फिल्म रिव्यू - मयूर पटेल

(2.7k)
  • 630.8k
  • 34
  • 138.5k

फिल्म रिव्यू – ‘ठग्स ओफ हिन्दोस्तान’… दर्शको को वाकइ में ठग लेगी ये वाहियात फिल्म कई सालों से ये होता चला आ रहा है की दिवाली के त्योहार पर रिलिज हुई फिल्म इतनी बुरी होती है की दिवाली का मजा किरकिरा कर देती है. फिर चाहे वो ‘जब तक है जान’ हो या ‘हेप्पी न्यू यर’. ‘दिलवाले’ हो या ‘शिवाय’ या फिर ‘ए दिल है मुश्किल’. एसी फिल्में बडे स्टार्स के नाम पे अच्छा ओपनिंग लेके बोक्स ओफिस पर कमाई तो कर लेती है पर दर्शको के दिलों पे राज नहीं कर पातीं. ईस साल रिलिज हुई ‘ठग्स ओफ हिन्दोस्तान’ थी एसी प्रकार की फिल्म है. बकवास और फिकी.

नए एपिसोड्स : : Every Friday

1

‘ठग्स ओफ हिन्दोस्तान’ फिल्म रिव्यू

फिल्म रिव्यू – ‘ठग्स ओफ हिन्दोस्तान’… दर्शको को वाकइ में ठग लेगी ये वाहियात फिल्म कई सालों से ये होता आ रहा है की दिवाली के त्योहार पर रिलिज हुई फिल्म इतनी बुरी होती है की दिवाली का मजा किरकिरा कर देती है. फिर चाहे वो ‘जब तक है जान’ हो या ‘हेप्पी न्यू यर’. ‘दिलवाले’ हो या ‘शिवाय’ या फिर ‘ए दिल है मुश्किल’. एसी फिल्में बडे स्टार्स के नाम पे अच्छा ओपनिंग लेके बोक्स ओफिस पर कमाई तो कर लेती है पर दर्शको के दिलों पे राज नहीं कर पातीं. ईस साल रिलिज हुई ‘ठग्स ओफ हिन्दोस्तान’ थी एसी प्रकार की फिल्म है. बकवास और फिकी. ...और पढ़े

2

2.0 फिल्म रिव्यू

धमाकेदार एक्शन का जलवा... कम्प्युटर ग्राफिक्स का कमाल... बहेतर से बहेतरिन... साल 2010 में आइ रजनीकांत की ‘रोबो’ (तमिल में ने बोक्सओफिस पर मानो तहेलका मचा दिया था. 130 करोड के बजेट में बनी उस फिल्म ने विश्वभर में 290 करोड की कमाई की थी. इस लिहाज से देखें तो जब जानने में आया की ‘रोबो’ की सिक्वल ‘2.0’ का बजेट 543 करोड रुपिये है, तो हैरानी हुई थी की इतनी बडी लागत से बनी फिल्म अपना खर्चा कैसे वसूल कर पाएगी, वो भी तब जब उसकी पहेली कडी 300 करोड तक भी नहीं पहुंच सकी थी. चटपटी तो ये जानने की भी थी की आखीर इस फिल्म में ऐसा क्या होगा जो इसका बजेट इतना बडा हो गया है? इतने मोटे-तगडे बजेट की फिल्म पहेले ही दिन देखी, और दोस्तो… मानना पडेगा की बजेट के पूरे 543 करोड रुपिये इस फिल्म में दिखे, और क्या खूब दिखे… दिवाली का मजा पूरी तरह से किरकिरा कर देनेवाली ‘ठग्स ओफ हिन्दोस्तान’ का बजेट 300 करोड बताया गया था, जबकी उस फिल्म में 300 करोड कहीं नहीं दिखे थे. पर ‘2.0’ के केस में एसा नहीं है. ‘2.0’ में किया गया खर्चा पूरी तरह से पर्दे पर दिखता है ...और पढ़े

3

केदारनाथ - फिल्म रिव्यू

वोलिवुड अब बदल चुका है, नई पीढी के दर्शक अब नए प्रकार की कहानियों से सजी फिल्में पसंद करते पर ‘केदारनाथ’ के निर्माता-निर्देशक अभिषेक कपूर को शायद ये बात पता नहीं है ईसीलिये उन्होंने एक पचास साल पुरानी कहानी दर्शकों के सर मारने की गुस्ताखी की है. ...और पढ़े

4

ऐक्वामैन

होलिवुड फिल्मों के सुपरहीरो की बात चले तो केवल दो ही युनिवर्स याद आते है. पहला, मार्वेल और दूसरा, कॉमिक्स. दोनों के बीच मार्वेल का पलडा हमेशा से भारी रहा है. एक से बढकर एक सुपरहीरो एक्शन फिल्में देकर मार्वेल ने डीसी को कहीं पीछे छोड दिया है. 2017 में आई ‘वन्डर वुमन’ ने डीसी को धमाकेदार सफलता दिलाई और कुछ हद तक डीसी की लाज बचाई, ऐसा कहा जा सकता है. अब डीसी आया है एक नये सुपरहीरो 'ऐक्वामैन' को लेकर. और मानना पडेगा की 'ऐक्वामैन' भी डीसी के तरकश से निकला एक सटिक हथियार साबित हुआ है. ...और पढ़े

5

फिल्म रिव्यू – ‘ज़ीरो’… क्या किंग खान के करियर की डूबती नैया पार लगा पाएगी ये फिल्म..?

फिल्म रिव्यू – ‘ज़ीरो’… क्या किंग खान के करियर की डूबती नैया पार लगा पाएगी ये फिल्म..? (Film Review Mayur Patel) कुछ फिल्मों को देखकर विचार आता है की, ‘ईसे बनाया ही क्यूं गया है?’ जैसे की विशाल भारद्वाज की ‘रंगून’ और अनुराग कश्यप की ‘बोम्बे वेल्वेट’. यही सवाल मेरे जहेन में आया ‘ज़ीरो’ देखकर- ‘आखिर ईस फिल्म को क्यूं बनाया गया?’ शायद ये साबित करने के लिये की शाहरुक खान कितनी अच्छी एक्टिंग कर सकते हैं या फिर अनुष्का शर्मा कितनी अच्छी ओवर एक्टिंग कर सकती है? ‘ज़ीरो’ का ट्रेलर देखकर ही लगा था की ईतने विशाल फलक ...और पढ़े

