हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 40 Shrishti Kelkar द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 40

श्रीराम जन्मभूमि के उद्धार के लिये अयोध्या यात्रा

कहते हैं श्रीराम जन्मभूमि पर जो भव्य मन्दिर महाराज विक्रमादित्य ने बनवाया था, उसे बाबर ने ध्वस्त करा दिया। तब से उस पवित्र स्थान के लिये अनेक हिन्दू-मुस्लिम उपद्रव हुए किन्तु आर्य-जाति किसी-न-किसी तरह अपना अधिकार जमाये रही। पौष सं० 2006 (दिसम्बर, 1949) में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि-मन्दिरमें स्थापित मूर्तिसे एक ऐसी चमात्कारिक किरण छिटकी जिसकी प्रभा से सभी भक्त आनन्द विभोर हो गये। यह शुभ समाचार विद्युत प्रवाह की भाँति चारों ओर फैल गया। मामला कोर्टमें गया। श्रीवीरसिंह जी, सिविल जज, फैजाबाद ने सरकार को आदेशात्मक सूचना दी– जबतक वाद का अन्तिम निर्णय न हो जाय, तबतक जहाँपर मूर्ति विराजमान है, वहीं पर वह सुरक्षित रहे और विधिवत् उसकी पूजा-सेवादि होती रहे।

इस चमत्कारिक घटना की सूचना भाईजी को भी प्राप्त हुई। उनसे इस कार्य में सहायता देने की प्रार्थना की गयी। भाईजी इस संवाद से बड़े प्रसन्न हुए। वे पौष शुक्ल सं० 2006 (दिसम्बर, 1949) में स्वयं अयोध्या गये और अपने प्रवचनों एवं उपदेशों द्वारा उन्होंने सरकार की गतिविधियों से निराश जनता एवं कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित और आशान्वित किया। उस अवसरपर वहाँ लगभग पंद्रह सौ रुपये मासिक व्यय की आवश्यकता थी। इस समस्त व्यय का भार भाईजी ने सानन्द उठा लिया। इस महान कार्य के लिये भाईजी ने देश के धनपतियों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया, जिससे इस कार्य के लिये अर्थ की व्यवस्था होने में बड़ी सुविधा हुई। मासिक व्यय के अतिरिक्त अभियोगसम्बन्धी व्यय आदि के लिये कभी-कभी विशेष आवश्यकता पड़ जाती थी, उसके लिये गीतावाटिका का द्वार प्रबन्धकोंके लिये सर्वदा खुला था। इतना ही नहीं भाईजी ने इस वाद के सम्बन्धमें ऐसे शिक्षित तथा इस्लाम–धर्मके ज्ञाता मुसलमानोंकी खोज की, जो तर्कतः श्रीरामजन्मभूमिको मुस्लिम पूजा-गृह मानना इस्लाम धर्मके विरुद्ध सिद्ध करते थे। जन्मभूमिके पक्षमें वातावरण निर्माणके लिये उन मुस्लिम भाइयों में से दो-एक को अयोध्या भी भेजा। इसके अतिरिक्त भाईजी ने देश के प्रधान राज्याधिकारियों नेताओं एवं विद्वानों को बार-बार पत्र लिखकर इस पुनीत कार्यमें सहयोग देने की प्रेरणा दी। इस तरह भाईजी ने इस कार्य में अपूर्व सेवाएँ की थीं।
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श्रीराम जन्मभूमि के उद्धार के लिये अयोध्या यात्रा

कहते हैं श्रीराम जन्मभूमि पर जो भव्य मन्दिर महाराज विक्रमादित्य ने बनवाया था, उसे बाबर ने ध्वस्त करा दिया। तब से उस पवित्र स्थान के लिये अनेक हिन्दू-मुस्लिम उपद्रव हुए किन्तु आर्य-जाति किसी-न-किसी तरह अपना अधिकार जमाये रही। पौष सं० 2006 (दिसम्बर, 1949) में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि-मन्दिरमें स्थापित मूर्तिसे एक ऐसी चमात्कारिक किरण छिटकी जिसकी प्रभा से सभी भक्त आनन्द विभोर हो गये। यह शुभ समाचार विद्युत प्रवाह की भाँति चारों ओर फैल गया। मामला कोर्टमें गया। श्रीवीरसिंह जी, सिविल जज, फैजाबाद ने सरकार को आदेशात्मक सूचना दी– जबतक वाद का अन्तिम निर्णय न हो जाय, तबतक जहाँपर मूर्ति विराजमान है, वहीं पर वह सुरक्षित रहे और विधिवत् उसकी पूजा-सेवादि होती रहे।

इस चमत्कारिक घटना की सूचना भाईजी को भी प्राप्त हुई। उनसे इस कार्य में सहायता देने की प्रार्थना की गयी। भाईजी इस संवाद से बड़े प्रसन्न हुए। वे पौष शुक्ल सं० 2006 (दिसम्बर, 1949) में स्वयं अयोध्या गये और अपने प्रवचनों एवं उपदेशों द्वारा उन्होंने सरकार की गतिविधियों से निराश जनता एवं कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित और आशान्वित किया। उस अवसरपर वहाँ लगभग पंद्रह सौ रुपये मासिक व्यय की आवश्यकता थी। इस समस्त व्यय का भार भाईजी ने सानन्द उठा लिया। इस महान कार्य के लिये भाईजी ने देश के धनपतियों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया, जिससे इस कार्य के लिये अर्थ की व्यवस्था होने में बड़ी सुविधा हुई। मासिक व्यय के अतिरिक्त अभियोगसम्बन्धी व्यय आदि के लिये कभी-कभी विशेष आवश्यकता पड़ जाती थी, उसके लिये गीतावाटिका का द्वार प्रबन्धकोंके लिये सर्वदा खुला था। इतना ही नहीं भाईजी ने इस वाद के सम्बन्धमें ऐसे शिक्षित तथा इस्लाम–धर्मके ज्ञाता मुसलमानोंकी खोज की, जो तर्कतः श्रीरामजन्मभूमिको मुस्लिम पूजा-गृह मानना इस्लाम धर्मके विरुद्ध सिद्ध करते थे। जन्मभूमिके पक्षमें वातावरण निर्माणके लिये उन मुस्लिम भाइयों में से दो-एक को अयोध्या भी भेजा। इसके अतिरिक्त भाईजी ने देश के प्रधान राज्याधिकारियों नेताओं एवं विद्वानों को बार-बार पत्र लिखकर इस पुनीत कार्यमें सहयोग देने की प्रेरणा दी। इस तरह भाईजी ने इस कार्य में अपूर्व सेवाएँ की थीं।