‘मलंग’ का ट्रेलर लोगों को काफी पसंद आया था. कुछ अलग तरह का, कुछ ‘हटके’ होने की वजह से अच्छा तो मुजे भी लगा था, लेकिन मैं कन्फ्युज हो गया था क्योंकी ट्रेलर इतनी चतुराई से बनाया गया था की इस सस्पेन्स फिल्म की कहानी क्या है इसका बिलकुल अंदाजा ट्रेलर से नहीं लग रहा था. डर भी था के कहीं ये ‘मलंग’ दूसरी ‘टशन’ ना नीकले, लेकिन…
…लेकिन मेरा डर जूठा साबित हुआ. कई सारी मर्यादाओं के बावजूद ‘मलंग’ एक मनोरंजक फिल्म नीकली और वाकई में सुपरहिट होने के सारे लक्षण है इस फिल्म में.
कहानी है अद्वैत (आदित्य रॉय कपूर) और सारा (दिशा पाटनी) की, जो गोवा में मिलते है और घूमते घूमते, ड्रग्स का नशा करते करते एक-दूजे को पसंद करने लगते है. दोनों के बीच इश्क से पहेले सेक्स हो जाता है. इससे पहेले के दोनों अपने संबंध के बारे में किसी नतीजे पर पहुंचे, एक ऐसी दुर्घटना घट जाती है जो दोनों की जिंदगी तहसनहस करे देती है.
पांच साल बाद सारा का कोई अता-पता नहीं है और अद्वैत गोवा की सडकों पर घूम रहा है. क्रिस्मस की रात है और दो पुलिस अफसर अंजनि अगाशे (अनिल कपूर) और माइकल रॉड्रिक्स (कुणाल खेमू) अद्वैत की तलाश में है. क्यों..? अद्वैतने आखिर ऐसा क्या किया था..? पांच साल पहेले अद्वैत-सारा के साथ कौन सी दुर्घटना घटी थी..? इस सब सवालों के जवाब जानने के लिए आपको देखनी पडेगी ‘मलंग’.
बदले की कहानी हम कई बार फिल्मों में देख चुके है, ‘मलंग’ में जिस प्रकार के बदले की कहानी दर्शाइ गई है वो भी नई नहीं है, लेकिन इसकी प्रस्तुति बडे ही मजेदार ढंग से की गई है. फिल्म यूथफूल है और कलरफूल भी. कहानी में सस्पेन्स भी है और कई सारे ट्विस्ट भी. कई ट्विस्ट का दर्शक सही-सही अंदाजा लगा लेते है तो कई ट्विस्ट उनको चौंका भी देते है. इन्टरवल तक की कहानी थोडी धीमी है, और दर्शकों के मन में कई सारे सवाल पैदा करती है. फलाना बंदा ये सब क्यों कर रहा है..? ढिमका केरेक्टर कहां गायब हो गया..? इसने ये जो बोला और उसने वो जो किया उसका कोई मतलब भी है या सब ऐसे ही फेंक रहे है..?
वेल, इन्टरवल के बाद सारे सवालों के जवाब अपनेआप मिलने लगते है जब आधेअधूरे टुकडे आपस में फिट बैठकर सारा पिक्चर क्लियर करने लगते है. दूसरे भाग में कहानी तेजी से भागती है और दर्शकों को जकड लेती है. अद्वैत-सारा के साथ कुछ बहोत बुरा हुआ था, लेकिन वो क्या था… ये जानने की उत्सुकता चरमसीमा पर पहुंच जाती है. तारीफ करनी होगी निर्देशक मोहित सूरी की जिन्होंने जानीमानी कहानी को इतनी बखूबी से परोसा है की पूरी फिल्म में दर्शक कहानी के साथ जुडे रहेते है. फिल्म में थ्रिल, रोमान्स, सस्पेन्स और इमोशन का कोम्बिनेशन देने में मोहित सफल रहे है. फिल्म का एडिटिंग इतना चुस्त है की सवा दो घंटे की फिल्म कहीं भी बोरिंग नहीं लगती.
