कहते हैं कि अपनी जवानी में हर कोई ख़ूबसूरत होता है। जवानी इंसान की ज़िन्दगी में एक बार आने वाला वो मौसम है जो जिस्म के पोर- पोर को फूल की तरह खिलाकर एक शोख चटक के तड़के से खुशबूदार बनाता है। लड़का हो या लड़की जवानी तो जवानी है। झूम कर आती है। हर बदन पर आती है। लेकिन अपने ही बनाए इस फलसफे पर कुदरत को कभी भरोसा नहीं हुआ। आख़िर इसमें इंसाफ़ कहां है? आदमी को कई बरस में फ़ैला हुआ एक लंबा जीवन मिले और इसमें जवानी का मौसम सिर्फ़ एक बार आए?? अतः कुदरत ने मनुष्य को दो हिस्सों में बांट दिया। एक "सूरत" और दूसरी "सीरत"। अब ठीक है। सूरत पर चाहे जवानी का जलवा बस एक बार आयेगा किंतु सीरत की युवावस्था इंसान के ख़ुद अपने ही हाथ में रहेगी। आदमी चाहे तो वो अस्सी साल की उम्र में भी जवान बना रहे, और न चाहे तो सोलह साल की उम्र में ही बूढ़ा हो जाए। ये कहानी एक ऐसे ही शख़्स की है जिसने अपनी तमाम ज़िन्दगी जवानी में ही गुज़ारी। लगभग एक शताब्दी का लंबा भरा- पूरा जीवन देखा मगर अपनी फितरत अंत तक ताज़ादम बनाए रखी। आयु के निन्यानबेवें साल में जब दुनिया से जाने की घड़ी आई तो हर शख़्स ने यही कहा- अरे, चले गए? अभी तो और रहना था!

Full Novel

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साहेब सायराना - 1

कहते हैं कि अपनी जवानी में हर कोई ख़ूबसूरत होता है। जवानी इंसान की ज़िन्दगी में एक बार आने वो मौसम है जो जिस्म के पोर- पोर को फूल की तरह खिलाकर एक शोख चटक के तड़के से खुशबूदार बनाता है। लड़का हो या लड़की जवानी तो जवानी है। झूम कर आती है। हर बदन पर आती है। लेकिन अपने ही बनाए इस फलसफे पर कुदरत को कभी भरोसा नहीं हुआ। आख़िर इसमें इंसाफ़ कहां है? आदमी को कई बरस में फ़ैला हुआ एक लंबा जीवन मिले और इसमें जवानी का मौसम सिर्फ़ एक बार आए?? अतः कुदरत ने ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 2

दिलीप कुमार की शूटिंग देखने की इस ख्वाहिश के उजागर होते समय टीन एज में कदम रखती बेटी की की चमक ने नसीम बानो को भीतर से कहीं गुदगुदा दिया। उन्हें वो दिन याद आ गए जब उन्हें भी एक फ़िल्म की शूटिंग देखते हुए ही फ़िल्मों में काम करने का चस्का लगा था। मां नसीम बानो के दिमाग़ में एक नई हलचल शुरू हो गई। क्या बेटी की ये ख्वाहिश आम बच्चों की तरह इम्तहान से फारिग होकर फ़िल्म देखने या शूटिंग देखने जैसी आम ख्वाहिश है या फ़िर कहीं भीतर ही भीतर बेटी के दिमाग़ में मां ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 3

दुआ सलाम के बाद नसीम बानो ने जब दिलीप कुमार को बताया कि बिटिया ने लंदन में ही मुझसे फ़िल्म की शूटिंग दिखाने का प्रॉमिस ले लिया था तो वो खिलखिला पड़े। जब उन्होंने सुना कि सायरा ने परीक्षा ख़त्म होने के एवज में गिफ्ट के तौर पर दिलीप कुमार की शूटिंग देखने की इच्छा जताई है तो मानो उनका खून बढ़ गया। वह झटपट पलटे और उन्होंने ड्राइवर को अपनी कार वापस पार्किंग में लगा देने का आदेश दिया। आनन- फानन में भीतर वहां तीन कुर्सियां लगा दी गईं जहां मधुबाला और निगार सुल्ताना के बीच कव्वाली का ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 4

