लागा चुनरी में दाग

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शहर का सबसे बड़ा वृद्धाश्रम जिसका नाम कुटुम्ब है,जहाँ बहुत से वृद्धजन रहते हैं,उनमें महिलाएंँ और पुरुष दोनों ही शामिल हैं,सभी हँसी खुशी उस आश्रम में रहते हैं,किसी वृद्ध महिला को उसकी बहू ने घर से निकाल दिया है तो किसी के पास अपने बुजुर्ग पिता के लिए समय नहीं है,इसलिए उसने इस वृद्धाश्रम में अपने पिता को रख रखा है,किसी के बच्चे विदेश जाकर बस गए हैं तो कोई निःसंतान है,उस आश्रम में रहने के सबके अपने अपने कारण हैं,वो आश्रम सालों पहले प्रत्यन्चा माँ ने खोला था.... अब प्रत्यन्चा माँ लगभग पचासी वर्ष की हो चुकीं हैं,वे काफी दिनों से बीमार चल रही थी,अब उन्हें आस नहीं है कि वे और ज्यादा जी पाऐगी,इसलिए उन्होंने अपने गोद लिए बेटे को अपने पास बुलाकर लरझती आवाज़ में कहा.... "नकुल बेटा! लगता है भगवान का बुलावा आ गया है,तुम धनुष बाबू को फोन करके बुलवा लो,आखिरी बार उनके दर्शन हो जाते तो अच्छा रहता,मरते वक्त कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं रहनी चाहिए",

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लागा चुनरी में दाग--भाग(१)

शहर का सबसे बड़ा वृद्धाश्रम जिसका नाम कुटुम्ब है,जहाँ बहुत से वृद्धजन रहते हैं,उनमें महिलाएंँ और पुरुष दोनों ही हैं,सभी हँसी खुशी उस आश्रम में रहते हैं,किसी वृद्ध महिला को उसकी बहू ने घर से निकाल दिया है तो किसी के पास अपने बुजुर्ग पिता के लिए समय नहीं है,इसलिए उसने इस वृद्धाश्रम में अपने पिता को रख रखा है,किसी के बच्चे विदेश जाकर बस गए हैं तो कोई निःसंतान है,उस आश्रम में रहने के सबके अपने अपने कारण हैं,वो आश्रम सालों पहले प्रत्यन्चा माँ ने खोला था.... अब प्रत्यन्चा माँ लगभग पचासी वर्ष की हो चुकीं हैं,वे काफी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(२)

ये सन् १९५९ की बात है,बाँम्बे जो अब मुम्बई कहा जाता है,वहाँ समुद्री रास्तों के जरिए तस्करी बहुत बढ़ थी,पुलिस के चौकन्ने रहते हुए भी लाखों करोड़ो का माल मुम्बई में आ जाता था,पुलिस महकमें की तो जैसे जान पर बन आई थी,आए दिन सोने के बिस्किट,हीरे,नशीले पदार्थ वगैरह आ जा रहे थे और वहाँ का सबसे कुख्यात तस्कर था पप्पू गोम्स,उसके माता पिता बँटवारे के समय पेशावर से भारत आकर यहीं बस गए थे,बँटवारे के समय उसका परिवार भूखा मर रहा था इसलिए उसने अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए छोटी मोटी चोरियाँ शुरु कर ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(३)

प्रमोद मेहरा जी को खामोश देखकर उस लड़की के पिता बोले..... "बेटी! इनकी बात सही है,पहले ये आए थे के पास" "तो क्या हुआ,लेकिन हम लोग जाऐगें इस ताँगे पर",लड़की बोली... "बेटी! जिद़ नहीं करते ,ये बाबू साहब परदेशी मालूम पड़ते हैं,पहले इन्हें जाने दो",लड़की के पिता बोले... "नहीं! कोई बात नहीं! अगर आपकी बच्ची इसी ताँगे से जाना चाहती तो आप लोग ही पहले चले जाइए",प्रमोद मेहरा जी बोले... "वैसे आपको कहाँ जाना है"?,लड़की के पिता ने पूछा... "जी! सिंगला गाँव जाना था",प्रमोद मेहरा जी बोले... "अरे! हम लोग भी वहीं जा रहे हैं,तो फिर दिक्कत वाली कोई ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(४)

उधर नहर पर प्रमोद मेहरा जी ने पहले नहरे के किनारे लगे खेतों के नजारे देखें,फिर नीम के पेड़ दातून तोड़कर उन्होंने अपने दाँत साफ किए,इसके बाद वे अपने सूखे हुए कपड़े एक टीले पर रखकर नहर में नहाने के लिए उतर पड़े ,वहाँ पर दो तीन ही सीढ़ियाँ थी,जो ऐसे ही दो चार पत्थरों को रखकर बना दी गईं थीं और उन पर लगातार पानी की हिलोरें आने से काई भी लग चुकी थीं,काई लगने से वे सीढ़ियाँ काफी फिसलन भरी हो चुकीं थीं और उस पर सबसे बड़ी बिडम्बना थी कि प्रमोद मेहरा जी को तैरना नहीं ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग-भाग(५)

प्रमोद जी के हँसने पर प्रत्यन्चा ने पूछा.... "अब इसमें इतना हँसने की क्या बात है?" "वो तो मैं नादानी पर हँस रहा था",प्रमोद मेहरा जी बोले... "क्यों भला? क्या मैं इतनी नादान हूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा... "हाँ! तुम सच में बहुत नादान हो",प्रमोद मेहरा जी बोले.... "तो ऐसा मैं क्या करूँ कि नादान ना दिखूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा... "तुम जैसी हो वैसी ही रहो,तुम्हें बदलने की जरूरत नहीं है",प्रमोद मेहरा जी बोले... और फिर वे प्रत्यन्चा से ऐसे ही बातें करते रहे,दिनभर ऐसे ही बीत गया और रात के खाने के बाद वे अपने दोस्त सुभाष और प्रत्यन्चा के पिता ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(६)

