दिव्य जीवन की एक झलक हमारा सौभाग्य है कि हमारी वसुन्धरा कभी संतों से विरहित नहीं रही। संतों की चेष्टायें साधन काल में भी एवं सिद्धावस्था में भी विभिन्न प्रकार की होती हैं पर होती है समस्त जगत् के कल्याण के लिये। हम अपनी रज-तमाच्छादित मन-बुद्धि के द्वारा संतों को पहचान नहीं सकते। देवर्षि नारदजी के सूत्र ‘तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्’ के अनुसार श्रीभगवान् एवं उनके परम भक्त में भेद का अभाव हो जाता है। ऐसी स्थिति में संतों की तुलना करने की चेष्टा करना महान् मूर्खता है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिये संत को पहचानना ही संभव नहीं है तब कोई तुलना करने की कल्पना भी मन में नहीं है। सभी ज्ञात-अज्ञात संतों के चरणों में सभक्ति साष्टांग प्रणाम करके अपने मन की बात लिख रहा हूँ। विगत 15-20 वर्षो से संतों-भक्तों के जीवन चरित्र पढ़ने में मेरी रुचि रही है। ऐसे पठन से सत्प्रेरणा मिले यह भाव तो था ही साथ में यह भी था जो विशेषताएँ मुझे पूज्य श्रीभाईजी में प्रतीत हो रही हैं उनका दर्शन अन्यत्र कैसा है ? यद्यपि मेरा अध्ययन बहुत व्यापक नहीं है इस कारण मैं कोई दावा नहीं कर सकता पर तीन बातें मुझे भाई जी में बहुत विशेष लगीं। संत चाहे अभेदोपासक हो या भेदोपासक मोटे रूप में हम ब्रह्ममें स्थिति होने या साकार विग्रह के साक्षात् दर्शन होने पर ही सिद्ध संत कहते हैं। दोनों स्थिति ही स्वसंवेद्य है। अतः किसी को पता लगना कठिन ही होता है। सत्यता का दर्शन तभी संभव है जब या तो स्वयं संत कृपा करके संकेत कर दें या भगवान कोई ऐसी प्रकटीकरण की लीला प्रस्तुत कर दें।
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हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 1
।। श्रीहरिः ।।दिव्य जीवन की एक झलकहमारा सौभाग्य है कि हमारी वसुन्धरा कभी संतों से विरहित नहीं रही। संतों चेष्टायें साधन काल में भी एवं सिद्धावस्था में भी विभिन्न प्रकार की होती हैं पर होती है समस्त जगत् के कल्याण के लिये। हम अपनी रज-तमाच्छादित मन-बुद्धि के द्वारा संतों को पहचान नहीं सकते। देवर्षि नारदजी के सूत्र ‘तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्’ के अनुसार श्रीभगवान् एवं उनके परम भक्त में भेद का अभाव हो जाता है। ऐसी स्थिति में संतों की तुलना करने की चेष्टा करना महान् मूर्खता है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिये संत को पहचानना ही संभव नहीं है तब ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 2
वंश परिचयशास्त्र की यह स्पष्ट उद्घोषणा है— वे माता-पिता, वह कुल, वह जाति, वह समाज, वह देश धन्य है, भगवत् परायण परम भागवत महापुरुष आविर्भूत होते हैं। राजस्थान के बीकानेर जिलेमें (वर्तमानमें चूरू जिले में) रतनगढ़ एक छोटा प्रसिद्ध शहर है। भाईजी के पितामह सेठ श्रीताराचन्द जी पोदार की गणना नगर के गिने चुने व्यापारियों में थी। वे बड़े ही धर्म-प्राण थे। उनके दो पुत्र थे— कनीरामजी और भीमराम जी। श्रीभीमराम जी को ही भाईजी के पिता होने का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्रीकनीराम जी पिता की अनुमति प्राप्त करके आसाम व्यापार करने चले गये। रतनगढ से शिलांग जाने ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 3
जन्म:शिलांग पहुँचने के कुछ समय बाद रामकौर देवी को रिखीबाई के गर्भवती होने का पता लगा तो उनके आनन्द सीमा नहीं रही। परम अभिलषित वस्तु की प्रतीक्षा में हृदय की क्या अवस्था होती है— यह किसी से सुनकर समझा नहीं जा सकता है। पल-पल पर विघ्न की आशंका से मन कैसे चंचल हो उठता है --यह तो सर्वथा भुक्त भोगी ही जानता है। आखिर वह परम पुण्यमय क्षण उपस्थित हुआ आश्विन कृष्ण 12 वि०सं 1949 (दि० 17 सितम्बर सन् 1892) को रिखीबाई ने पुत्ररत्न प्राप्त किया। यह सुयोग हनुमानजी के दिन शनिवार को संघटित हुआ। सभी को देखकर बड़ा ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 4
भाईजी का चरित्रबल एवं देवी सरोजनी का अलौकिक आत्मोत्सर्ग 'यह पूरा प्रसंग पूज्य बाबा के हाथ से लिखा हुआ वे स्लेट पर लिखते थे,पिताजी उसकी नकल कर लेते थे।'आर्य रमणी का जीवन कैसा होता है, आज इस विलासिता के युग में समझ लेना कुछ कठिन है। पूर्वकाल की बात है मुगल सेना एवं राजपूत वीरों में सारे दिन युद्ध हुआ। रणभूमि शव से पाट दी गयी। अनेक राजपूत वीर, अनेक क्षत्रिय युवक अपनी मातृभूमि की गोद में चिरनिद्रा में सो गये। संध्याकालीन सूर्य की रश्मियों में उनका निर्मल प्रशान्त मुख चमक रहा था।मातृभूमि के लिये अपना जीवन अर्पण करने ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 5
सेठ जी श्रीजयदयाल जी गोयन्दका से मिलनपरम संत सेठ जी श्रीजयदयाल जी गोयन्द का एक ऐसे मारवाड़ी संत थे, लोग जानकर भी नहीं पहचान पाते थे। उनका रहन-सहन, वेष-भूषा, मारवाड़ी-मिश्रित हिन्दी बोली, सब इतने साधारण थे कि लोग निकट से देखकर भी नहीं पहचान पाते थे कि ये आध्यात्मिक जगत् की विशेष विभूति हैं। साधारणतया सत्संगी लोग इन्हें 'सेठजी' के नाम से ही पुकारते थे। सत्संग करानेके उद्देश्यसे ये स्थान-स्थानपर जाया करते थे। भाईजी ने भी अपने व्यापारिक जीवनके बीच इनकी प्रशंसा सुनी थी। सं० 1967-68 (सन् 1910-1911) में श्रीसेठजी का कलकत्ते में आगमन हुआ। संयोग वश उनके सत्संग ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 6
