लागा चुनरी में दाग़--(अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

लागा चुनरी में दाग़--(अन्तिम भाग)

और जब डाक्टर सतीश ने अमोली को वहाँ देखा तो वो उससे बोले...
"अमोली! तुम और यहाँ"
"हाँ! सतीश! मैं ही हूँ",अमोली सतीश से बोली...
"लेकिन तुम तीन चार सालों से कहाँ थी"?,सतीश ने अमोली से पूछा....
"मैं अपना इलाज करवा रही थी सतीश!",अमोली बोली...
"किस रोग का इलाज करवा रही थी तुम वहाँ?",सतीश ने पूछा...
"तपैदिक का,मैं तुम्हें ये सब नहीं बताना चाहती थी ,इसलिए तुम्हें बिना बताएँ ही अपना इलाज करवाने विलायत चली गई",अमोली बोली...
"तुम जब विलायत से लौटी तो मुझसे मिलने क्यों नहीं आई अमोली!",सतीश ने पूछा...
"मैं तुमसे मिलने आई थी सतीश! लेकिन तुम्हारी माँ ने मुझे जलील करके घर से निकाल दिया और फिर मुझे धनुष जी मिले और मैंने उन्हें सारी सच्चाई बता दी,वे ही मुझे तुमसे मिलाने यहाँ पर लाएँ हैं",अमोली बोली...
तब सतीश ने अपनी माँ के पास जाकर पूछा...
"माँ! तुमने ऐसा क्यों किया,तुमने अमोली को घर से क्यों निकाला"?,
"मुझे ये कभी भी पसन्द नहीं थी,लेकिन तेरी जिद़ के आगें मेरी एक ना चल सकी,",शीलवती जी बोलीं...
तब भागीरथ जी शीलवती जी के पास आकर बोले...
"जब आपका बेटा अमोली को पसन्द करता है तो फिर उसे अपना लेने में क्या बुराई है",
"जी! मुझे पढ़ी लिखी और नौकरीपेशा बहू नहीं चाहिए थी",शीलवती जी बोलीं...
"ऐसी मानसिकता गलत है शीलवती! इसका मतलब है कि तू अपने बेटे की भलाई नहीं चाहती",शीलवती की सहेली अनुसुइया उससे बोली...
"लेकिन ऐसा नहीं है,मैं अपने बेटे को हमेशा खुश देखना चाहती हूँ",शीलवती बोली...
"अगर आप अपने बेटे को खुश देखना चाहतीं हैं ,तो फिर आपको इस रिश्ते को स्वीकार कर लेना चाहिए,दोनों एकदूसरे से प्रेम करते हैं,इसलिए हमेशा एक दूसरे का ख्याल रखेगें",तेजपाल जी शीलवती जी से बोले....
"जी! सही कहा आपलोगों ने ,शायद मेरी ही सोच गलत थी,मैं अमोली को अपनी बहू बनाने के लिए तैयार हूँ,मुझे आप सभी माँफ कर दें",शीलवती जी सबसे बोलीं...
"तो इसका मतलब है कि अब ये सगाई नहीं होगी",धनुष बोला...
"जी! धनुष जी! अब जब अमोली वापस लौट आई है तो फिर मैं प्रत्यन्चा से सगाई नहीं कर सकता",डाक्टर सतीश धनुष से बोले...
"ओह...ये तो बहुत बुरा हुआ प्रत्यन्चा के साथ",धनुष दुखी होने का नाटक करता हुआ बोला....
"कहाँ है प्रत्यन्चा जी! मैं उनसे माँफी माँगना चाहता हूँ",
और ऐसा कहकर सतीश उस कमरे में पहुँचा जहाँ प्रत्यन्चा मौजूद थी और उसके पास जाकर वो बोला...
"माँफ कीजिए प्रत्यन्चा जी! मैं आपसे सगाई नहीं कर सकता",
"जी! मैंने सब सुन लिया है और मैं भी दिल से यही चाहती थी कि ये सगाई ना हो",प्रत्यन्चा सतीश से बोली...