6

सिम्बा फिल्म रिव्यू

फिल्म रिव्यू – ‘सिम्बा’… मनोरंजन के नाम पे परोसी गई बासी खीचडी (Film Review by: Mayur रोहित शेट्टी. ये नाम जहेन में आते ही एक टिपिकल मसाला फिल्म का ख्याल आता है जिसमें नाच-गाना हो, ऐक्शन का ओवरडोज हो, कॉमिडी हो, फनी डायलोग्स हो, थोडा-बहोत रोमांस हो और बिना सिर-पैर वाली एक कहानी हो. शेट्टी निर्देशित 'सिम्बा' में ये सब है लेकिन फिर भी ये एक अच्छी मनोरंजक फिल्म नहीं बन सकी. चलिए जानते है क्यूं... अब रोहित शेट्टी की फिल्म है तो ईस में मोटी-तगडी कहानी ढूंढने की कोशिश तो हम नहीं कर सकते, लेकिन कहानी ...और पढ़े

7

फिल्म रिव्यूः 'द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर'… बेमतलब की राजकीय ड्रामेबाजी…

रिलिज के पहेले ही विवादों में घीरी फिल्म 'द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' को शूरुआत से ही एक ‘प्रोपगेंडा’ फिल्म जाता रहा है. कहा जाता रहा है की ‘भारतीय नेशनल कोंगेस’ की छबि धूमिल करने के खास मकसद से ये फिल्म बनाई गई है, और वो भी उस वक्त जब 2019 के चुनाव सर पर है. 'द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' देखने के बाद ये वाकई में साफ हो जाता है की ये फिल्म सही मायने में एक प्रोपेगेंडा ही है. (जिनको नहीं पता वो जान लें की प्रोपेगेंडा फिल्म मतलब ऐसी फिल्म जो किसी एक व्यक्ति, समाज/समुदाय या संगठन ...और पढ़े

8

फिल्म रिव्यूः 'ऊरीः द सर्जिकल स्ट्राइक'… भारतीय सैन्य के गौरवान्वित प्रकरण की बहेतरिन प्रस्त

भारत में जहां दर्शकों को हमेशा मनोरंजन की भूख रहती है वहां पर युद्ध पर आधारित फिल्म बनाना थोड़ा लगता है. कभी कभी कोई ‘बॉर्डर’ या ‘हकीकत’ जैसी फिल्में दर्शकों के अपेक्षा पर खरी उतरती है, लेकिन ज्यादातर वॉर फिल्में बॉक्सऑफिस पर असफल होती दिखाई देती है. ‘बॉर्डर’ के ही निर्देशक जे.पी.दत्ता की फिल्म ‘पलटन’ पिछले साल कब आई और कब गई किसी को पता भी नहीं चला. इस बार निर्देशक आदित्य धर ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ नाम की वॉर फिल्म लेकर आए हैं. ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ फिल्म बनी है 2016 में भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान ऑक्यूपाइड ...और पढ़े

9

फिल्म रिव्यूः ‘मणिकर्णिका’… इतिहास का वो अमर किरदार क्या रंग लाया है सिनेपर्दे पर..?

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई. एक ऐसी शख्सियत जो हर भारतीय के जहेन में सालों से बसी हुई है. स्कूल हम सबने उनकी शौर्यगाथा के बारे में पढा है. उनके उपर लिखीं गईं किताबें, उनके उपर बनीं गई सिरियल्स और नाटक हमने देखें है. अब कंगना रनौत ‘रानी लक्ष्मीबाई’ बनकर एक मेगाबजेट (पूरे 125 करोड..!!!) फिल्म ‘मणिकर्णिका’ लेकर आईं हैं. फिल्म की कहानी शुरु होती है 1828 से जब रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ था और अंग्रेज शासन भारतवर्ष पर अपनी जडें मजबूत कर रहा था. पेशवा (सुरेश ओबेरॉय) की दत्तक बेटी मणिकर्णिका उर्फ मनु जन्म से ही साहसी ...और पढ़े

10

फिल्म रिव्यूः ‘एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा’... प्यार के ‘उस’ अनछुए मुद्दे पर बनी खूबसूरत फिल्म...

दशकों से हम हिन्दी फिल्मों में लव स्टोरी देखते आए है. लडका-लडकी मिलते हैं, पहले तकरार और फिर प्यार है. घरवाले विलन बनते है. बिछडना-जुदाई का सामना करना पडता है, लेकिन आखिरकार प्यार की जीत होकर रहेती है. ऐसी घीसीपिटी कहानी पर बनी कितनी फिल्में हम देख चुके है. ‘एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा’ में भी यही सब है. लेकिन, यहां कहानी में एक बडा ट्विस्ट भी है. और वो ट्विस्ट ये है की, यहां प्रेम कहानी में लडका है ही नहीं. ये प्रेम कहानी है दो लडकीयों के बीच की. जी हां, ये फिल्म समलैंगिंक प्रेम ...और पढ़े

11

अलिटा: बेटल एंजेल

‘अलिटा: बेटल एंजेल’ में ज्यादा दिलचस्पी जागने का सबसे बडा कारण है ईस फिल्म के निर्माता जेम्स केमेरुन, जिन्होंने पहले ‘टाइटेनिक’ और ‘अवतार’ जैसी माइलस्टोन फिल्में बनाई थीं. न सिर्फ जेम्सने ‘अलिटा: बेटल एंजेल’ का निर्माण किया है बल्की ईस फिल्म की पटकथा भी उन्होंने (ए. कालोग्रिडिस के साथ मिलकर) लिखी है. जाहिर सी बात है की ‘अलिटा: बेटल एंजेल’ से अपेक्षाएं बहोत ज्यादा होगी. तो चलिए जानते है की कैसी है ये फिल्म…फिल्म की कहानी शुरु होती है सन 2563 में. महायुद्ध के बाद पृथ्वी पर मानव-सभ्यता तबाह हो चुकी है. केवल कुछ हजार मनुष्य बचे है जो ...और पढ़े

12

गली बॉय फिल्म रीव्यु

फिल्म रिव्यूः ‘गली बॉय’… बात बन जाती अगर कहानी में होता दम… 'अपना टाइम आएगा...' फिल्म ‘गली बॉय’ की इस एक गाने में समा जाती है. फिल्म की कहानी समाज के दबे-कुचले वर्ग की है जो अभावों में जीते हैं, और सामाजिक बहिष्कार का सामना करते रहते है. मुंबई की धारावी झोंपडपट्टी में रहने वाले मुराद (रणवीर सिंह) को रैपर बनने की चाह है, लेकिन उसके घरवाले इसके खिलाफ है. एक छोटे से घर में मुराद अपनी अम्मी, पिता, दादी, छोटे भाई और छोटी अम्मी के साथ रहते हैं. बाप आफताब शेख (विजय राज) से मुराद की बिलकुल भी ...और पढ़े