कलकत्ते की अलीपुर जेल मेंगुप्त-समिति में सक्रिय भाग लेने तथा क्रान्तिकारियों के मुकदमों की पैरवी में सहयोग देनेसे भाईजी नाम भी पुलिस की डायरी में आ गया। इनकी गतिविधि का निरीक्षण होने लगा। ये बिना किसी भय के अपने कार्यक्रमों में भाग लेते रहे। बन्दी होने के एक मास पूर्व इनको सूचना मिल गयी कि सरकार कोई-न-कोई उपयुक्त अवसर पाकर इन्हें बन्दी बनाने की चेष्टा में है। इसे जानकर भी ये, न तो कहीं भागकर छिपे, न अपने कार्यक्रमों से विरत हुए। अचानक एक दिन सदल-बल पुलिस इनकीक्लाइव स्ट्रीट स्थित दूकान पर पहुँच गयी एवं श्रावण कृष्ण 5 सं० ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 7
बम्बईका जीवनभाईजी सपरिवार रतनगढ़ पहुँच गये पर वहाँ घर के सिवा और था ही क्या ? दादाजी की कमाई में भूकम्प के भेंट चढ़ गई थी। कलकत्ते की वृत्ति से ही कुछ मिला वह राजनीति, समाज-सेवा और संत-महात्माओं के समर्पित हो गया। पिताजी के जानेके बाद कलकत्ते की दूकान भाईजी सँभालते थे, पर इनकी अनुपस्थिति में वहाँ केवल कर्ज ही बचा था। इस अव्यवस्थित स्थिति में पारिवारिक जीवन-निर्वाह की समस्या सामने थी। भाईजी के मनमें कोई उद्वेग नहीं था, क्योंकि ये सब बातें पहले सोचकर ही राजनीति मे प्रवृष्ट हुए थे। अनुकूल पत्नी और सहिष्णु दादी के कारण दिन ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 8
अध्यात्म-भावना का पुनरुद्रेकभगवान्ने जिस कार्य के लिये भाईजी को भेजा था, उसकी ओर आकर्षण बम्बईके भोग–प्रधान व्यापारिक जीवनमें रहते भी होने लगा। यह साधारण नियमका अपवाद कहा जा सकता है। प्रधान रूप से व्यापार करते हुए तथा राजनीतिक एवं सामाजिक कार्योंमें पूरा भाग लेते हुए किसीका जीवन साधनाके सोपानोंपर चढ़ने लगे, और वह भी बम्बई जैसे नगरोंमें रहते हुए तो उसे अवश्य ही भगवत् इच्छा ही कहना पड़ेगा। भाईजी के जीवनमें यही हुआ। बम्बई आने के दस महीने बाद ही छोटी बहिन अन्नपूर्णाके विवाहके लिये भाईजी को बाँकुड़ा जाना पड़ा। इस निमित्तसे श्रीसेठजी का सत्संग भी प्राप्त हुआ। दोनोंमें ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 9
व्यवस्थाके लिये अपरिचित व्यक्तिको स्वप्नादेशबम्बई प्रवासके समय एक और विचित्र घटना घटित हुई। भाईजी एक बार किसी कार्यवश इन्दौरके एक महू नामक नगरमें गये। वे पहुँचे तबतक रात्रि हो गयी थी। वे एक धर्मशालामें गये और वहाँके व्यवस्थापकसे रहनेके लिये स्थान माँगा। व्यवस्थापकने कह दिया यहाँ कोई कमरा खाली नहीं है। भाईजीने पुनः कहा मुझे तो केवल रात्रि-विश्राम करना है, कोई छोटा स्थान भी दे दें तो काम चल जायगा। व्यवस्थापकने कुछ रुखाईके साथ कहा— आपको एक बार कह दिया यहाँ कोई कमरा खाली नहीं है। किसी होटलमें ठहर जाइये। होटलमें ठहरनेका भाईजीके लिये प्रश्न ही नहीं था। अतः ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 10
भगवत् प्रेरित चार विलक्षण घटनाएँभगवान् अपने सच्चे भक्तका कितना ध्यान रखते हैं, इसका थोड़ा-सा दिग्दर्शन इन घटनाओंसे प्राप्त होता भक्त चाहे याचना करे या न करे भगवान् अनहोनी लगनेवाली बातें स्वाभाविक रूपसे घटित कर देते हैं। भाईजी बराबर कहा करते थे कि भगवान्की कृपासे असंभव भी संभव हो जाता है। यह बात वे केवल शास्त्रोंके आधारपर नहीं कहते थे। उनके जीवनमें ऐसी घटनाएँ घटी थी, जिससे उनका विश्वास अडिग हो गया था। यहाँ ऐसी चार घटनाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं—( 1.)बम्बई में भाईजीके एक साथी थे श्रीहरिराम शर्मा जो रुईकी दलाली करते थे। भाईजीके परम मित्र श्रीरामकृष्णजी डालमिया ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 11
भगवान् श्रीराम के दर्शनश्रीसेठजीके दस दिनोंके सत्संगके पश्चात् भाईजीकी अपनी साधनामें बड़ी तीव्रता आ गयी थी। उन दिनों भाईजी रूपसे निर्गुण निराकार ब्रह्मकी उपासना करते थे पर उनकी निष्ठा भगवान् और भगवन्नाममें वैसे ही बनी हुई थी। सच्चे संतका संग अमोघ होता ही है।श्रीसेठजीसे निर्विशेष ब्रह्मकी धारणा, ध्यानकी बातें भी दस दिनोंमें काफी हुई थी। उसीके अनुसार नियमित रूपसे ध्यान करने लगे। अल्पकालमें ही भाईजीकी कितनी ऊँची स्थिति होने लग गयी थी--इसका विवरण स्वय भाईजीके समय-समयपर श्रीसेठजीको लिखे हुए पत्रोंसे ही पता चलता यथा—"पत्र लिखते समय आनन्दमय बोधस्वरूप परमात्मामें प्रत्यक्षवत्स्थिति है। कलमसे अक्षर लिखे जा रहे हैं। लिखनेकी जो ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 12
स्वजनोंकी सहायताजैसे-जैसे भाईजीकी साधनाकी स्थिति प्रगाढ़तर होती जा रही थी वैसे-वैसे साधकोंका जमघट भी उनके पास एकत्रित होने लगा। लिये बीस नियम बनाये जिनके पालनसे पारमार्थिक उन्नति हो। इस साधन कमेटीके लगभग ५० सदस्य थे जो उत्साहसे नियमोंका पालन करते थे। इन्हीं दिनों भाईजीने अपने अनुभवके आधारपर एक पुस्तक लिखी 'मनको वशमें करनेके उपाय'।प्रसिद्ध गायनाचार्य श्रीविष्णुदिगम्बरजी भाईजीके परम मित्र थे। उन्होंने एक संस्था गान्धर्व महाविद्यालय खोल रखी थी। उदारतावश वे पैसा खुले हाथ खर्च करते। अतः लगभग पचहत्तर हजारका ऋण हो गया और महाविद्यालयके नीलाम होनेकी नौबत आ गयी। भाईजीके पास यह बात आयी। उनकी स्वयंकी ऐसी स्थिति नहीं ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 13
बम्बई छोड़नेका उपक्रम एवं विदाई'कल्याण' का पहला अंक निकालकर भाईजी निश्चिन्त हुए ही थे औषधोपचारसे कोई लाभ नहीं हुआ। लिये एक विशेष अनुष्ठान कि एक नयी चिन्ता आ पड़ी। श्रीसेठजीका स्वास्थ्य विशेष खराब हो गया। उनके यज्ञोपवीत-गुरु बीकानेरके पं० गणेशदत्तजी व्याससे भाईजीने करवाया। भगवत्कृपासे अनुष्ठान पूरा होते ही श्रीसेठजी स्वस्थ हो गये।भाईजीके व्यवहारसे एवं साधनासे बम्बईके मारवाड़ी समुदायमें भाईजीकी बहुत प्रतिष्ठा हो गई थी। वे इस मान-बड़ाईके चक्करसे निकलना चाहते थे। भाईजीके मनमें इस प्रपञ्चसे उपरामता तेजीसे बढ़ रही थी। सारे कार्य करते हुए भी मन प्रभुकी ओर लगा रहता था। प्रभु तीव्रतासे अपनी ओर खींच रहे थे। सोचने ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 14
