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‘केसरी’ फिल्म रिव्यू- सारागढी की गौरव गाथा…

वो केवल 21 थे और सामने पूरे 10000 की फौज. जीत नामूमकिन थी. लेकिन उन 21 जांबाज सिपाहीयों के हौसले बुलंद थे. इतने बुलंद की उनकी सरफरोशी इतिहास के पन्नों में ‘बैटल ऑफ़ सारागढ़ी’ के नाम से हमेशा के लिए दर्ज हो गई.

बात है 1897 की. जब भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश एक थे. हिन्दोस्तान की सरजमीं का सरहदी हिस्सा था सारागढी, जो की वर्तमान में पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम फ्रण्टियर प्रान्त (खैबर-पखतुन्खवा) में स्थित है. अफघानी घूसपेठीए भारत के सरहदी प्रांतो पे कब्जा जमाने की ताक में है और अंग्रेजी हकूमत भारतीय सिपाहीयों के बलबूते पर उनसे टक्कर लेने को तैयार है. दुर्गम पहाडीयों के बीच बने सारागढी के किले में तैनात है सिर्फ 21 सिपाही. अफघानी पठानों का एक बडा दस्ता सारागाढी के किले को जीतकर आसपास के अन्य किलों पे भी कब्जे जमाने को आमादा है. 10000 पठानों के सामने 21 सिख्ख सिपाही किस बहादुरी से लडे, कैसे दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए, यही कहानी है फिल्म ‘केसरी’ की.

वैसे देखा जाए तो इतनी पतली सी कहानी पर से पूरी फिल्म बनानी मुश्किल थी क्यूंकी केवल एक युद्ध की घटना में आप नया दे दे कर क्या दे सकते हो. लेकिन तारिफ करनी होगी फिल्म के निर्देशक अनुराग सिंह की जिन्होंने लेखक गिरिश कोहली के साथ मिलकर एक बहोत की उमदा स्क्रीनप्ले लिखी है. फिल्म में छोटी छोटी घटनाएं होती रहेती है जो दर्शकों को अंत तक जकडकर रखती है. निर्देशक अनुराग सिंह की छाप फिल्म के हर एक दृश्य में देखने को मिलती है. अक्षय कुमार जैसे दिग्गज और जमे हुए सुपरस्टार को भी उन्होंने कहीं उनके किरदार पर हावी नहीं होने दिया है.

अक्षय कुमार ने 21 सिख्ख सिपाहीओं के सरदार ईशर सिंह का रोल निभाया है और वो अपने किरदार में इतना डूब गये है की किसी एंगल से अक्षय नहीं लगते. उन्होंने अपनी संवाद अदायगी में सिख्ख लहजा बखूबी ढाला है. और एक्शन भी खूब जमकर किया है. 51 साल की उम्र में भी उनकी स्फूर्ती देखकर हैरत होती है. ‘केसरी’ में उनका अभिनय उनकी करियर के सर्वोत्त्म परफॉर्मेंस में से एक है.

अक्षय की पत्नी की भूमिका में नजर आईं है परिणीति चोपरा. उनका रोल छोटा है लेकिन अक्षय के साथ उनकी केमेस्ट्री खूब जचती है और देहाती पंजाबी महिला के रूप में वो अच्छी भी लगती है. इन दोनों के अलावा फिल्म में कोई जानामाना कलाकार नहीं है, लेकिन सभी कलाकारों ने पूरी ईमानदारी से अपने अपने पात्रों को निभाया है.

‘केसरी’ के डायलोग्स मजेदार है. विषय गंभीर होने के बावजूद फिल्म में हसीं की फूलझडियां फूटती रहेती है. सिख्ख सिपाही एक दूसरे की जो टांग-खिंचाई करते है वो देखने में मजा आता है. पूरी फिल्म में ह्यूमर का इस्तेमाल बडे ही काबिल ढंग से किया गया है. कई संवाद जोशीले हैं और राष्ट्रभक्ति से भरपूर है, जिन्हें न सिर्फ अक्षय ने बलके सिपाही बने सभी कलाकारो ने बढिया ढंग से निभाया है.

अंशुल चौबे के कैमेरे ने 1897 के दौर को बखूबी जिवीत किया है. सुब्रता चक्रबोर्ती और अमित रे का प्रॉडक्शन डिजाइन भी जबरदस्त है और फिल्म को परफैक्ट लूक देता है. फिल्म की हाइलाइट है फिल्म का एक्शन. युद्ध के दृश्यों में एक्शन कोरियॉग्राफी गजब की है. एक से ज्यादा सीन ऐसे है जिन्हें देखकर दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. कई सारे सीन इतने बढिया है की दर्शक तालीयां मारने और सीटीयां बजाने पे मजबूर हो जाते है. फिल्म का क्लाइमेक्स दर्शकों के दिमाग पे गहरी छाप छोड़ दे इतना बहेतरिन है. ‘केसरी’ का एक्शन बहोत ही वास्तविक लगता है और इस में VFX टीम का भी बहोत बढिया योगदान है. संगीत बस ठीकठाक ही है. जो दो-तीन गाने पर्दे पर दिखते है वो कहानी के साथ जुडे हुए लगते है.

कुल मिलाकर देखें तो ‘केसरी’ एक बहेतरिन फिल्म है. ईस रोमांचक पेशकश को मेरी ओर से 5 से में से पूरे 4 स्टार्स.

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