प्रत्यन्चा को कार से टकराता देख वे गुण्डे भाग खड़े हुए और प्रत्यन्चा मोटरकार से टकराते ही बेहोश हो गई,अब वो मोटरकार भी रुक चुकी थी,जिससे प्रत्यन्चा टकराई थी,उस मोटर के मालिक ने ड्राइवर से पूछा.....
"क्या हुआ रामानुज! कोई टकराया क्या हमारी मोटर से?"
"जी! मालिक!",ड्राइवर रामानुज बोला....
"जरा मोटर से उतरकर तो देखो,कौन है?",मोटरकार के मालिक बोले....
इसके बाद उनका ड्राइवर मोटर से उतरकर बाहर आया और बोला....
"मालिक! कोई लड़की है"
"लड़की है....ज्यादा चोट तो नहीं आई उसे",मोटर के मालिक ने पूछा...
"पता नहीं मालिक! अभी तो बेहोश है"ड्राइवर रामानुज बोला...
"हे! ईश्वर! ये क्या हो गया,ठहरो हम भी आते हैं",
और ऐसा कहकर उस मोटर से ,सफेद बाल,सफेद बड़ी बड़ी मूँछें,काली अचकन,सफेद पायजामे और हाथों में खूबसूरत सी छड़ी लिए हुए एक रौबीले बुजुर्ग उतरे,उनका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावित करने वाला था,मोटर से उतरते ही वे प्रत्यन्चा के पास आए उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोले....
"बेटी! तुम ठीक तो हो ना!"
उनके सवाल पर जब प्रत्यन्चा ने कोई जवाब नहीं दिया तब वे ड्राइवर रामानुज से बोले....
"इस लड़की को फौरन अस्पताल ले चलो"
फिर उनके कहने पर रामानुज ने फौरन ही प्रत्यन्चा को मोटर में डाला और वे दोनों अस्पताल पहुँचे, वे प्रत्यन्चा को ड्राइवर के साथ मोटर में ही छोड़कर अस्पताल के भीतर पहुँचे तो डाक्टर साहब ने उन्हें देखते ही फौरन उनसे पूछा....
"दीवान साहब! आप और यहाँ,मुझे बुलवा लिया होता"
"डाक्टर साहब! आप हमारी बात छोड़िए,पहले उसे देखिए",दीवान साहब बोले...
"किसे देखना है दीवान साहब?",डाक्टर साहब ने पूछा....
"हमारी मोटरकार से एक बच्ची टकराकर बेहोश हो गई,ना जाने कहाँ चोट आई है उसे,आप फौरन उसे देखने हमारे साथ मोटर तक चलिए",
"आप चिन्ता मत कीजिए,मैं अभी वार्ड ब्वाय को स्ट्रेचर लेकर भेजता हूँ",डाक्टर साहब बोले...
और फिर स्ट्रेचर पर बेहोश प्रत्यन्चा को लाया गया,फौरन ही डाक्टर साहब ने उसका इलाज शुरु कर दिया,इलाज होने तक दीवान साहब वहीं अस्पताल में ही बैंठे रहे,कुछ देर के बाद जैसे ही डाक्टर साहब बाहर आए तो दीवान साहब ने डाक्टर साहब से पूछा....
"वो लड़की अब कैंसी है?"
"जी! वो बिलकुल ठीक है और उसके सिर पर मामूली सी चोट आई है,कुछ देर में होश में भी आ जाऐगी तो तब आप उससे मिल सकते हैं",डाक्टर साहब बोले...
"जी! हम यहीं बैठकर उसके होश में आने का इन्तजार करते हैं",दीवान साहब वहीं पड़ी बेंच पर बैठते हुए बोले....
तो ये थे दीवान साहब,दीवान साहब का परिचय देने की आवश्यकता नहीं है,उनका पूरा नाम भागीरथ दीवान है,आखिर उन्हें कौन नहीं जानता,ये अस्पताल भी तो उन्हीं का ही है,वे पहले गाँव में रहते थे,बहुत बड़े जमींदार हैं,दो सौ गाँव आते हैं उनके अण्डर में,ना जाने कितनी जमीनें हैं उनके पास,गाँव में उनकी बड़ी हवेली भी है,गाँव की सारी खेती बाड़ी और हवेली उन्होंने मुनीम जी के हाथों में सौंप रखी है,वही सब देखते हैं,वे गाँव में रहना चाहते हैं लेकिन शहर में रहना उनकी मजबूरी है,वो इसलिए कि भागीरथ दीवान का एक पोता है जिसका नाम धनुष दीवान है जिसकी अपने पिता तेजपाल दीवान से बिलकुल नहीं बनती,दोनों बाप बेटे की जरा जरा सी बात पर नोंकझोक होती रहती है,इसलिए भागीरथ दीवान यहाँ शहर आकर बस गए.....
जब तक घर में कोई घरनी ना हो तो वो घर,घर जैसा नहीं लगता,ना तो भागीरथ दीवान की पत्नी इस दुनिया में हैं और ना ही तेजपाल दीवान की पत्नी,धनुष जवान तो हो गया है लेकिन शादी नहीं करना चाहता,उसे अय्याशियों से फुरसत नहीं है,बाप दादा की मनमानी दौलत है तो खूब उड़ाता है,कभी लड़कियों पर, तो कभी क्लब में,तो कभी कसीनो में,तो कभी डर्बी रेस पर,बाप तेजपाल की तो वो बिल्कुल नहीं सुनता है, हाँ लेकिन दादा भगीरथ दीवान की कभी कभी सुन लेता है......