जसीडीहमें दो बार भगवान् श्रीविष्णुके साक्षात् दर्शनभाईजीकी परीक्षा भी हो गयी थी एवं साधना भी पूर्ण परिपक्व हो गयी सचमुच इनके तन-मन- प्राण भगवान्की रूप-माधुरीके दर्शनके लिये छटपटा रहे थे। न दिनमें चैन था, न रातमें नींद। अजीव-सी आकुलता हृदय और आँखोंमें छायी हुई थी। भक्तके हृदयकी आकुलता भगवान्के हृदयमें प्रतिविम्बित हो जाती है और वे अपने प्राकट्यकी भूमिकाका निर्माण कर देते हैं। भाईजी अपने गुरु रूपमें श्रीसेठजीको हीमानते थे, अतः यह कार्य भगवान्ने उनके माध्यमसे ही पूर्ण किया। श्रीसेठजीने अवसर देखकर इन्हें तार देकर अपने पास जसीडीह बुलाया। तार मिलनेकी देर थी, उसी दिन सायंकाल ये श्रीघनश्यामदासजी जालानके ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 15
दूसरी घटनातिथि— आश्विन कृष्णा 9 वि०सं० 1984 सोमवार (19 सितम्बर, 1927)स्थान— जसीडीह, महेन्द्र सरकारकी कोठीके पूर्व-दक्षिण भागमें(मारवाड़ी) आरोग्य भवनके में दिन के दो बजे लोग एकत्रित हुए। श्रीसेठजीने हरदत्तरायजी गोयन्दकाके कहनेपर भाईजीसे कहा कि हरदत्त कहता है, इसलिये उस दिनकी तरह आँखें खोले हुए प्रत्यक्ष भगवान्के दर्शन हों, इस बातके लिये चेष्टा करनी चाहिये। उसके बाद थोड़ी देर तो भाईजी चुप रहे। पीछे श्रीसेठजीने कहा— कुछ स्तुतिके श्लोक और 'अजोऽपि इत्यादि श्लोक बोलकर आरम्भ करना चाहिये । इसके बाद स्वयं ही 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' उच्चारण करके चुप हो गये। इसके कुछ मिनट बाद भाईजीने 'शान्ताकारम्' बोलकर 'अजोऽपि', ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 16
गोरखपुरमें पुनः भगवान्के साक्षात् दर्शनों कीविलक्षण घटनाएँगोरखपुरमें कान्तीबाबूके बगीचेमें, जहाँ भाईजी उस समय निवास करते थे, नित्यप्रति सत्संग प्रारम्भ गया। प्रेमीजनोंने भाईजीसे जसीडीह की घटना जानने के लिये अनेक प्रश्न किये, जिसका उत्तर भाईजी बड़े संकोच से देते। इन दिनोंकी बातोंका वर्णन पू० भाईजीने श्रीसेठजी को पत्रोंमें पूरा भेजा है। विशेष जानकारीके लिये इसी पुस्तकमें दिये पत्रोंको देखना चाहिये। जो घटनाएँ श्रीभाईजीने अपनी डायरीमें नोट की. उनकी नकल नीचे दी जा रही है।पहली घटनासं० 1984 वि० आश्विन शुक्ल 6, रविवार ता० 2–10-1927 ई०स्थान-- कान्ति बाबूका बगीचा (गोरखपुर शहरके बाहर) दक्षिण तरफके कमरेके पासवाला बीचका बड़ा कमरा ।समय -- प्रातःकाल ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 17
तीसरी घटनाश्रीसेटजीसे वार्तालाप करने कार्तिक कृष्ण 7 सं० 1984 को भाईजी पुनः जसीडीह गये। भाईजीको गोरखपुर आनेके बाद दूसरे दिन श्रीभगवान्के पुनः प्रत्यक्ष दर्शन हुए। भगवान्के दर्शनोंकी तीसरी और चौथी घटनाका विस्तृत विवरण श्रीभाईजीने श्रीसेठजीको कार्तिक कृ० 14 सं० 1984 (24 अक्टूबर सन् 1927) के पत्रोंमें लिखा है। यह पत्र श्रीभाईजी श्रीसेठजीके पत्र व्यवहारमें दिया जा रहा है। इसके बाद भाईजीने भगवद्दर्शनोंकी घटनायें नोट करनी बन्द कर दी। गिनतीकी घटनायें हो तो नोट भी की जाय, जब जीवनकी यह स्वाभाविक बात हो गयी तो कहाँ तक नोट की जाय। श्रीगम्भीरचन्दजी दुजारीके आनेपर भाईजी उन्हें एकान्त कोठरीमें ले गये एवं ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 18
गोरखपुर का जीवन उस समय गोरखपुर शहर जलवायु, मकान, रास्ते आदि सभी दृष्टियों से गया-गुजरा था। बम्बई के अच्छे में रहने वाले भाई जी के रहने योग्य गोरखपुर कदापि नहीं था। गोरखपुर में रहने का प्रधान हेतु 'कल्याण' एवं 'गीताप्रेस' ही था। पूज्य श्रीसेठजी को भाईजी सदैव गुरुतुल्य मानते थे। पूज्य सेठजी की आज्ञा थी कि 'कल्याण' गीताप्रेस से प्रकाशित हो और भाईजी उसे सम्भालें। गोरखपुर में भाईजी ने अपने रहने का स्थान गीताप्रेस एवं शहर से २-२ मील दूर असुरन के पोखरे एवं रेलवे लाइन के समीप में श्रीकान्तीबाबू के बगीचे को चुना। वह बगीचा किराये पर लिया ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 19
श्री भगवन् नाम-प्रचार भगवान् के आदेशानुसार श्रीभाई जी श्री भगवन् नाम-प्रचार में पूर्ण मनोयोग से लग गये। निवास-स्थान पर संकीर्तन होने लगा। संकीर्तन नित्य रात्रि में तो ग्यारह-बारह बजे तक समाप्त होता पर दीपावली, कार्तिक कृष्ण ३० सं० १९८४ (२५ अक्टूबर, १९२७) को रात्रि के पौन दो बजे तक भाईजी मस्ती से संकीर्तन कराते रहे। अंत में बोले– “भगवान् के नाम का कीर्तन कराने से अनन्त लाभ होता है। कीर्तन की ध्वनि जहाँ तक जाती है, वहाँ तक के सभी जीव-जन्तु पवित्र हो जाते हैं। वास्तव में कीर्तन की महिमा अनिर्वचनीय है। कई बार भाईजी खड़े होकर प्रेम से ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 20
जीवनोपरान्त भगवद्दर्शनों की बातें प्रकट करने से लाभजसीडीह में भगवान् के साक्षात् दर्शनों की बातें बहुत ही थोड़े समय दूर-दूर के स्थानों में पहुँच गई थी– विशेषतया जहाँ श्रीसेठ जी एवं भाई जी के परिचित लोग रहते थे। बम्बई में भी भाईजी के बहुत से व्यापारी मित्रों को भी समाचार मिलने में देरी नहीं लगी। घटना कुछ ऐसी हुई थी जिस पर हर एक को विश्वास होने में भी कठिनता होती थी। कुछ मित्रों से भाईजी की बहुत घनिष्ठता थी। ऐसे मित्रों के भाईजी के पास पत्र आने लगे। कुछ मित्र भाईजी से पूरा विवरण चाहते, कुछ भाईजी की ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 21
