2.0 फिल्म रिव्यू Mayur Patel द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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2.0 फिल्म रिव्यू

साल 2010 में आइ रजनीकांत की ‘रोबो’ (तमिल में ‘एन्धिरन’) ने बोक्सओफिस पर मानो तहेलका मचा दिया था. 130 करोड के बजेट में बनी उस फिल्म ने विश्वभर में 290 करोड की कमाई की थी. इस लिहाज से देखें तो जब जानने में आया की ‘रोबो’ की सिक्वल ‘2.0’ का बजेट 543 करोड रुपिये है, तो हैरानी हुई थी की इतनी बडी लागत से बनी फिल्म अपना खर्चा कैसे वसूल कर पाएगी, वो भी तब जब उसकी पहेली कडी 300 करोड तक भी नहीं पहुंच सकी थी. चटपटी तो ये जानने की भी थी की आखीर इस फिल्म में ऐसा क्या होगा जो इसका बजेट इतना बडा हो गया है? इतने मोटे-तगडे बजेट की फिल्म पहेले ही दिन देखी, और दोस्तो… मानना पडेगा की बजेट के पूरे 543 करोड रुपिये इस फिल्म में दिखे, और क्या खूब दिखे… दिवाली का मजा पूरी तरह से किरकिरा कर देनेवाली ‘ठग्स ओफ हिन्दोस्तान’ का बजेट 300 करोड बताया गया था, जबकी उस फिल्म में 300 करोड कहीं नहीं दिखे थे. पर ‘2.0’ के केस में एसा नहीं है. ‘2.0’ में किया गया खर्चा पूरी तरह से पर्दे पर दिखता है…

फिल्म की एक एक फ्रेम आलाग्रान्ड है, भव्य है. फिल्म शूरु भी नहीं होती और दर्शक फिल्म के टाइटल्स देखके ही चौंक जाते है. इतना बारीक काम भारतवर्ष में आज तक नहीं हुआ. जितनी सफाइदार थ्रीडी इफेक्ट्स है, उतना ही बढिया बेकग्राउन्ड स्कोर और इन दोनों से कई गुना ज्यादा बहेतरीन है फिल्म के विज्युअल इफेक्ट्स. ये तीन टेक्निकल पासें इतने मजबूत है की फिल्म की स्क्रिप्ट में छीपी कुछ गलतियां और डिरेक्शन की कुछ कमीयां नजरअंदाज हो जाती है. पहेले ही सीन से एक्शन का ऐसा दौर शुरु होता है की दर्शक चौंधिया जाते है, आंखे मटकना भूल जाती है और मुंह खुला का खुला रह जाता है. उस पे चकाचौंध कर देनेवाली कम्प्युटर ग्राफिक्स के तो क्या कहेने!!! बिलकुल होलिवुड की प्रोडक्ट लगती है ये फिल्म.

मान लिजिए की एक दिन अचानक ही हमारे मोबाइल फोन गुम हो जाए, हमारे हाथ से उडके कहीं दूर चले जाए, तो जीवन कैसा होगा? हम सब बौखला जाएंगें, है ना? ‘2.0’ की कहानी इसी मुद्दे को दर्शाती है. कहानी में नयापन है और उसको डिरेक्टर शंकर ने सराहनीय ढंग से फिल्माया है. इन्टरवल के बाद मोबाइल फोन गायब होने का रहस्य खुलता है और कहानी इमोशलन मोड लेती है. साथ ही निखर के सामने आता है अक्षय कुमार का व्यक्तित्व और असलियत. बदले की आग में बेकाबू हुए पक्षीराजन को मात देने के लिये डॉ.वशीकरण(रजनीकांत) को अपने आविश्कार रोबो चिट्टी(रजनीकांत) का सहारा लेना पडता है और फिर सिनेमा के पर्दे पर जो होता है वो भारतीय फिल्मों के इतिहास में पहेले कभी नहीं हुआ. एक से बढकर एक एक्शन सीन्स, एक दूसरे को पटकने के लिये आजमाए जानेवाले पेंतरे, तालीयां और सीटीयां मारने पर मजबूर कर देनेवाले विज्युअल इफेक्ट्स... आह..! आखिर के बीस मिनट लंबे क्लायमेक्स में तो ‘2.0’ किसी और ही लेवल पे पहुंच जाती है.

अभिनय की बात करें तो रजनीकांत का जादू एक बार फिर सर चढके बोलता है. वैज्ञानिक और रोबो चिट्टी के प्रमुख किरदारों के अलावा भी उनके अन्य रूप फिल्म में दिखाए गये है, और बहोत ही अच्छे से दिखाए गये है. कई बार तो हर तरफ रजनी सर की रजनी सर दिखते है. अक्षय कुमार नेगेटिव रोल में जचते है. उनका गेटअप बहोत ही बढिया है. दो दो दिग्गज सुपरस्टार्स के बीच एमी जेक्शन तो बेचारी बन के रह जायेगी, एसा मैंने सोचा था, पर एसा नहीं है. एमी ने एक खास किरदार निभाया है और उस किरदार में वो वहोत ही अच्छे से फिट बैठती है. शूरु से लेकर आखिर तक वो दिखीं है और एक्शन सीन्स में भी उन्होंने सराहनीय प्रदर्शन किया है. बाकी के कलाकार ठीकठाक है. डिरेक्शन की थोडी कमजोरीयों को अनदेखा करें तो कहेना पडेगा की शंकरजी ने एक जबरदस्त फिल्म बनाई है. उनके विशाल विजन को सलाम..!

तो दोस्तों, कुल मिलाकर ‘2.0’ एक मनोरंजक सायन्स फिक्शन एक्शन फिल्म है. पूरे परिवार के साथ देखी जाए एसी साफसुथरी फिल्म है. बहेतर से भी बहेतरीन इस धमाकेदार एक्शन एन्टरटेनर को देखना मत चूकिएगा, क्यूंकी ऐसी फिल्में बार बार नहीं बनती... मेरे ओर से 5 में से 3.5 स्टार्स...

Film Review by : Mayur Patel