हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 39 Shrishti Kelkar द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 39

आसाम यात्रामें एक चमत्कार
कार्तिक ० कृष्ण पक्ष संवत् 2003 (अक्टूबर, 1946) में भाईजी गोरखपुर से आसाम यात्रापर गये। वहाँ एक बार गोलाघाट से तिनसुकिया बस द्वारा जा रहे थे। रात्रिका समय था। एक स्थानपर सँकरे रास्तेसे बस जा रही थी, उसी समय एक यात्री जोरसे चिल्लाया– पानी-पानी। जोरसे अचानक चिल्लाने से ड्राइवर का हाथ कॉप गया और स्टियरिंग हिल गया। बस ढालपर थी, बसका पहिया स्लिप कर गया और बस खाई की ओर जाने लगी। उस समय ईश्वर के अतिरिक्त और कोई सहायक नहीं था। भाईजी ने हाथ ऊपर उठाकर 'नारायण-नारायण', 'नारायण-नारायण' का उच्च स्वर से घोष किया। नारायण नामकी टेर लगाने भर की देर थी कि बस एक स्थानपर ठहर गयी। पेड़के एक तने से टकराकर, उससे अटककर रुक गयी। बस कुछ क्षतिग्रस्त हुई एवं ड्राइवर और कुछ लोगों को हल्की-सी चोट आयी पर भाई जी और अधिकांश लोग साफ-साफ बच गये। भाईजी सकुशल गोरखपुर लौट आये।

हिन्दू महासभा का गोरखपुरमें अधिवेशन देश विभाजनके समय हिन्दू जातिपर जो अमानवीय अत्याचार उस समस्या के समाधानपर विचारार्थ हिन्दू महासभाका एक अधिवेशन पौष शुक्ल 1 और 2 सं० 2003 (24/25 दिसम्बर, 1946) को गोरखपुर हुआ। लगभग छः सात हजार प्रतिनिधियोंने इसमें भाग लिया। सभी के भोजनादिका प्रबन्ध भाईजी के नेतृत्वमें हुआ। दो दिन भाईजी इसीमें पूरे व्यस्त रहे एवं दोनों दिन मंचपर भाईजी ने बड़े ओजस्वी भाषण दिये। नोआखाली काण्ड के लिये हिन्दूओं को संगठित होकर कार्य करने की सलाह दी। अधिवेशन पूर्ण सफलता के साथ समाप्त हुआ। माघ कृष्ण 7 सं० 2003 (13 जनवरी, 1947) को श्रीविष्णुमन्दिरमें हिन्दू राष्ट्र सेवा-संघ के संकीर्तनके प्रेम सम्मेलनमें भाईजी गये एवं सबसे हृदय-से-हृदय लगाकर प्रेमसे मिले। प्रेमी मित्रोंने इस दिन अपने मनकी उमंगे पूर्ण की।

प्रयागकी अर्ध-कुम्भीपर अखण्ड-संकीर्तन

माघ कृष्ण 9 से माघ शुक्ल 9 सं० 2004 (3 फरवरी से 19 फरवरी, 1948) तक गीताप्रेस की ओर से प्रयाग की अर्धकुंभी के अवसरपर अखण्ड-संकीर्तन एवं सत्संग प्रवचन का आयोजन किया गया। भाईजी इसमें सम्मिलित होने के लिये गोरखपुर से गये। इस समय प्रयागमें दूर-दूर से लोग एकत्रित होते हैं, इसी दृष्टिसे भगवन्नाम प्रचारके लिये यह आयोजन किया गया था। संतों के प्रवचन एवं अखण्ड-संकीर्तन से बहुत लोगोंने लाभ उठाया।

श्रीसनकादि मुनियोंके दर्शन

एक महानुभाव जिनका जीवन भजन-प्रधान था एवं भाईजी के अन्तरंग प्रेमीजनोंमें थे, एक बार बतलाया कि– एक दिन वे भाईजी से मिलने गये। कमरा बंद था, इसलिये बाहर ही बैठ गये। उनको ऐसा लगा कि भाईजी के कमरेमें दो-चार आदमी बैठे हुए हैं। भाईजी से कुछ परामर्श चल रहा है। अचानक सन्नाटा छा गया और थोड़ी देरमें कमरे का दरवाजा खुला। भाईजी अभी भावावेशमें प्रतीत होते थे। उन महानुभाव ने पूछ ही लिया– 'भाईजी किससे बातें हो रही थी?' उत्तर मिला– 'वे ही, सनकादि थे।' दोनों चुप हो गये। भाईजी अभी पूर्णतः प्रकृतिस्थ नहीं हुए थे। वे महानुभाव आश्चर्यचकित थे। कुछ देर बाद प्रकृतिस्थ होनेपर उन्होंने भाईजी से पूछा– 'क्या बातें हो रही थी?' भाईजीने इस बातको पूर्णतः गुप्त रखने का आदेश दिया।