मित्रता निभाने का एक और अनुपम उदाहरण श्री हरिराम शर्मा की एक घटना आप पहले पढ़ चुके हैं। ये निवासी थे और बम्बई में भाईजी के मित्र बन गये थे। भाईजी ने इन पर अनेकों बार ऐसे-ऐसे उपकार किये थे, इस प्रकार के संकटों से निवारण किया था कि जिसका बदला वे प्राण न्यौछावर करके भी नहीं चुका सकते थे।भाईजी की कृपापूर्ण उदारता ही उनकी आजीविका का एक बड़ा अवलम्बन था। परन्तु संग के असर की बलिहारी है। रतनगढ़ जाकर वे कुसंगमें पड़ गये। फाल्गुन सं० १९८५ (मार्च, १९२६) में बीमार पड़कर मरणासन्न हो गये और लोगों के बहकावे ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 22
नमक सत्याग्रहमें जाने से श्रीसेठ जी ने रोका बैशाख कृ० १ सं० १९८७ (अप्रैल १९३०) को कानपुर के श्रीगणेश जी विद्यार्थी सम्पादक 'प्रताप' गोरखपुर पहुँचे। वे नमक सत्याग्रह करने के लिये बाबा राघवदासजी के निमन्त्रण पर पडरौना जा रहे थे। उन दिनों नमक सत्याग्रह जोर से चल रहा था। श्रीभाई जी को गाँधीजी ने लिखा ‘तुम मेरे पास आ जाओ।’ कई मित्रों ने इस सत्याग्रह में सम्मिलित होने के लिये आग्रह किया। श्रीभाईजी की भी इस काममें तन- मन से सहानुभूति थी। वे अपने साथ श्रीगम्भीरचन्द जी दुजारी को लेकर नमक सत्याग्रह में सक्रिय भाग लेने के लिये श्री ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 23
श्री चिम्मनलालजी गोस्वामी श्रीचिम्मनलाल जी गोस्वामी का जन्म आषाढ़ कृष्ण 9 सं० 1957 (27 जून, 1900) को हुआ था। परिवार धार्मिक संस्कार सम्पन्न था एवं इन्हें बल्लभ-सम्प्रदाय के संस्कार जन्म से ही प्राप्त हुए। भक्तिमती श्री चन्द्रकला देवी तथा श्री व्रजलालजी गोस्वामी को इनके माता-पिता कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ। सन् 1916 में हाई स्कूल की परीक्षा उतीर्ण करके आप वाराणसी चले आये और क्वीन्स कालेजमें अँग्रेजी, दर्शन शास्त्र तथा संस्कृतका अध्ययन करने लगे। यहाँ पढ़ते समय महामहोपाध्याय पं० श्रीगोपीनाथ जी कविराज का विशेष सामीप्य और संरक्षण मिला क्वीन्स कालेज का अध्ययन पूर्ण करके आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 24
कल्याण कल्पतरू का प्रवर्तनभाईजी बहुत दिनों से इस आवश्यकता का अनुभव कर रहे थे कि 'कल्याण' की तरह ही मासिक-पत्र अंग्रेजी भाषामें भी निकाला जाय, जिससे अंग्रेजी-भाषा-भाषी जनता एवं विदेशोंमें रहने वाले लोगों को 'कल्याण' का संदेश सुगमतासे प्राप्त हो सके। इस गुरुतर कार्य को सँभालने के लिये भाव वाले विद्वान् व्यक्ति की आवश्यकता थी। श्रीचिम्मनलाल जी गोस्वामीके आने से उस कमीकी पूर्ति हो गयी और अंग्रेजीमें 'कल्याण- कल्पतरु' निकालने का निर्णय ले लिया गया। इसका प्रकाशन सं० 1991 (जनवरी सन् 1933 ) से शुभारम्भ हुआ। भाईजी इसके कंट्रोलिंग एडीटर रहे और सम्पादक श्रीगोस्वामी जी कुछ समय तक इसके ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 25
पं० जवाहरलाल नेहरू का गोरखपुर आगमन बात सन् 1936 की है जब गीता वाटिका, गोरखपुर में एक वर्ष के संकीर्तन का भाईजी ने आयोजन किया था। इस आयोजन में देश के बड़े-बड़े संतों एवं विशिष्ट व्यक्तियों ने भाग लिया था। उन दिनों पं० श्रीजवाहरलाल नेहरू का तेज-प्रताप बढ़ रहा था। राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिये उनके त्याग, बलिदान, कष्ट सहन की प्रशंसा हो रही थी। साईमन कमीशन के विरोध के प्रसंगमें, उनको और पण्डित श्रीगोविन्दबल्लभ पन्त को ब्रिटिश सरकार की ओर से जो पीड़ा पहुँचायी गयी थी, मार-पीट की गयी, वह लोगों के हृदयपर घाव कर गयी थी। लोगों ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 26
भगवन्नाम-प्रचार की द्वितीय योजनाकलियुगमें भगवन्नाम ही सर्वोपरि साधन है और भगवान्ने प्रत्यक्ष प्रकट होकर इसी के प्रचारका आदेश भाईजी दिया था। भाईजी इसे आज के युगमें सर्व-सुलभ एवं सर्वोत्कृष्ट साधन मानते थे। अपने एक प्रेमी के विदा होते समय भगवन्नाम-महिमा के सम्बन्धमें भाईजी ने कहा था कि मेरी तो First, last and latest Discovery (प्रथम, अन्तिम और नवीनतम आविष्कार) यही है कि अपना कल्याण चाहने वाला व्यक्ति नामका आश्रय पकड़ ले। और साधन हो सके तो अवश्य करे, किसी का विरोध नहीं है, परंतु और कुछ भी न हो सके तो केवल जीभ से निरन्तर नाम-जप करता रहे।पहली योजनामें ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 27
देवर्षि नारद एवं महर्षि अंगिरा के साक्षात् दर्शनइस अलौकिक घटना का विवरण देते हुए भाईजी ने बताया–सन् 1936 में (गोरखपुर) में एक वर्ष का अखण्ड-संकीर्तन हुआ था। शिमलापालमें 'नारद भक्ति-सूत्र' पर मैंने एक विस्तृत टीका लिखी थी। वह टीका उन दिनों प्रकाशित हो रही थी। भागवत की कथामें भी नारदजी का प्रसंग सुन रखा था। इन सब हेतुओंसे उन दिनों नारदजी के प्रति मनमें बड़ी भावना पैदा हुई। बार-बार उनके दर्शनों की लालसा जगने लगी।एक दिन रात्रिमें स्वप्नमें दो तेजोमय ब्राह्मण दिखायी दिये। मैं उन्हें पहचान न सका। परिचय पूछने पर उन्होंने बताया कि हम दोनों नारद और अंगिरा ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 28
