लागा चुनरी में दाग़--भाग(५९) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

लागा चुनरी में दाग़--भाग(५९)

धनुष उस रात प्रत्यन्चा से बहुत कुछ कह चुका था लेकिन धनुष प्रत्यन्चा से वो बात नहीं कह पाया था जो वो कहना चाहता था,ऐसे ही दिन बीत रहे थे,सबको अब डाक्टर सतीश और प्रत्यन्चा की सगाई का इन्तजार था और फिर सगाई के दो दिन पहले ही शीलवती जी दीवान साहब के घर आईं और उनसे बोलीं...
"दीवान साहब! मैं यहाँ आपसे कुछ जरूरी बात करने आई थी"
"जी! कहिए",भागीरथ जी ने कहा...
"जी! मैं चाहती थी कि सगाई एकदम सादे तरीके से और मेरे घर पर हो",शीलवती जी बोलीं...
"जी! अगर आप ऐसा चाहतीं हैं तो ऐसा ही होगा,हमें कोई एतराज़ नहीं",भागीरथ जी बोले....
"मैं और भी एक जरूरी बात कहना चाहती थी आपसे",शीलवती जी संकोच करते हुए बोलीं...
"जी! आप बेझिझक जो भी कहना चाहतीं हैं कहिए",भागीरथ जी बोले....
तब शीलवती जी भागीरथ जी से बोलीं...
"चूँकि मेरे तो ज्यादा मेहमान नहीं हैं और जो भी हैं सो सब साधारण हैं,लेकिन आपके मेहमान बहुत ही नामी,दौलतमंद और अमीर घराने के लोग हैं,जिनका स्वागत उठाने का सामर्थ्य मुझ में नहीं है,यदि आपको बुरा ना लगे तो आप अपने मेहमानों को सगाई में ना बुलाकर सीधे शादी में ही बुलाएँ तो ही अच्छा रहेगा",
"लेकिन कुछ खास लोगों को तो बुलाना ही पड़ेगा इस सगाई में,नहीं तो लोग बुरा मान जाऐगें",भागीरथ जी बोले...
"जी! वही चिन्ता तो मुझे खाएँ जा रही है कि जब आपके मेहमान आऐगें तो वो लोग ये भी तो पूछेगें कि प्रत्यन्चा आपकी कौन है,तब आप उन सभी को क्या जवाब देगें",शीलवती जी बोलीं....
"जी! कह देगें कि वो हमारी बेटी है",भागीरथ जी बोले...
"लेकिन आपकी बात पर भला कौन भरोसा करेगा और फिर ये सवाल प्रत्यन्चा को भी परेशान कर सकता है,तो इससे अच्छा है कि ये सगाई बिना किसी शोर शराबे के आराम से हो जाएँ तो ही अच्छा",शीलवती जी बोलीं...
"बात तो आपकी सही है,लेकिन अगर हमारी ओर से कोई मेहमान नहीं आया तो तब भी तो लोग बहुत सी बातें बनाने लगेगें,फिर प्रत्यन्चा पर भी सवाल उठने लगेगें कि ये सगाई इतनी गुपचुप तरीके से क्यों हो रही है, कोई ना कोई बात तो जरूर है",भागीरथ जी बोले....
"जी! ये बात भी है",शीलवती जी बोलीं...
"तो ऐसा करते हैं कि ये सगाई हम आपके ही घर से करते हैं फिर हम भी अपने कुछ खास खास मेहमानों को बुला लेते हैं,जिनका तेजपाल के साथ व्यापारिक सम्बन्ध है और सबकी खातिरदारी की जिम्मेदारी हमारी होगी",भागीरथ जी बोले...
"खातिरदारी की जिम्मेदारी आप क्यों उठाऐगें भला,ये सब तो मैं कर लूँगी",शीलवती जी बोलीं...
"नहीं! प्रत्यन्चा हमारी भी तो कुछ लगती है,खातिरदारी की जिम्मेदारी तो हमें ही मिलनी चाहिए",भागीरथ जी बोले...
"आप कह रहे हैं तो ठीक है,लेकिन ज्यादा शोर शराबा नहीं होना चाहिए",शीलवती जी बोलीं...
"जी! बिलकुल! सब आपके अनुसार ही होगा",भागीरथ जी बोले...
और फिर शीलवती जी भागीरथ जी के घर से लौट आईं,लेकिन उनके चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ साफ नज़र आ रहीं थीं,वे ये सगाई बिलकुल सादे तरीके से करना चाहतीं थी, लेकिन उनके मुताबिक़ सगाई का कार्यक्रम नहीं हो पाया,पता नहीं क्या चल रहा था उनके मन में.....
