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क्रान्तिकारी - उपन्यास
Roop Singh Chandel
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
क्रान्तिकारी (1) समस्या ज्यों-की त्यों विद्यमान थी. सात महीने सोचते हुए बीत गये थे, लेकिन न तो शैलजा ही कोई उपाय सोच पायी और न ही शांतनु. ज्यों-ज्यों दिन निकट आते जा रहे थे शैलजा की चिन्ता बढ़ती जा रही थी. पेट का बढ़ता आकार और घर और दफ्तर के काम---- सुबह पांच बजे से लेकर रात नौ बजे तक की व्यस्तता शैलजा को निढाल कर देती. वह सोचती, यदि घर के कामों में ही किसी का सहयोग मिल जाता तो इतना स्ट्रेस उसे बर्दाश्त न करना पड़ता. लेकिन शांतनु का सुबह-शाम के लिए कोई नौकरानी रख लेने का प्रस्ताव
क्रान्तिकारी (1) समस्या ज्यों-की त्यों विद्यमान थी. सात महीने सोचते हुए बीत गये थे, लेकिन न तो शैलजा ही कोई उपाय सोच पायी और न ही शांतनु. ज्यों-ज्यों दिन निकट आते जा रहे थे शैलजा की चिन्ता बढ़ती जा ...और पढ़ेथी. पेट का बढ़ता आकार और घर और दफ्तर के काम---- सुबह पांच बजे से लेकर रात नौ बजे तक की व्यस्तता शैलजा को निढाल कर देती. वह सोचती, यदि घर के कामों में ही किसी का सहयोग मिल जाता तो इतना स्ट्रेस उसे बर्दाश्त न करना पड़ता. लेकिन शांतनु का सुबह-शाम के लिए कोई नौकरानी रख लेने का प्रस्ताव
क्रान्तिकारी (2) शांतनु भी उन लाखों दिल्लीवासियों में से एक था जो नौकरी की तलाश में इस महानगर में आते हैं. वैसे वह पटना के एक गांव में जन्मा और उसने पटना विश्वविद्यालय से एम.ए. तक की शिक्षा प्राप्त ...और पढ़ेथी. एक भूमिपति भूमिहार के बेटे को नौकरी की आवश्यकता नहीं थी. पिता भी यही चाहते थे कि शांतनु पटना में रहकर कोई व्यापार करे. पूंजी की कमी थी नहीं और शांतनु भी पटना छोड़ना नहीं चाहता था. वहां की स्थानीय राजनीति में उसे रस मिलने लगा था और साहित्यिक गतिविधियों में भी वह सक्रिय होने लगा था. पटना और
क्रान्तिकारी (3) कितने ही दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा. शांतनु बच्चा बाबू के घर के निरन्तर चक्कर लगाता रहा और 'भाग्यवती कॉलेज' में उसके तदर्थ नियुक्ति की अवधि वर्ष दर वर्ष बढ़ती रही. पांच वर्ष यों ही व्यतीत ...और पढ़ेगये. इस मध्य राखी और शांतनु की मित्रता भी प्रगाढ़ से प्रगाढ़तर होती रही. राखी अपने कार्यालय में तदर्थ से स्थायी हो गई थी और प्राध्यापकी पाने के लिए उसने पी-एच.डी. के लिए मेरठ विश्वविद्यालय से रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया था, लेकिन शांतनु अधर में लटका था. इसीलिए वह राखी के समक्ष कोई प्रस्ताव नहीं रख पा रहा था. लेकिन
क्रान्तिकारी (4) "कुछ नहीं, सर! पत्रिका के काम में लगा हुआ हूं." शांतनु घबरा रहा था कि कहीं कोई विषय इस बार भी न थमा दें बच्चा बाबू. पकड़ा देंगे तो सुजाता के लिए कुछ करना ही होगा-- बच्चा ...और पढ़ेसे बड़ा सोर्स उसके पास कोई था नहीं. सुजाता की समस्या हल हो जाने से उसे अपनी समस्या हल होती नजर आ रही थी. उसके लगते ही सुजाता की मां के आ जाने की पूरी आशा थी. और यही नहीं, अब वह अन्दर-ही अन्दर सुजाता के प्रति एक लगाव -सा अनुभव करने लगा था.जब वह बेडौल शैलजा को सामने रख