फिल्म रिव्यू ‘हाउसफूल 4’- दिवाली का तोह्फा या फिर..?   Mayur Patel द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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फिल्म रिव्यू ‘हाउसफूल 4’- दिवाली का तोह्फा या फिर..?  

तीन सुपरहिट ‘हाउसफूल’ के बाद अब आई ‘हाउसफूल 4’ की कहानी पुनर्जन्म के इर्दगिर्द घूमती है. लंडन में रहेनेवाले तीन नाकारा भाई हेरी (अक्षय कुमार), रोय (रितेश देशमुख) और मेक्स (बोबी देओल) अपने सर पे चढा कर्जा उतारने के लिए करोडपति शेठ ठकराल (रंजित) की तीन बेटियों— क्रिती (क्रिती शेनोन), पूजा (पूजा हेगडे) और नेहा (क्रिती खरबंदा)— से शादी करने का प्लान बनाते है. शादी करने के लिए सब भारत के सितमगढ नगर में जाते है जहां हेरी को याद आता है अपना पीछला जन्म. 600 साल पुराना जन्म. जब 1419 में वो बाला नामका राजकुमार था, मेक्स धरमपुत्र नामका अंगरक्षक था और रोय बांगडु महाराज नामका नर्तक था. उस जन्म में भी तीनो को तीन राजकुमारीओं— मधु (क्रिती शेनोन), माला (पूजा हेगडे) और मीना (क्रिती खरबंदा)— से प्यार था, लेकिन राजकीय दुश्मनों की वजह से उनका प्यार अधूरा रह गया था. हेरी को अपना पीछला जन्म याद आ जाता है लेकिन किसी और को नहीं, तो अब वो इस मुहिम में लग जाता है की सबको उनका पीछला जन्म याद आ जाए लेकिन एसा करने में सब गडबड होती जाती है.

पुनर्जन्म का कोन्सेप्ट तो वैसे अच्छा है, उसको पर्दे पर उतारा भी प्रभावशाली ढंग से गया है, लेकिन एक कोमेडी फिल्म में जिस मात्रा की कोमेडी होनी चाहिए, उतनी कोमेडी इस कहानी से नीकल नहीं पाती है. इस से पहेले ‘एन्टरटेनमेन्ट’ और ‘हाउसफूल 3’ जैसी सुपरहिट फिल्में डिरेक्ट करनेवाली जोडी साजिद-फरहाद में से ‘हाउसफूल 4’ का निर्देशन किया है फरहाद सामजी ने. तो मिस्टर फरहाद को लगा होगा की मर्दो को औरतों के कपडे पहेनाकर, उनसे ढीलीढाली हरकतें करवाकर वो कोमेडी पेदा कर लेंगे, पर एसा नहीं होता निर्देशक जी. एसा होता है कपिल शर्मा के शॉ में क्योंकी वहां राइटर्स की टीम तगडी है और एक से एक बढिया पंच लिखे जाते है. आपकी फिल्म में लिखावट ही इतनी कच्ची है की कलाकारों की काफी कोशिशों के वाबजूद बहोत कमतर ही कोमेडी हो सकी है. यहां स्क्रीनप्ले में कोई दम नहीं है. कोमेडी के नाम पर बस उटपटांग हरकतें और गिमिक्स किए गए है, जिनमें नयापन बिलकुल भी नहीं है. माना की बोलिवुड की कमर्शियल कोमेडी फिल्म में लोजिक ढूंढना मना होता है लेकिन, कुछ भी मतलब कुछ भी दिखाएंगे तो कैसे हजम होगा..? 1419 के जमाने में लोग इंग्लिश बोल रहे है. क्यों..? क्योंकी कोमेडी करनी है. 1419 के समय में लोग पास्ता और टोमेटो सोस खा रहे है. क्यों..? क्योंकी कोमेडी करनी है, यार. इन्सान तो इन्सान कबूतरों का भी पुनर्जन्म हो रहा है. क्यों..? अरे यार, बोला ना कोमेडी करनी है. लेकिन क्या वाकई में कोमेडी हो पाई है..? कहीं कहीं, हां. ज्यादातर, ना. फिल्म में गोलमाल, भूलभूलैया और बाहुबली जैसी फिल्मों की परछाईयां साफ साफ नजर आती हैं. गोविंदा, प्रभुदेवा, महेश भट्ट, आलिया भट्ट, नील नितिन मुकेश… जैसी सेलिब्रिटी के नामों को तोडमरोड के भी कोमेडी करने का वाहियात प्रयास किया गया है, जो की कतैई काम नहीं करता.

