Laga Chunari me Daag - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

लागा चुनरी में दाग--भाग(४)

उधर नहर पर प्रमोद मेहरा जी ने पहले नहरे के किनारे लगे खेतों के नजारे देखें,फिर नीम के पेड़ से दातून तोड़कर उन्होंने अपने दाँत साफ किए,इसके बाद वे अपने सूखे हुए कपड़े एक टीले पर रखकर नहर में नहाने के लिए उतर पड़े ,वहाँ पर दो तीन ही सीढ़ियाँ थी,जो ऐसे ही दो चार पत्थरों को रखकर बना दी गईं थीं और उन पर लगातार पानी की हिलोरें आने से काई भी लग चुकी थीं,काई लगने से वे सीढ़ियाँ काफी फिसलन भरी हो चुकीं थीं और उस पर सबसे बड़ी बिडम्बना थी कि प्रमोद मेहरा जी को तैरना नहीं आता था और उन्हें उस नहर के बारें में ये जानकारी भी नहीं थी कि किस ओर ज्यादा गहराई है,लेकिन फिर भी वो उसमें नहाने के लिए उतर पड़े,उन्हें डर भी लग रहा था लेकिन फिर भी हिम्मत करके उन्होंने जैसे तैसे सीढ़ियों के किनारे बैठकर स्नान कर लिया.....
इसके बाद उन्होंने अपने गीले कपड़े भी बदल लिए,वे अब सूखे हुए कुर्ता पायजामा पहनकर तैयार थे,फिर उन्होंने अपने गीले कपड़े धोने की बात सोची क्योंकि उन गीले कपड़ो पर अब मिट्टी और रेत लग चुकी थी और वे उन गीले कपड़ों को धोने के लिए फिर से नहर की सीढ़ियों पर चले गए,लेकिन इस बार वे काई लगी सीढ़ियों पर खुद को सम्भाल नहीं पाए और जा गिरे नहर में,उन्होंने सीढ़ियों को पकड़ने की कोशिश की लेकिन काई की वजह से उनका हाथ छूट गया,नहर का बहाव बहुत ज्यादा था,इसलिए वे किनारे से दूर हो गए और अब उन्होंने बचाओ....बचाओ चिल्लाना शुरू कर दिया,उनकी आवाज उनसे थोड़ी ही दूर पर साड़ियाँ धुल रही प्रत्यन्चा ने सुनी और वो भागकर वहाँ आई,प्रत्यन्चा को तो तैरना आता था लेकिन इतने बड़े इन्सान को बहते पानी में बचाना उसके वश की बात नहीं थी,इसलिए फौरन उसने अपना दिमाग़ चलाया.....
वो भागकर अपनी माँ की साड़ियाँ उठा लाईं,उन्हें आपस में बाँधकर मजबूत गाँठ लगाई और एक सिरा उसने टीले से बाँधा और दूसरा खुद की कमर में बाँधकर वो नहर में कूद पड़ी और साथ आई लड़की से घर जाकर पूरी बात बताने को कहा,वो लड़की घर की ओर ये बताने चली गई कि कोई पानी में डूब रहा था और प्रत्यन्चा जीजी उसे बचाने के लिए पानी में कूद गई,ये सुनकर घर के सभी पुरुष नहर की ओर भागे और इधर प्रत्यन्चा प्रमोद मेहरा जी को बचाने की पूरी पूरी कोशिश कर रही थी और वो उन्हें बचाने में कामयाब भी गई,वो उनके कुर्ते को पकड़कर उन्हें खींचने लगी और धीरे धीरे किनारे की ओर आ गईं,वो उन्हें नहर की सीढ़ियों तक घसीट लाई और हाँफते हुए वहीं बैठ गई,वो भी तैरते तैरते अब पस्त हो चुकी थी और उसमें इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि वो उन्हें घसीटकर नहर से बाहर ले आए,इसलिए वो वहीं रुककर सब लोगों का इन्तजार करने लगी....
और तभी ईश्वर की दया से दो लोग उधर से गुजरे तो प्रत्यन्चा ने उन दोनों को सारी बात बताई,तब वे लोग प्रत्यन्चा की बात सुनकर प्रमोद मेहरा जी को नहर के किनारे सूखी जगह पर लाए और उनके पेट का पानी निकालना शुरू कर दिया,थोड़ी ही देर में प्रमोद मेहरा जी को होश आ गया,तब तक उनके दोस्त सुभाष मेहरा और प्रत्यन्चा के पिता सहित और भी लोग वहाँ पर पहुँच चुके थे ,फिर उन सभी ने उन दोनों लोगों को धन्यवाद प्रकट किया,तब उन लोगों ने बताया कि धन्यवाद की असली हकदार तो ये बच्ची है,हम ने तो कुछ नहीं किया,असल में तो इस बच्ची ने इन्हें बचाया है,सही वक्त पर इस बच्ची ने अपना दिमाग लगाया और साड़ियों के सहारे इन्हें बचाने नहर में कूद पड़ी,बड़ी बहादुर बच्ची है....
ये बात जब वहीं धरती पर लेटे प्रमोद मेहरा जी ने सुनी तो बोले....
"बेटा! तुम ना होती तो आज तो मैं भगवान के पास चला जाता",
