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फिल्म रिव्यूः ‘एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा’... प्यार के ‘उस’ अनछुए मुद्दे पर बनी खूबसूरत फिल्म...

दशकों से हम हिन्दी फिल्मों में लव स्टोरी देखते आए है. लडका-लडकी मिलते हैं, पहले तकरार और फिर प्यार होता है. घरवाले विलन बनते है. बिछडना-जुदाई का सामना करना पडता है, लेकिन आखिरकार प्यार की जीत होकर रहेती है. ऐसी घीसीपिटी कहानी पर बनी कितनी फिल्में हम देख चुके है. ‘एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा’ में भी यही सब है. लेकिन, यहां कहानी में एक बडा ट्विस्ट भी है. और वो ट्विस्ट ये है की, यहां प्रेम कहानी में लडका है ही नहीं. ये प्रेम कहानी है दो लडकीयों के बीच की. जी हां, ये फिल्म समलैंगिंक प्रेम कहानी का ओफबीट विषय लेकर आई है...

चौंक गए..? ये कैसी कहानी..? समाज में ये सब होता होगा चोरीछुपे, लेकिन इसके उपर फिल्म थोडी बना सकते है..? वच्चों पर क्या संस्कार पडेंगे..? समाजव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी..! अगर आप भी यही सब सोच रहे है, तो ये फिल्म आपको अवश्य देखनी चाहिए. क्यूंकी फिल्म में इन्हीं सब मुद्दो को उठाया गया है, और बखूबी पेश किया गया है. बखूबी इसलिए क्यूंकी एक गंभीर विषय को प्रस्तुत करते हुए भी मनोरंजन के डॉज के साथ कोई समजौता नहीं किया गया है. निर्देशिका शैली चोपरा धर की तारिफ करनी होगी की उन्होंने एक सिम्पल, साफसूथरी, मनोरंजक फिल्म देते हुए इतने संजीदा विषय को दर्शकों के सामने बहोत ही सलूकी से रख्खा है.

दाद तो सोनम कपूर की भी देनी पडेगी जिन्होंने एक समलैंगिक महिला का किरदार निभाने की हिंमत दिखाई है. स्वीटी के केरेक्टर की मुश्किले, उलझन, घूटन, पीडा को सोनम ने बहोत ही सटिक ढंग से दर्शाया है. स्वीटी के पापा के रोल में अनिल कपूर से बहेतर कोई अदाकार हो ही नहीं सकता. उनका काम बहेतरीन है. फिल्म के आखिर में वो जो बोलते है वो दिल को छू जाता है, आंखे नम हो जाती है. राजकुमार राव फिर एक बार दिल जीत लेनेवाली परफोर्मन्स दे गये है, तो जुही चावला भी खूब रंग जमाती है. सोनम का लेडी-लव बनी साउथ की हिरोईन रेजिना कसान्ड्रा बला की खूबसूरत लगीं, मधुबाला और माधुरी का किलर कोम्बिनेशन लगीं वो. मधुमती कपूर, अभिषेक दुहान, सीमा पाहवा, ब्रिजेन्द्र काला जैस सहायक कलाकारोंने भी काफी अच्छे से अपने अपने किरदार को न्याय दिया है. पूरी फिल्म में सभी एक्टर्स के बीच की केमेस्ट्री जबरदस्त है.

इन्टरवल से पहेले बस ठीकठाक सी लगनेवाली फिल्म इन्टरवल के बाद ज्यादा संगीन हो जाती है. फिल्म का ड्रामेटिक टॉन काबिलेतारिफ है. पंजाबी फेमिली में होनेवाली मीठी नोंकझोंक देखने में मजा आता है. हां, डायलोग्स, म्युजिक और स्क्रिप्ट थोडे और बहेतर हो सकते थे, लेकिन अच्छी एक्टिंग और मनोरंजक प्रस्तुति के चलते फिल्म न तो कहीं लडखडाती है, और न कहीं बोर करती है. फिल्म में थोडी बहोत कोमेडी भी है, जो की फिल्म के मूड के चलते बहोत जरूरी थी.

‘एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा’ एक सामाजिक मुद्दे को प्रकाश में लाने के लिए बनाई गई है, और ईस मामले में फिल्म पूरी तरह से नहीं तो कुछ हद तक तो जरूर सफल होती है. फिल्म में बिलकुल भी अश्लीलता नहीं है, ये इस फिल्म का प्लस पोईंट है. मेरी ओर से इस खूबसूरत प्रस्तुति को 5 में से 3 स्टार्स. कुछ नया देखने की चाह हो तो जरूर देखिएगा.