Dil Jo Na Keh Saka book and story is written by Kripa Dhaani in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Dil Jo Na Keh Saka is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
दिल जो न कह सका - उपन्यास
Kripa Dhaani
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
"खूबसूरती न उम्र की मोहताज है न श्रृंगार की। खूबसूरती तो वो है, जो खुशी के रंग से निखरकर चेहरे पर खिल जाये और नज़र में समा कर होंठों पर बिखर आये। एक ख़ुशगवार चेहरा उम्र की रेखाओं और झुर्रियों की परतों के बावजूद मेकअप से लिपटे मुरझाये चेहरे से कहीं ज्यादा खूबसूरत है..."
स्टेज पर खड़ी वनिता इन पंक्तियों को जिस अदा से पढ़ रही थी, उससे ज़ाहिर था कि वह इन पंक्तियों को पढ़ ही नहीं रही, महसूस भी कर रही है। उम्र के चालीस बसंत पार कर चुकी वनिता की खूबसूरती से आज एक अजब-सा अल्हड़पन एक अजब-सी चंचलता फूट रही थी। ख़ुशी का हर रंग मुस्कान बनकर उसके होंठों पर थिरक रहा था, नूर बनकर उसके चेहरे पर झलक रहा था। उसका संपूर्ण व्यक्तित्व आज एक अलग ही सांचे में ढला मालूम हो रहा था। हमेशा कॉटन की साड़ी में लिपटी रहने वाली वनिता की शिफॉन साड़ी का आंचल आज हवा में यूं लहरा रहा था, मानो पतंग डोरी संग दूर आसमान में मदमस्त उड़ा चला जा रहा हो; जूड़े में बंधे रहने वाले बाल आज कंधों पर यूं झूल रहे थे, मानो काली घटायें अंगड़ाई ले रही हों; मेकअप के नाम पर चेहरे पर हल्का-सा पाउडर और होंठों पर लाली थी, पर उसकी दमक सबको विस्मृत कर रही थी।
"खूबसूरती न उम्र की मोहताज है न श्रृंगार की। खूबसूरती तो वो है, जो खुशी के रंग से निखरकर चेहरे पर खिल जाये और नज़र में समा कर होंठों पर बिखर आये। एक ख़ुशगवार चेहरा उम्र की रेखाओं और ...और पढ़ेकी परतों के बावजूद मेकअप से लिपटे मुरझाये चेहरे से कहीं ज्यादा खूबसूरत है..."स्टेज पर खड़ी वनिता इन पंक्तियों को जिस अदा से पढ़ रही थी, उससे ज़ाहिर था कि वह इन पंक्तियों को पढ़ ही नहीं रही, महसूस भी कर रही है। उम्र के चालीस बसंत पार कर चुकी वनिता की खूबसूरती से आज एक अजब-सा अल्हड़पन एक अजब-सी
वनिता ने झट से अपनी कार की खिड़की का शीशा चढ़ा लिया। सिग्नल क्लियर हुआ और कार आगे बढ़ गई। मगर वनिता पीछे रह गई। न चाहते हुए भी उस शख्स का चेहरा उसकी आँखों के सामने नाचने लगा, ...और पढ़ेअभी कुछ देर पहले उसे नज़र आया था। ये वही चेहरा था, जिसकी एक झलक के लिए वो कभी बेकरार रहा करती थी।कॉलेज का पहला दिन वनिता की आँखों के सामने फ़िल्मी रील की भांति घूमने लगा। सतरह बरस की वनिता हाथों में किताबें थामे दुपट्टा संभालते हुए लाइब्रेरी से बाहर निकल रही थी। यकायक लाइब्रेरी में दाखिल हो रहे
रक्तिम ने होंठ चबाकर सिर झुका लिया और धीमी आवाज में बोला, "जानता हूँ, मैं तुम्हारे क़ाबिल नहीं वनिता। तुम इतने अमीर घराने से हो और मैं...""रक्तिम और कुछ मत कहो..." कहते हुए वनिता ने उसके कंधे पर सिर ...और पढ़ेदिया।रक्तिम ने कुछ नहीं कहा। वनिता भी कुछ नहीं बोली। ख़ामोशी ने जो कहना था, कह दिया था।उस दिन के बाद से इसी तरह सबसे छुपकर उनकी मुलाक़ातें होती रहीं। गुज़रते वक्त ने दिलों के बीच की दूरी पाट दी। मगर हैसियत का फ़ासला अब भी दोनों के दरमियान दीवार बनकर खड़ा था। वनिता जानती थी कि इसी फ़ासले की