"क्यों? आप ऐसा क्यों चाहतीं थीं भला!",डाक्टर सतीश ने प्रत्यन्चा से पूछा...
तब तक वहाँ धनुष को लेकर अमोली भी पहुँच गई और वो डाक्टर सतीश से बोली...
"क्योंकि धनुष जी प्रत्यन्चा से प्यार करते हैं और प्रत्यन्चा उन्हीं को ही मिलनी चाहिए,...हैं ना धनुष जी!"
और धनुष अमोली की बात सुनकर मुस्कुराकर रह गया...
"ओह...तो ये बात है,लेकिन ये बात आप दोनों ने मुझसे कही क्यों नहीं",डाक्टर सतीश बोले...
"कभी कभी कुछ बातें कही नहीं जाती,बस समझ ली जातीं हैं",अमोली बोली...
"लेकिन धनुष बाबू तो कभी कुछ नहीं समझ पाएँ",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम भी तो नहीं समझी,मेरे मन की बात, तुम्हारी नासमझी की वजह से मुझे दोबारा शराब को हाथ लगाना पड़ा",धनुष ने प्रत्यन्चा से गुस्से में कहा...
"आप जब कुछ बोलेगें नहीं तो क्या मुझे सपना आया था कि आप मुझे चाहते हैं या मैं कोई अन्तर्यामी हूँ जो आपके मन की बात खुदबखुद समझ लूँगीं",प्रत्यन्चा भी तुनककर बोली...
"जब तुम मेरी भूख प्यास,पसन्द नापसन्द समझ सकती हो तो ये नहीं समझ सकती",धनुष गुस्से से बोला...
"नहीं! समझना मुझे कुछ भी ,आपको तो बस मुझसे लड़ने का बहाना चाहिए,खड़ूस कहीं के"प्रत्यन्चा गुस्से से बोली..
"मैं खड़ूस हूँ तो तुम क्या हो भला!",धनुष ने प्रत्यन्चा से पूछा...
और अब उन दोनों को लड़ता हुआ देखकर डाक्टर सतीश ने अमोली से कहा...
"अमोली! चलो यहाँ से चलते हैं,अब इनका झगड़ा तो रुकने वाला नहीं है",
और फिर दोनो कमरे से बाहर आ गए ,तब डाक्टर सतीश और अमोली ने दोनों की सच्चाई भागीरथ जी और तेजपाल जी को भी बता दी,ये बात सुनकर दोनों बहुत खुश हुए,सच तो ये था कि वे दोनों भी यही चाहते थे कि प्रत्यन्चा उनके घर से कहीं ना जाएँ....
इसके बाद उस दिन डाक्टर सतीश की सगाई अमोली से हो गई और फिर उस रात घर आकर धनुष ने प्रत्यन्चा को अपने सीने से लगाकर अपने प्यार का इजहार किया, प्रत्यन्चा भी खुश थी क्योंकि वो भी धनुष को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहती थी,फिर इसके बाद धनुष और प्रत्यन्चा की सगाई की तैयारियांँ जोर शोर से शुरु हो गईं,ना जाने कहाँ कहाँ प्रत्यन्चा के लिए गहने गढ़वाएँ गए,बेसकीमती कपड़े मँगवाए गए और फिर सगाई वाला दिन भी आ पहुँचा,पूरे शहर भर से नामी गिरामी लोग आएँ थे,बिजनेस टाइकून से लेकर, पुलिस अधीक्षक,डाक्टर,वकील,जज़, भागीरथ जी ने किसी को भी न्यौता देना नही छोड़ा था,आखिरकार उनके इकलौते पोते की सगाई जो थी,
खाने पीने का इतना शानदार इन्तजाम था जो भी देखता तो उसकी आँखें खुली की खुलीं रह जातीं,सब खुश थे...बहुत खुश थे,फिर सगाई का समय भी आ गया और प्रत्यन्चा जब तैयार होकर नीचे आई तो उसकी खूबसूरती देखकर सबकी आँखें खुली की खुली रह गईं,लेकिन फिर प्रत्यन्चा और धनुष की खुशियों को नज़र लग गई और पुलिस अधीक्षक की पत्नी ने प्रत्यन्चा को पहचान लिया,क्योंकि उनका प्रमोद मेहरा के घर पर आना जाना था, प्रत्यन्चा की जेठानी सुरेखा से उनकी दोस्ती थी और फिर वही हुआ जो कोई भी नहीं चाहता था,