एक कहावत है- घर की मुर्गी, दाल बराबर! अर्थात जब तक बच्चे अपने माता- पिता के साथ रहते हैं तक न तो बड़े उनकी कद्र करते हैं और न ही वे अपने बड़ों की। बच्चों को अनुशासन के प्रवचन मिलते रहते हैं और बड़ों को उनकी अनदेखी की बेपरवाही। लेकिन जब वही बच्चे बाहर चले जाते हैं तो उनकी हर छोटी - बड़ी मांग को तवज्जो मिलने लगती है। वो भी मां- बाप का मोल समझने लगते हैं। देश के विभाजन के बाद सायरा बानो के पिता पाकिस्तान में जा बसे और ख़ुद बेटी पढ़ने के लिए लंदन में ...और पढ़े

5

साहेब सायराना - 5

मानव मन भी विचित्र है और मानव तन भी! हर इंसान वही ढूंढता है जो न मिले। उन्नीस सौ में जन्म लेने वाली सायरा ने बचपन से ही अपने पिता को मिस किया क्योंकि वह हिंदुस्तान छोड़ कर पाकिस्तान जा बसे थे। जबकि उनकी मां हिंदुस्तान में ही थीं। उनके पिता भी फ़िल्मों से ही जुड़े थे। यहां तक कि एक बार उनके माता - पिता ने मिल कर एक फ़िल्म निर्माण कंपनी भी बनाई थी। पर शायद उन्हें इस उपलब्धि में आनंद नहीं आया। वो चले गए। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि बहुत कामयाब या होनहार लड़कियों ...और पढ़े

6

साहेब सायराना - 6

दिलीप कुमार ने अपनी कई फ़िल्मों में इतनी गंभीर और दुखभरी भूमिकाएं निभाईं कि लोग उन्हें फ़िल्म जगत का किंग ही कहने लगे। दीदार फ़िल्म में उन्होंने नेत्रहीन व्यक्ति का चरित्र भी जिया। दिल दिया दर्द लिया और आदमी जैसी फ़िल्मों ने उनकी छवि को भुनाया। लोग ऐसी ही संजीदा भूमिकाएं निभाने के लिए मीना कुमारी को भी ट्रेजेडी क्वीन कहते थे। कहा जाता है ये इने गिने एक्टर्स फिल्मी पर्दे पर आंसू बहाने के लिए कभी ग्लिसरीन जैसे नकली द्रव्यों का प्रयोग भी अपने मेकअप मैन को नहीं करने देते थे। दिलीप कुमार की फिल्मी जोड़ी भी मधुबाला, ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 7

हमारी फिल्मी दुनिया की ये फितरत है कि ढेर सारे फिल्मकार यहां सफ़ल होने के लिए तरह- तरह से आजमाइश करते रहते हैं। भांति- भांति के प्रयोग करते रहते हैं। अगर कोई बहुत सफ़ल हीरो है और बड़ी कामयाब हीरोइन है तो लोगों को लगता है कि अब इन दोनों को एकसाथ मैदान में उतारा जाए ताकि कामयाबी के दुगुनी होने की आशा रहे। ऐसे में न तो उनकी उम्र देखी जाती है और न ये देखा जाता है दोनों अलग - अलग जोनर के लोग हैं, अलग - अलग मिजाज़ के एक्टर्स हैं। बस, फिल्मकारों को तो उनकी ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 8

उन्नीस सौ छियासठ। दिलीप कुमार की उम्र चालीस पार कर चुकी थी किंतु उनका विवाह नहीं हुआ था। इसके कारण थे। पहली बात तो यह थी कि दिलीप कुमार पाकिस्तान में जन्म लेकर बाद में यहां आए थे। उनका खानदान, संपर्क, रिश्ते नाते ज़्यादातर वहीं थे। दूसरे, दिलीप ने फ़िल्मों में काम करने के लिए अपना असली नाम यूसुफ खान छोड़ कर दिलीप कुमार रख लिया था। ये नाम उन्हें फ़िल्म अभिनेत्री और स्टूडियो की मालकिन देविका रानी ने दिया था। नाम बदलने का कारण यह था कि वो अब पाकिस्तान छोड़ कर देश के हिंदू बहुल इलाके में ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 9

बारह साल की उम्र से सायराबानो के दिल में बसी ख्वाहिश आख़िर ज़माने के सिर चढ़ कर बोली। मां की देखरेख में सफ़लता की पायदान चढ़ती सायरा को अंततः दिलीप कुमार के परिवार ने भी बहू के रूप में पसंद कर लिया। धूमधाम से उन्नीस सौ छियासठ में दोनों का विवाह संपन्न हुआ। भारतीय फ़िल्मजगत की एक अविस्मरणीय घटना की तरह ये निकाह संपन्न हो गया और नई नवेली दुल्हन सायराबानो बांद्रा स्थित दिलीप कुमार के बंगले में भरे पूरे उनके परिवार के बीच रहने के लिए आ गईं। दिलीप कुमार के फिल्मी कैरियर में यह दौर एक मध्यांतर ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 10