स्वामीजी श्रीचक्रधरजी महाराज (श्रीराधाबाबा)गीतावाटिका गोरखपुरमें जिस समय एक वर्ष का अखण्ड-संकीर्तन चल रहा था, उसी समय स्वामीजी चक्रधर जी गीतावाटिका पधारे। कालान्तरमें इनका भाईजी के साथ अत्यन्त प्रगाढ़ सम्बन्ध हो गया। इनका परिचय संक्षेपमें नीचे दिया जा रहा है --बिहार प्रदेश के गया जिलेमें फखरपुर एक छोटा-सा ग्राम है। इसी ग्राममें परम्परागत वैदुष्य सम्पन्न 'मिश्र' उपाधिधारी ब्राह्मण कुलमें बाबा का जन्म पौष शु० 6 वि०सं० 1969 (16 जनवरी सन् 1913) को हुआ था। बाबा के पिता का नाम श्रीमहीपाल जी एवं माताका नाम श्रीमती अधिकारिणी देवी था। श्रीमहीपाल जी बहुत ही ईमानदार, सच्चरित्र थे एवं पूजा-पाठमें समय बिताते थे। ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 29
राधाबाबा के अपने अग्रज बन्धुओं को पत्र पूज्य बाबा के छायावत् भाईजी के साथ रहने के नियम का जब अग्रज बन्धुओं को पता लगा तो उन्हें बड़ा विस्मय हुआ। वे बाबा के उद्भट-विद्वत्व, अटूट वेदान्त-निष्ठा एवं सन्यास के कठोर नियमोंके पालन से भाँति-भाँति परिचित थे। अपने ऐसे अनुज को एक बनियेके साथ निरन्तर रहने के कारण को वे ठीक से हृदयंगम नहीं कर पा रहे थे। समय-समय पर पत्र लिखकर पू० बाबा से अपनी शंकाएँ निवारण के लिये प्रश्न किया करते थे। पू० बाबा ने उनको जो उत्तर लिखे उन पत्रों के कुछ अंश नीचे दिये जा रहे हैं।श्रावण ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 30
रतनगढ़में निवास'कल्याण' का सम्पादन एवं सेवा कार्योंका संचालन करते हुए भी भाईजीका मन बीच-बीचमें सर्वथा एकान्त सेवनके लिये व्यग्र जाता। जब भी किसी निमित्त ऐसा शुभ अवसर मिलता भाईजी एकान्तमें चले जाते। ऐसा ही एक अवसर मिलने पर ये अपने मित्र लच्छीरामजी चूड़ीवालाके आग्रह पर आश्विन कृष्ण 3 सं० 1989 (18 सितम्बर, 1932) को लक्ष्मणगढ़ गये। वहाँ ऋषिकुलके संचालनकी व्यवस्थाके सम्बन्धमें परामर्श करके वहाँसे रतनगढ़ चले गये। वहाँ रहनेकी इच्छा थी, अतः 'कल्याण' के सम्पादकीय विभागको भी वहीं बुला लिया। एकान्तकी दृष्टिसे, रहने के लिय मोतीराम भरतियाकी ढाणीको चुना जो शहरसे लगभग डेढ़ मील दूर थी। 'कल्याण' के सम्पादन ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 31
दादरीमें एकान्त-सेवन:भाईजीकी एकान्त सेवनकी लालसा फाल्गुन सं० 1995 (सन् 1938) से पुनः तीव्र हो गई। काम करते थे पर नहीं लगता था। इस समय श्रीसेठजी द्वारा गीताकी तत्त्व-विवेचनी टीका लिखायी जा रही थी जिसे सं० 1996 (सन 1939) के कल्याण के विशेषांकके रूपमें निकालनेका निश्चय किया गया था। इस कार्यसे भाईजीको कुछ समय बाँकुडा भी रहना पड़ा। पर मनमें निश्चय कर लिया था कि इसके पश्चात् गोरखपुरसे कहीं एकान्तमें जाना ही है। श्रावण 1996 में गीतातत्त्वांक छपकर तैयार हुआ। इसी बीच भाद्र कृष्ण 3 सं० 1996 (1 सितम्बर, 1939) को द्वितीय महायुद्ध आरम्भ हो जानेसे श्रीसेठजीने पन्द्रह-बीस दिन जानेसे ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 32
आर्थिक व्यवस्थाबहुत लोगों के मनमें एक जिज्ञासा बनी हुई है कि भाईजी का खर्च कैसे चलता था। व्यापार तो ३५ वर्षों की उम्र में छोड़ दिया था, बड़ी पूँजी उनके पास थी नहीं, फिर खर्च की क्या व्यवस्था थी। कई लोगों को तो यह भ्रम था कि भाईजी अपना खर्च कल्याण से चलाते हैं। एक दिन भाईजी के एक परिचित सज्जन आये और बातें करते हुए पूछने लगे कि 'कल्याण' से कितने रुपये बच जाते हैं। भाईजी ने उन्हें समझाया कि कल्याण में प्रायः नुकसान ही रहता है या बराबर-सा हो जाता है। उन्होंने कहा कि यह सब तो ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 33
अजमेर में उपचारबैसाख कृष्ण 11 सं० 2000 को भाईजी अपने मित्र श्रीजयदयाल जी डालमिया के बड़े लड़के विष्णुहरि के सम्मिलित होने दिल्ली गये। वहाँ से स्वर्गाश्रम सत्संग के लिये चले गये। फिर श्रीपरमेश्वर जी फोगला के अस्वस्थता के कारण स्वर्गाश्रमसे बम्बई गये। वहाँ कई बार सत्संग भवनमें सत्संग कराते थे। रतनगढ़ लौटनेपर भाईजी बीमार हो गये। कई रोगों के साथ ही बवासीर की एक नई बीमारी पैदा हो गयी। जन्माष्टमीके अगले दिन उपचार के लिए दिल्ली रवाना हुए पर वहाँ सुधार के स्थानपर मलेरिया बुखार तथा भयंकर सिर दर्द के कारण स्थिति अधिक बिगड़ गयी। ऐसा प्रतीत होने लगा ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 34
[श्रीभाईजी के शब्दों में]“ प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद महामना श्रीमालवीयजी से मेरा परिचय लगभग सन् 1906 से था। उस समय मैं रहता था। वे जब-जब पधारते, तब-तब मैं उनके दर्शन करता। मुझपर आरम्भ से अन्त तक उनकी परम कृपा रही और वह उत्तरोत्तर बढ़ती ही गयी। उनके साथ कुटुम्ब-सा सम्बन्ध हो गया था। वे मुझको अपना एक पुत्र समझने लगे और मैं उन्हें परम आदरणीय पिताजी से भी बढ़कर मानता। इस नाते मैं उन्हें "पण्डितजी" न कहकर सदा "बाबूजी" ही कहता। घर की सारी बातें वे मुझसे कहते। कुछ समय तो मैं उनके बहुत ही निकट-सम्पर्कमें रहा, इसलिये मुझको उन्हें बहुत ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 35
रतनगढ़में जल-समस्या का हल भाईजी ने रतनगढ़ की जल समस्याके समाधान हेतु प्रस्तावित वाटर–वर्क्स के निर्माणमें आने वाली बाधाओं दूर करने के लिये तत्कालीन बीकानेर महाराजा के हाथों से उसका उद्घाटन करवाया, उसकी पूर्व पृष्ठभूमि यह है :--रतनगढ़में पानी के नल न होने से वहाँ के निवासी कष्ट का अनुभव करते थे। श्रीदुर्गादत्त जी थरड़ का कुआँ भी था, जमीन भी थी एवं वे अपने व्यय से पानी की टंकी बनाकर जल-संकट को दूर भी करना चाहते थे, पर कुऍ के पास इनकी जो खाली जमीन थी जहाँ ये टंकी बनवाना चाहते थे, वह जमीन मुसलमान अपने ताजिये आदि ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 36