13

‘टोटल धमाल’ फिल्म रिव्यू 

‘टोटल धमाल’ फिल्म रिव्यूकाफी अरसे से हसां-हसांके लोट पोट कर दे एसी एक फिल्म का इंतजार था और आखीरकार फिल्म आ ही गई. ‘टोटल धमाल’. मनोरंजन का मस्त मजेदार तडका लेके आई है ये कोमेडी फिल्म.निर्देशन इन्द्र कुमार की 2007 में आई ‘धमाल’ एक बहेतरीन कोमेडी थी. उस सुपरहिट कोमेडी की दूसरी कडी ‘डबल धमाल’ 2011 में रिलिज हुई थी, जो की निहायती बकवास फिल्म थी. अब आई है ‘टोटल धमाल’, जो ओरिजिनल ‘धमाल’ के जीतनी कमाल तो नहीं है लेकिन ‘डबल धमाल’ से तो कहीं ज्यादा अच्छी है.‘टोटल धमाल’ में कहानी है पैसों के पीछे भागते लालची लोगों ...और पढ़े

14

‘बदला’ फिल्म रिव्यूः धांसू स्क्रिप्ट, दिलधड़क पेशकश…

2012 में एक फिल्म आई थी- ‘कहानी’, जिसकी कहानी इतनी रहस्यमय थीं की दर्शक चौंक गए थे. 8 करोड लागत से बनी उस फिल्म ने बोक्सओफिस पर 104 करोड की कमाई की थी और सुपरहिट साबित हुई थी. फिल्म के निर्देशक सुजोय घोष की बहोत ही तारीफें हुई थीं और अभिनेत्री विद्या बालन की झोली उस साल के अवार्डस से भर गई थीं. फिल्म-मेकिंग के सभी पहलूंओ पर वो फिल्म सही मायनो में खरी उतरी थीं. उसी तर्ज पर बनीं फिल्म ‘कहानी-२’ बस ठीकठाक ही थीं और फ्लोप हुई थीं. अब उन दो फिल्मों के निर्देशक लेकर आए है ...और पढ़े

15

‘केसरी’ फिल्म रिव्यू- सारागढी की गौरव गाथा…

वो केवल 21 थे और सामने पूरे 10000 की फौज. जीत नामूमकिन थी. लेकिन उन 21 जांबाज सिपाहीयों के बुलंद थे. इतने बुलंद की उनकी सरफरोशी इतिहास के पन्नों में ‘बैटल ऑफ़ सारागढ़ी’ के नाम से हमेशा के लिए दर्ज हो गई. बात है 1897 की. जब भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश एक थे. हिन्दोस्तान की सरजमीं का सरहदी हिस्सा था सारागढी, जो की वर्तमान में पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम फ्रण्टियर प्रान्त (खैबर-पखतुन्खवा) में स्थित है. अफघानी घूसपेठीए भारत के सरहदी प्रांतो पे कब्जा जमाने की ताक में है और अंग्रेजी हकूमत भारतीय सिपाहीयों के बलबूते पर उनसे टक्कर लेने को तैयार है. दुर्गम ...और पढ़े

16

‘रोमियो अकबर वॉल्टर’ फिल्म रिव्यूः ढीलीढाली थ्रिलर

जासूसी थ्रिलर फिल्म में सबसे ज्यादा जरूरी क्या होता है..? एक रोमांचक कहानी. ट्विस्ट से भरपूर स्क्रिप्ट. रोंगटे खडे देनेवाली परिस्थितियां और धमाकेदार एक्शन. ये सारी चीजें ‘उरी’ और ‘राजी’ जैसी फिल्मों में कूट कूट कर भरी पडी थी. ईसी वजह से वो दोनों फिल्म ब्लोकबस्टर साबित हुई थी. ‘रॉ’ (‘रोमियो अकबर वॉल्टर’ का शोर्ट फोर्म) भी एक जासूसी थ्रिलर है, तो ईस में भी वो सारी खूबीयां होनी चाहिए थी, मगर अफसोस… की नहीं है. जॉन अब्राहम की ‘रॉ’ में खूबीयां कम, खामीयां ज्यादा है. चलिए जानते है क्यों..? फिल्म की कहानी है 1971 के जमाने की, जब ...और पढ़े

17

‘द ताशकंद फाइल्स’ फिल्म रिव्यूः इतिहास का वो अनसूलझा पन्ना

1966 सोवियत यूनियन की राजधानी ताशकंद में भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई दुनिया को ये कहा गया था की शास्त्रीजी की मौत दिल का दौरा पडने की वजह से हुई थी, लेकिन कुछ लोगों का मानना था की शास्त्रीजी की हत्या हुई थी, उन्हें जहर देकर मार दिया गया था. सच्चाई क्या है? इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए बनी है फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’. कैसी है ये फिल्म? क्या ये फिल्म वर्तमान लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बनाई गई एक प्रोपेगेन्डा फिल्म है? क्या ये फिल्म इतिहास के उस अनसुलझे पन्ने को सुलझाने में कामियाब होती है? चलिए जानते है फिल्म के रिव्यू के जरीए. रिव्यू पढने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें… ...और पढ़े

18

कलंक’ फिल्म रिव्यू

एक था करन जोहर. बडी बडी ब्लोकबस्टर फिल्मों का निर्देशन और निर्माण करके खूब पैसा बटोरने और भारतीय दर्शकों खासा मनोरंजन करने के बावजूद कई बार वो अपने इन्टर्व्यू में कहेता था की, ‘मैं क्यूं ‘बर्फी’ जैसी क्लासिक फिल्में नहीं बना सकता? संजय लीला भणसाली बनाते है वैसी भव्य, मेग्नमओपस फिल्में मैं क्यूं नहीं बना सकता?’ तो जनाब जोहर ने आखिर तय कर ही लिया की अब मैं भी भणसाली बनके दिखाउंगा, मैं भी एक एसी महा…न फिल्म बनाउंगा की दर्शक देखते रह जाएंगे..! तो उन्होंने प्रोड्युस की ‘कलंक’. कैसी है ये मल्टीस्टारर फ़िल्म? संजय लीला भंसाली की फिल्मों जैसी दिखने वाली 'कलंक' क्या सच में भंसाली की फिल्मों जितनी दमदार है? एक साथ 3 हिट फिल्म देने वाली आलिया-वरुण की जोड़ी का जादू क्या फिर एक बार दर्शको पर चलेगा? चलिए जानते है फिल्म के रिव्यू के जरीए. रिव्यू पढने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें… ...और पढ़े

