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जो घर फूंके अपना - 16 - प्रसंग हेलेन और हेमा मालिनी का हो तो विषयांतर किसे बुरा लगता है !

जो घर फूंके अपना

16

प्रसंग हेलेन और हेमा मालिनी का हो तो विषयांतर किसे बुरा लगता है !

इलाहाबाद की उड़ान की प्रतीक्षा कर रहा था तभी इस बीच एक उड़ान पर अचानक बम्बई (तब तक मुंबई नहीं कहलाता था) गया तो लगा कि यह मेरे सितारों की तरफ नारी जाति के सितारों के झुकाव का शुभ संकेत था जो तबतक कभी नहीं मिला था. विषयांतर तो होगा पर वह किस्सा भी सुना ही डालूँ वापस आकर इलाहाबाद तो चलना ही है. हमारी वी. आई. पी. स्क्वाड्रन में HS 748 और TU 124 जेट विमान थे जो वायुसेना की किसी अन्य यूनिट में नहीं थे अतः हमारी स्क्वाड्रन में नियुक्ति होने पर पहले इन विमानों पर प्रशिक्षण लेना पड़ता था. उसके पूरा होने और उस विमान पर दक्ष घोषित होने के बाद ही उन पर विशिष्ट उड़ानों को संभालने का अवसर मिलता था. प्रशिक्षण उड़ानों का प्रबंध ईंधन बचाने के लिए इस प्रकार होता था कि किसी वी आई पी को मान लीजिये बम्बई तक जाना है तो दिल्ली से बम्बई तक दक्ष चालक विमान उड़ाते थे और वापस बम्बई से दिल्ली आने वाले चरण में प्रशिक्षार्थी. एक दिन आदेश मिला कि तत्कालीन रक्षामंत्री बाबू जगजीवन राम को पटना से बम्बई ले जाना है. दिल्ली से पटना तक और बम्बई से दिल्ली तक के खाली चरणों में प्रशिक्षार्थी चालक दल विमान उडाएगा और पटना से बम्बई तक की उड़ान दक्ष चालकदल करेगा. खाली चरणों में उड़ान भरनेवालों में मैं भी था. पटना पहुंचकर पता चला कि बाबूजी फिल्मफेयर अवार्ड समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में मुम्बई में निमंत्रित थे. फिल्मफेयर अवार्ड तब भी नामचीन फ़िल्मी हस्तियों और सितारों से जगमगाता एक भव्य आयोजन होता था. विभिन्न पुरस्कारों के वितरण के अतिरिक्त मशहूर फ़िल्मी कलाकारों द्वारा प्रस्तुत रंगारंग कार्यकर्म इस समारोह की जान होता था.

हम नौजवान अफसरों की बांछें खिल गयीं. स्वाभाविक था कि उस कार्यक्रम के लिए हमें भी निमंत्रण मिलेगा. हमारे ठहरने का प्रबंध महाराष्ट्र सरकार के मालाबार हिल स्थित विशिष्ट अतिथि गृह में था जहाँ से समारोह स्थल बिडला मातुश्री सभागार जाने के लिए सफ़ेद एम्बैसडर भी मिलेगी पर एक समस्या थी. दक्ष और प्रशिक्षार्थी चालकों को मिलाकर हमारी संख्या छः थी जबकि सामान्यतः पाइलट,कोपाइलट और नेविगेटर कुल तीन सदस्य होते थे. बाबूजी के निजी सचिव से हमने अपनी चिंता व्यक्त की तो वे हंसकर बोले –हम आपको छः नहीं आठ निमंत्रन्पत्र दे देंगे. बम्बई पहुंचकर उन्होंने वास्तव में हममें से सबसे वरिष्ठ स्क्वाड्रन लीडर राठोर के हाथ में आठ निमंत्रणपत्र पकड़ा दिए. साथ ही बाकायदा क्षमा मांगी कि आठों निमंत्रण एक श्रेणी के नहीं दे पाए. आठ में से तीन निमंत्रण लाल रंग के लिफाफों में थे और शेष पांच हरे रंग के लिफाफों में. स्पष्ट था कि जो कम थे अर्थात लाल वाले निमन्त्रण विशिष्ट व्यक्तियों के लिए थे अतः राठोर साहेब ने वे तीन सीनियर लोगों के लिए रख कर शेष पांच हमें थमा दिए. हमने कहा कि अतिरिक्त पासों का क्या करेंगे तो कंधे उचकाते हुए, उदारता और बेफिक्री से बोले “अरे रख लो. किसी को दे देना यार. फिल्मफेयर अवार्ड के पास हैं. जिसको दोगे तुम्हारे गुण गायेगा” मैंने धन्यवाद दिया और पास रख लिए. अतिथि गृह पहुंचे तो केवल इतना समय बचा था कि वर्दी उतारकर सामान्य कपडे पहने और तुरंत भागें. बिडला मातुश्री सभागार में सीटें पौने सात तक ग्रहण करनी थीं, मुख्य अतिथि सात बजे आने को थे.