इस बहुचर्चित शादी की फ़िल्म जगत में खूब धूम रही। अक्सर सिने प्रेमियों को ये जिज्ञासा भी रहती थी दिलीप कुमार उस दौर की सर्वाधिक कामयाब व लोकप्रिय नई तारिकाओं साधना, आशा पारेख और शर्मिला टैगोर के साथ काम क्यों नहीं करते? लेकिन लोगों को जल्दी ही ये समझ में आ गया कि दिलीप कुमार इस चौकड़ी में से एक, सायराबानो के साथ जीवन डोर में बंधने वाले हैं इसीलिए उन्होंने सायराबानो की हमउम्र इन अभिनेत्रियों के साथ कोई फ़िल्म तब तक नहीं की। इनमें से साधना व आशा पारेख के साथ उन्होंने बाद में भी कभी काम नहीं ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 11

दिलीप कुमार की कहानी केवल एक मौसम के सहारे पूरी नहीं होती। इसे असरदार तरीके से मुकम्मल होने के धूप- छांव में जाना ही पड़ता है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति में केवल और केवल सारी खूबियां या अच्छाइयां ही नहीं होती। हर शख़्स में कोई न कोई कमी तो होती ही है। यदि ऐसा न हो तो वो दुनिया की नज़र में इंसान नहीं बल्कि देवता हो जाए। उदाहरण के लिए फ़िल्मजगत में ऐसी मिसालें मौजूद हैं जब किसी बेहतरीन कलाकार ने अपनी बेहतरी को दुनिया की नज़र में और ज़्यादा बेहतर दिखाने के लिए ...और पढ़े

12

साहेब सायराना - 12

दिलीप कुमार अपनी सेहत को लेकर हमेशा बहुत सजग रहते थे। कैरियर के आरंभिक दौर में उनकी कई चुनौतीपूर्ण के चलते उनके मन में हमेशा कोई भय बना रहता था। वे अपने किरदार के ढांचे- खांचे में उतरना ज़रूरी समझते थे। उन्हें लगता था कि जब वो अपने कैरेक्टर के जिस्म में परकाया प्रवेश करेंगे तभी फ़िल्म सफ़ल होगी। वे पर्याप्त तैयारी करते थे। इस आदत के चलते ऐसा हुआ कि दुखद भूमिकाओं में ढलते- ढलते उनके व्यक्तित्व में एक धीर गंभीरता घर कर गई। वो अपने पात्र के दुख को महसूस करते हुए उसे व्यक्तिगत तौर पर जीते ...और पढ़े

13

साहेब सायराना - 13

दिलीप कुमार शुरू से ही बहुत शर्मीले और संकोची स्वभाव के थे। वो जब फ़िल्मों में आए थे तब डांस बिल्कुल भी नहीं जानते थे। वैसे भी उस ज़माने में लड़कों के डांस करने का प्रचलन नहीं था। इसे पूरी तरह लड़कियों का ही काम माना जाता था। कभी- कभी अगर कुछ युवकों को नाचते थिरकते हुए देखा भी जाता था तो उन्हें किसी अलग दुनिया का वाशिंदा ही समझा जाता था। उन दिनों फ़िल्मों में पुरुषों को स्टंट और बहादुरी के करतब करते हुए दिखाया जाता था और स्त्रियों को नृत्य और गीत के साथ। लेकिन धीरे- धीरे ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 14

कहते हैं कभी- कभी एक और एक ग्यारह हो जाते हैं। लेकिन वहां तो एक, एक और एक मिलकर हो गए। ये पहेली तब की है जब कालजयी फ़िल्म "मुगले आज़म" बन रही थी। वैसे तो कोई भी निर्माता अपनी फ़िल्म को ये सोच कर नहीं बनाता कि ये असफल हो जाएगी। सब उसे बेहतरीन मान कर ही बनाते हैं। लेकिन इस फ़िल्म के निर्देशक के. आसिफ़, चरित्र अभिनेता पृथ्वीराज कपूर और नायक दिलीप कुमार तीनों ही "परफेक्शन" के जबरदस्त हिमायती थे। तीनों ही एक बार में एक ही काम पर ध्यान देने के आदी थे। एक - एक ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 15