पुलिस अधीक्षक की पत्नी ने खुसुर पुसुर करके ये बात सभी महिलाओं के बीच फैला दी कि ये वही लड़की है जिसे पप्पू गोम्स उठाकर ले गया था,उस रात उसने इसके पति,जेठ और जेठानी की हत्या भी कर दी थी,हम सब तो सोच रहे थे कि इसने बदनामी के डर से किसी नदी तालाब में कूदकर आत्महत्या कर ली होगी,लेकिन ये निर्लज्ज तो जिन्दा है,पप्पू गोम्स ने इसकी आबरु को जार जार कर दिया था और सुना था कि ये किसी शौकत के साथ वहाँ से भाग गई थी,ये तो कलमुँही है और ये बदनाम लड़की इस घर की बहू बनने जा रही है,इसने अच्छा फँसाया दीवान साहब के भोले भाले पोते को,ये तो डायन है जो अपने पहले पति को खा गई तो क्या इस लड़के को बख्शेगी,ऐसी लड़कियों के घर नहीं बसा करते,कहीं इसके चक्कर में फँसकर दीवान साहब का पोता बेमौत ना मारा जाएँ,ये लड़की तो मनहूस है और दीवान साहब के पोते के काबिल नहीं है,जिस लड़की के साथ गैर मर्द ने रातें बिताईं हो तो वो भला पवित्र कैंसे हो सकती है,ये तो पतिता है,कुल्टा है ,कुलच्छनी है.....
और ये बात वहाँ मौजूद विलसिया ने सुन ली,इसके बाद उसने प्रत्यन्चा से ये सब कह दिया और जब लोगों के बीच ज्यादा खुसर पुसर होने लगी तो ये बात,धनुष,तेजपाल जी और भागीरथ जी के कानों में भी पहुँची,लेकिन उन तीनों ने कुछ भी नहीं कहा और फिर भरी महफिल में सबके बीच प्रत्यन्चा ने एलान किया कि वो ये सगाई नहीं करेगी,तब धनुष ने उसके पास जाकर पूछा....
"प्रत्यन्चा! क्या हुआ? तुम ये सगाई क्यों नहीं करना चाहती"?
"आपने सुना नहीं कि लोग मेरे बारें में क्या क्या कह रहे हैं",प्रत्यन्चा बोली...
"मैं इन सब सुनी सुनाई बातों पर यकीन नहीं करता",धनुष ने प्रत्यन्चा से उदास होकर कहा...
तब प्रत्यन्चा सबसे बोली....
"लेकिन ये सब सच है धनुष बाबू! मेरी चुनरी मैली हो चुकी है,उसमें दाग़ लग चुका है,मेरी इज्ज़त जार जार हो चुकी है, मेरी आँखों के सामने उस पापी ने मेरे समूचे परिवार को खतम कर दिया था और फिर मुझे वो उठाकर अपने अड्डे पर ले गया,लेकिन मैं यहाँ मौजूद उन सब लोगों से पूछती हूँ कि इसमें मेरा क्या कुसुर था,मेरे जेठ जी ने उस गोम्स को सजा दी थी तो उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया,क्या मर्दो के किए गए कर्मों की सजा हमेशा औरत को ही भुगतनी पड़ेगी,ये जो आज यहाँ मौजूद लोग पाप और पुण्य के ठेकेदार बन रहे हैं तो मैं पूछती हूँ उन सबसे कि तब कहाँ थे ये लोग जब मेरे घरवालों को मौत के घाट उतारा जा रहा था और मेरी आबरू को तार तार किया जा रहा था,मुझे वहाँ से शौकत भाई ने बाहर निकाला था और शौकत भाई ने तब मुझे सहारा दिया था जब मुझे मेरे खुद के माँ बाप ने छोड़ दिया था,वो मेरा भाई बना और हर कदम पर उसने मेरी रक्षा की और मुझे बचाते हुए ही उसकी जान गई थी,मैं उस शौकत के साथ भागी नहीं थी,उसके साथ महफूज थी....