भाग दौड़ कर हम चल तो पड़े पर समारोह स्थल के एक किलोमीटर पहले से फ़िल्मी कलाकारों और सितारों को देखने को आतुर भीड़ ने सड़कों पर घमासान मचा रखा था. हमारी सफ़ेद एम्बैसडर की तरफ भीड़ का रेला आता, शीशों के अन्दर झांकता और पुलिस द्वारा पीछे धकेल दिया जाता. उन फ़िल्मी सितारों के आशिकों की भीड़ से गुज़रते हुए हम आपस में बात कर रहे थे कि अपना अतिरिक्त पास इनमे से किसी को दे देते तो उसका जन्म सफल हो जाता, हमारी बातें सुनीं हमारे ड्राइवर ने जो सफ़ेद चमकती वर्दी पहन कर, काली पीक कैप लगाए ‘रक्षामंत्री के पाइलट के ड्राइवर’ होने के गौरव में लक्का कबूतर की तरह गर्दन फुलाए बैठा था. बड़ी विनम्रता से आवाज़ में शहद घोलते हुए बोला “सर जी, अतिरिक्त पास अपुन को मिल सकता है क्या?” मैंने माले मुफ्त को बांटने वाली शाही मुद्रा बना ली. शह्जादा सलीम अनारकली का ख़त लाने वाली बांदी को गले से मोतियों का हार उतारकर दे रहे हों उसी अदा से उसके हाथ में एक के बजाय दो पास रख दिए. मेरी शाही मुसकान ने बाकी का सन्देश बिना शब्दों के बयान कर दिया “ले बेटा, एक नहीं दो पास ले, तू भी क्या याद करेगा कि किसी बड़े आदमी से पाला पडा था. ” वह बेचारा दो दो पास एक साथ पाकर अभिभूत हो गया. ”बोला “थैंक्यू सार ! मैं दूसरा पास अपुन के फ्रेंड को देंगा जो दूसरा साब लोग का गाडी लाया है. उधरीच मिलेंगा. आपलोग अन्दर जाने का, अपुन गाडी पार्किंग में लगाकर अब्बी का अब्बी आयेंगा”.

सभागार तक तो सफ़ेद एम्बैसडर पर होने वाली पुलिस की कृपादृष्टि से पहुँच गए पर अपना हरे रंग का पास हाथ में थामे हम साधारण श्रेणी के गेट की तरफ जाने लगे तो आश्चर्य हुआ कि हमें सबसे आगे वाले गेट की तरफ भेज दिया गया जहाँ “केवल अतिविशिष्ट व्यक्तियों के लिए सुरक्षित” की पट्टी लगी हुई थी. इसके बाद एक बेहद खूबसूरत अशर हमें अपने साथ सबसे सामने से दूसरी पंक्ति में ले गयी. वैसे तो वह अतीव सुन्दरी यदि हमें जहन्नुम की तरफ भी अपने साथ ले जाती तो हम पुलकित मन जाते, पर सोने में सुहागा तब लगा जब सामने की पंक्ति में सुरक्षित कुछ खाली सीटों के आजू बाजू बैठे हुए सितारों में हमने जिन सितारों को पहचाना वे दिलीप कुमार, साईरा बानू, नूतन और वैजयंतीमाला आदि थे. मुझे और मेरे दो साथियों को जिस पंक्ति में बैठाया गया उसमे बैठने के लिए मुझे सीट का सहारा लेकर बैठना पड़ा. न लेता तो शायद गश खाकर गिर पड़ता क्यूंकि साथ की सीट पर बैठी हसीना ने आकाश से गिरती हुई बिजली जैसी जिस मुस्कराहट से मेरी तरफ देखा उसने मुझे उस ज़माने के ज़बरदस्त नृत्यगीत “ये है रेशमी जुल्फों का अन्धेरा, न घबराइये“ पर थिरकती, लाखों दिलों की धडकनों को रोक देने वाली, हेलेन की याद दिला दी. सीट पर बैठकर, जब गश खाकर गिर पड़ने का ख़तरा कम हुआ, तो मैंने फिर कनखियों से उसकी ओर देखा. पर इस बार धराशायी होने की संभावना और बढ़ गयी क्यूंकि वह सचमुच हेलेन ही थी.