19

‘ऐवेंजर्स एंडगेम’ फिल्म रिव्यूः धमाकेदार पेशकश…

11 साल, 21 फिल्में और कई सारे सुपर हीरोज… मार्वेल युनिवर्सने एक के बाद एक ब्लोकबस्टर फिल्में देकर पूरी के सिनेप्रेमीओं को खुश कर दिया था. और इस पूरी मार्वेल विरासत को समेट कर अब आई है इस युनिवर्स की २२वीं और आखरी फिल्म ‘ऐवेंजर्स एंडगेम’. मानना पडेगा की पीछली ऐवेंजर्स फिल्मों की तरह ही ये ऐवेंजर्स एडवेन्चर भी लाजवाब है. कहानी वहीं से शुरु होती है जहां से ‘ऐवेंजर्स इन्फिनिटी वॉर’ खतम हुई थी. सारे इन्फिनिटी स्टोन हासिल करने के बाद थेनोस ने एक चुटकी बजाकर आधी दुनिया को खत्म कर दिया था, जिसमें आम लोगों के साथसाथ ...और पढ़े

20

स्टुडन्ट ऑफ द यर 2- फिल्म रिव्यू हिंदी

खाना चाहे कितना भी सजा-धजा कर परोसा जाए, अगर उसमें स्वाद ही नहीं होगा तो कीसीको भाएगा क्या..? नहीं, ही नहीं. ‘स्टुडन्ट ऑफ द यर 2’ का हाल भी कुछ उस बासी डिश जैसा है, जो दिखने में तो बहोत अच्छी है, पर है पूरी तरह से बेस्वाद. फिल्म में कहानी ढूंढने की कोशिश मत किजिएगा, क्यूंकी कहानी जैसा कुछ है ही नहीं. जो कुछ पतला सा है वो एसा है की… दहेरादून के पिशोरीलाल कोलेज के होनहार स्टुडन्ट रोहन शर्मा (टाइगर श्रॉफ) स्पोर्ट्स स्कोलरशिप जीत कर सेइन्ट टेरेसा जैसे महेंगे कोलेज में एन्ट्री मारते है, जहां उन्हें मिआ ...और पढ़े

21

दे दे प्यार दे - फिल्म रिव्यू

कुछ फिल्में एसी होतीं हैं जिनको ‘ग्रेट’, ‘क्लासिक’ जैसे विशेषणो से नवाजा जा सकता है. जैसे की ‘दंगल’. और फिल्में एसी होती है जिनको ‘सुपरफ्लोप’, ‘हथोडा’ कहा जा सकता है. जैसे की ‘कलंक’. और फिर कुछ फिल्में एसी होती है जो ईन दो प्रकार की फिल्मों के बीच रखी जा सके. एसी फिल्में चुपके से रिलिज होतीं हैं, उनमें ज्यादा तामझाम, ज्यादा दिखावा नहीं होता, लेकिन फाइनल रिजल्ट इतना अच्छा होता है की एसी फिल्में दिल में बस जाती है. जैसे की ‘लुकाछुपी’. ‘दे दे प्यार दे’ एसी ही एक दिल में बस जानेवाली प्यारी सी, स्वीट सी फिल्म ...और पढ़े

22

‘अलादीन’ फिल्म रिव्यूः मनोरंजन का तूफान

अरेबियन नाइट्स. अरबस्तान की कहानीयां. भारत की न होने के बावजूद भारतीयों को काफी जानी-पहेचानी, अपनी-सी लगनेवाली उन कहानीयों बनी एनिमेशन फिल्में तथा सिरियल्स हम सब देख चुके है, पसंद कर चुके है. (याद है ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ तथा ‘सिंदबाद’?) कुल मिलाकर एक हजार एक कहानीयों के उस ‘अरेबियन नाइट्स गुलदस्ते’ की एक बहेतरिन कहानी है ‘अलादीन और जादूई चिराग’. वही कहानी अब बडे लाइव एक्शन के रूप में पर्दे पर आई है ‘अलादीन’ बनके. कहानी कुछ यूं है की… अरबस्तान के अग्रबाह राज्य में एक मुफलिस, अनाथ युवा अलादीन (मेना मसूद) अपने प्यारे बंदर अबू के साथ ...और पढ़े

23

‘भारत’ फिल्म रिव्यूः कमजोर कडी ‘कहानी’

सुपरस्टार सलमान खान की लेटेस्ट ‘ईद’ रिलिज ‘भारत’ की सबसे बडी प्रोब्लेम है उसकी कहानी जो की बहोत ही है. साल 1947 से लेकर 2010 तक का भारत देश का इतिहास यहां दिखाया गया है. दिखाया गया है की देश-दुनिया में उस समय के दौरान घटी घटनाएं एवं उथलपुथल से फिल्म के मुख्य किरदार ‘भारत’ के जीवन में कैसे कैसे मोड आते है. 1947 के विभाजन की त्रासदी के दौर में छोटे भारत का परिवार बीछड जाता है. स्टेशन मास्टर पिता (जैकी श्रॉफ) और छोटी बहन पाकिस्तान में ही लापता हो जाते है. लाहोर छोड कर दिल्ली जा बसे ...और पढ़े

24

‘जजमेन्टल है क्या’ फिल्म रिव्यूः दमदार तो है, लेकिन…

विवादों में धिरी फिल्म ‘जजमेन्टल है क्या’ कहानी है ‘एक्यूट सायकोसिस’ नामके मानसिक रोग से ग्रसित लडकी बॉबी की. में डबिंग आर्टिस्ट का काम करनेवाली बॉबी अकेली रहेती है. अपनी मानसिक बीमारी के कारण वो लोगों पर विश्वास नहीं कर पाती, झूठ और सच के बीच का भेद परख नहीं पाती, बार बार गुस्से, मूड स्विंग, हेलूसिनेशन, इल्यूजन का शिकार हो जाती है. उलझी हुई इस लडकी के जीवन में खलबली तब मचती है जब उसके पडोस में एक कपल— केशव (राजकुमार राव) और रीमा (अमायरा दस्तूर)— रहने के लिए आते है. एक रात एक मर्डर हो जाता है ...और पढ़े

25

होब्स एन्ड शॉ - फिल्म रिव्यू

होलिवुड की फिल्मों का दिवाना हो और उसने ‘द फास्ट एन्ड द फ्युरियस’ सिरिज की फिल्में न देखी हो, तो शायद ही कोई बंदा होगा ईस धरती पर. 18 साल में एक से बढकर एक एसी कुल 8 फिल्मे देकर इस फिल्म-फ्रेन्चाइज ने बोक्सओफिस पर काफी रेकॉर्डतोड धमाके किए है. इसी सिरिज की लेटेस्ट फिल्म है ‘होब्स एन्ड शॉ’, जिसमें दुनिया के दो दिग्गज एक्शन स्टार्स ड्वेइन ज्होनसन ‘द रोक’ और जेसन स्टेधाम ने प्रमुख भूमिकाएं नीभाईं है. फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं है. एक वैज्ञानिक ने ‘स्नोफ्लेक’ नामके वायरस का ईजाद किया है. अगर वो वायरस गलत ...और पढ़े

