ज़िंदगी में ऊंचाइयां छूनी है तो उच्च शिक्षा लो! खूब पढ़ो!
यूसुफ खान के पिता फलों के कारोबारी थे, बागीचों के मालिक थे, जमींदार थे। लेकिन फिर भी ऐसा कहते थे।
उधर यूसुफ खान उर्फ़ दिलीप कुमार ने नासिक ज़िले के देवलाली के बार्नेस स्कूल में स्कूली पढ़ाई तो कर ली पर कभी कॉलेज या यूनिवर्सिटी नहीं गए।
लेकिन जब ऊंचाइयां छूने का वक्त आया तो जैसे आसमान झुक गया। सायरा बानो ने तो राजेंद्र कुमार के साथ "झुक गया आसमान" फ़िल्म भी कर डाली।
सन दो हज़ार तेरह में पति पत्नी दिलीप साहब और सायरा जी ने मक्का मदीना की हज यात्रा पर जाकर मानो खुदा का शुक्रिया अदा किया।
बहुत कम लोग जानते हैं कि दिलीप कुमार को खाना बनाने का बड़ा शौक़ था।
ओह! तो शायद यही कारण रहा होगा कि उनकी बेगम साहिबा जो उनसे इतनी खुश रहा करती थीं।
दिलीप कुमार ने छह दर्जन से अधिक फ़िल्मों में काम किया लेकिन ख़ुद उनकी पसंदीदा अभिनेत्रियां मीना कुमारी और नलिनी जयवंत थीं। मीना कुमारी के साथ "कोहिनूर" उनकी एक बिल्कुल अलग मिजाज़ की फ़िल्म थी।
दिलीप कुमार जैसे मसरूफ़ और नामचीन एक्टर को भला मैदानों में जाकर खेलने का वक्त कहां मिल पाता होगा। लेकिन क्रिकेट उनका मनपसंद खेल था। वो क्रिकेट बड़े शौक़ से देखते थे।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनके इसी शौक़ के चलते एक बार उनकी जीवन नैया पानी के तेज़ बहाव में उन्हें बहा ले गई।
वो तो भला हो सायरा जी का जो उनके डगमगाते बजरे को थिरकती लहरों से बचा कर उन्हें किनारे पर खींच लाईं।
पहेलियां क्या बुझाना, सीधे- सीधे आपको बता दें कि जिंदगी में सिर्फ़ एक बार उनके मन ने फिसल कर जिन असमा का दीदार कर लिया था वो उन्हें क्रिकेट मैच देखते हुए ही मिल गई थीं। हुआ यूं कि दिलीप साहब को जब डॉक्टरों से ये ख़बर मिली कि सायरा जी उन्हें जिंदगी में कभी औलाद नहीं दे सकेंगी, तो उनकी बहनें फौजिया और सकीना अपनी एक सहेली असमा को उनसे मिलवाने की जुर्रत कर बैठीं और फिर जो दौरे - जुर्रत चला वो अफसाना तो तमाम दुनिया - जहान को मालूम है। लेकिन ये गरम हवा ले देकर कुल दो बरस चली। फिर मोहतरमा को तलाक दे डाला गया।
"जैसे उड़ जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पर आवै..."
इस संघर्ष में छल की शिकस्त हुई और प्यार की जीत!
दिलीप साहब सिगरेट तो पीते थे लेकिन उन्हें शराब पीते किसी ने नहीं देखा। हां, एक्टिंग करते हुए पीनी पड़ी हो तो बात और है।
वैसे वो बेहद खूबसूरत गीत "मुझे दुनिया वालो शराबी न समझो, मैं पीता नहीं हूं, पिलाई गई है"... उन्हीं पर फिल्माया गया था।
पेशावर के किस्साख्वानी बाज़ार में एक हिंदी बोलने वाले परिवार में जन्म लेने वाले दिलीप साहब की राशि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार "धनु" होती है जिसने कभी पांच हजार रूपए की रकम लेकर पुणे से मुंबई आने वाले इस उड़ती जुल्फों के खूबसूरत नवयुवक को उसकी मौत तक छह सौ करोड़ रूपए से अधिक की संपत्ति का वारिस बना छोड़ा। ये तमाम सरमाया दिलीप कुमार और सायरा बानो पर मुल्क के अवाम ने उनकी बेजोड़ कला के ऐवज में बरसाया।
यूसुफ खान ने अपने कैरियर की शुरुआत फ़िल्मों में पटकथा लेखक के रूप में लगभग तभी की थी जब सायरा जी का जन्म हुआ था।
वो तो अपने कारोबारी पिता के साथ फलों का व्यवसाय कर रहे थे पर किसी बात पर अपने पिता से खफा हो गए और पुणे चले आए। ख़ुद कमाने की खुद्दारी में उन्होंने मिलिट्री सैनिकों के लिए सैंडविच की कैंटीन स्टॉल लगा डाली। जब कुछ रकम इकट्ठी कर ली तो जनाब मुंबई चले आए जहां उन्हें तमाम देशवासियों का नसीब बुला रहा था।
बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से यहीं उनकी मुलाकात हुई और वो उनके एक हज़ार दो सौ पचास रुपए महीने के मुलाजिम हो गए।
और फ़िर हुई वो मज़ेदार बात!