Saheb Saayraana - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

साहेब सायराना - 13

दिलीप कुमार शुरू से ही बहुत शर्मीले और संकोची स्वभाव के थे। वो जब फ़िल्मों में आए थे तब वो डांस बिल्कुल भी नहीं जानते थे।
वैसे भी उस ज़माने में लड़कों के डांस करने का प्रचलन नहीं था। इसे पूरी तरह लड़कियों का ही काम माना जाता था। कभी- कभी अगर कुछ युवकों को नाचते थिरकते हुए देखा भी जाता था तो उन्हें किसी अलग दुनिया का वाशिंदा ही समझा जाता था। उन दिनों फ़िल्मों में पुरुषों को स्टंट और बहादुरी के करतब करते हुए दिखाया जाता था और स्त्रियों को नृत्य और गीत के साथ।
लेकिन धीरे- धीरे फ़िल्मों में लड़कों के डांस करने का चलन भी आया।
इस दौर का सिरमौर शम्मी कपूर और जितेंद्र जैसे सितारों को समझा जाता था जिन्होंने अपनी फ़िल्मों में जंपिंग जैक की इमेज बनाई। आरंभ में लड़कों के डांस करने को भी उनकी उछल कूद ही कहा जाता था।
छठे दशक के अंतिम दौर में दिलीप कुमार और वैजयंती माला की एक जबरदस्त हिट फ़िल्म प्रदर्शित हुई- "गंगा जमना"!
साहूकार की ज़्यादती और किसान के शोषण पर आधारित ग्रामीण पृष्ठभूमि के इस कथानक में एक बेहद रोचक और कर्णप्रिय नृत्यगीत भी था जिसमें परिवेश की आंचलिकता की गंध रची- बसी थी। पहले यह सोचा गया कि ये गीत कुछ सहायक कलाकार ग्रामीण युवकों पर उनके लोकनृत्य के रूप में फिल्माया जाएगा और इसे देखने वाले दर्शक की तरह दिलीप कुमार रहेंगे। किंतु जब इस गीत का रिहर्सल हो रहा था तब कुछ मस्ती के मूड में दिलीप कुमार भी खड़े हो गए और कुछ मौलिक स्टेप्स करके सह कलाकारों को दिखाने लगे। निर्देशक और अन्य देखने वाले दर्शकों को भोले- भाले दिलीप की ये भंगिमा इतनी चित्ताकर्षक लगी कि इस पूरे नृत्य गीत का प्लान बदल कर इसे दिलीप कुमार पर ही पिक्चराइज करने का निश्चय किया गया।
बाद में ये गीत इतना पॉपुलर हो गया कि फ़िल्मों में नायकों के डांस डालने का चलन ही ज़ोर पकड़ने लगा। इस गीत में दिलीप ने सबको इतना लुभाया कि बाद में इसकी कुछ भंगिमाएं अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और ऋतिक रोशन जैसे नायक भी अपनी फ़िल्मों में दोहराते देखे गए।
...और उस गीत को तो सिनेप्रेमी आज तक नहीं भूले- "नैन लड़ जई हैं तो मनवा में कसक होइबे करी...!
दिलीप कुमार के बाद लगभग उसी मस्ती के आलम में अमिताभ बच्चन ने डॉन फ़िल्म में लगभग वैसा ही जलवा एक बार फ़िर दिखाया। गाने के बोल थे- खाइके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला...। अमिताभ ने अभिनय और लोकप्रियता की तमाम ऊंचाइयां छू लीं लेकिन फ़िर भी इस गीत की बात जब भी आती है गंगा किनारे वाले अमिताभ के साथ- साथ दिलीप कुमार को भी ज़रूर याद किया जाता है। शायद यही किसी महान अभिनेता की चमत्कारिक सफ़लता है।
कहते हैं कि एक्टर्स तो केवल वही करते हैं जो उन्हें निर्देशक कहता है और पटकथा लेखक लिख कर देता है, वही बोलते हैं जो डायलॉग राइटर लिख कर देता है, उसमें कलाकार की अपनी पसंद - नापसंद का सवाल अमूमन नहीं आता है पर दिलीप कुमार की कुछ फ़िल्मों में उनके अभिनय और संवादों में मजलूमों और मजदूरों के लिए उनका जज़्बा स्वतः उभर कर सामने आता है जिससे उनके भीतर बैठे आदमी के जज़्बात झलकते हैं। नया दौर, मजदूर, संघर्ष, आदमी, सगीना और क्रांति उनकी ऐसी ही फ़िल्में थीं। ऐसी फ़िल्मों ने दिलीप को आमआदमी का हीरो बनाया।
अपनी बाद की कई फ़िल्मों में तो दिलीप कुमार ने भी डांस के खूब ठुमके लगाए।
धीरे- धीरे ऐसा चलन हो गया कि फ़िल्म के हीरो के साथ- साथ सारा शहर नाचने के लिए उमड़ पड़ा! कुछ नायक तो केवल अपने डांस के सहारे ही फ़िल्मों में चल निकले।


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