दिलीप कुमार को "अभिनय सम्राट" कहा जाता था। ये सवाल उठाया जा सकता है कि आख़िर अभिनय सम्राट कोई तरह होता है। सिनेमा में कोई न कोई कथानक होता है, और उसे जीवंत करने के लिए कुछ पात्र होते हैं। आपको उन पात्रों का ही तो अभिनय इस तरह करना होता है कि वो स्वाभाविक लगे। देखने वालों को ऐसा लगे कि आप आप नहीं, बल्कि वो पात्र ही हैं। उन्नीस सौ सड़सठ में एक फ़िल्म आई -"राम और श्याम"! इसमें दिलीप कुमार दोहरी भूमिका में थे। उनका एक रूप खल पात्र का था, और दूसरा अच्छे आदमी का। ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 16

आरंभ से ही हमारा पारिवारिक ढांचा ऐसा रहा है कि यहां पति- पत्नी एक ही फील्ड में होने पर आती ही आती हैं। दोनों को एक साथ सफ़लता, संतुष्टि और साहचर्य एक साथ नहीं मिल पाते। इसीलिए सयाने लोग यही सोचते हैं कि दोनों की मानस - दुनिया अलग- अलग रहे। तभी अच्छा और प्रेमभरा निभाव हो पाता है। दिलीप कुमार के मित्र और प्रतिस्पर्धी राजकपूर ने इसीलिए नरगिस से विवाह नहीं किया। इसीलिए अपनी पुत्रवधुओं बबीता और नीतू सिंह से भी शादी के बाद फ़िल्में छुड़ा दीं जबकि ये सभी सफल और होनहार अभिनेत्रियां थीं। लेकिन दिलीप कुमार ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 17

स्त्री के भीतर एक अनोखी शक्ति होती है किंतु सभी औरतें हर समय इस शक्ति को पहचान नहीं पातीं। जो पहचान लेती हैं उनका आभा मंडल ताउम्र दिपदिपाता रहता है। सायराबानो को भी जीवन में एक बार इस शक्ति परीक्षण से गुजरना पड़ा। अपने विवाह के समय वो इतना भली भांति जानती थीं कि उनके होने वाले शौहर दिलीप कुमार के प्यार और नजदीकियों के चर्चे मीडिया के गॉसिप कॉलम में पहले भी दो- दो बार नमूदार हो चुके हैं, हालांकि कभी परवान नहीं चढ़े। पहली बार दिलीप कुमार के साथ काम कर रही अभिनेत्री कामिनी कौशल से उनकी ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 18

ये अस्मा नाम की मोहतरमा भी खूब थीं! हाथ धोकर पीछे ही पड़ गईं यूसुफ साहब के। जब- तब मिलने के मौक़े निकालती रहतीं। मज़े की बात ये थी कि कभी- कभी तो अपने शौहर तक को साथ ले आतीं। न जाने कैसे इन्हें खबर लग जाती कि दिलीप कुमार अपनी शूटिंग के सिलसिले में अभी कहीं घर से बाहर हैं और ये आ धमकतीं। इनका परिवार दिलीप साहब की बहनों के परिवार से काफ़ी करीब था अतः इन्हें दिलीप कुमार से मिल पाने में कहीं कोई दिक्कत भी नहीं पेश आती थी। ये कोई नई नवेली हसीना नहीं ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 19

फिल्मी दुनिया में एक से बढ़कर एक कई प्रतिष्ठित पुरस्कार हैं जो एक्टर्स का मनोबल तो बढ़ाते ही हैं, कभी सफ़लता का कालजयी इतिहास भी रच देते हैं। फ़िल्म पत्रिका "फ़िल्मफेयर" द्वारा शुरू किए गए अवॉर्ड्स भी ऐसे ही पुरस्कार हैं जो कलाकारों की अभिनय यात्रा का पैमाना तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दुनिया की इस सबसे बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री के इतिहास में अब तक सबसे ज़्यादा फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट एक्टर अवॉर्ड्स जीतने का श्रेय दिलीप कुमार के नाम ही है। पहली बार 1954 में फ़िल्म "दाग़" के लिए अपना पहला पुरस्कार जीतने के बाद दिलीप कुमार ने ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 20