26

फिल्म रिव्यू ‘जबरिया जोडी’- बेकार की भेजाफोडी

बिहार के कुछ हिस्सों में व्यापक 'पकड़वा विवाह' पर आधारित ‘अंतर्द्वंद’ तथा ‘सब कुशल मंगल है’ जैसी फिल्में हम चुके है. 'पकड़वा विवाह' वो होता है जहां पेशेवर गुंडे पैसे लेकर कुंवारे लडके का अपहरण करते है और फिर उसकी शादी जिस से पैसे लिए होते है उस परिवार की लडकी के साथ जबरन करवा देते है. इसी विषय पर हल्के-फुल्के अंदाज में बनी है ‘जबरिया जोडी’ जिस में पटना का गुंडा अभय सिंह (सिद्धार्थ मल्होत्रा) होशियार-होनहार दूल्हों की किडनैपिंग करके उनकी शादी उन लड़कियों से करवाता है, जिनके परिवार वाले मोटा दहेज देने में असमर्थ होते हैं. अभय ...और पढ़े

27

फिल्म रिव्यू मिशन मंगल

24 सितंबर 2014 को इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन) ने मिशन मार्स को सफलतापूर्वक पार कर दिखाया था. पहेले प्रयास में यह सिद्धि प्राप्त करनेवाला भारत दुनिया का पहेला देश था. देश के उस गौरवशाली प्रकरण पर बनी है फिल्म 'मिशन मंगल'. ...और पढ़े

28

फिल्म रिव्यू बाटला हाउस

13 सितंबर 2008 को दिल्ली में हुए सीरियल बोम्ब ब्लास्ट की जांच के लिए दिल्ली पुलिस के स्पेशियल सेल ओफिसर संजीव कुमार यादव (जॉन अब्राहम) अपनी टीम के साथ बाटला हाउस की इमारत की तीसरी मंजिल पर पहुंचते हैं. वहां इंडियन मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकियों के साथ पुलिस की मुठभेड़ होती है और ...और पढ़े

29

फिल्म रिव्यू ‘साहो’- एक्शन के नामे पे ‘हथौडा’   

‘खोदा पहाड निकला चुहा…’ कहावत ‘साहो’ पर बिलकुल फिट बैठती है. ‘बाहुबली’ के बाद प्रभास की एक और दमदार देखने को बेताब दर्शकों के लिए हथौडा साबित होनेवाली है- ‘साहो’. मोटे-मोटे बडे-तगडे खड्डेवाली कहानी कुछ यूं है की… दुनिया के किसी कोने में ‘वाजी’ नाम का आधुनिक शहर बसा है, जिसकी चकाचौंध के सामने ‘दुबई’ भी फिका लगे. इस आधुनिक शहर में डॉन रॉय (जैकी श्रॉफ) का राज चलता है. इसी दरमियान एक चोरी हो जाती है. पूरे 2000 करोड की चोरी..! प्रभास एक पुलिस अफसर है जो अपनी टीम बनाकर उस चोर को पकडने में लग जाता है. ...और पढ़े

30

फिल्म रिव्यूः ‘ड्रीम गर्ल’ कमाल-धमाल-बेमिसाल कोमेडी

क्या कर रहा है? क्या कर रहा है? क्या कर रहा है ये लडका आयुष्मान खुराना..? दे धनाधन सिक्सर सिक्सर… सिक्सर पे सिक्सर… मारे जा रहा है. ‘विकी डोनर’ और ‘दम लगा के हैसा’ जैसी ओफबीट सुपरहिट फिल्में देने के बाद पिछले सिर्फ देढ साल में इस बंदे ने ‘अंधाधून’, ‘बधाई हो’ और ‘आर्टिकल 15’ जैसी तीन सुपरहिट फिल्में दी है. और अब जो ‘ड्रीम गर्ल’ लेके आया है, वो तो उसकी पीछली सारी फिल्मों के रेकोर्ड तोडनेवाली है. इस जबरदस्त एन्टरटेनर की कहानी कुछ यूं है की… गोकुल में रहेनेवाला करमवीर (आयुष्मान खुराना) बेकार है, लाख कोशिशों के ...और पढ़े

31

फिल्म रिव्यू ‘वॉर’- हिट या हथौडा..?

यशराज फिल्म की ताजी पेशकश ‘वॉर’ की कहानी भारत के लिए खतरनाक साबित होनेवाले आतंकी आका को खत्म करने लिए मैदान-ए-जंग में उतरनेवाले जांबाज सोल्जर्स की है. कहानी में ज्यादा कुछ नयापन तो नहीं है, पर कहानी की प्रस्तुति अच्छे से की गई है. ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ आतंक के सरगना से भीडते भीडते खुद एक दूसरे के खिलाफ हो जाते है. क्यूं और कैसे? ये जानने के लिए आपको ईस ‘वॉर’ का हिस्सा बनना पडेगा. इन्टरवल तक ठीकठाक लगनेवाली फिल्म दूसरे भाग में ज्यादा रोचक बन जाती है जब कहानी में कुछ मजेदार ट्विस्ट आते है. ढाई ...और पढ़े

32

फिल्म रिव्यू ‘द स्काइ इज पिंक’- दिल को छू पाएगी..?

सत्य घटना पर आधारित 'द स्काइ इज पिंक' कहानी है आयशा चौधरी की, एक ऐसी लडकी जो जन्म से एससीआईडी नामक बीमारी से ग्रस्त थीं. ये एक एसी जेनेटिक बीमारी है जिसमें मामूली इन्फेक्शन भी प्राणघातक साबित हो सकता है. फिल्म शुरु होती है आयशा (जायरा वसीम) के वोइसओवर से और वो बताती है की उसकी बीमारी के चलते उसके परिवार को कितना संघर्ष करना पडा था. चौधरी परिवार में आयशा के पापा है निरेन चौधरी (फरहान अख्तर), मां अदिति चौधरी (प्रियंका चोपड़ा) और भाई ईशान (रोहित सराफ). आयशा इन तीनो को प्यार से पांडा, मूस और जिराफ कहेती ...और पढ़े

33

फिल्म रिव्यू ‘लाल कप्तान’- सफलता का रंग चढेगा..?

उंची दुकान फिका पकवान. ये कहावत 'लाल कप्तान' पर बराबर फिट बैठती है. निर्देशक के रुप में जब ‘मनोरमा फिट अन्डर’ और ‘एनएच टॅन’ जैसी सफल थ्रिलर देनेवाले नवदीप सिंह हो, निर्माता जब बतौर निर्देशक ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘रांझणा’ जैसी ब्लोकबस्टर देनेवाले आनंद एल राय हो, प्रोडक्शन कंपनी जब इरोस इन्टरनेशनल जैसी तगडी हो और फिल्म का मुख्य किरदार जब सैफ अली खान जैसे इन्टेन्स एक्टर निभा रहे हो तो उम्मीद तो सौ गुनी होनी ही थी, लेकिन अफसोस… 'लाल कप्तान' बुरी तरह से निराश करती है. कहानी शुरु होती है आज से कुछ दो सौ साल पहेले ...और पढ़े

34

फिल्म रिव्यू ‘हाउसफूल 4’- दिवाली का तोह्फा या फिर..?  

