बजा रहे हो. ” दो एक और लड़के उसका साथ देते हुए बोले “बड़ा आया गजेटेड अफसर कहीं का. कलेक्टर साहेब की जेब में यहाँ की फीस देने के तो पैसे नहीं हैं. उस दिन सर ने दया करके एडमिशन दे दिया, कहा था अच्छा सीखना शुरू कर दो पैसे बाद में दे देना” अब मेरे गुस्सा होने की बारी थी. टाइपिंग स्कूल के मालिक जो परिचित थे उस समय थे नहीं अतः प्रमाणित करने की मेरी योग्यता कौन प्रमाणित करता. मैं भिन्ना कर तेज़ तर्रार लोमड़ी को हवा में लटकता हुआ छोड़ कर वहाँ से उठकर वापस घर आ गया.

घर पहुँचने पर देखा कि हमारा घरेलू नौकर लक्ष्मण बड़ी बेसब्री से मेरी प्रतीक्षा कर रहा था. आते ही बोला “अरे भैया, आप कहाँ चले गए थे. यहाँ दो साहेब लोग बड़ी सी कार में बैठकर आये थे, उनमे से एक साहेब यहीं के थे. बाबूजी को पूछ रहे थे. पर वो क्लिनिक में भी नहीं हैं, कहीं बाहर गए हैं, माताजी भी मंदिर गयी हुई थीं. मैंने ड्राइंग रूम में बैठा दिया था कि माता जी आती होंगी. कुछ देर रुके फिर अचानक उठ कर चले गए’’

मैंने पूछा “अचानक क्यूँ चले गए? तुमसे कोई और बात नहीं हुई?”

लक्ष्मण इस बार कुछ सकुचाते हुए बोला “हुई तो थी, आप ही के बारे में पूछ रहे थे. ”

मेरी उत्सुकता बढ़ी. “क्या पूछ रहे थे?” लक्ष्मण कुछ अनिश्चय की स्थिति में लगा. फिर बोल पडा “जी आपको पूछा तो मैंने बताया कि भय्या रोज़ टाइपरायटिंग सीखने जाते हैं, वहीं गए होंगे, तो वे दोनों आपस में बहस करने लगे. ”

मेरा धैर्य समाप्त हो रहा था. उकता कर पूछा “अरे बहस किस बात पर होने लगी, साफ़ क्यूँ नहीं बोलता?” लक्ष्मण बोला “वे जो बाहर वाले थे उन्होंने यहाँ वाले साहेब से पूछा “ ये टाइप रायटिंग का क्या चक्कर है, आप तो कह रहे थे लड़का एयर फ़ोर्स में अफसर है? तो दूसरे साहेब बोले “मैंने ग़लत थोड़े ही बताया था. हाँ इस बार बात हुई तो कह रहा था कि फौजी पाइलट को पेशाब लगने पर हवाई जहाज़ से कूदना पड़ता है. कई बार पैराशूट नहीं भी खुलता है. लगता है एयर फ़ोर्स छोड़कर भाग आया है. महीने भर से घर में बैठा है. टाइपराइटिंग सीख रहा होगा कि कोई और नौकरी लग जाए. ”

मैंने सर ठोंक लिया. वाह री किस्मत! मेरे जीवन का पहला विवाहप्रस्ताव स्वयं कार में बैठकर मेरे घर आया और उस पर टाइप राइटिंग की तेज़ तर्रार भूरी लोमड़ी टूट पडी. गुस्से में आकर मैंने टाइप राइटिंग सीखना बंद कर दिया. न खुदा ही मिला न विसाले सनम. सीख लिया होता तो यह लंबा आख्यान लिखने के लिए यूँ कलम न घिस रहा होता.

मेरी छुट्टी समाप्त होने को आयी पर वापस आने के दो चार दिन पहले मेरी अभिलाषाओं पर एक उलटवार एक दूसरी कन्या के पिता ने कर दिया. टाइपिंग स्कूल के मेरे किसी सहपाठी लड़के से मेरे बारे मे सुनकर वह पिताजी के पास पहुंचे थे. पिताजी से बोले “ डॉक्टर साहेब, सुना है आपका बेटा टाइपिंग सीख रहा है “

