हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 33 Shrishti Kelkar द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 33

अजमेर में उपचार

बैसाख कृष्ण 11 सं० 2000 को भाईजी अपने मित्र श्रीजयदयाल जी डालमिया के बड़े लड़के विष्णुहरि के विवाहमें सम्मिलित होने दिल्ली गये। वहाँ से स्वर्गाश्रम सत्संग के लिये चले गये। फिर श्रीपरमेश्वर जी फोगला के अस्वस्थता के कारण स्वर्गाश्रमसे बम्बई गये। वहाँ कई बार सत्संग भवनमें सत्संग कराते थे। रतनगढ़ लौटनेपर भाईजी बीमार हो गये। कई रोगों के साथ ही बवासीर की एक नई बीमारी पैदा हो गयी। जन्माष्टमीके अगले दिन उपचार के लिए दिल्ली रवाना हुए पर वहाँ सुधार के स्थानपर मलेरिया बुखार तथा भयंकर सिर दर्द के कारण स्थिति अधिक बिगड़ गयी। ऐसा प्रतीत होने लगा कि शरीर भी रहेगा या नहीं। अतः सभी स्वजनों को तार देकर दिल्ली बुला लिया। दिल्लीमें विशेष लाभ न देखकर आश्विन शुक्ल 11 सं० 2000 (10 अक्टूबर 1943) को अजमेर गये। वहाँ से पुष्कर दर्शनार्थ गये। अजमेरमें डा० अम्बालाल की चिकित्सा से एक बार आराम हो गया। वहाँ से कौंकरौली, नाथद्वारा, उदयपुर की यात्रा करते हुए कार्तिक शुक्ल 12 सं० 2000 (6 नवम्बर, 1943) को रतनगढ़ लौट आये। पुनः कष्ट बढ़ जाने से मार्गशीर्ष शुक्ल 10 सं० 2000 (6 दिसम्बर, 1943) को रतनगढ़से रवाना होकर बीकानेर होते हुए अजमेर गये। वहाँ गुदामें फोड़े का आपरेशन हुआ। वहाँ श्रीप्यारेलाल जी डागा, बाबा रामसनेही जी एवं डा० अम्बालाल ने बहुत प्रेम पूर्वक तत्परता से सेवा की बादमें ऐसा भी पता लगा कि यह रोग भाईजी ने किसी अन्यका अपने शरीरपर ले लिया था। वहाँ से लिखे एक पत्रमें भाईजी ने उस समयका हाल लिखा था

।। श्रीहरिः ।।
मार्गशीर्ष शु० 14 सं० 2000 (10 दिसम्बर, 1943) अजमेर
प्रिय भैया........
सप्रेम हरिस्मरण।

शरीर का हाल पूछा सो शरीर का हाल वैसे ही है, घाव की हालत डाक्टर अच्छी बताते हैं। ऑपरेशन के बाद कल कैस्टर आयल से पट्टी लगायी गयी थी इससे तकलीफ रही। दर्द कुछ ज्यादा रहा। बेचैनी भी रही। आज कल से ठीक है। तुम्हारा पत्र पढ़कर गदगद हो गया। भैया सच है तुम सब मेरे ही हो। मेरे चित्तमें कोई अशान्ति नहीं है। पद-पदपर भगवान् की कृपा का अनुभव होता है। यद्यपि इस बार की बीमारी बहुत ही पीडा जनक रही............. परन्तु इसमें भी समय-समयपर भगवान् की मंगलमयी कृपा की झाँकी तो होती ही रही है। यह जगत् भगवान्‌ का नाट्य मंच है, सभी रसोंके अभिनय की आवश्यकता है। परन्तु प्रत्येक अभिनय के अन्तरालमें वही है। असलमें तो खेल और खिलाड़ी, दोनों ही उसी के मंगलमय स्वरूप हैं.....….......।
तुम्हारा - हनुमान

माघ शु० 5 सं० 2000 (30 जनवरी 1944) को भाईजी अजमेरसे रतनगढ़ लौटे। कुछ दिन तो बवासीर का कष्ट रहा फिर स्वतः ही ठीक हो गया।

रतनगढमें भाईजी ने एक चक्षुदान यज्ञ का आयोजन किया और भिवानी के प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक को बुलाकर एक विशाल कैम्प लगवाया, जिसमें हजारों की संख्या में ग्रामीण जनता ने आपरेशन का लाभ उठाया और लोग आँखों की ज्योति प्राप्त करके लौटे।

चैत्र शु० 1 सं० 2001 (25 मार्च 1944) से भाईजी के निवास स्थानपर सोलह ब्राह्मणोंद्वारा श्रीमद्भागवत के 108 पाठ का अनुष्ठान प्रारम्भ हुआ और उसके पश्चात् सात दिनों का अखण्ड-संकीर्तन आयोजित हुआ।

स्वामी श्रीशरणानन्द जी रतनगढ़ में
श्रावण सं० 2001 (जुलाई 1944) में भाईजी के निवास स्थानपर शिवमहिम्न स्तोत्रका अखण्ड-पाठ कई दिनों तक हुआ। श्रावण शु० 2 सं० 2001 (22 जुलाई, 1944) को स्वामी शरणानन्द जी महाराज रतनगढ़ पधारे और भाईजी के पास ही कई दिनोंतक रहे। फिर उनके साथ भाईजी बीकानेर गये और वहाँ बीकानेर के महाराजा से रतनगढ़में जनता के लिये पानी के नल का उद्घाटन उनके हाथ से कराने के लिये मिले। भाईजी की प्रार्थनापर उन्होंने उद्घाटन करना स्वीकार कर लिया। मार्गशीर्ष 5 सं० 2001 (5 नवम्बर, 1944) को काशीमें श्रीकरपात्रीजी ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था, उसमें भाईजी सम्मिलित होने गये। वहाँ 'हिन्दू कोड बिल' के विरोधमें भाईजी ने प्रभावशाली भाषण दिया। वहाँ से गोरखपुरमें गोविन्द-भवन ट्रस्ट की मीटिंग में सम्मिलित होकर रतनगढ़ लौट आये। पौष शु० 2 सं० 2001 से माघ कृष्ण 5 (17 दिसम्बर, 1944 से 3 जनवरी, 1945) तक रतनगढ़में विश्व-कल्याण के लिये 108 रामचरितमानसके सामूहिक पारायण एवं अठारह दिन भागवत के अखण्ड पाठ का अनुष्ठान कराया। पुनः प्रथम चैत्र शु० 9 सं० 2001 से द्वितीय चैत्र शु० 1 सं० 2002 (22 मार्च, 1945 से 13 अप्रैल, 1945) तक पूरे पुरुषोत्तम मासमें बड़े उत्साहसे अखण्ड-संकीर्तन एवं भागवतके अखण्ड पाठका आयोजन किया। इन्हीं दिनों भाईजीको बीकानेरकी लेजिस्लेटिव-एसेम्बलीका सदस्य चुना गया जो उस समय एक प्रतिष्ठित पद समझा जाता था किन्तु भाईजीने तत्काल त्याग-पत्र लिखकर भेज दिया।