तीन सुपरहिट ‘हाउसफूल’ के बाद अब आई ‘हाउसफूल 4’ की कहानी पुनर्जन्म के इर्दगिर्द घूमती है. लंडन में रहेनेवाले नाकारा भाई हेरी (अक्षय कुमार), रोय (रितेश देशमुख) और मेक्स (बोबी देओल) अपने सर पे चढा कर्जा उतारने के लिए करोडपति शेठ ठकराल (रंजित) की तीन बेटियों— क्रिती (क्रिती शेनोन), पूजा (पूजा हेगडे) और नेहा (क्रिती खरबंदा)— से शादी करने का प्लान बनाते है. शादी करने के लिए सब भारत के सितमगढ नगर में जाते है जहां हेरी को याद आता है अपना पीछला जन्म. 600 साल पुराना जन्म. जब 1419 में वो बाला नामका राजकुमार था, मेक्स धरमपुत्र नामका अंगरक्षक था और रोय बांगडु महाराज नामका नर्तक था. उस जन्म में भी तीनो को तीन राजकुमारीओं— मधु (क्रिती शेनोन), माला (पूजा हेगडे) और मीना (क्रिती खरबंदा)— से प्यार था, लेकिन राजकीय दुश्मनों की वजह से उनका प्यार अधूरा रह गया था. हेरी को अपना पीछला जन्म याद आ जाता है लेकिन किसी और को नहीं, तो अब वो इस मुहिम में लग जाता है की सबको उनका पीछला जन्म याद आ जाए लेकिन एसा करने में सब गडबड होती जाती है. ...और पढ़े

35

‘बाला’ फिल्म रिव्यू - आयुष्मान का जादू फिर चलेगा..? 

एक जैसे विषय पर बनी ‘ट्विन’ फिल्मों का एक ही समय पर रिलिज होने का किस्सा बोलिवुड में कोई बात नहीं है. 1993 में सुभाष घई की ‘खलनायक’ (सुपरहिट) के पीछे पीछे आई ‘खलनाईका’ (सुपरफ्लॉप) के सब्जेक्ट में समानताएं थीं. 2002 में तो कमाल हो गया था. शहीद भगतसिंह के जीवन पर आधारित तीन फिल्में एक ही साल में रिलिज हुईं थीं- ‘द लेजेन्ड ओफ भगतसिंह’ (अजय देवगन) ‘23 मार्च 1931- शहीद’ (बॉबी देओल) और ‘शहीद-ए-आजम’ (सोनु सूद). बॉक्सऑफिस पर तीनो फिल्मों का कबाडा हो गया था, लेकिन देवगनवाली देखनेलायक थीं. गंजेपन की वजह से एक जवान लडके की जिंदगी में होनेवाली ट्रेजेडी पर पिछले हफ्ते ही आई ‘उजडा चमन’ बुरी तरह से फ्लॉप हो गई है. उसी विषय पर इस हफ्ते आईं है ‘बाला’. तो अब सवाल ये है की, ‘तेरा क्या होगा बालिया..?’ ...और पढ़े

36

‘मरजावां’ - फिल्म रिव्यू - हाय, मैं मर जावां…    

भारत में फिल्म शुरु होने से पहेले सिनेमा होल में ‘मुकेश’ के दर्शन अवश्य होते है. वो मुकेश जो पी पी कर केन्सर से मर गया था. उस एड में बताया जाता है की ‘बीडी, सिगरेट, तंबाकु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.’ मैं चाहता हूं की भारत सरकार उस वैधानिक चेतावनी को बदलकर जनता को अब एसा संदेश दे की, ‘बीडी, सिगरेट, तंबाकु और मरजावां स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.’ शक तो मुजे पहेले से ही था, ट्रेलर देखकर ही लग रहा था की फिल्म बकवास होगी, लेकिन इतनी घटिया होगी, ये अंदाजा नहीं था. फिल्म की घीसीपीटी कहानी ...और पढ़े

37

‘पागलपंती’ - फिल्म रिव्यू - सच्ची में पागल बना देगी…

फिल्म इन्डस्ट्री में कहा जाता है की ‘कोमेडी इज अ सिरियस बिजनेस…’ ये बात सुनने में तो अच्छी लगती लेकिन है बिलकुल ही गलत. क्योंकी अगर कोमेडी फिल्म बनाना एक सिरियस काम होता तो ‘पागलपंती’ जैसा हथौडा दर्शकों के सर पर नहीं पडता. इस हफ्ते रिलिज हुई इस बाहियात फिल्म की वाहियात कहानी कुछ यूं है की… राज किशोर (जॉन अब्राहम) एक बहोत ही बडी पनौती है. जहां भी जाता है नुकशान ही करवाता है. जंकी (अर्शद वारसी) और चंदु (पुलकित सम्राट) उसके दोस्त है और पैसा कमाने के चक्कर में तीनो दोस्त दो दुश्मन डॉन गैंग से भीड ...और पढ़े

38

कमान्डो - 3 - फिल्म रिव्यू ‘- एक्शन का धमाका या फिर.. फूस्स्स..?  

विद्युत जामवाल की ‘कमान्डो 1’ और ‘कमान्डो 2’ कोई बहोत बडी हिट नहीं थीं, फिर भी ‘कमान्डो 3’ बनाई क्यों..? कोशिश करते है जानने की. शुरुआत करते है ‘कमान्डो 3’ की कहानी से… बराक अन्सारी (गुलशन देवइया) एक जेहादी मुसलमान है जिसने हिन्दुस्तान को बर्बाद करने की ठान ली है. दशहरे के दिन भारत के पांच अलग अलग शहेरों में आतंकवादी हमले करवाने का उसका प्लान है. किसी तरह भारत सरकार को इस साजिस का पता चलता है. अन्सारी को ढूंढकर उसे खत्म करने का मिशन देश के होनहार कमांडो करन सिंह डोगरा (विद्युत जामवाल) को सोंपा जाता है. ...और पढ़े

39

पति पत्नी और वो - फिल्म रिव्यू - कोमेडी का ओवरडोज या फिर..?