इस मल्टिस्टारर फिल्म के एक्टिंग डिमार्टमेन्ट की बात करें तो सबसे ज्यादा फूटेज अक्षय कुमार को मिला है. मिलना भी था. सुपरस्टार जो ठेहरे. अक्षय ने अपनी दोनों भूमिकाओं को अच्छे से निभाया है. कोमेडी फिल्मों में वो जो करते आ रहे है उतना ही उन्होंने किया है, कुछ नया न देने के बाद भी वो अच्छे लगे. रितेश देशमुख ने थोडा निराश किया. ट्रेलर में उनको ढीलेढाले नर्तक के रूप में देखकर काफी उम्मीद बंधी थीं के वो ‘अपना सपना मनी मनी’ जैसा कोई यादगार महिला-किरदार दे पाएगें, लेकिन एसा बिलकुल भी नहीं हुआ. उनकी टेलेन्ट के हिसाब से बहोत कम पंचलाइन उन्हें दी गई है. अपनी एवरेज एक्टिंग स्कील के चलते बॉबी देओल भी कुछ खास नहीं कर पाए. लडकियों में क्रिती शेनोन को बाकी दो हिरोइनों के मुकाबले थोडा ज्यादा महत्व दिया गया है. तीनो ने अपने अपने हिस्से में आया काम ठीकठाक ढंग से अदा किया है. सहायक भूमिका में भी कोई कलाकार खुल के मनोरंजन नहीं कर पाया. चंकी पांडे, ज्होनी लिवर, शरद केलकर सब बस औसतन ही है. राणा दग्गुबाटी का रोल फिल्म में महत्त्वपूर्ण है और वो अपेक्षा से ज्यादा अच्छे लगे. शक्ति कपूर और अर्चना पुरनसिंह की भूमिकाएं सिर्फ फोटोग्राफ तक सिमित रह गई है. एक सीन और एक सोंग की भूमिका नवाजुद्दिन सिद्दिकी जैसे मंजे हुए कलाकार ने क्यों की वो तो वो ही जाने. शायद अक्षय पाजी को मना नहीं कर पाए होंगे, या फिर पैसे वडे तगडे मिले होंगे.

फिल्म के संगीत में खास दम नहीं है. फिर भी बडे पर्दे पर गाने देखने में अच्छे लगे. हांलाकीं 2019 और 1419 की कोरियोग्राफी में कोई फर्क नहीं है. 1419 में भी भारतवासी उतनी ही बेशर्मी से उछल-उछलकर नाचते थे जितना आज 2019 में नाचते है. वाह..! जुलियस पेकिएम का बैकग्राउंड स्कोर ठीकठाक रहा. सुदीप चेटर्जी की सिनेमेटोग्राफी अच्छी लगीं. कोस्च्युम्स और सेट डिजाइनिंग प्रभावशाली लगें. मेकअप बढिया लगा. खासकर अक्षय और दग्गुबाटी का मेकअप. कम्प्युटर ग्राफिक्स में काफी खर्चा किया गया है और वो पर्दे पर नीखर के सामने आया है.

75 करोड के बजेट में बनी इस फिल्म का सुपरहिट होना तो तय है, लेकिन ये फिल्म एसी बिलकुल भी नहीं बनी की इसे देखना ही पडे. बीना सिर-पैर वाली ‘हाउसफूल 4’ को मैं दूंगा 5 में से 2.5 स्टार्स. देखें? ना देखें? कोई फर्क नहीं पडनेवाला. हेप्पी दिवाली.