लेकिन ये समाज मेरी बात कभी नहीं समझेगा,क्योंकि ये समाज दोगला है,वो सिर्फ़ दौलतमंद और ताकतवर लोगों की बात पर भरोसा करता है,मेरी जैसी लाचार और सताई हुई लड़की पर नहीं,आप सभी नहीं चाहते कि ये सगाई हो तो ये सगाई नहीं होगी, मैं भी नहीं चाहती थी कि मेरी चुनरी का दाग़ धनुष बाबू के कपड़ो तक पहुँचे,क्योंकि इतना सबकुछ जानने के बाद धनुष बाबू मुझे अपना भी लेते हैं तो ये समाज उन्हें जीने नहीं देगा,इसलिए मैं खुद इस सगाई से इनकार करती हूँ,मेरी चुनरी में लगा दाग़,मुझ तक ही सीमित रहेगा,मैं उसे किसी और तक कभी नहीं पहुँचाऊँगी,खासकर उस तक तो कभी नहीं जो मुझे इतना प्यार करता हो,मेरा स्वाभिमान मुझे ये सगाई करने की इजाजत नहीं देता,आज से मैं ये सब त्यागकर कहीं और चली जाऊँगी,अब आप लोग जा सकते हैं,ये सगाई अब नहीं होगी"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा रोते हुए अपने कमरे में चली गई और उसके पीछे पीछे धनुष भी उसके कमरे में चला आया और उसने प्रत्यन्चा से कहा...
"प्रत्यन्चा! ये क्या किया तुमने?"
"मैंने बिलकुल ठीक किया धनुष बाबू! ये दुनिया नहीं चाहती कि हम दोनों साथ रहें",प्रत्यन्चा बोली..
"लेकिन मैं तो चाहता हूँ",धनुष बोला...
"लेकिन आपके चाहने ना चाहने से क्या होता है,अब मैं ये सब नहीं चाहती,मैं अपवित्र हूँ और आपको भी मुझसे दूर रहना चाहिए",प्रत्यन्चा बोली...
"लेकिन मैं ये सब नहीं मानता,मुझे तुम चाहिए प्रत्यन्चा....तुम!",धनुष रोते हुए बोला...
" मैं नहीं चाहती कि जीवन भर आपको मेरी वजह से जलील होना पड़े",प्रत्यन्चा बोली...
"ऐसा कुछ नहीं होगा,हम कहीं और चले जाऐगें",धनुष बड़े बड़े आँसू बहाते हुए बोला...
"आप मुझे कहीं भी ले जाऐगें लेकिन वहाँ भी आकर मेरी बदनामी मुझे ढूढ़ ही लेगी",प्रत्यन्चा रोते हुए बोली....
"नहीं! मुझे मत छोड़ो प्रत्यन्चा! नहीं तो मैं मर जाऊँगा",धनुष रोते हुए बोला...
"मैं आपको कभी नहीं छोड़ सकती धनुष बाबू!,बस मैं अपनी काली छाया आपके ऊपर पड़ने नहीं देना चाहती",प्रत्यन्चा बोली....
"तुम्हारे इस फैसले को मैं नहीं मानता",धनुष बोला...
"आपको मानना पड़ेगा",प्रत्यन्चा रोते हुए बोली....
और फिर दोनों एक दूसरे से लिपटकर बहुत देर तक रोते रहे,इसके बाद तेजपाल जी और भागीरथ जी ने सगाई के लिए प्रत्यन्चा को बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी,वो दोनों से बोली...