पिताजी ने हामी भरी तो बोले “फिर तो पढाई पूरी कर चुका होगा. टाइपिंग सीख ले तो मेरे भाई चीनी मिल में हेड क्लर्क हैं, वे नौकरी लगवा देंगे. सुना है आपका बेटा छह फ़ुटा सुदर्शन जवान है. मेरी बेटी बड़ी सुन्दर है. अभी बारहवीं इंटर पास की है -----“ वे उसकी पूरी तारीफ़ कर पाते कि पिताजी ने बात बीच में काटकर कहा “ मेरा बेटा क्लर्की की तलाश में नहीं है. वह एयर फ़ोर्स में फ़्लाइंग ब्रांच का अफसर है. ”

उन सज्जन ने बात बीच में ही काट दी. उठ खड़े हुए और बोले ‘माफ़ कीजियेगा, मुझे पता चला कि टाइपिंग सीख रहा है तो सोचा यहीं किसी चीनी मिल में या बैंक में नौकरी लग जाती तो अच्छा था. अच्छा अब आज्ञा दीजिये, मुझे अपनी बेटी को काले पानी नहीं भेजना है“

मेरे आत्मसम्मान को इस बार कोई विशेष धक्का नहीं लगा. विवाह के बाज़ार में फ़ौजी अफसरों की औकात अबतक मालूम हो चुकी थी. पर माँ और पिताजी को बड़ी निराशा हुई. छब्बीस साल का होने के बावजूद सबसे छोटी संतान होने के कारण मैं अभी तक उनकी नज़रों में बच्चा ही था या वे सोच रहे होंगे कि मेरे बड़े भाई साहेब की तरह मेरे लिए भी विवाह प्रस्तावों की बौछार होने लग जायेगी. पर इन अनुभवों के बाद उन्हें भी मेरे विवाह की चिंता सताने लगी.

छुट्टी से वापस लौटने के दो दिन पहले पिताजी ने मुझसे पूछा कि क्या मेरी अपनी पसंद की कोई लड़की है या मेरे विवाह के लिए वे लोग लड़की देखें. मैंने पहले प्रश्न का उत्तर सच-सच दिया क्यूंकि लडकी नाम का कोई जीव मेरे क्षितिज पर दूर-दूर तक नहीं था. पर दूसरे प्रश्न के उत्तर में सच बोलने से झिझक गया. अन्दर से तो मन में लड्डू फूटे कि मेरे किये तो कुछ हो नहीं रहा है, चलो इन्ही को कुछ करने दो. पर इतने स्पष्ट रूप से अपने माँ बाप के सामने अपने विवाह के लिए उत्सुकता दिखाने का चलन उन दिनों था नहीं. तब सिर्फ हिन्दी फिल्मों का हीरो अपने बाप से कहता था कि फलां लडकी से मेरी तुरंत शादी कर दो नहीं तो बाप के पद से मैं तुम्हे तुरंत बर्खास्त करता हूँ. पर मेरे संकोच के पीछे की हकीकत कुछ और थी. बात ये थी कि मेरे सपनों में लडकियां आती थीं जींस और टॉप पहने हुए, जो पेन्सिल हील्स या स्टीलेट्टो पहन कर खटाखट चलती थीं और मेरे साथ चिपक कर सटासट बॉलडांस करती थीं. मेरे एन डी ए के पब्लिक स्कूलों वाले साथियों ने मेरे बदन से फूटती गाजीपुर की सोंधी मिट्टी की सुगंध धो डाली थी. मुझे सपनों में उन लड़कियों के कुंवारे बदन से फ्रेंच परफ्यूम की सुगंध आती थी जो शायद मेरे कमरे में छिडकी हुई मच्छर भगाऊ फ्लिट को सूंघते सूंघते सो जाने का प्रभाव होता था. पर माँ और पिताजी की गाजीपुर की दुनिया की लडकियां यदि स्टीलेट्टो या पेन्सिल हील पहनतीं तो दो क़दम चलकर लडखडा कर गिर पडतीं और फिर अपनी टाईट शलवार कमीज़ के कारण फर्श से उठ भी नहीं पातीं. माँ पिताजी के ऊपर ये ज़िम्मेदारी छोड़ने पर पूरी संभावना थी कि उनकी खोजी हुई लडकी मेरे सपनों की रानी की नौकरानी लगती, भले सुशील और गुणवंती कितनी ही हो. अतः पिताजी के प्रश्न के दूसरे भाग के उत्तर में मैंने संकेत दे दिया कि वे क्यूँ परेशान होंगे, मेरे बड़े भाई साहेब या जीजा जी देख लेंगे. और पिताजी ने कहा कि ये काम भाई साहेब के बजाय जीजा जी को ही सौंपा जाएगा.

क्रमशः ------------