‘मलंग’ का एक्टिंग डिपार्टमेन्ट तगडा है. अनिल कपूर एक ऐसे अदाकार है जिनके अभिनय में खामीयां निकालना बडा ही मुश्किल काम है और ‘मलंग’ में भी उन्होंने सटिक अभिनय किया है. इस फिल्म में उन्होंने जो किया है वो सब वो पहेले भी कर चुके है, लेकिन फिर भी उन्हें देखने में बडा मजा आता है. इस पात्र में उनका चयन बिलकुल परफेक्ट है. ‘कलयुग’ के बाद पहेली बार कुनाल खेमु को कोई ढंग का रोल मिला है और उन्होंने इस पात्र को निभाने में अपनी जान लगा दी है. आधी फिल्म तक लगता है की कुनाल ने ये एवरेज सा रोल क्यों स्वीकार किया, लेकिन इन्टरवल के बाद उनके पात्र में जो बदलाव आता है वो जबरदस्त रंग लाता है. आदित्य रोय कपूर ने फिर एक बार दिलजीत परफोर्मन्स दी है. लवर बॉय से लेकर बदले की आग में जलते कैदी की भूमिका में उन्होंने अभिनय का वैविध्य दिखाया है. फिल्म में उनका नया जिम-अवतार देखने को मिला. अपनी सिक्सपैक बॉडी दिखाकर उन्होंने फिल्म की हिरोइन को अंगप्रदर्शन के मामले में जमकर कोम्पिटिशन दी है. अभिनय के मामले में भी आदित्य कहीं नहीं चुके. उनके मुकाबले दिशा पटनी थोडी कमजोर लगीं. उनका ग्लेमसर लूक और छरहरा बदन काफी सेक्सी नजर आया लेकिन साथ ही उनके अभिनय की मर्यादा भी दिख गईं. इस रोल में अगर थोडी और मंजी हुई अदाकारा होतीं तो सारा के केरेक्टर का निखार ही कुछ और होता. आदित्य के साथ उनकी केमेस्ट्री भी कुछ खास नहीं लगीं. दोनों स्क्रीन पर बडे ही खूबसूरत लगें लेकिन इस रोमेन्टिक कपल के बीच का तालमेल थोडा डगमगाता सा लगा. ‘मलंग’ में चारों प्रमुख पात्रों की बेकस्टॉरी है और खासी इन्टरेस्टिंग है. फिर भी लगा की कुछ पात्रों की मानसिकता को, उनके लेयर्स को और ज्यादा उजागर करने की जरूरत थीं. मेल इम्पोटन्सी के मुद्दे को थोडा और गहेराई से कुरेदा जाता तो और मजा आता. सहायक पात्रों में अमृता खानविलकर और एली अवराम का काम प्रसंशनीय है. शाद रंधावा, किथ सिक्वेरा और वत्सल शेठ ओके टाइप ही थे.
‘मलंग’ का म्युजिक पहेले ही हिट हो चुका है. तकरिबन सारे गाने अच्छे है. ‘चल घर चलें…’ और ‘फिर ना मिले कभी…’ दिल छू लेते है. डायलोग्स सिर्फ 2-4 जगह अच्छे लगे, बाकी एवरेज से ही है. इस मामले में और महेनत की जरूरत थी. ‘मुजे चीजे नहीं, यादें जमा करनी है…’ सबसे बेस्ट डायलोग लगा. बैकग्राउन्ड स्कॉर और सिनेमेटोग्राफी सोल्लिड लगीं. तकरीबन पूरी फिल्म गोवा में शूट की गई है और आउटडॉर सीन्स आंखो में बस जाए इतने खूबसूरत है. एक्शन कोरियोग्राफी भी एक नंबर लगी. आदित्य ने अपने मेकऑवर के जरिए एक्शन दृश्यों को पूरा न्याय दिया है.
कमर्शियल हिन्दी फिल्म में लोजिक ढूंढने की अनुमति नहीं होती. ‘मलंग’ में भी कई बार लोजिक की धज्जियां उडाई गई है. एक किलर सरेआम एक के बाद एक पुलिस ओफिसर्स की हत्या करता फिरता है, लेकिन पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकती. पुलिस की गोलियों की अंधाधून बारिश के बाद भी हिरो को एक खरोंच तक नहीं आती. पुलिस द्वारा किए गए क्राइम पर तो कोई सवाल ही नहीं उठाता. भला क्यों..? अरे भाई, हिन्दी फिल्म है. बोला ना की लोजिक ढूंढना मना है…
फिल्म को ऑन्ली फॉर एडल्ट्स का ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया गया है, लेकिन फिल्म में खुले खुले सेक्स सीन की कल्पना करने की जरूरत नहीं है. न तो फिल्म में कोई न्यूडिटी है और न ही हद से ज्यादा अंगप्रदर्शन. ‘ए’ सर्टिफिकेट हिंसा के अधिक प्रमाण के लिए भी दिया जाता है. ‘मलंग’ के केस में शायद ‘ए’ सर्टिफिकेट इसलिए दिया गया है क्योंकी फिल्म में ड्रग्स-सेवन के सीन कुछ ज्यादा ही दिखाए गये है. इतनी सारे सीन्स की जरूरत भी नहीं थी, फिर भी निर्देशक ने… चलो छोडो.
खामीयों के बाद भी ‘मलंग’ एक एसी फिल्म है जो पहेले सीन से आखरी फ्रेम तक दर्शकों को बांधे रखती है. एक्शन, ड्रामा, रोमान्स, रोमांच और रहस्य का मस्त पैकेज लेकर आई इस फिल्म को मेरी ओर से 5 में से... देना तो था 3 स्टार्स, लेकिन फिल्म के आखरी 5 मिनट में जो रहस्य-विस्फोट होता है वो इतना बढिया है की आधा एक्स्ट्रा स्टार तो बनता है, बाबू मोशाय. 5 में से 3.5 स्टार्स. आदित्य और कुनाल को और ज्यादा मात्रा में एसे अच्छे रोल दो, फिल्मवालों...