अभिनव उर्फ चिंटू त्यागी (कार्तिक आर्यन) एक सरकारी अफसर है जिसे अफसोस है की जिंदगी के असली मजे लेने पहेले ही उसे शादी के बंधन में बांध दिया गया है. वेदिका (भूमि पेडनेकर) उसकी पत्नी है जो कानपुर जैसे छोटे शहर से नीकलकर दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी में बस जाना चाहती है. तपस्या सिंह (अनन्या पांडे) एक बिजनेस वुमन है जो अचानक ही चिंटु की जिंदगी में आकर खलबली मचा देती है. ‘वो’ के करीब जाने के लिए ‘पति’ एक जूठ बोलता है और उस जूठ को छुपाने के चक्कर में जूठ पे जूठ पे जूठ बोलने की नौबत ...और पढ़े

40

मर्दानी 2 - फिल्म रिव्यू - दमदार या बेकार..?

2014 की सुपरहिट 'मर्दानी' की सिक्वल 'मर्दानी 2' की कहानी भी महिलाओं संबंधित अपराध के इर्दगिर्द बूनी गई है. भाग में ह्युमन ट्राफिकिंग गैंग का मुद्दा उठाया गया था तो दूसरे भाग में रेप एन्ड मर्डर के विषय को छूआ गया है. 'मर्दानी 2' की कहानी कुछ यूं है की… राजस्थान के कोटा शहर में एक विद्यार्थीनी की लाश मिलती है. लडकी का किडनैप, रेप और मर्डर किया गया है. पुलिस ऑफिसर शिवानी शिवाजी रॉय (रानी मुखर्जी) को ये केस सोंपा जाता है. पुलिस जांच चल ही रही थी की एक और लडकी गायब हो जाती है. मामला साफ ...और पढ़े

41

‘दबंग 3' फिल्म रिव्यू ’- स्वागत करें या नहीं..?

'दबंग' और 'दबंग 2' की ब्लोकबस्टर सफलता को दोहराने आई 'दबंग 3' पूरी तरह से सलमान खान की फिल्म और हो भी क्यों न..? आखिर वो ही तो है 'दबंग' फ्रेन्चाइजी के पारसमणी. बताया जाता था की 'दबंग 3' जो है वो 'दबंग' की प्रीक्वल है, पर ये बात केवल आधा सच है. हां, 'दबंग 3' में 'दबंग' से पहेले की कहानी जरूर दिखाई गई है लेकिन वो सिर्फ 20-25 मिनिट तक चलती है, बाकी तो पूरी 'दबंग 3' वर्तमान समय में ही बनी है. लिहाजा इस फिल्म को प्रीक्वल तो कतई नहीं कहा जा सकता. कुछ मिनटों के ...और पढ़े

42

‘गूड न्यूज’ फिल्म रिव्यू - कितनी ‘गूड’ कितनी ‘बेड’..?

मजेदार ट्रेलरवाली ‘गूड न्यूज’ की मजेदार कहानी कुछ यूं है… वरुण बत्रा (अक्षय कुमार) और दिप्ती बत्रा (करीना कपूर) में रहेनेवाले अमीर, एलिट क्लास कपल है. शादी के सात साल बाद भी उनको बच्चा नहीं है. सभी हथकंडे आजमा लेने के बाद भी जब दिप्ती प्रेग्नन्ट नहीं हो पातीं तो वो दोनों आइ.वी.एफ. का सहारा लेते है. कुछ ऐसा ही होता है एक और धनी कपल सनी (दिलजीत दोसांझ) और मोनिका (कियारा अडवानी) के साथ भी. प्रोब्लेम तब शुरु होती है जब पता चलता है की वरुण और सनी के स्पर्म गलती से एक्सचेन्ज हो गए है. कारण..? ...और पढ़े

43

तानाजी’- फिल्म रिव्यू - सफलता का ‘भगवा’ लहेराएगा..?

ऐतिहासिक फिल्म बनाना तलवार की धार पर चलने जितना मुश्किल है. करोडो खर्च करने के बावजूद एसी फिल्मों के पर असफल होने की संभावनाएं ज्यादा होतीं है. संजय लीला भंसाली जैसा एकाद ही सर्जक है जो बार बार देखनेलायक और सुपरहिट ऐतिहासिक फिल्में बना सकता है, बाकी ज्यादातर आशुतोष गोवारिकर जैसे ही होते है जो दर्शनीय ‘जोधा अकबर’ के बाद ‘मोहेंजो दारो’ जैसी बकवास और ‘पानीपत’ जैसी औसतन पिरियड फिल्म देकर दर्शकों को निराश करते है. मराठी एक्टर-लेखक-निर्देशक ओम राउत अपनी पहेली ही हिन्दी फिल्म में एक ऐतिहासिक विषय को प्रस्तुत कर रहे है. क्या वो कामियाब हुए ...और पढ़े

44

स्ट्रीट डांसर 3D - फिल्म रिव्यू - ये नाच क्या रंग लाएगा..?

साल 2006 में होलिवुड में एक फिल्म रिलिज हुई थीं- ‘स्टेप अप’. चेनिंग टेटुम स्टारर उस फिल्म में स्ट्रीट करके स्टार बनने की कहानी थी. फिल्म इतनी जबरदस्त सफल हुई थीं की उसके बाद उसके जैसी कई सारी फिल्में दुनिया के अलग अलग देशों में बनीं और दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल रहीं. हिन्दी में उसकी तर्ज पर 2013 में ‘एबीसीडीः एनी बडी केन डान्स’ बनी थीं, जिस में प्रभु देवा प्रमुख भूमिका में थे. रेमो डिसोजा निर्देशित वो फिल्म कुछ खास नहीं थीं, लेकिन जबरदस्त डान्सिंग की वजह से युवा वर्ग को खूब पसंद आई थीं. ...और पढ़े

45

‘जवानी जानेमन’- फिल्म रिव्यू - जवानी का रंग बॉक्सऑफिस पर चढेगा..?    

‘जवानी जानेमन’कहानी है लंडन में रहेनेवाले बेचलर फोरएवर जसविंदर सिंह उर्फ जैज (सैफ अली खान) की. 40 साल के के बावजूद वो अविवाहित है क्योंकी उसे बीवी-बच्चों की जिम्मेवारी नहीं उठानी. उसकी जींदगी का एक ही मकसद है, पार्टी करो, दारु पीओ और रोज नई नई लडकीयों के साथ मजे करो. ऐसे अय्याश जैज की जींदगी में रुकावट तब आती है जब एक 21 साल की लडकी टिया (अलाया फर्नीचरवाला) की एन्ट्री होती है. टिया बताती है की वो जैज की बेटी है. 22 साल पहेले जैज ने किसी लडकी के साथ मस्ती की थी जिसका नतीजा उसकी बेटी ...और पढ़े

46

मलंग फिल्म रिव्यू - बदले की एक और कहानी… कितनी असरदार..?