"ईश्वर का लाख लाख शुकर है जो प्रत्यन्चा ने आपको समय पर डूबते हुए देख लिया", प्रत्यन्चा के पिता संजीव बोले....
"हाँ! प्रत्यन्चा बेटा! तुमने हमारी लाज रख ली,ये हमारे घर में मेहमान बनकर आए थे,अगर आज इन्हें कुछ हो जाता तो जीवन भर के लिए मुझ पर कलंक लग जाता और मैं इनके घरवालों को मुँह दिखाने के काबिल ना रहता",सुभाष मेहरा बोले...
"शाबास बेटा! बहुत ही बहादुरी का काम किया तुमने",उनमें से एक बुजुर्ग बोले....
और फिर उसके बाद प्रमोद मेहरा जी को सहारा देकर घर ले जाया गया,उस दिन दिनभर सबकी जुबान पर बस प्रत्यन्चा की बहादुरी की ही कहानी थी,शाम तक बच्चे का नामकरण संस्कार भी हो गया और फिर भोज प्रारम्भ हुआ,भोज के बाद जब सभी फुरसत हुए तो बात करने बैठ गए और फिर से प्रत्यन्चा की चर्चा होने लगी,आधी रात तक सभी के बातें चलतीं रहीं और फिर सभी सो गए.....
दूसरे दिन सुबह डर के मारे प्रमोद मेहरा जी के नहाने का इन्तजाम घर में ही कर दिया गया,जब प्रमोद मेहरा जी नहा धोकर बैठे तो उस समय घर पर कोई भी पुरुष नहीं था,सब अभी नहर से नहाकर नहीं लौटे थे तो संजीव जी की पत्नी सम्पदा प्रमोद जी के लिए नाश्ता परोसने का काम प्रत्यन्चा को सौंपते हुए बोलीं....
" जा! ये गरमागरम पकौड़ियांँ और ये जलेबी दही तू प्रमोद भइया को देकर आ",
"काकी! मैं तो ना जाऊँगीं उन्हें नाश्ता देने",प्रत्यन्चा बोली...
"भला! क्यों ना जाऐगी उन्हें नाश्ता देने",सम्पदा ने पूछा...
"वो मुझे बहुत चिढ़ाते हैं",प्रत्यन्चा बोली....
"लेकिन कल तो तूने उन्हें डूबने से बचाया था",सम्पदा बोली....
"वो तो मैनें उन्हें मानवता के नाते बचा लिया था",प्रत्यन्चा भाव खाते हुए बोली...
"बड़ी आई मानवता वाली,जा जल्दी से उन्हें ये नाश्ता देकर आ",सम्पदा बोली...
"आप कहतीं हैं तो दिए आती हूँ उन्हें नाश्ता,नहीं तो मैं कभी उनसे बात भी ना करूँ",प्रत्यन्चा बोली...
"चल...अब जा,ज्यादा बातें ना बना",सम्पदा बोली....
और फिर प्रत्यन्चा प्रमोद जी को नाश्ता देने पहुँची और उनसे बोली...
"काकी ने आपके लिए नाश्ता भेजा है ,खा लीजिए",
"तुम नहीं खाओगी",प्रमोद जी ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"नहीं मुझे भूख नहीं है",प्रत्यन्चा बोली...
"कुछ तो खा लो",प्रमोद जी ने दोबारा पूछा...
"बोला ना कि मुझे भूख नहीं है",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"ठीक है ! नहीं खाना है तो मत खाओ,लेकिन इतना गुस्सा तो मत करो ",
और ऐसा कहकर प्रमोद मेहरा जी नाश्ता करने लगे,तब प्रत्यन्चा उनसे बोली......
"मुझे आपसे एक बात पूछनी थी",
"पूछो ! क्या पूछना चाहती हो",प्रमोद जी बोले...
"वो ये कि इतने बड़े पुलिसवाले होकर भी आपको तैरना नहीं आता,बाँम्बे में इतना बड़ा दरिया है,जहाँ आप रहते हैं, अगर कोई चोर लुटेरा आपको उठाकर उस दरिया में फेंक दे तो तब तो आप एक ही पल में टें बोल जाऐगें",
अब प्रत्यन्चा की इस बात पर प्रमोद जी को हँसी आ गई और उस समय उनके मुँह में पकौड़ी थी जो वे खा रहे थे और जब उन्हें हँसी आई तो उन्हें बड़ी जोर का ठसा लग गया,अब तो प्रमोद जी की खाँसते खाँसते हालत खराब हो रही थी,फिर क्या था प्रत्यन्चा भागते हुए गई और उनके लिए पानी लेकर आई,फिर उन्हें पानी पिलाकर उसने जोर जोर से उनकी पीठ थपथपाई,तब जाकर प्रमोद जी को राहत मिली और तब प्रत्यन्चा उनसे बोली....
"ये आपने अच्छा नाटक लगा रखा है",
"कौन सा नाटक",प्रमोद जी ने पूछा...
"यही कि जब से आप यहाँ आए हैं तो हर बार मुझे ही आपकी जान बचानी पड़ती है"
प्रत्यन्चा की इस बात पर प्रमोद जी ठहाका मारकर हँस पड़े....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...


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