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आसाम यात्रामें एक चमत्कार
कार्तिक ० कृष्ण पक्ष संवत् 2003 (अक्टूबर, 1946) में भाईजी गोरखपुर से आसाम यात्रापर गये। वहाँ एक बार गोलाघाट से तिनसुकिया बस द्वारा जा रहे थे। रात्रिका समय था। एक स्थानपर सँकरे रास्तेसे बस जा रही थी, उसी समय एक यात्री जोरसे चिल्लाया– पानी-पानी। जोरसे अचानक चिल्लाने से ड्राइवर का हाथ कॉप गया और स्टियरिंग हिल गया। बस ढालपर थी, बसका पहिया स्लिप कर गया और बस खाई की ओर जाने लगी। उस समय ईश्वर के अतिरिक्त और कोई सहायक नहीं था। भाईजी ने हाथ ऊपर उठाकर 'नारायण-नारायण', 'नारायण-नारायण' का उच्च स्वर से घोष किया। नारायण नामकी टेर लगाने भर की देर थी कि बस एक स्थानपर ठहर गयी। पेड़के एक तने से टकराकर, उससे अटककर रुक गयी। बस कुछ क्षतिग्रस्त हुई एवं ड्राइवर और कुछ लोगों को हल्की-सी चोट आयी पर भाई जी और अधिकांश लोग साफ-साफ बच गये। भाईजी सकुशल गोरखपुर लौट आये।

हिन्दू महासभा का गोरखपुरमें अधिवेशन देश विभाजनके समय हिन्दू जातिपर जो अमानवीय अत्याचार उस समस्या के समाधानपर विचारार्थ हिन्दू महासभाका एक अधिवेशन पौष शुक्ल 1 और 2 सं० 2003 (24/25 दिसम्बर, 1946) को गोरखपुर हुआ। लगभग छः सात हजार प्रतिनिधियोंने इसमें भाग लिया। सभी के भोजनादिका प्रबन्ध भाईजी के नेतृत्वमें हुआ। दो दिन भाईजी इसीमें पूरे व्यस्त रहे एवं दोनों दिन मंचपर भाईजी ने बड़े ओजस्वी भाषण दिये। नोआखाली काण्ड के लिये हिन्दूओं को संगठित होकर कार्य करने की सलाह दी। अधिवेशन पूर्ण सफलता के साथ समाप्त हुआ। माघ कृष्ण 7 सं० 2003 (13 जनवरी, 1947) को श्रीविष्णुमन्दिरमें हिन्दू राष्ट्र सेवा-संघ के संकीर्तनके प्रेम सम्मेलनमें भाईजी गये एवं सबसे हृदय-से-हृदय लगाकर प्रेमसे मिले। प्रेमी मित्रोंने इस दिन अपने मनकी उमंगे पूर्ण की।

प्रयागकी अर्ध-कुम्भीपर अखण्ड-संकीर्तन
माघ कृष्ण 9 से माघ शुक्ल 9 सं० 2004 (3 फरवरी से 19 फरवरी, 1948) तक गीताप्रेस की ओर से प्रयाग की अर्धकुंभी के अवसरपर अखण्ड-संकीर्तन एवं सत्संग प्रवचन का आयोजन किया गया। भाईजी इसमें सम्मिलित होने के लिये गोरखपुर से गये। इस समय प्रयागमें दूर-दूर से लोग एकत्रित होते हैं, इसी दृष्टिसे भगवन्नाम प्रचारके लिये यह आयोजन किया गया था। संतों के प्रवचन एवं अखण्ड-संकीर्तन से बहुत लोगोंने लाभ उठाया।

श्रीसनकादि मुनियोंके दर्शन
एक महानुभाव जिनका जीवन भजन-प्रधान था एवं भाईजी के अन्तरंग प्रेमीजनोंमें थे, एक बार बतलाया कि– एक दिन वे भाईजी से मिलने गये। कमरा बंद था, इसलिये बाहर ही बैठ गये। उनको ऐसा लगा कि भाईजी के कमरेमें दो-चार आदमी बैठे हुए हैं। भाईजी से कुछ परामर्श चल रहा है। अचानक सन्नाटा छा गया और थोड़ी देरमें कमरे का दरवाजा खुला। भाईजी अभी भावावेशमें प्रतीत होते थे। उन महानुभाव ने पूछ ही लिया– 'भाईजी किससे बातें हो रही थी?' उत्तर मिला– 'वे ही, सनकादि थे।' दोनों चुप हो गये। भाईजी अभी पूर्णतः प्रकृतिस्थ नहीं हुए थे। वे महानुभाव आश्चर्यचकित थे। कुछ देर बाद प्रकृतिस्थ होनेपर उन्होंने भाईजी से पूछा– 'क्या बातें हो रही थी?' भाईजीने इस बातको पूर्णतः गुप्त रखने का आदेश दिया।