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सन्देशा - उपन्यास
Vikash Dhyani
द्वारा
हिंदी लघुकथा
सन्देशा अरे सुनती हो कितना समय हो गया है उठ भी जाओ अब धूप सर पे चढने को है और महारानी अभी तक सो रही है। बगल के घर से - अम्मा आप ही ने चढ़ा रखा है सर पे वरना हम भी तो है घर का सारा काम , बच्चे सब अकेले ही देखना पड़ता है और एक तुम्हारी बहु घर से दफ्तर और दफ्तर से घर बस यही लगा रहता है। हा जिज्जी सोचलो कही सारी उम्र काम करते करते ही न निकल जाय। बगल से अम्मा की हमउम्र । कमला बिस्तर अंगड़ाई लेती हुए अम्मा चाय ठंडी
सन्देशा अरे सुनती हो कितना समय हो गया है उठ भी जाओ अब धूप सर पे चढने को है और महारानी अभी तक सो रही है। बगल के घर से - अम्मा आप ही ने चढ़ा रखा है सर ...और पढ़ेवरना हम भी तो है घर का सारा काम , बच्चे सब अकेले ही देखना पड़ता है और एक तुम्हारी बहु घर से दफ्तर और दफ्तर से घर बस यही लगा रहता है। हा जिज्जी सोचलो कही सारी उम्र काम करते करते ही न निकल जाय। बगल से अम्मा की हमउम्र । कमला बिस्तर अंगड़ाई लेती हुए अम्मा चाय ठंडी
हरीश के जाने के दुःख में कमला कभी कभी मायूस हो जाती थी। कभी कभी लगता की जैसे वो एक दिन लौट के वापिस आ जायेगा उसके जाने का दुःख कमला सीने में दबाये बैठी थी ठीक से रो ...और पढ़ेनहीं पाई थी। एक दिन कमला को पेट में हल्का सा दर्द होने लगा अम्मा ने तुरंत बगल वाले घर में आवाज लगाई अरे मनोज, रे मनोज जल्दी से अपनी गाडी लेके आ कमला को अस्पताल लेके जाना है जल्दी कर। इतने मनोज ने तुरंत गाडी निकाली और घर के आगे गाडी खड़ी कर दी। अरे देख क्या रहा है