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‘बागी 3' फिल्म रिव्यू - टाइगर का जादू चलेगा..?

‘बागी 1’ और ‘बागी 2’ के बाद अब आई ‘बागी 3’ की कहानी भी वो ही है जो पिछली दो फिल्मों में थीं. पहेले भाग में हिरोइन किडनेप हो गई थीं, दूसरे भाग में हिरोइन की बेटी किडनेप हो गई थीं और अब तीसरे भाग में हिरो का भाई किडनेप हो जाता है. सारे बेचारों को बचाने का जिम्मा उठाता है अपना हिरो हिरालाल टाइगर श्रोफ.

कहानी में बिलकुल भी नयापन नहीं है. हिरो-हिरोइन के बीच थोडीबहोत छेडछाड, एक-दो मस्तीभरे गाने, ढेर सारे गुंडो की हड्डीतोड पीटाई और टाइगर का डान्स. इसी मसाले से बनी ‘बागी 3’ में रितेश देशमुख बने है टाइगर के बडे भैया. विक्रम (रितेश) का ये पात्र बडा ही फट्टु, बडा ही डरपोक है और जब भी कभी मुसीबत में फंस जाता है तो मदद के लिए अपने छोटे भाई रोनी (टाइगर) के नाम की चीख लगाता है. रोनी आकर धोनी बन जाता है गुंडे-मवालीओं के साथ साथ दर्शकों के दिमाग की नसों को भी धो डालता है.

स्क्रिप्ट निहायती वाहियात है. फिर भी इन्टरवल तक इस फिल्म को सहेन कर सकते है क्योंकी इस पहेले हाफ में थोडी कोमेडी है जो दर्शकों को गुदगुदाने में कामियाब होती है. हंसाने का जिम्मा ज्यादातर रितेश और श्रद्धा के कंधो पर है जो उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया है. रितेश के डबलमिनिंग डायलोग्स और श्रद्धा की वेजिटेरियन गालीयां फनी लगीं. एक-दो सीन में सिनियर पुलिस ऑफिसर बने सतीष कौशिक भी हंसा देते है. काफी सारी बेवकूफीयों के बाद रितेश किडनेप हो जाते है और फिर फिल्म पहुंच जाती है सिरिया. सेकन्ड हाफ के इस हिस्से में मारधाड, मारधाड और केवल मारधाड ही है, जो दर्शकों को खूब पकाती है. हद होती है, यार. कोई बंदा एक्शन देख देख कर कितना देखेगा..? माना के टाइगर की फूर्ती और फाइटिंग का कोई जवाब नहीं, लेकिन फिर भी बिना लोजिक के एक्शन सीन चलते ही जा रहे है, चलते ही जा रहे है… तो दर्शक का धैर्य कब तक बना रहेगा..?

इन्टरवल के बाद की ‘बागी 3’ और ‘टाइगर जिंदा है’ में कोई फर्क नहीं है. वो ही इस्लामिक आतंकी सरगना का अड्डा, वो ही बंधक बनाए गए निर्दोष भारतीय और वो ही अकेला जंग पे नीकला अपुन का हिरो. टाइगर मारता है और मारता है और मारता ही रहेता है. एक हजार से ज्यादा गुंडो की हत्या की होगी उसने इस फिल्म में. अंदाजा लगाईए की कितना बडा टोर्चर होगा ये सब देखना..!

टाइगर ने अभिनय के अलावा सब किया है. अच्छा डान्स और माशाल्लाह फाइटिंग. श्रद्धा इन्टरवल से पहेले अच्छी है. रितेश देशमुख क्या इतने बेकार हो गए हैं जो उन्हें इतने मामूली से रोल करने पड रहे हैं..? इन्टरवल के बाद तो उनका कहीं अतापता नहीं रहेता. बाकी के कलाकारों ने एक्टिंग के नाम पे कुडाकबाडा ही किया है.

ये तय कर पाना मुश्किल है की फिल्म में निर्देशन, एडिटिंग और राइटिंग में से कौन सा पक्ष सबसे खराब है. अहेमद खान जैसे निर्देशक से उम्मीद भी रखे तो क्या और कितनी..?

हिन्दी कमर्शियल फिल्म में लोजिक ढूंढना सेहत के लिए हानिकारक होता है, लेकिन इस फिल्म में लोजिक की जो धज्जियां उडाई गई हैं वो तो किसी और ही लेवल की हैं. फिल्म में कई सारी चीजें बस चुटकी बजाने से हो जाती है. टाइगर बोलता है की, ‘भैया, आपको पुलिस ओफिसर बन जाना चाहिए’ और दूसरे ही सीन में रितेश देशमुख पुलिस बन भी जाता है. न कोई परिक्षा, न कोई तैयारी, न कोई ट्रेनिंग… सीधा ओफिसर की वर्दी.. भई वाह… बीना छडी घुमाए हेरी पोटर का जादू..! आपको सिरिया जाना है..? तो भी कोई प्रोब्लेम नहीं. निर्देशक अहेमद खान चुटकी बजाएंगे और आप पहुंच जाओगे सिरिया. कोई बडी बात नहीं. सिरिया की पुलिस भी इतनी नाकारी है की जो हिरो बोलता है वो ही करने लगती है.

एक्शन कोरिओग्राफी अच्छी होने के बावजूद इतनी हम्बग है की दिमाग की नसें फट जाए. टाइगर इतने दबंग है की हेलिकोप्टर और बेटलटेन्क को लडाई करने के लिए चैलेन्ज करते है..! और कुछ बताने की जरूरत है..? VFX कच्चे-पक्के ही लगे. एक्शन में कोमेडी का टच होता तो मजा आ जाता, लेकिन अफसोस… फिल्म में जो थोडा सा इमोशनल टच है वो भी किसी दर्शक के दिल को टच नहीं कर पाता. सिनेमेटोग्राफी, बैकग्राउन्ड म्युजिक और सेट डिजाइनिंग बढिया है. म्युजिक की बात करें तो दो रिमिक्स ‘भंकस’ और ‘दस बहाने…’ सुनने-लायक, देखने-लायक है, क्योंकी वो ओरिजिनल भी अच्छे थे. बाकी फिल्म में दिशा पट्टनी का एक आइटम सोंग है ‘डू यू लव मी…’. कसम से, इतना घटिया, थर्ड क्लास और वाहियात गाना मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा.

कुल मिलाकर देखें तो ये फिल्म इन्टरवल तक ठीकठाक है और इन्टरवल के बाद टोर्चर. टाइगर के डायहार्ड फैन भी निराश होंगे. 5 में से 2 स्टार्स. बाय गॉड, बेडा गर्क कर दिया.

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