कालजयी उपन्यासकार शरतचंद्र के उपन्यास पर आधारित फ़िल्म "देवदास" कई बार बनी। 1955 में जब दिलीप कुमार को लेकर प्रदर्शित किया गया तब तक दिलीप कुमार अपार ख्याति पा चुके थे। उन्हें फ़िल्मों में आए दस साल से भी अधिक समय हो चुका था। वे अंदाज़, दीदार, ज्वारभाटा, जोगन जैसी कई फिल्मों में काम कर चुके थे। देवदास में उनके साथ वैजयंती माला और सुचित्रा सेन थीं। पेशावर में जन्मे दिलीप कुमार, बंगाल की सुचित्रा सेन और मद्रास की वैजयंती माला इस विशाल देश के तीन सुदूर कौनों से आए थे। किंतु इस फ़िल्म में तीनों ने कहानी को ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 21

कहा जाता है कि फिल्मी दुनिया पैसे का खेल है। जो जितना कमाए वो उतना बड़ा खिलाड़ी। जिस एक्टर सबसे ज्यादा पैसा मिले वो ही सबसे बड़ा कलाकार। जिस फ़िल्म पर सबसे ज्यादा पैसा ख़र्च हो वो सबसे बड़ी फ़िल्म। लेकिन हमारे कुछ अभिनेता- अभिनेत्रियां ऐसे रहे जिन्होंने पैसे को बहुत ज़्यादा अहमियत नहीं दी। दिलीप कुमार भी एक ऐसी ही विभूति थे। उन्होंने पैसे को सब कुछ कभी नहीं समझा। एक दौर ऐसा था जब हर छोटा बड़ा फिल्मकार अपनी फ़िल्म में दिलीप कुमार को लेने के लिए लालायित रहता था। उस समय दिलीप साहब चाहते तो ताबड़तोड़ ...और पढ़े

22

साहेब सायराना - 22

दिलीप कुमार का बाद का जीवन भी बेहद अनुशासित और व्यवस्थित रहा। सायरा बानो उनकी दिनचर्या में समयपालन का ध्यान रखतीं। उनका कामकाज देखने वाले अन्य सहायक भी इस बात का ध्यान रखते कि साहब या मेम साहब को शिकायत का कोई मौका न मिले। एक दिन दिलीप कुमार अपने बंगले के बैठक कक्ष में बैठे थे। उनसे कुछ लोग मिलने के लिए आए हुए थे। लोग कहीं बाहर से आए थे और वार्ता भी कुछ औपचारिक थी अतः उनकी सहायिका नर्स को थोड़ा संकोच हुआ कि मीटिंग में बैठे साहब को दवा की गोली कैसे खिलाई जाए। कहीं ...और पढ़े

23

साहेब सायराना - 23

"तुम क्या जानो कि आए पास तुम्हारे हम कितनी दूर चलके" सायरा बानो ने जब अपनी मम्मी के साथ कुमार की फ़िल्म "मुगले आज़म" की शूटिंग देखी तब से ही वो दिलीप को एक अलग नज़र से देखती थीं। वो दिलीप कुमार से मिलती रह सकीं क्योंकि दिलीप उनकी मम्मी नसीम बानो की बहुत इज्ज़त करते थे और उनके परिवारों के बीच बड़े निकट के रिश्ते थे। लेकिन फ़िर भी लोगों से ये सुन -सुन कर वो कभी- कभी थोड़ी निराश हो जाती थीं कि दिलीप उम्र में उनसे बहुत बड़े हैं। कुछ सहेलियां उन्हें ये भी समझाती थीं ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 24

दिलीप कुमार का अफ़साना हो या सायरा बानो की कहानी...या फ़िर दोनों का एक साथ सुहाना सफर, कम से देखने वालों के लिए तो मौसम हमेशा ही हसीं रहा। यहां एक बात जानना बहुत ज़रूरी है। चाहे ये दोनों ही हिंदी फ़िल्मों के कोहिनूर रहे हों, मगर हिंदी दोनों की ही मातृभाषा नहीं थी। दिलीप कुमार पाकिस्तान के पेशावर में पैदा हुए और वहीं उनका बचपन गुज़रा। संपन्न जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने के कारण लिखाई- पढ़ाई में भी उर्दू के साथ- साथ अंग्रेज़ी का बोलबाला रहा। जैसा कि हिंदी फिल्मजगत का प्रचलन रहा, यहां अधिकांश पेपरवर्क अंग्रेज़ी में ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 25