महात्मा गाँधी के साथ प्यार का सम्बन्ध[श्रीभाईजीके शब्दोंमें]“बापू के साथ मेरा बहुत अधिक सम्पर्क रहा है और मैंने उनको निकट से देखने के सुअवसर प्राप्त किये हैं। उनसे परिचय तो मेरा बहुत पुराना (सन् 1915 से) था और निकटका था; पर जब मैं बम्बईमें रहता था, तब महात्माजी साबरमती आश्रम, अहमदाबादमे निवास करते थे। उस समय मैं बीच-बीचमें कई बार आश्रममें भी जाया करता था। वे जब बम्बई पधारते, तब स्वर्गीय भाई जमनालाल जी बजाज के साथ व्यावसायिक कार्य करने के कारण उनकी ओर से महात्माजी के सारे आतिथ्य का काम मेरे ही जिम्मे रहता था। महात्माजी बम्बईमें मेरे ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 37
गीताप्रेसमें हड़तालभाईजी रतनगढ़ से चलकर ज्येष्ठ शु० 1 सं० 2002 (11 जून. 1945) को गोरखपुर आ गये। गीताप्रेस के पर्याप्त असन्तोष था। श्रावण सं० 2002 (अगस्त 1945) में भाईजी ने ट्रस्टियों को समझाकर कर्मचारियों को आर्थिक सुविधायें दिलायी। एक बार तो समस्या टल गई पर नेताओंने कर्मचारियों को भड़का कर थोड़े समय बाद ही हड़ताल का नोटिस दे दिया। भाईजीने समस्याको सुलझानेका बहुत प्रयत्न किया, कई बार दिनभर प्रेसमें रहे, किन्तु स्थिति सुलझ नहीं सकी। कर्मचारी अपनी बातपर अडिग रहे। कोई रास्ता न देखकर प्रबन्धकोंने आषाढ़ शुक्ल 8 सं० 2003 (6 जुलाई, 1946) को अनिश्चित काल के लिये प्रेस ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 38
नोआखाली काण्ड से पीड़ित हिन्दुओं की सहायतासं० 2003 (सन् 1946) में भारत-स्वतंत्रता प्राप्तिके समय देशमें एक हृदय-विदारक दृश्य उपस्थित गया। हजारों-हजारों व्यक्ति काल के मुँहमें चले गये, असंख्य लोगों का घरबार सभी कुछ चला गया, बहू-बेटियों पर हृदय-विदारक अत्याचार हुए। उस समय के दृश्य की आज भी स्मृति आनेपर रोंगटे खड़े जाते हैं। भाईजी जैसे संवेदनशील व्यक्ति के लिये निरपराध जनतापर ऐसे अमानुषिक अत्याचार देखकर चुप रहना संभव ही नहीं था। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से भागकर आये हुए लोगों की करुण-कथाएँ सुनकर भाईजी के नेत्रों से अश्रु-धारा बहने लगती थी। भाईजी हर संभव प्रयास करनेमें लग गये। नोआखाली ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 39
आसाम यात्रामें एक चमत्कारकार्तिक ० कृष्ण पक्ष संवत् 2003 (अक्टूबर, 1946) में भाईजी गोरखपुर से आसाम यात्रापर गये। वहाँ बार गोलाघाट से तिनसुकिया बस द्वारा जा रहे थे। रात्रिका समय था। एक स्थानपर सँकरे रास्तेसे बस जा रही थी, उसी समय एक यात्री जोरसे चिल्लाया– पानी-पानी। जोरसे अचानक चिल्लाने से ड्राइवर का हाथ कॉप गया और स्टियरिंग हिल गया। बस ढालपर थी, बसका पहिया स्लिप कर गया और बस खाई की ओर जाने लगी। उस समय ईश्वर के अतिरिक्त और कोई सहायक नहीं था। भाईजी ने हाथ ऊपर उठाकर 'नारायण-नारायण', 'नारायण-नारायण' का उच्च स्वर से घोष किया। नारायण नामकी ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 40
श्रीराम जन्मभूमि के उद्धार के लिये अयोध्या यात्राकहते हैं श्रीराम जन्मभूमि पर जो भव्य मन्दिर महाराज विक्रमादित्य ने बनवाया उसे बाबर ने ध्वस्त करा दिया। तब से उस पवित्र स्थान के लिये अनेक हिन्दू-मुस्लिम उपद्रव हुए किन्तु आर्य-जाति किसी-न-किसी तरह अपना अधिकार जमाये रही। पौष सं० 2006 (दिसम्बर, 1949) में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि-मन्दिरमें स्थापित मूर्तिसे एक ऐसी चमात्कारिक किरण छिटकी जिसकी प्रभा से सभी भक्त आनन्द विभोर हो गये। यह शुभ समाचार विद्युत प्रवाह की भाँति चारों ओर फैल गया। मामला कोर्टमें गया। श्रीवीरसिंह जी, सिविल जज, फैजाबाद ने सरकार को आदेशात्मक सूचना दी– जबतक वाद का अन्तिम ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 41
आत्महत्या से बचानेके प्रसंगभाईजीने कितने व्यक्तियों को आत्महत्या करने से बचाया– इसकी गणना सम्भव नहीं है क्योंकि ऐसे प्रसंग प्रायः गुप्त रखते थे। उनकी भरसक यही चेष्टा रहती थी कि किसी की व्यक्तिगत बात का अन्य व्यक्ति को पता न लगे। ऐसे कुछ प्रसंग यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं :-- श्रीभाईजी से जिन्होंने एक दिन सेवा ग्रहण की थी, किन्तु आज जो स्वास्थ्य एवं सम्पन्न अवस्थामें हैं, ऐसे एक सम्भ्रान्त व्यक्ति ने कुछ ही दिनों पहले श्रीभाईजी के लीलालीन होने के पश्चात् यह घटना रूद्ध-कण्ठ से सुनायी थी। उनके नेत्रों में जल था, हिचकियों के कारण शरीरमें कम्पन ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 42
श्रीरियाज अहमद अन्सारी को आत्म हत्या करने से बचाया तीसरी घटना तो अति विचित्र है। एक मुसलमान भाई ने आत्म हत्या करने का निर्णय कर लिया। उसने किसी को भी इसका पता नहीं लगने दिया। कैसे श्रीभाईजी को इसका पता लगा यह एक गूढ़ रहस्य ही रह गया। पता नहीं और ऐसी कितनी गुप्त घटनाएँ होगी इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इस घटना का पता तो तब लगा जब श्रीअन्सारी ने स्वयं इसका रहस्य खोला।श्रीराम जन्मभूमि-मन्दिर अयोध्या के विषयमें श्रीअन्सारी के विचार समाचार-पत्रमें पढ़कर भाईजी ने इन्हें मिलनेके लिये बुलाया था। उसी समयसे इनका परिचय भाईजी से बढ़ने ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 43
चित्र शास्त्रीय आधारपर "कल्याण" के जो भी चित्र प्रकाशित होते थे उनका आधार हिन्दू शास्त्रोंसे ही खोजा जाता था। बार ऐसे अवसर आते थे कि उपर्युक्त आधार खोजनेमें पर्याप्त समय लग जाता था पर जब तक शास्त्रीय आधार नहीं मिलता उसे प्रकाशित नहीं किया जाता था। ऐसे ही एक प्रसंगका वर्णन पं० मंगलजी उद्धवजी शास्त्रीके शब्दोंमें इस तरह हैसन् 1949-50 का समय था, जब श्रीभाईजीके प्रथम दर्शन मुझे हुए। गीतावाटिका मुझे तपौवन-सी प्रतीत हुई। श्रीभाईजीने स्नेहसे गले लगा लिया और मेरा हाथ पकड़कर चारपाईपर बैठा लिया। "कल्याण" के विशेषांक "हिंदू-संस्कृति-अंक" की पूर्व तैयारियाँ हो रही थी। टाइटलके ऊपरवाले चित्रमें ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 44