कार्यक्रम आरम्भ होने का समय हो रहा था. पीछे की सीटें खचाखच भर गयी थीं. पहली और दूसरी मंजिल की दोनों बालकनियों में भरी हुई सीटों के आजू- बाजू कई लोग खड़े नज़र आ रहे थे. शायद जितने पास दिए गए थे उनसे जियादा दर्शक आ गए थे. मैं दीन दुनिया से ऊपर उठा हुआ, बगल में बैठी हेलेन को कनखियों से देखे जा रहा था. हमारे तीनों सीनियर साथी कहीं दिखे नहीं तो अंदाजा लगाया कि भीड़ के चक्कर में रास्ते में कहीं फँस गए होंगे. मुख्य अतिथि आने ही वाले थे कि हमारी एम्बैसडर के सारथी महोदय अपने साथी के साथ आकर हमारे पास वाली सीटों पर बैठ गए. वर्दी का कोट, टाई व पीक कैप उन्होंने उतार दिए थे. अपनी श्वेत शर्ट और पतलून में सहमे सकुचाये से सम्मानित अतिथियों के बीच वे अभी बैठे ही थे कि उनकी बगल में एक रूपवती अशर ने धर्मेन्द्र और हेमा मालिनी को लाकर बैठा दिया. जल्दी ही कार्यक्रम आरम्भ हो गया.

फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह कैसा रहा यह आप कमसे कम मुझसे और हमारे ड्राइवर साहेब से जो हेमा मालिनी की बगल में बैठे थे न पूछियेगा. तालियों की गडगडाहट के साथ जब सब लोग उठ कर खड़े हो गए तब जाकर हमें पता चला कि कार्यक्रम समाप्त हो गया. हमारे अतिथि गृह वापस लौटने के काफी देर बाद हमारे तीनों सीनियर साथी लौट कर आये. बहुत खराब मूड में थे. मैंने डरते डरते पूछा “क्या हुआ सर? आप लोग आये नहीं!” तो राठोर साहेब के साथ अन्य दोनों ने भी झल्लाकर गुर्राते हुए कहा “हरामजादों ने दूसरी मंजिल की बालकनी का टिकट दिया था. वहाँ से तो कुछ दिख भी नहीं रहा था. कल अरोरा से पूछूँगा ये क्या मज़ाक है. और तुमलोग तो बेचारे लगता है घुस भी नहीं पाए” बताना तो नहीं चाहता था पर बताना पड़ा कि जो पास संख्या में अधिक थे वे वी. आई. पी. श्रेणी के थे.

वापस दिल्ली आने के बाद मुझे एक नयी बीमारी लग गयी. रात को सोते वक्त वो फोटो देखकर सोता जिसके भाग्य में चयन के सिलसिले में पहले एक बन्दर के हाथ में पड़ना लिखा था, इस ख्याल से कि रात को उसके मीठे सपनों में खोया रहूँगा. पर न जाने कैसे, सपनों में कोई तस्वीर उभरती तो बजाय शोभा के, यही उसका नाम था, वह तस्वीर मेरी बगल में बैठी हेलेन की तस्वीर में बदल जाती. फिर जब सपनो में ही सही, हेलेन को मैं अपने अंक में लेना चाहता तो अचानक उसकी जगह अपने सीने से लगे हुए उस बन्दर को पाता जो शोभा की फोटो लेकर पेड़ पर चढ़कर बैठ गया था.

हेलेन के चक्कर में कहीं वह कहानी अधूरी न रह जाए जिसे इलाहाबाद जाकर पूरा होना था. वह भी एक अविस्मरणीय यात्रा थी. हुआ ये कि प्रतीक्षा करते- करते, एक दिन उपराष्ट्रपति पाठक जी का इलाहाबाद जाने का प्रोग्राम आ गया. अगले रविवार को उन्हें इलाहाबाद ले जाना था और सारा दिन वहां बिताकर शाम को दिल्ली लौट आना था. इससे ज्यादा सुविधाजनक प्रोग्राम और क्या होता? रविवार का दिन लड़की वालों को भी सुविधाजनक लगता और जिस ठाट बाट से मैं उनके यहाँ जाना चाहता था वह तो होता ही. फटाफट लड़की के पिताजी को मैंने फोन पर सूचित किया कि चार दिन बाद मैं उनके यहाँ पहुँच रहा हूँ. उन्होंने रेलवे स्टेशन पर आकर अगवानी करने का प्रस्ताव रखा तो मैंने बड़ी शान से बताया कि मैं उपराष्ट्रपति का जहाज़ लेकर आ रहा हूँ. ठहरूंगा सर्किट हॉउस में और सवारी की चिंता न करें, मेरे पास सरकारी कार होगी. रात में नौ बजे मेरी वापसी उड़ान थी अतः शाम को पांच से छः बजे तक उनके यहाँ मैं स्वयं पहुँच जाऊंगा. महीने भर से सिर्फ यही शान मारने के लिए आना रोक रखा था कि जाऊंगा तो ठसके से जाऊंगा. लेकिन उन्हें जब अपना प्रोग्राम बताया तो बहुत शालीनता से, अत्यंत संयत स्वर में, ताकि वह गर्व से सबको बता सकें कि लड़का इतना वेलप्लेस्ड होने के बावजूद कितना विनम्र और सरल है!

क्रमशः ----------