दिलीप कुमार अपने बेटे के न रहने पर फूट- फूट कर रोए थे। दिलीप कुमार का बेटा??? यही सोच हैं न आप? जी हां, पिछली सदी के आठवें दशक में दिलीप कुमार की बेगम सायरा बानो गर्भवती हुई थीं। पूरे आठ माह तक ये गर्भ रहा। और बाद में इस बात की पुष्टि भी डॉक्टरों ने की कि दिलीप सायरा की ये संतान एक "बेटा" ही थी जिसे सायरा की अचानक तबीयत बिगड़ जाने के कारण बचाया न जा सका। उस वक्त सायरा बानो अपनी एक ब्लॉकबस्टर फ़िल्म "विक्टोरिया नंबर 203" की शूटिंग में व्यस्त थीं। नवीन निश्चल के ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 26

फिल्मी दुनिया फैशन और ठसक के साथ रहने का ज़ुनून बख़्श देती है। यहां ऐसे लोग भी नित नए आभूषणों, कारों और आलीशान घरों में लकदक ज़िन्दगी गुजारते देखे जाते हैं जिन्होंने बरसों से कुछ नहीं कमाया। तो क्या ये नैतिक और जनवादी मूल्यों के प्रतिरोध में बसी हुई कोई बस्ती है? नहीं। दिलीप कुमार का जीवन ऐसा नहीं कहता। दिलीप कुमार फ़िल्मजगत में पैसे की परिक्रमा करते कभी नहीं देखे गए। उनका अभिनय को लेकर एक प्रतिमान था जिसे निभाने में वो ख़र्च होते थे। उन्होंने अपने फिल्मी जीवन में लगभग साठ- बासठ फ़िल्मों में काम किया जिनमें ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 27

एक बार एक वरिष्ठ पत्रकार ने दिलीप कुमार से पूछा - क्या आपको नहीं लगता कि हिंदी फ़िल्मों के नायक देश के एक ही कौने से आए हैं। चौंके दिलीप कुमार। फिर धीरे से बोले - क्या मतलब? पत्रकार भी खासे अनुभवी थे, सब जानते थे लेकिन शायद दिलीप कुमार के मुंह से कहलवाना चाहते थे। कुछ मुस्कुराते हुए कहा - आप, राजकपूर, देवआनंद, मनोज कुमार, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार, धर्मेंद्र, फिरोज़ खान, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना... या तो पाकिस्तान से, या फ़िर पंजाब से... पत्रकार महाशय की आवाज़ सकुचाते हुए कुछ शिथिल पड़ी। दिलीप कुमार ने कुछ त्यौरियां ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 28

ज़िंदगी में ऊंचाइयां छूनी है तो उच्च शिक्षा लो! खूब पढ़ो! यूसुफ खान के पिता फलों के कारोबारी थे, के मालिक थे, जमींदार थे। लेकिन फिर भी ऐसा कहते थे। उधर यूसुफ खान उर्फ़ दिलीप कुमार ने नासिक ज़िले के देवलाली के बार्नेस स्कूल में स्कूली पढ़ाई तो कर ली पर कभी कॉलेज या यूनिवर्सिटी नहीं गए। लेकिन जब ऊंचाइयां छूने का वक्त आया तो जैसे आसमान झुक गया। सायरा बानो ने तो राजेंद्र कुमार के साथ "झुक गया आसमान" फ़िल्म भी कर डाली। सन दो हज़ार तेरह में पति पत्नी दिलीप साहब और सायरा जी ने मक्का मदीना ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 29

हिंदी फ़िल्मों की शायद सबसे बड़ी विशेषता जो उसे अन्य देशों के फ़िल्म उद्योगों से अलग करती है वो गीत- संगीत ही है। फ़िल्म में कथानक होता है, एक से बढ़कर एक खूबसूरत लोकेशंस होती हैं जिनकी नयनाभिराम फोटोग्राफी होती है, किंतु फिल्मी दृश्यों को देर तक याद उनके गानों के सहारे ही किया जाता है। रोज़ फिल्मों का साउंडट्रैक कोई नहीं सुनता पर उनके गाने घर - घर में सुने जाते हैं। गीतों की ये मनभावन पुरकशिश अदायगी हमें उन चेहरों के ज़रिए याद रहती है जो पर्दे पर उन्हें अदा करते हैं। न याद रहता है गीतकार ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 30