डूबते हुए मोटर बोटकी रक्षाकई बार ऐसी भीषण घटनाओंको इतने साधारण ढंगसे सम्भाल लेते थे कि देखने वाले आश्चर्यचकित जाते थे। ऐसी ही एक घटना दि० १३ जुलाई सन् १६५४ को स्वर्गाश्रममें देखनेको मिली। प्रातः लगभग १० बजे २०-२५ व्यक्ति स्वर्गाश्रम गीताभवनसे ऋषिकेश जानेके लिये मोटर बोटपर सवार हुए। साथमें स्त्री-बच्चे भी थे। विधिका विधान ! बोट जब गंगाजीकी बीच धारामें पहुँचा तो अचानक बोटका इंजन बन्द हो गया। बोट चालकने बहुत चेष्टा की कि किसी तरह इंजन चालू हो जाय पर उनके सभी प्रयास असफल हुए। बोट धारामें पड़कर तेजीसे भंवरकी तरफ चलने लगा। यात्रियोंकी मनः स्थितिका सहज ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 45
सरलता की मूर्तिबात सन् ५४ की है। स्वामी करपात्री जी महाराज के सान्निध्य में गोहत्या निरोध आन्दोलन कलकत्तामें चल था। समाचार मिला कि किसी कार्यवश पूज्य भाईजी हनुमानप्रसाद जी पोद्दार कलकत्ता आ रहे हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उनके आगमन का लाभ उठाना चाहा और उक्त अवसरपर एक प्राइवेट मीटिंग का आयोजन किया।दिनके ३ बजे मीटिंग प्रारम्भ होने वाली थी। पूज्य भाईजी के अलावा विशिष्ट कार्यकर्तागण आमन्त्रित थे। प्रायः सभी आ गये थे। पर भाईजी का कोई पता नहीं था। तीन बज चुके थे। सभी लोग भाईजी के इन्तजारमें थे। अन्तमें करीब ३ बजे एक सज्जन बोल उठे -- “भाईजी ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 46
राष्ट्रपति द्वारा गीताप्रेस के नये द्वार का उद्घाटनजयदयालजी गोयन्द का और पोद्दारजी बहुत दिनो से यह सोच रहे थे गीताप्रेस एवं 'कल्याण' के आदर्श तथा गौरव के अनुरूप ही उसके मुख्य द्वार का निर्माण हो। सं० 2012 में वे इस योजना को सफल कर सके। गीताद्वार के निर्माणमें देश की गौरवमयी स्थापत्य कला के मूल प्रतीक प्राचीन मन्दिरों से प्रेरणा ली गयी। प्रवेशद्वारमें सात प्रकार के प्रतीकों का समावेश किया गया।(१) उपनिषदों तथा गीता के वाक्य के रूपमें शब्द-प्रतीक।(२) वृषभ, सिंह तथा नाग के रूपमें जन्तु प्रतीक। (३) कमल के रूपमें पुष्प-प्रतीक। (४) स्वस्तिक के रूपमें चिन्ह प्रतीक। (५) ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 47
सुदूर तीर्थोंकी यात्रागीताप्रेस की तीर्थयात्रा स्पेशल ट्रेन श्रीसेठजी की संरक्षतामें सं० 1996 (सन् 1939) में गई। उस समय भाईजी भी साथ चलने के लिये आग्रह किया गया था, किन्तु उस समय भाईजीके मनमें एकान्तवास का ज्वार-सा आ रहा था और वे दादरी एकान्तवास के लिये चले गये। उसके पश्चात् प्रेमीजनोंका भाईजी से तीर्थयात्रामें चलने का आग्रह चलता ही रहा और भाईजी उसे टालटे रहे। बहुतसे लोग श्रीसेठजी से इसके लिये आग्रहपूर्वक प्रार्थना करते रहे, क्योंकि उनका विश्वास था कि श्रीसेठ जी की बात को भाईजी नहीं टालेंगे। बार-बार अनुरोध करनेपर भाईजी को विवश होकर स्वीकृति देनी पड़ी किन्तु स्वीकृति ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 48
श्रीगिरिराज की परिक्रमातीर्थ यात्रा के बाद भाई जी अस्वस्थ हो गये थे। स्वास्थ्य लाभ के लिये भाईजी मार्गशीर्ष कृष्ण सं० 2013 (22 नवम्बर, 1956) को गोरखपुर से रवाना होकर रतनगढ़ गये। वहाँ अधिक समय एकान्तमें कमरा बन्द किये रहते थे। वही से माघ शुक्ल 10 एवं 11 सं० 2014 (10-11 फरवरी 1957) को श्रीगिरिराज की परिक्रमा करने गये। साथमें परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त प्रेमीजन भी गये। दो दिनमें श्रीगिरिराज की परिक्रमा सानन्द उत्साह पूर्वक सम्पन्न हुई। वहाँ से श्रीराधाजीके दर्शन करने बरसाना भी गये। बैशाख कृष्ण 10 सं० 2015 (13 अप्रैल, 1958) को रतनगढ़ लौट आये।श्रीघनश्यामदासजी जालान का ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 49
श्रीकृष्ण जन्मस्थान, मथुरा के मन्दिर का उद्घाटन श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या की भाँति मथुरामे श्रीकृष्ण जन्मस्थान का गौरव भी लुप्तप्राय गया था। वहाँके प्राचीन मन्दिरको मुगल सम्राटो ने ध्वस्त कर दिया था महामना मालवीयजी की प्रेरणासे इसके पुनरुद्धार करने का कार्य श्रीजुगलकिशोर जी बिरलाने अपने हाथमें लिया था।लेकिन श्रीकृष्ण जन्मस्थानके लुप्त गौरव की पुनस्थापनाके लिये मन्दिर और भागवत भवनके निर्माणकी योजना बनाकर उसे कार्यान्वित कराने का श्रेय भाईजी को ही है। इसकी भूमिका बनी थी भाईजी के तीर्थयात्रा के समय। जब भाईजी मथुरा पधारे तो उनके स्वागत समारोहके समय एक सज्जनने कहा– मथुराने प्रतिवर्ष लाखों यात्री आते हैं। ऐसा कौन ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 50
श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णनवैसे तो भाईजी श्रीकृष्णकी बाल लीलाओं का वर्णन कई बार अपने प्रवचनोंमें करते थे कुछ भावुक जनोंका आग्रह था कि इन लीलाओं का विस्तृत वर्णन हो। यह आग्रह कई वर्षो तक चलता रहा पर ऐसे सुअवसर की प्रतीक्षा ही होती रही। अन्तत्वोगत्वा मार्गशीर्ष सं० 2016 (दिसम्बर 1959) से लगभग एक महीने तक नित्य प्रातः दो घण्टे भाईजी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का विस्तृत वर्णन करना स्वीकार किया । दूर-दूर स्थानों से भावुक - जन, जो इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, गोरखपुरमें एकत्रित हो गये। विभिन्न टीकाओं के आधारपर श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 51
