रतनगढ़में जल-समस्या का हल भाईजी ने रतनगढ़ की जल समस्याके समाधान हेतु प्रस्तावित वाटर–वर्क्स के निर्माणमें आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिये तत्कालीन बीकानेर महाराजा के हाथों से उसका उद्घाटन करवाया, उसकी पूर्व पृष्ठभूमि यह है :--
रतनगढ़में पानी के नल न होने से वहाँ के निवासी कष्ट का अनुभव करते थे। श्रीदुर्गादत्त जी थरड़ का कुआँ भी था, जमीन भी थी एवं वे अपने व्यय से पानी की टंकी बनाकर जल-संकट को दूर भी करना चाहते थे, पर कुऍ के पास इनकी जो खाली जमीन थी जहाँ ये टंकी बनवाना चाहते थे, वह जमीन मुसलमान अपने ताजिये आदि रखने और अन्य कामों में उपयोग थे। उस जमीनमें जल-व्यवस्था का कार्य हो जाने से मुसलमानों के और अन्य पड़ोसियों के स्वार्थमें ठेस लगती। अतः उनके विरोध के कारण यह सफल नहीं हो रही थी। सरकारी अधिकारियों से मिलकर भी वे सफल नहीं हो पाये। भाईजी से उन्होंने सारी बातें बतलाई कि एक सार्वजनिक कार्य कुछ स्वार्थी लोगों के कारण सफल नहीं हो रहा है। भाईजी ने इसके बीचमें पड़ना स्वीकार नहीं किया क्योंकि व्यर्थमें दंगा होने का भय था एवं जब सरकारी अधिकारी भी इसमें सहयोग नहीं दे रहे थे तो सफलता कठिन थी। इससे दुर्गादत्त जी और हताश हो गये। पर जैसे तुलसीदास जी ने रामचन्द्रजी से प्रार्थना जानकी जी के माध्यमसे कहलायी--'कबहुँक अवसर पाई' वैसे भाईजी के जीवनमें भी कई बार उनसे किसी बात को स्वीकार कराने के लिये लोग मैया (भाईजी की धर्मपत्नी) की शरण लेते थे। इसी तरह दुर्गादत्तजी ने मौका देखकर मैया से कहा कि कुआँ अपना, जमीन अपनी, पैसा अपना और सभी को पानी का आराम हो जाय, ऐसी व्यवस्था नहीं हो पा रही है। भाईजी से भी कहा पर उन्होंने स्वीकार नहीं किया। आप इसमें मौका देखकर भाईजी से कहें तो शायद काम हो जाय। मैया ने कहा– इसमै तो सारे नगर को पानी का आराम हो जायगा, चलिये अभी उनसे कहती हूँ। दोनों भाईजी के पास आये और मैया ने कहा--आप इनका यह काम क्यों नहीं करवा देते ? भाईजी ने उत्तर दिया--कोई मेरे घर का काम है क्या ? इसमें मुसलमानों के साथ दंगा होने का डर है। मैया ने उत्साह दिलाया कि-- "आपकी योग्यता और जान-पहचान कब काम आयेगी ? सारे नगर को पानी का आराम हो जायगा।" भाईजी ने कहा-- "सोचूँगा।" थोड़ा सोचकर दुर्गादत्तजी से कहा कि एक तरीका तो सूझा है, काम तो आपका हो जायगा पर उसमें नाम थरड़ों का नहीं रहेगा। दुर्गादत्तजी को यह बात स्वीकार थी। भाई
भाईजी को बीकानेर की तत्कालीन महारानी जी अपना धर्म-भाई मानती थीं एवं श्रद्धा रखती थीं। रक्षा-बन्धनपर राखी भी भेजती थीं। भाईजी ने उनको पत्र लिखा कि हमारे एक स्वजन रतनगढ़में वाटर-वर्क्स बनवाना चाहते हैं, जिससे सारे नगर को पानी की सुविधा हो जाय। इस वाटर-वर्क्स का नामकरण श्री बीकानेर महाराज के नामपर होगा 'श्रीशार्दूल-फ्री-सप्लाई वाटर-वर्क्स।' यहाँ के कुछ लोग अड़चन डाल रहे हैं। महाराजाधिराज बीकानेर-नरेश को प्रार्थना पत्र लिखा जा रहा है। आप व्यक्तिगत रूपसे अनुरोध कर दें कि वे इसके लिये राजाज्ञा प्रदान कर दें।
बीकानेर-महाराज को प्रार्थना-पत्र लिखा गया। जब श्रावण 10 / 2001 (30 जुलाई, 1944) को भाईजी स्वामी शरणानन्दजी के बीकानेर गये तो बीकानेर महाराज एवं महारानी से मिले और इस विषयमें बातचीत की भाईजी की सूझ सही निकली। वाटर-वर्क्स निर्माण के लिये राजाज्ञा हो गयी एवं उद्घाटन के लिये महाराजाधिराज ने पधारना स्वीकार कर लिया। जब मुसलमानों को पता लगा तो एक बार दौड़-धूप की पर राजाज्ञा के सामने कुछ वश नहीं चला एवं 'श्रीशार्दुल-फ्री-सप्लाई वाटर वर्क्स' का निर्माण हो गया और साथ ही रतनगढ़ की सारी जनता का जल संकट दूर हो गया।