"मेरी वजह से आप दोनों की इज्जत पहले ही तार तार हो चुकी है,मैं अब और ऐसा कुछ भी नहीं चाहती, मेरे इस घर से दूर जाने में ही सबकी भलाई है"
और फिर प्रत्यन्चा ने किसी की एक ना सुनी और वो बनारस के एक वृद्धाश्रम में वहाँ के लोगों की सेवा करने के लिए चली गई,धनुष रोता रहा गिड़गड़ाता रहा लेकिन प्रत्यन्चा टस से मस ना हुई,उसके बाद वो वापस कभी नहीं लौटी,धनुष को अकेला और दुखी देखकर भागीरथ जी और तेजपाल जी का कलेजा मुँह को आ जाता,तब भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से धनुष को समझाने के लिए कहा कि वो शादी कर ले...
और ये बात प्रत्यन्चा ने धनुष से कही फिर प्रत्यन्चा ने अपनी कसम देकर उसकी शादी किसी और लड़की से करवा दी,धनुष की शादी हो जाने से भागीरथ जी और तेजपाल जी दोनों को थोड़ी राहत मिली,धनुष ने मजबूरी में शादी की थी और वो इस शादी से खुश नहीं था,तब प्रत्यन्चा ने उसे बहुत समझाया कि अब आपको मुझे भूलकर अपनी पत्नी के संग खुशी खुशी जिन्दगी गुजारनी चाहिए,धनुष ने प्रत्यन्चा की बात समझी और फिर कुछ दिनों के बाद धनुष के घर में एक नन्हे मुन्ने बालक ने जन्म लिया,बच्चे के आने की खुशी ने तेजपाल जी और भागीरथ की खुशियों में इजाफा कर दिया, अब घर परिवार खुशहाल था,लेकिन फिर ना जाने किस्मत को क्या मंजूर था,तेजपाल जी अपनी बहू और पोते को उसके मायके से वापस लेकर आ रहे थे कि रास्ते में रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उस हादसे में तींनो की जान चली गई,इस बात से भागीरथ जी एकदम टूट गए और बीमार रहने लगे और फिर एक दिन वो भी धनुष को इस दुनिया में अकेला छोड़कर भगवान के पास चले गए...
इसके बाद धनुष ने दूसरी शादी नहीं की और उसने अपनी तमाम उम्र प्रत्यन्चा की याद में ही गुजार दी और प्रत्यन्चा की चुनरी में जो दाग़ लग चुका था उसने उस दाग़ को हमेशा धनुष से दूर रखा और दोनों एकदूसरे से इतना प्रेम करते हुए भी कभी एक नहीं हुए...
इसके बाद प्रत्यन्चा ने खुद का वृद्धाश्रम और महिला आश्रम खोल लिया,उनके महिला आश्रम में एक रोगिणी वेश्या रहने आई,जिसका एक बेटा भी था,कुछ दिनों बाद वो रोगिणी वेश्या मर गई तो तब प्रत्यन्चा ने उस वेश्या के बच्चे को गोद ले लिया और उसका नाम नकुल रखा और वो बच्चा मैं हूँ और ये कहते कहते नकुल रुक गया और उसकी आँखें नम हो गईं...
तब हरिया ने उससे कहा...
"तो ये थी प्रत्यन्चा और धनुष की प्रेमकहानी,दोनों साथ ना रहते हुए भी जीवन भर एक दूसरे के होकर रहें,प्रत्यन्चा की चुनरी में लगे दाग़ ने उसे ऐसा जीवन जीने पर मजबूर कर दिया,वो सच्चे मन से धनुष को चाहती थी तभी तो उसने हमेशा धनुष का भला चाहा और उसकी ही भलाई की खातिर वो उससे दूर रही, सही कहा है किसी ने लागा! चुनरी में दाग़,छुपाऊँ कैंसे,अपनी बदनामी को उसने कभी भी धनुष पर आने नहीं दिया,शायद इसे ही सच्चा प्यार कहते हैं"
और ऐसा कहते कहते हरिया का मन भर आया....

समाप्त...
सरोज वर्मा.....🙏🙏😊😊