भारत के गृहमन्त्री श्रीगोविन्दबल्लभ पंत को दिव्य अनुभूतिइस घटना के कुछ दिनों बाद गृहमन्त्री श्रीपंत को भाईजी के सम्बन्ध अलौकिक अनुभूति हुई। उन्होंने अपने स्वप्न तथा प्रत्यक्ष चमत्कार की बातें विस्तार से भाईजीको पत्रमें लिखी। उन्होंने लिखा आप इतने महान् एवं महामानव हैं कि भारतवर्ष को क्या सारी दुनिया को आप पर गर्व होना चाहिये। साथ ही अपने पत्र को जला देने का अनुरोध किया। भाईजी ने उनकी इच्छानुसार पत्र को जला दिया। उस पत्र का भाईजी ने उत्तर दिया वह प्रस्तुत किया जा रहा है–माननीय श्रीपन्तजी,सादर प्रणाम।आपका कृपा पत्र मिला। आप सकुशल दिल्ली पहुँच गये, यह आनन्द की ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 52
श्रीराधाष्टमी महोत्सव के उद्दाम नाम संकीर्तनमें सम्मिलित होने का अद्भुत चमत्कारयह घटना सं० 2018 (सन् 1961) की है। हमलोग 30-35 व्यक्ति कलकत्ते से राधाष्टमी महोत्सवमें सम्मिलित होने जा रहे था। हमारे साथ एक लड़का था जिसे रीढ़ की हड्डीमें बोन टी०बी० होने के कारण एक लोहे और चमड़ेका पट्टा हर समय पीठपर बाँधना पड़ता था। उसके हटानेपर बिना किसी सहारे के वह न बैठ सकता, न खड़ा हो सकता था। रास्तेमें काशीमें सब लोगोंने गंगाजीमें स्नान किया तो उसकी अत्यधिक इच्छा होने से दो व्यक्तियों ने सावधानी पूर्वक उसे पकड़कर गंगाजीमें स्नान करवाया। जिस दिन ये लोग गोरखपुर पहुॅचे, ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 53
पुरी और नवद्वीप की यात्राकुछ प्रेमीजनों की भाईजी के साथ पुरी एवं नवद्वीपकी यात्रा करनेकी हार्दिक अभिलाषा थी। कई ऐसा कार्यक्रम बना किन्तु किसी-न-किसी कारणवश स्थगित होता रहा। कलकत्तेके कुछ भावुकजन भी इसके लिये बराबर आग्रह करते थे। अन्तमें यह निश्चय हुआ कि फाल्गुन सं० 2018 (मार्च 1962) में श्रीमोहनलालजी गोयन्दकाकी पुत्रीके विवाहमें जब कलकत्ता जानेका कार्यक्रम बने, तब वहींसे नवद्वीप एवं पुरीकी यात्राकी जाय। फाल्गुन कृष्ण 14 सं० 2018 (5 मार्च, 1962) को भाईजीने अपने परिकरोंके साथ गोरख रात्रिमें बनारसके लिये प्रस्थान किया। अगले दिन वहाँसे वायुयान द्वारा कलकत्ता पहुँचे। कलकत्तेमें शहरसे दूर पानीहाटामें भाईजीके निवासकी व्यवस्था हुई। ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 54
समाज सुधारक - श्रीभाईजीसमयके प्रवाहके साथ ही हमारे समाजकी बहुत-सी प्रथाओंमें बुराइयाँ आ गई थी। भाईजीका ध्यान इस ओर ही था. बम्बई जीवनमें अग्रवाल महासभाके सक्रिय सदस्य रहकर उन्होंने प्रचलित बुराइयोंको हटानेका पूरा प्रयास किया। 'कल्याण यद्यपि पूर्ण तथा आध्यात्मिक पत्र था पर फिर भी समय-समयपर भाईजीने 'कल्याण' के माध्यमसे एवं सत्संगों में अपने प्रवचनों के माध्यमसे ऐसी कुप्रथाओंको रोकनेके लिये पूरी चेष्टा की। जिस दहेजकी प्रथाने आज हमारे समाजको त्रस्त कर रखा है उसको भाईजीने अपनी दूरदर्शी दृष्टिसे पचास साल पहले ही देखा था। कल्याण के जून 1955 अंकमें उन्होंने लिखा– “...दहेज लेना बहुता बड़ा पाप है। 'कल्याण' ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 55
गोरक्षा आन्दोलनभारतके स्वतंत्र होनेके बाद भी गोहत्या का कलंक न मिटनेसे भाईजी व्यथित थे। इसलिये जब कोई भी गोहत्या लिये आन्दोलन करता तो भाईजी उसमें पूर्ण सहयोग देते। किन्तु सभी लोगोंका सामूहिक प्रयास न होनेसे सरकारपर विशेष दबाव नहीं पड़ता था। आषाढ़ सं० २०२३ (सन् १९६६) में जब भाईजी स्वर्गाश्रममें थे. दिल्लीके प्रमुख कार्यकर्ता भाईजीके पास आये एवं गोरक्षा के लिये सभी का एक साथ प्रयास हो इसके लिये भाईजीको चेष्टा करनेकी प्रार्थना की सभी धर्माचार्यों सम्प्रदायों एवं राजनीतिक दलोंका एक मंचसे कार्य करनेके लिये राजी करना एक असाधारण कार्य था। उन्हीं दिनों श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी अपनी बद्रीनाथ यात्रा से ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 56
अमृत-कणपूज्य भाईजीकी लेखनीने अध्यात्मके प्रत्येक विषयपर विपुल सामग्री प्रदान की है। प्रकाशित पुस्तकोंकी सूची ऊपर दे दी गई है। केवल कुछ विषयोंपर उनकी लेखनीसे निसृत कण दिये जा रहे हैं।(१) भक्तियोग -- चित्तवृत्तिका निरन्तर अविच्छिन्न रूपसे अपने इष्ट स्वरूप श्रीभगवान्में लगे रहना अथवा भगवान्में परम अनुराग या निष्काम अनन्य प्रेम हो जाना ही भक्ति है। भक्तिके अनेक साधन हैं, अनेकों स्तर हैं और अनेकों विभाग हैं। ऋषियोंने बड़ी सुन्दरताके साथ भक्तिकी व्याख्या की है। वस्तुतः भगवान् जैसे भक्तिके वशमें होते हैं, वैसे और किसी साधनसे नहीं होते ....... भगवान् श्रीकृष्णके लिये अनुकूलतायुक्त अनुशीलन होता है उसीका नाम भक्ति है। ...और पढ़े
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 57
भगवन्नाम जपमें लगाने की एक और अनोखी योजनाभगवान् से भाईजी को स्पष्ट आदेश मिला था कि जगत्का भला करना हो तो भगवन्नाम का प्रचार करो। इसका पूरा विवरण पिछले पृष्ठोंमें आ चुका है। इसके पश्चात् भाईजी ने भगवन्नाम प्रचार के लिये कितनी तरह की योजनाएँ बनाई। इसका भी कुछ विवरण दिया जा चुका है। भाईजी की अडिग आस्था थी कि भगवान् का नाम उनका अभिन्न स्वरूप तो है ही साथ ही भगवान् की ही शक्ति से वह भगवान्से भी अधिक शक्तिशाली और ऐश्वर्यवान् है। ऐसे अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने भगवन्नाम की महिमा को हृदय से स्वीकार किया है ...और पढ़े