दिलीप कुमार के लंबे जीवन में उन पर कुछ आरोप भी लगे। वैसे भी, यदि किसी की जिंदगी में इल्ज़ाम न लगे तो इसका मतलब यही है कि वह शख्स ठीक से जिया ही नहीं। ज़िंदादिली से जीने वालों से शिकायतें होती ही हैं। ऐसे में दिलीप कुमार से शिकायतें होना भी स्वाभाविक है। प्रायः उन पर लगने वाले इल्ज़ाम इस तरह के रहे - दिलीप कुमार को अक्सर लोगों की महफ़िल सजाए देखा जाता था। वो दूसरों के पास जाने में दिलचस्पी नहीं रखते थे लेकिन स्वयं मजमा जुटा कर लोगों को बुलाते और उनसे घिरे रहते। कहा ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 31

न जाने अब वो कहां होगी? दिलीप कुमार अपनी शादी के वक्त सायरा बानो से पूरे बाईस साल बड़े लेकिन दोनों के बीच का बेहद प्यारा रिश्ता ऐसा था कि विवाह के बाद अक्सर हर जगह दोनों साथ - साथ ही दिखाई देते थे। यद्यपि सायरा बानो स्टार थीं। उनकी भी अपनी अलग दिनचर्या, अलग व्यस्तताएं और अलग शेड्यूल होते ही होंगे लेकिन फिर भी वो दोनों हर अवसर पर अक्सर साथ ही साथ दिखते। साथ में पहुंचते, साथ में बैठते और साथ ही लौटते। कई सामाजिक, राजनैतिक या पारिवारिक कार्यक्रमों की प्रकृति ऐसी होती कि जहां पति- पत्नी ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 32

32 इक्कीसवीं सदी आने के बाद दिलीप कुमार मानो एक जीवित अतीत ही हो गए। जब फ़िल्मों से उन्होंने तरह विराम ले लिया तो कुछ लोगों का ध्यान इस बात पर भी गया कि एक्टर अब भी अपनी सेहत को लेकर पूरी तरह चुस्त दुरुस्त हैं। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने सामाजिक जीवन के प्रति भी कभी कोई उदासीनता नहीं दिखाई है। वो मुंबई के शैरिफ पद पर भी रह चुके हैं जो पूरी तरह राजनैतिक पद तो नहीं, पर अपने मिजाज़ में उससे कुछ कम भी नहीं। राजनीति के धुरंधरों को उनमें किसी बड़ी संभावना की गंध आने ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 33

33 ये वो वाकया है जिसने महान कलाकारों को भी न्यायालय की चौखट दिखा दी। कहते हैं कि दुनिया के हर वाशिंदे का ज़िंदगीभर पेट पालने के लिए पर्याप्त है पर किसी एक के भी पलभर के लालच को पोसने के लिए ये कम पड़ जाती है। ऐसा ही हुआ। एक तथाकथित मशहूर बिल्डर की निगाह दिलीप साहब के बंगले पर भी पड़ गई और उसने जब देखा कि इतने बड़े कलाकार को अपने लालच का निशाना बना पाना सहज नहीं होगा तो उसने तरह- तरह से इस स्टार दंपत्ति को तंग करना शुरू कर दिया। यहां तक कि ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 34

34 जिस तरह चंद्रमा को दूर से देखते रहने वाले करोड़ों लोगों की दिलकश बातों पर उन नील आर्मस्ट्रांग चंद बातों ने तरजीह पाई जो ख़ुद जाकर चांद को अपने कदमों से छू आए थे, ठीक उसी तरह दिलीप कुमार के बाबत उन लोगों के खयालात भी बेहद असरदार और सच्चे हैं जो उनके प्रोफेशन में उनके अजीज़ रहे। कहते हैं अभिनेत्री निम्मी से भी दिलीप कुमार के ताल्लुकात बहुत इंसानी रहे। कभी निम्मी ने ख़ुद बताया कि एक एक्टर के तौर पर पहली बार में दिलीप कुमार ने उनके जहन में कोई ख़ास असर नहीं छोड़ा। दिलचस्प वाकया ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 35

35 दुनिया करोड़ों की ही नहीं अरबों की है। रोज़ लोग पैदा होते हैं, रोज़ लोग जवान होते हैं। किस मोड़ पर कौन किसको अच्छा लग जाए, इस हिसाब- किताब की कहीं कोई बही नहीं है। सातवें दशक में दिलीप कुमार की जोड़ी वहीदा रहमान के साथ भी जमी। दोनों ने कई सफ़ल फ़िल्में साथ साथ कीं। दिलीप कुमार की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म राम और श्याम में भी उनके साथ वहीदा रहमान थीं। कहते हैं कि मधुबाला से अलग हो जाने के मायूसी भरे दौर में एक बार उनके दिल का झुकाव वहीदा की ओर भी हो गया था। अब ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 36