‘मलंग’ का ट्रेलर लोगों को काफी पसंद आया था. कुछ अलग तरह का, कुछ ‘हटके’ होने की वजह से तो मुजे भी लगा था, लेकिन मैं कन्फ्युज हो गया था क्योंकी ट्रेलर इतनी चतुराई से बनाया गया था की इस सस्पेन्स फिल्म की कहानी क्या है इसका बिलकुल अंदाजा ट्रेलर से नहीं लग रहा था. डर भी था के कहीं ये ‘मलंग’ दूसरी ‘टशन’ ना नीकले, लेकिन… …लेकिन मेरा डर जूठा साबित हुआ. कई सारी मर्यादाओं के बावजूद ‘मलंग’ एक मनोरंजक फिल्म नीकली और वाकई में सुपरहिट होने के सारे लक्षण है इस फिल्म में. कहानी है अद्वैत (आदित्य ...और पढ़े

47

‘लव आज कल 2’ फिल्म रिव्यू - वेलेन्टाइन का मूड बनाएगी या बिगाडेगी..?

‘लव आज कल 2’ की कहानी दो कालखंड में आकार लेती है. ‘कल’ यानी के 1990 में और ‘आज’ के 2020 में. प्लोट वो ही है जो 2009 की ‘लव आज कल’ में था. वहां मोडर्न कपल थे सैफ-दिपीका, यहां मोडर्न कपल है कार्तिक-सारा. वहां रिशि कपूर अपनी पुरानी प्रेमकहानी सैफ को सुनाते थे, यहां रणदीप हूडा अपनी प्रेमकहानी सारा को सुनाते है. वहां रिशि कपूर के जवानी का रोल भी सैफ ने किया था, यहां रणदीप का यंगर वर्जन भी बने है कार्तिक आर्यन. स्क्रिप्ट में थोडा-बहोत बदलाव है, लेकिन मूल कथा सेम सेम ही है. लेकिन ये ...और पढ़े

48

‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ फिल्म रिव्यू - क्या बदल पाएगी समाज का नजरिया..?

प्यार आखिर प्यार होता है, फिर चाहे वो लडके-लडकी के बीच का प्यार हो या फिर लडके-लडके के बीच लव हेझ नो जेन्डर. ऐसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर आई ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ की कहानी है दो लडकों की. दिल्ली में रहनेवाले कार्तिक (आयुष्मान खुराना) और अमन (जीतेन्द्र कुमार) एक दूसरे से प्यार करते है. बहन की शादी में गांव आए अमन के परिवारवालों को जब पता चलता है की उनका बेटा अमन समलैंगिक है तो उन पर जैसे पहाड तूट पडता है. सब मिलके अमन की इस ‘बीमारी’ का इलाज करने के लिए उसकी शादी करवा देने की ...और पढ़े

49

फिल्म रिव्यू ‘भूत- पार्ट वनः द हॉन्टेड शिप’- बॉक्सऑफिस पे ये शिप तैरेगी या डूब जाएगी..?

दुनिया के किसी भी देश में होरर जोनर को ज्यादा उत्त्म दरज्जा कभी माना नहीं गया, फिर चाहे वो हो या किताबें. इस जोनर के सिनेमा एवं साहित्य को कोई सिरियस लेता ही नहीं हैं. लोगों को ये गलतफहेमी है की होरर लिखना या बनाना आसान होता है, बस कुछ गिने-चुने फोर्म्युला डाल दो, धमाकेदार बेकग्राउन्ड म्युजिक बजा दो, हिरोइन को इधर-उधर भगा दो और हो गई होरर की रेसिपी तैयार… लेकिन एसा बिलकुल भी नहीं है. होरर फिल्म बनाना कोई मूंगफली छीलने जितना इजी काम नहीं है, और करन जोहर निर्मित बोलिवुड की लेटेस्ट होरर फिल्म ‘भूत- पार्ट ...और पढ़े

50

‘थप्पड’ फिल्म रिव्यू - ब्रेव..! ब्रिलियन्ट..!! ब्यूटिफूल..!!!

कोई बडी बात नहीं थी. बस एक थप्पड ही तो था. पहेली बार हाथ उठाया था उसने. पति-पत्नी के इतना तो होता रहेता है. इतनी छोटी सी बात पे कोई तलाक ले लेता है क्या..? एसे कई सारे डायलोग्स ‘थप्पड’ में सुनाई दे पडते हैं, और सिर्फ सुनने या पढने तक ये सही भी लगते हैं, लेकिन जब फिल्म ‘थप्पड’ में उन्हें देखा जाता हैं तब बात कुछ और ही होती हैं. यूं तो बात बस इतनी सी थी, लेकिन सच में बात इस से कहीं ज्यादा थी… ‘थप्पड’ की कहानी है हाउसवाइफ अमृता (तापसी पन्नु) की जो अपने पति ...और पढ़े

51

‘बागी 3' फिल्म रिव्यू - टाइगर का जादू चलेगा..?

‘बागी 1’ और ‘बागी 2’ के बाद अब आई ‘बागी 3’ की कहानी भी वो ही है जो पिछली फिल्मों में थीं. पहेले भाग में हिरोइन किडनेप हो गई थीं, दूसरे भाग में हिरोइन की बेटी किडनेप हो गई थीं और अब तीसरे भाग में हिरो का भाई किडनेप हो जाता है. सारे बेचारों को बचाने का जिम्मा उठाता है अपना हिरो हिरालाल टाइगर श्रोफ. कहानी में बिलकुल भी नयापन नहीं है. हिरो-हिरोइन के बीच थोडीबहोत छेडछाड, एक-दो मस्तीभरे गाने, ढेर सारे गुंडो की हड्डीतोड पीटाई और टाइगर का डान्स. इसी मसाले से बनी ‘बागी 3’ में रितेश देशमुख ...और पढ़े

52

‘अंग्रेजी मीडियम’- फिल्म रिव्यू - दर्शकों के दिल में मिलेगा ऐडमिशन..?

‘अंग्रेजी मीडियम’ की कहानी आकार लेती है राजस्थान के शहर उदयपुर में. चंपक बंसल (इरफान खान) एक हलवाई हैं अपनी टिनेज बेटी तारिका (राधिका मदान) के साथ रहेते हैं. घसिटाराम बंसल उर्फ गोपी (दीपक डोबरियाल) भी हलवाई हैं और चंपक के भाई हैं. धंधे को लेकर दोनों भाईओं में दुश्मनी है. कॉलेज की पढाई करने के लिए तारिका लंडन जाना चाहती हैं. बेटी का सपना पूरा करने के लिए एक बाप किस हद तक जा सकता है, उसी की कहानी है ‘अंग्रेजी मीडियम’. ‘अंग्रेजी मीडियम’ की सबसे बडी प्रोब्लेम है इसकी स्क्रिप्ट, जो लगातार इधरउधर भटकती रहेती है. केरेक्टर ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प