साहेब सायराना - 34 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साहेब सायराना - 34

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जिस तरह चंद्रमा को दूर से देखते रहने वाले करोड़ों लोगों की दिलकश बातों पर उन नील आर्मस्ट्रांग की चंद बातों ने तरजीह पाई जो ख़ुद जाकर चांद को अपने कदमों से छू आए थे, ठीक उसी तरह दिलीप कुमार के बाबत उन लोगों के खयालात भी बेहद असरदार और सच्चे हैं जो उनके प्रोफेशन में उनके अजीज़ रहे।
कहते हैं अभिनेत्री निम्मी से भी दिलीप कुमार के ताल्लुकात बहुत इंसानी रहे।
कभी निम्मी ने ख़ुद बताया कि एक एक्टर के तौर पर पहली बार में दिलीप कुमार ने उनके जहन में कोई ख़ास असर नहीं छोड़ा।
दिलचस्प वाकया है कि उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में अपनी मां और दादी के साथ रहती साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि की युवती निम्मी दिलीप कुमार की फ़िल्म अंदाज़ की शूटिंग देखने पहुंची थीं। इस फ़िल्म में शायद पहली और आखिरी बार दिलीप कुमार ने राज कपूर के साथ काम किया।
किशोरी निम्मी ये देख कर हैरान थीं कि फ़िल्म के निर्देशक सेट पर राज कपूर को बार बार दृश्य समझा कर उन्हें बारीकी से तैयारी करवा रहे हैं जबकि इसी सीन में उनके साथ काम करने वाले दिलीप कुमार एक ओर चुपचाप बैठे हैं, उनसे कुछ नहीं कहा जा रहा। मानो उनकी कोई अहमियत ही न हो।
लेकिन जब फ़िल्म रिलीज़ हुई और पहले ही दिन निम्मी उसे देखने गईं तो ये देख कर हैरान रह गईं कि उस सीन में दिलीप कुमार छाए हुए हैं और दर्शकों की तालियां उन्हीं के संवादों पर बज रही हैं। निम्मी दिलीप कुमार की प्रतिभा की उसी दिन से कायल हो गईं। उन्हें समझ में आ गया कि उस दिन शूटिंग के समय निर्देशक महोदय का दिलीप को लेकर अतिविश्वास किस कारण रहा होगा। जबकि सामने भी कोई ऐसा- वैसा साधारण कलाकार नहीं बल्कि भविष्य के कालजयी फिल्मकार शोमैन राज कपूर थे।
और भवितव्य देखिए कि आगे चल कर मेहबूब खान जैसे फिल्मकार ने अपनी फिल्म "आन" में निम्मी को दिलीप कुमार की हीरोइन बना कर ही उतार दिया।
दिलीप कुमार ने निम्मी के साथ कुल पांच बेहद सफ़ल फ़िल्में कीं। आन, उड़नखटोला, अमर, दीदार और दाग़
जैसी फ़िल्मों को भला कौन भूल सकता है। ये सभी एक से बढ़कर एक बेहतरीन लोकप्रिय फ़िल्में रहीं।
एक मज़ेदार किस्सा है जो निम्मी से वाबस्ता होकर भी दिलीप कुमार की शख्सियत पर रौशनी फेंकता है। हुआ यूं कि मेहबूब खान की फ़िल्म आन में निम्मी शूटिंग के वक्त चुपचाप अलग- थलग बैठ जातीं जैसे उन्हें किसी और से कोई मतलब ही न हो। जबकि वो "बरसात" फ़िल्म में सह नायिका की भूमिका करने के बाद पहली बार यहां नायिका बनी थीं, निर्देशक चाहते थे कि वो उनकी एक- एक बात ध्यान से सुनें, अन्य साथी कलाकारों के काम को ध्यान से देखें, समझें, सभी के काम में रुचि लें ताकि अपना बेहतरीन दे सकें। लेकिन निम्मी का रवैया देख कर आख़िर उन्हें एक बार निम्मी से कहना ही पड़ा कि वे दिलीप कुमार बनना छोड़ दें।
जाहिर है कि निम्मी के अवचेतन में शूटिंग के वक्त पहली बार देखे हुए दिलीप कुमार ही बसे हुए थे और वो अनजाने में उन्हीं का अनुसरण कर रही थीं। जबकि दिलीप कुमार तब तक कई शानदार और सफ़ल फ़िल्में दे चुकने वाले कामयाब स्टार बन चुके थे जिनके लिए दृश्य में खड़े हो जाना ही बेहतरीन अदाकारी का प्रमाण पत्र माना जाता था।
दिलीप कुमार की इतनी बड़ी फैन और उनके साथ सुपरहिट फिल्में करने वाली निम्मी से एक बार ये भी पूछा गया कि अपनी पसंदीदा शख्सियत के साथ लंबे समय तक काम करने के बाद भी आपके दिल में कभी ये ख्याल नहीं आया कि दिलीप खूबसूरत हैं, कुंवारे हैं, स्मार्ट हैं, सफ़ल हैं तो वो आपके लिए शौहर मैटेरियल भी हो सकते हैं... इस बेतरह फैले बिखरे सवाल का जवाब इस सीधी सादी नायिका ने ये कह कर आसानी से दे दिया कि उस दमकते आफताब पर तब मधुबाला नाम का बादल छाया हुआ था!
सच। बड़े लोगों की बड़ी बातें। चंद लफ्ज़ों में बला के फलसफे। क्या दौर था!