अभी सुबोध को घर आए दो चार दिन ही हुए थे और दीवाली आने में भी दो चार दिन थे और तभी प्रमोद मेहरा जी को पता चला कि तस्कर पप्पू गोम्स जेल से सुरंग के जरिए भाग गया है,पप्पू गोम्स के जेल से भागने पर पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया और पुलिस के बड़े अफ्सर ने प्रमोद जी को सावधान रहने को कहा,क्योंकि उन्होंने ही उसे जेल भेजा था और वे अब उसके बहुत बड़े दुश्मन बन चुके हैं,तब प्रमोद जी उनसे बोले कि... "सर! मैं अगर ऐसे डरने लगूँगा तो कभी भी पुलिस की नौकरी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(७)

इधर प्रमोद मेहरा जी अपने परिवार के साथ टैक्सी पकड़कर रीगल सिनेमा से अपने घर वापस आ गए और गोम्स जैसे ही अपने अड्डे पर पहुँचा तो उसके साथी जग्गू ने उससे कहा... "भाई! उस मेहरा को हम लोग आज गोलियों से भूनकर रख देते,अच्छा मौका था बदला लेने का", "बदला तो लेना है उससे लेकिन ऐसे नहीं",पप्पू गोम्स बोला... "तो कैंसे बदला लोगे भाई! आज तो वो अपनी फैमिली के साथ था,सभी को एक साथ मौत के घाट उतार देते हम लोग, लेकिन आपने ना जाने क्यों मना कर दिया",कल्लू कालिया बोला... "उस समय उसकी खूबसूरती देखकर मेरी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(८)

प्रत्यन्चा के हाथ पैर बँधे हुए थे और वो उस समय खुद को छुड़ाने की पुरजोर कोशिश कर रही हाय री किस्मत वो ऐसा करने में नाकामयाब रही और पप्पू गोम्स उसकी ओर बढ़ता ही चला जा रहा था, जैसे ही पप्पू गोम्स उसके बहुत करीब आ गया तो प्रत्यन्चा उसके मुँह पर थूकते हुए बोली.... "आखिर मेरे परिवार ने तेरा क्या बिगाड़ा था जो तूने उन लोगों के साथ ऐसा किया", "कमीनी! मेरे मुँह पर थूकती है,तेरा भी वही अन्जाम होगा,जो तेरे घरवालों का हुआ था,उस हरामखोर मेहरा ने मुझे जेल भेजा था,इसलिए उसके किए की सजा तो ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(९)

अब प्रत्यन्चा और शौकत को भागते हुए सुबह हो चुकी थी,वे दोनों एक सड़क से पैदल गुजर ही रहे प्रत्यन्चा ने शौकत से पूछा.... "आपने मुझे बचाकर बहुत बड़ा एहसान किया है मुझ पर", "ये तो मेरा फर्ज था बहन!",शौकत बोला... "कुछ भी हो लेकिन मेरी चुनरी पर अब तो दाग़ लग ही चुका है,उन्होंने मेरे पूरे परिवार को खतम कर दिया, मेरी जिन्दगी बर्बाद हो गई",प्रत्यन्चा बोली... "ऐसा ना कहो बहन,जरा हौसला रखो,वो ऊपरवाला कभी कभी हमारा ऐसा इम्तिहान लेता है कि हमारी रुह काँप जाती है",शौकत बोला.... "ये कैसा इम्तिहान था भाई! मेरी अस्मत के साथ खिलवाड़,क्या ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(१०)

रेलगाड़ी आने में अभी थोड़ा वक्त था,इसलिए दोनों स्टेशन पर रेलगाड़ी के आने का इन्तज़ार करने लगे, तभी प्रत्यन्चा शौकत से कहा... "शौकत भाई! तुमसे एक बात पूछूँ", "मुझे मालूम है कि तुम मुझसे क्या पूछना चाहती हो",शौकत बोला... "भाई! तुमने कैंसे अन्दाजा लगा लिया कि मैं तुमसे क्या पूछना चाहती हूँ",प्रत्यन्चा बोली... "तुम शायद महज़बीन के बारें में जानना चाहती हो कि वो मेरी क्या लगती है",शौकत बोला... "हाँ! शौकत भाई! मैं तुमसे महज़बीन के बारें ही पूछना चाहती थी",प्रत्यन्चा बोली.... "महज़बीन मेरी कुछ भी नहीं है और मानो तो वही मेरी सबकुछ है",शौकत बोला... "ये कैसा रिश्ता ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(११)

दूसरे दिन शाम के वक्त मैं फिर से छत पर पहुँचा,मैं वहाँ बैठकर किताब पढ़ने लगा,तभी थोड़ी देर के वो अपनी छत पर आकर मुझसे बोली... "कैंसे हैं जनाब!", मैं ने अपना चेहरा किताब से हटाया और उसकी ओर देखकर बोला... "जी! बिल्कुल दुरुस्त हूँ,आप सुनाइए कि कैंसीं हैं", "जी! अल्लाह के फ़ज़्ल से मैं भी ठीक हूँ",वो बोली... "अपना नाम नहीं बताया आपने",मैंने उससे कहा... "जी! महज़बीन...महज़बीन नाम है मेरा और आपका",वो बोली... "जी! नाचीज़ को शौकत कहते हैं",मैंने उससे कहा.... और उस दिन के बाद हम दोनों की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा,वो शाम को छत पर ...और पढ़े

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