बेचारा धनुष भी क्या करता,ममता से हमेशा महरुम रहा,जन्म देते ही माँ मर गई,जैसे तैसे दादी पालपोस रही थी तो जब वो पाँच साल का हुआ तो दादी भी किसी बिमारी के कारण भगवान के पास चली गई,पिता ने ये सोचकर दूसरी शादी नहीं की कि ना जाने सौतेली माँ बच्चे के साथ कैंसा व्यवहार करे,फिर जब सौतेली माँ की अपनी सन्तान हो जाऐगी तो वो तो इस अनाथ बच्चे की दुश्मन बन जाऐगी,फिर वो तो ये चाहेगी कि उसका खुद का बेटा ही इस सारी जायदाद का वारिस बन जाएँ,इसलिए यही सब सोचकर तेजपाल दीवान ने दूसरी शादी नहीं की और इसका ये नतीजा हुआ कि उसने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए खुद को कारोबार में पूरी तरह से डुबो दिया,जिससे वो कभी धनुष को वक्त नहीं दे पाया और धनुष बिगड़ैल,अय्याश और जिद्दी हो गया...
भागीरथ दीवान और उनका ड्राइवर रामानुज उस लड़की के होश में आने का इन्तजार कर ही रहे थे तभी डाक्टर साहब उनके पास आकर बोले...
"अब आप उस लड़की से मिल सकते हैं,उसे होश आ गया है",
फिर भागीरथ दीवान उस लड़की के बिस्तर के पास पहुँचे और उससे बोले....
"कैंसी हो बेटी?"
"जी! ठीक हूँ",प्रत्यन्चा बोली...
"नाम क्या है तुम्हारा",भागीरथ दीवान ने पूछा....
"जी! प्रत्यन्चा नाम है मेरा",प्रत्यन्चा बोली....
"तुम हमारी मोटर से टकरा गईं थी,इसलिए हम तुम्हें यहाँ ले आएँ"भागीरथ जी बोले...
"जी! मैं जानती हूँ",प्रत्यन्चा बोली....
"अच्छा! तो जल्दी से अपने घर का पता बता दो ,हम अपनी मोटर से तुम्हें घर तक छुड़वा देते हैं",भागीरथ जी बोले....
"जी! मेरा कोई अपना नहीं है",प्रत्यन्चा बोली....
"ऐसा कैंसे हो सकता है,कोई तो होगा तुम्हारा नाते रिश्तेदार",भागीरथ जी बोले...
"जी! कोई नहीं है,जो थे उन्होंने मुझसे मुँह मोड़ लिया है,मैं बिल्कुल अकेली हूँ इस दुनिया में,आपने मुझे क्यों बचाया,मर जाने दिया होता"और ये कहकर प्रत्यन्चा रोने लगी....
"ऐसा नहीं कहते बेटी! मानव जन्म तो बड़े पुण्य के बाद मिलता और तुम इसे खतम करने की बात कर रही हो",भागीरथ जी बोले....
"आप मेरे बारें में कुछ नहीं जानते इसलिए ऐसा कह रहे हैं",प्रत्यन्चा बोली....
"ठीक है! अगर तुम्हारा कोई नहीं है तो तुम हमारे घर चलो"भागीरथ जी बोले....
"आप मुझ अन्जान को अपने घर में जगह क्यों देना चाहते हैं?",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"बेटी! हम कौन होते हैं तुम्हें अपने घर में पनाह देने वाले,शायद ऊपरवाले की यही मर्जी है,इसलिए हम दोनों की मुलाकात ऐसी परिस्थिति में हुई और रही तुम्हारे अन्जान होने की बात तो हमारा तजुर्बा कहता है कि तुम हालातों की सताई हुई हो और इन्सान पहचानने में कभी भी हमसे गलती नहीं होती,ये बाल हमने धूप में यूँ ही सफेद नहीं किए हैं,चलो तुम हमारे साथ हमारे घर चलो",भागीरथ दीवान बोले...
दीवान साहब की बात सुनकर प्रत्यन्चा सोचने लगी तो डाक्टर साहब उससे बोले....
"क्या सोच रहीं हैं,आप नसीब वालीं हैं जो ये आपको अपने घर ले कर जा रहे हैं,ये बड़े ही नेक और दरिया दिल इन्सान हैं,यकीन मानिए मेरा, वहाँ जाकर आप को पछताना नहीं पड़ेगा",
"ठीक है तो हम प्रत्यन्चा को लेकर अपने घर जा रहे हैं,वादा कीजिए की हर शाम आप इनकी जाँच करने बँगले पर आऐगें", दीवान साहब ने डाक्टर साहब से कहा...
"जी! जरूर आऊँगा,दीवान साहब! आप फिक्र ना करें",डाक्टर सतीश राय बोले....
और फिर भागीरथ दीवान प्रत्यन्चा को अपने घर लेकर आ गए और विलसिया नौकरानी से कहकर एक कमरे में उसके रहने का इन्तजाम करवा दिया....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....