36 कामयाबी और शोहरत कभी अकेले नहीं फिरते। उनके इर्द गिर्द मोहब्बतें, इबादतें, तिजारतें और मिल्कियत भी रहती है। नहीं मालूम कि इन बातों पर कभी किसी ने गौर किया या नहीं किया लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि दिलीप कुमार से समाज के सबसे निचले तबके तक के लोगों ने कुछ न कुछ कमाया। ये रोचक जानकारी मुझे एक ऐसे युवा पत्रकार के माध्यम से मिली जो अपने संघर्ष के दिनों में नई बात खोजने के लिए किसी भी हद तक जाने को तत्पर रहता था। फिल्मी सितारों की शोहरत कैसी होती है इसकी मिसालें हम सब ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 37

37 भारतीय संस्कृति में "घर" की अवधारणा बहुत पुरानी है। इसका आधार यह है कि एक पुरुष और एक मिलें और आपसी संसर्ग से संतान पैदा करके एक छत के नीचे उनकी परवरिश करते हुए उन्हें भविष्य का मुकम्मल इंसान बनाएं। मूल रूप से इस अवधारणा में दोनों के काम का बंटवारा भी कर दिया गया। कहा गया कि औरत घर में रहे, रोटी कपड़ा और मकान का रख रखाव, देखभाल और साज सज्जा करे। पुरुष घर से निकल कर ये देखे कि रोटी कपड़ा और मकान अनवरत मिलते रहें और इनकी देखभाल के लिए ज़रूरी धन आता रहे। ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 38

38 "लोग कहते हैं कि आप अभिनेता नहीं बल्कि स्वयं में ही अभिनय हैं। ये मुकाम आपने कैसे हासिल दिलीप कुमार इस प्रश्न का जवाब बड़ी सादगी से देते हैं। वो कहते हैं कि डायरेक्टर की बात न मान कर। अरे!!! पूछने वाला चौंक जाता है। उसे लगता है कि दिलीप कुमार ने तो देश के बड़े से बड़े फ़िल्म निर्देशक के साथ काम किया है, एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्मकारों के साथ उनकी कई बेमिसाल फ़िल्में हैं। कहीं वे एक असफल आशिक हैं तो कहीं उनकी भूमिका एक अंधे गायक की है। कभी वो राजनैतिक पृष्ठभूमि वाले ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 39

39 नए ज़माने के दमदार एक्टरों में से एक आशुतोष राणा ने भी अनजाने में ही दिलीप कुमार को एक बहुत बड़ी बात कह डाली। अभिनेता रजा मुराद भी दिलीप साहब के बहुत करीब रहे। उन्होंने दिलीप कुमार के साथ काम भी किया। "कानून अपना अपना" में उन्हें ये अवसर मिला। रजा मुराद ने केवल दिलीप कुमार की तारीफ़ ही नहीं की बल्कि उनके कई राज भी खोले। उम्र की अधिकता के साथ - साथ यूसुफ साहब की खाने की थाली पर डॉक्टरों की निगाह भी कुछ पैनी होती चली गई। ऐसे में डॉक्टरों के कानून को सायरा जी ...और पढ़े

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साहेब सायराना - 40 (अंतिम भाग)

40 लोग ऐसी बातें सुन- सुन कर हैरान होते थे कि जिस फ़िल्म इंडस्ट्री में लोग एक विदेशी पुरस्कार लिए तरसते हैं और बरसों बरस उसके लिए साम दाम दण्ड भेद अपनाते रहते हैं उसी में एक ऐसा कलाकार भी है जिसने दुनिया की सबसे बड़ी और ग्लैमरस मानी जाने वाली हॉलीवुड इंडस्ट्री में काम करने के प्रस्तावों को भी आसानी से केवल इसलिए ठुकरा दिया कि अपना काम, अपनी मेहनत अपने लोगों की नज़र हो। उन्हें हिंदी फिल्म जगत से आंतरिक लगाव था। इस उद्योग को "बॉलीवुड" कहने पर सायरा जी ने एक बार दिलीप साहब की बीमारी ...और पढ़े

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