साहेब सायराना - 31 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साहेब सायराना - 31

न जाने अब वो कहां होगी?
दिलीप कुमार अपनी शादी के वक्त सायरा बानो से पूरे बाईस साल बड़े थे। लेकिन दोनों के बीच का बेहद प्यारा रिश्ता ऐसा था कि विवाह के बाद अक्सर हर जगह दोनों साथ - साथ ही दिखाई देते थे। यद्यपि सायरा बानो स्टार थीं। उनकी भी अपनी अलग दिनचर्या, अलग व्यस्तताएं और अलग शेड्यूल होते ही होंगे लेकिन फिर भी वो दोनों हर अवसर पर अक्सर साथ ही साथ दिखते। साथ में पहुंचते, साथ में बैठते और साथ ही लौटते।
कई सामाजिक, राजनैतिक या पारिवारिक कार्यक्रमों की प्रकृति ऐसी होती कि जहां पति- पत्नी साथ में पहुंचें पर बाद में पुरुष पुरुषों के साथ और महिला स्त्रियों में शामिल हो जाएं। लेकिन ये जोड़ा ऐसे अवसरों पर भी अपवाद ही सिद्ध होता।
ऐसे ही एक हुजूम में दिलीप कुमार के मुंहलगे एक वरिष्ठ पत्रकार ने पूछ लिया - मैडम, कहते हैं कि हर बड़ा आर्टिस्ट तन्हाई में ही अपने आप के लिए बेहतरीन प्रदर्शन के रास्ते खोजता है, दिलीप कुमार को ऐसा मौक़ा कब मिलता है?
मुस्कुराती हुई सायरा जी कुछ कहतीं इससे पहले ही दिलीप कुमार बोल पड़े - अरे यार, अब लोग मुझे नहीं, पड़ोसन को देखते हैं... तुम तन्हाई- तन्हाई करके उसे भगाओ मत।
एक ज़ोरदार कहकहा लगा। क्योंकि उन्हीं दिनों सायरा बानो की सुपरहिट फ़िल्म "पड़ोसन" धूम मचा कर चुकी थी। लोग ट्रेजेडी किंग के सेंस ऑफ ह्यूमर और हाज़िर जवाबी के कायल हो गए। इसी के साथ एक अजूबा और हुआ कि फ़िल्म इंस्टीट्यूट से निकले अनिल धवन, रेहाना सुल्तान व शत्रुघ्न सिन्हा की फ्लोर पर जा रही फ़िल्म के लिए निर्माता को एक नया नाम भी सूझ गया।
लेकिन तभी सायरा बानो का ध्यान इस बात पर गया कि हॉल में सामने ही नंदा, आशा पारेख, साधना और हेलेन एक साथ खड़ी होकर फ़ोटो के लिए पोज़ दे रही हैं, वो भी उठकर उस ओर बढ़ गईं और जाते- जाते पत्रकार महाशय की ओर देख कर बोलीं - लो, मिल गई तन्हाई?
कुछ लोगों को इस बात पर घना अचंभा होता था कि आख़िर दिलीप कुमार का अपनी फ़िल्मों में नायिका के चयन को लेकर क्या नज़रिया था। वो क्या देख कर किसी हीरोइन के साथ काम करने के लिए हामी भरते थे?
लोगों की यह जिज्ञासा कोई गलत भी नहीं थी क्योंकि एक तरफ़ उन्होंने अपने दौर की बेहद सफ़ल और लोकप्रिय अभिनेत्रियों साधना, आशा पारेख, नंदा, तनुजा, माला सिन्हा के साथ काम नहीं किया वहीं दूसरी तरफ अपने से उम्र में बहुत छोटी सायरा बानो को न केवल पर्दे पर, बल्कि निजी जीवन में भी अपनी संगिनी बनाया। जहां वह उर्दू भाषा और उससे जुड़ी नफासत पसंद करते थे वहीं दक्षिण से आई वैजयंती माला उनकी पसंदीदा अभिनेत्री भी रहीं। यहां तक कि लीना चंदावरकर भी उनकी नायिका रहीं।
यदि उन कुछ लोगों की बात मान भी ली जाए जो दिलीप कुमार की शख्सियत के इस पक्ष पर तंज कसने से ये कहते हुए नहीं चूकते थे कि "दिलीपसाहब को ऐसे कलाकार सहन नहीं होते थे जो पर्दे पर ज़्यादा असरदार दिखें", तो फिर आप इसे क्या कहेंगे कि नर्गिस, मधुबाला, मीना कुमारी और वहीदा रहमान भी उनकी नायिकाएं रहीं?
इस विश्लेषण को समझने के लिए शायद एक दिलचस्प वाकया ही काफ़ी है।
उन दिनों "राम और श्याम" की तैयारी चल रही थी। ये तय हो चुका था कि इसमें दोहरी भूमिका में दिलीप कुमार ही होंगे। उनके साथ दो नायिकाओं का चयन होना था। थोड़ी सी बातचीत के बाद वहीदा रहमान का नाम लगभग फ़ाइनल हो चुका था। वो "आदमी" तथा "दिल दिया दर्द लिया" में उनके साथ सहज रही थीं। फ़िल्म के निर्माता थे बी. नागिरेड्डी।
पहला विचार माला सिन्हा के नाम पर हुआ। माला दिलीप कुमार के साथ तो सबको जम रही थीं किंतु वहीदा रहमान को लेकर एक पेचीदगी सामने आई। वहीदा फ़िल्म में तेज़तर्रार दिलीप की चुलबुली नायिका के स्थान पर शर्मीले हीरो की सीधी - संजीदा नायिका ही बनना चाहती थीं। ऐसे में उनसे बड़ी लगने वाली माला सिन्हा चुलबुली नायिका की भूमिका में अपने को फिट नहीं पा रही थीं। यहां हीरो के डबल रोल के चलते फुटेज वैसे भी कम ही मिलने वाला था। लिहाज़ा उन्होंने फ़िल्म से किनारा कर लिया।
ऐसे में निर्माता के दिमाग़ में मुमताज़ का नाम विकल्प के तौर पर आया। मुमताज़ उन दिनों सहनायिका के रूप में नंबर वन मानी जा रही थीं। वो वैजयंती माला, शर्मिला टैगोर की सहायक होने के साथ- साथ वहीदा रहमान के साथ भी बहुत सफ़ल फ़िल्म "पत्थर के सनम" में भी झंडे गाढ़ चुकी थीं।
लेकिन दारा सिंह, शेख़ मुख्तयार, फिरोज़ खान की बी- क्लास फ़िल्मों की एक्ट्रेस सीधे दिलीप कुमार की हिरोइन? बात कुछ जमी नहीं।
मन में ये संकोच लिए जब निर्माता व निर्देशक ने दिलीप कुमार को मुमताज़ का नाम उनके कुछ फुटेज दिखाते हुए सुझाया तो दिलीप कुमार धीरे से एक ही बात बोले - "निम्मी याद आ गई"!