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‘टोटल धमाल’ फिल्म रिव्यू 

‘टोटल धमाल’ फिल्म रिव्यू 

काफी अरसे से हसां-हसांके लोट पोट कर दे एसी एक फिल्म का इंतजार था और आखीरकार एसी फिल्म आ ही गई. ‘टोटल धमाल’. मनोरंजन का मस्त मजेदार तडका लेके आई है ये कोमेडी फिल्म. 
निर्देशन इन्द्र कुमार की 2007 में आई ‘धमाल’ एक बहेतरीन कोमेडी थी. उस सुपरहिट कोमेडी की दूसरी कडी ‘डबल धमाल’ 2011 में रिलिज हुई थी, जो की निहायती बकवास फिल्म थी. अब आई है ‘टोटल धमाल’, जो ओरिजिनल ‘धमाल’ के जीतनी कमाल तो नहीं है लेकिन ‘डबल धमाल’ से तो कहीं ज्यादा अच्छी है. 
‘टोटल धमाल’ में कहानी है पैसों के पीछे भागते लालची लोगों की. किसीने कहीं पे काला धन छुपाके रख्खा है और उसे पाने की भागादौडी धमाल मचाती है. वेफर के जीतनी पतली कहानी के इर्दगिर्द जो स्क्रिप्ट लिखी गई है वो भी कुछ खास नहीं है, लेकिन फिर भी यहां पे ऐसी ऐसी सिचुएशन पैदा होती है की पूरी फिल्म में लगातार हसीं के फव्वारे फूटते रहेते है. फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जो पहेले न देखा हो, फिर भी फिल्म दर्शकों को हसांने में कामियाब होती है. डायलोग्स इस फिल्म की जान है. नयापन न होने के बावजूद डायलोग्स काफी फन्नी लगे. 
अभिनय की बात करे तो इस फिल्म में जैसे मंजे हुए कलाकारों की बाढ आई है और सभी का काम अच्छा है. किसी के अभिनय को ग्रेट नहीं कहा जा सकता लेकिन एक मनोरंजक कोमेडी में जीतनी मात्रा में अभिनय करना होता है उतनी मात्रा में सभी ने अच्छे से अपना अपना योगदान दिया है. ‘दिल’, ‘बेटा’ और ‘राजा’ जैसी इन्द्र कुमार की ही फिल्मों से सुपरस्टारडम पानेवाली माधुरी एक लम्बे अरसे बाद किसी फिल्म में एक अच्छे अंदाज में नजर आईं. वो सुंदर दीखीं और उनका रोल भी पसंद आया. गुजराती पटेल बने अनिल कपूर हमेशा की तरह बढिया लगे. क्लाइमेक्स में वो जिस अंदाज में जंगल के राजा शेर के सामने ‘गुजराती गौरव’ की बातें करते है वो सीन बडा ही मजेदार लगा. अजय देवगन भी अपनी भूमिका में जमते दिखे. ‘धमाल’ की ओरिजिनल गेंग में से रितेश देशमुख, अरशद वारसी और जावेद जाफरी यहां मौजुद है. तीनों का काम बढिया है. इनके अलावा ज्होनी लिवर, संजय मिश्रा, बोमन ईरानी और मनोज पाहवाने भी अच्छी कोमेडी की है. 
संदिप शिरोडकर का संगीत बस ठीकठाक ही है. नए बेसूरे गाने बनाने के बजाय उन्होंने 80 के दशक के गानों को ही रिमेक करने में गनीमत समझी है. रिशी कपूर वाली ‘कर्ज’ का गाना ‘पैसा ये पैसा…’ यहां देखने सुनने में ओके टाइप लगा, लेकिन विनोद खन्ना वाली ‘इन्कार’ का चार्टबस्टर नंबर ‘मुंगडा…’ देख के थोडी निराशा हुई. न तो गाने का टेम्पो सही है न ही सोनाक्षी का डान्स. कहां हेलनजी और कहां सोनाक्षी…
‘टोटल धमाल’ के टेकलिकन पासे वैसे ही है जैसे एक कमर्शियल फिल्म में होने चाहीए. 80 फीसदी फिल्म आउटडोर शूट की गई है और केमेरा वर्क ईतना अच्छा है की फिल्म देखने में मजा आता है. कम्प्युटर ग्राफिक्स का भी काफी इस्तेमाल किया गया है और बाढ जैसे एकाद सीन को छोडकर यहां पर भी ठीक से काम किया गया है.  
‘टोटल धमाल’ कोई ग्रेट सिनेमा नहीं है. इसे ‘जाने भी दो यारों’, ‘अंदाज अपना अपना’ या फिर ‘हेराहेरी’ जैसी क्लासिक कोमेडी फिल्मों से कम्पेर न करे. फिर भी ‘टोटल धमाल’ में बोलिवुड का मसाला कुट कुट के भरा गया है. फिल्म दर्शकों को हसाने के लिए बनाई गई है और इस मामले में ये फिल्म पूरी तरह से कामियाब होती है. इस फिल्म में बिलकुल भी कोई अश्लीलता या फिर एडल्ट ओन्ली डायलोग्स नहीं है, तो इस फिल्म को पूरी फेमिली के साथ देखने जा सकते है. पर हां, दिमाग घर पे रख के जाना. जिस चीज की जरूरत जहां पर हो वहीं लगानी चाहीए, है ना? 
हसीं का हंगामा लेकर आई इस साफसुथरी, मनोरंजक मेड कोमेडी फिल्म को मैं दूंगा 5 से में से 3 स्टार्स.   
  

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