सगाई को अब एक ही दिन रह गय था और इधर धनुष की मनोदशा बिगड़ती जा रही थी,वो इतने दिनों से खुद को समझा रहा था कि उसे शराब नहीं पीनी चाहिए,लेकिन अब उसकी अन्तःशक्ति जवाब देने लगी थी,इसलिए दिल के हाथों मजबूर होकर आखिरकार उसने शराब को हाथ लगा ही लिया,किसी को बुरा ना लगे इसलिए वो शराब पीने क्लब की ओर चल पड़ा,लेकिन फिर उसकी क्लब में भी जाने की हिम्मत ना पड़ी,क्योंकि वो नहीं चाहता था कि उसके जानने वाले उससे कोई भी सवाल पूछे,क्योंकि सबको पता चल चुका था कि उसने अब शराब छोड़ दी है,इसलिए सबके सवालों से बचने के लिए वो क्लब नहीं गया,फिर एक अच्छा सा बार देखकर उसने अपनी मोटर वहाँ की पार्किंग में लगाई और बार के भीतर चला गया....
उसने अभी बैरे को शराब का आर्डर दिया ही था कि तभी वहाँ पर साड़ी पहने एक लड़की आई और वो लड़की एक कुर्सी से टकराई फिर लड़खड़ाकर फर्श पर गिर पड़ी,धनुष उसे सम्भालने के लिए फौरन ही अपनी कुर्सी से उठा, धनुष ने उस लड़की को खड़े होने में उसकी मदद की,जब वो लड़की थोड़ी सन्तुलित हुई तो धनुष ने उस लड़की को एक कुर्सी पर बैठाते हुए पूछा....
"आपको कहीं लगी तो नहीं"
"जी! नहीं! जिसने दिल पर चोट खाई हो साहब! तो फिर उसे कोई भी चोट असर नहीं करती",वो लड़की लड़खड़ाती जुबान में बोली...
"ये क्या कह रहीं हैं आप? लगता है बहुत गहरी चोट खाई है आपने अपने दिल पर",धनुष भी उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोला....
"उसमें किसी का कोई कुसूर नहीं है,सब नसीब का खेल है,उस कमबख्त़ को कोई और पसंद आ गई,तो उसने छोड़ दिया मुझे",वो लड़की शराब के नशे में बोली...
"क्या उसने आपको किसी और के लिए छोड़ दिया"?,धनुष ने पूछा...
"हाँ! खुदगर्ज़ कहीं का",वो लड़की बोली....
"आप दिख तो बहुत ही भले घर की रहीं हैं,पढ़ी लिखीं भी मालूम होतीं हैं,फिर भी एक बेवफा के पीछे आपने अपना ये हाल बना लिया",धनुष ने उस लड़की से कहा....
"जनाब! ये इश्क़ है...इश्क़....यहाँ दिल टूटने पर इन्सान बिखर जाता है,यहाँ भला पढ़े लिखे होने का भी कोई मतलब नहीं,इश्क़ में समझदार इन्सान भी नासमझ हो जाता है,अब मुझे ही देख लीजिए मैं वकील हूँ,लेकिन देखिए ना मेरी मजबूरी मैं उस बेवफा पर बेवफाई का मुकदमा भी नहीं लगा सकती,तो फिर क्या फायदा हुआ मेरे पढ़े लिखे होने का",वो लड़की बोली...
तब धनुष उस लड़की की बातों पर मुस्कुराया और उससे बोला....
"लगता है आपने ज्यादा पी रखी है,इसलिए आप ऐसी बहकी बहकी बातें कर रहीं हैं",
"वैसे मैं कभी भी नहीं पीती,लेकिन दिल टूटा है मेरा,ये कोई मामूली बात नहीं है,इसलिए ग़म भुलाने के लिए पी ली आज",वो लड़की बोली....
"लेकिन शराब तो कोई इलाज नहीं दिल टूटने का",धनुष बोला...
"तो फिर आप यहाँ क्यों आएँ हैं,आप भी तो अपना ग़म भुलाने यहाँ आएँ होगें",उस लड़की ने कहा...
"जी! ऐसी तो कोई बात नहीं है,मैं तो यहाँ अक्सर आता रहता हूँ",धनुष बोला...
"झूठ मत बोलिए,आपकी आँखें कह रहीं हैं कि आप किसी से बेशुमार मोहब्बत करते हैं,लेकिन उससे कभी भी कह नहीं पाएँ",वो लड़की बोली...
"भला आपने कैंसे ये बात जानी",धनुष ने पूछा...
"मैं वकील हूँ और आप मुझसे कुछ नहीं छुपा सकते",वो लड़की बोली...
"जी! सही कहा आपने और अब उससे कुछ कहने का कोई फायदा भी नहीं है,क्योंकि कल उसकी सगाई है", धनुष बोला...
"कितने इत्तेफ़ाक़ की बात है,मैं जिससे मौहब्बत करती हूँ उसकी भी कल सगाई है",वो लड़की बोली...
"ओह....क्या सच में",धनुष ने पूछा...
"जी! ये सच है,मैं उसके घर गई तो उसकी बे-मुरव्वत माँ ने मुझे अपने घर से ज़लील करके निकाल दिया",वो लड़की बोली..
"तो आपको ये बात उस लड़के से जाकर कहनी चाहिए थी उसकी माँ से नहीं",धनुष ने कहा....
"उसकी माँ ने मुझे कसम दी है कि अगर मैं उसके बेटे से मिली या उससे कुछ कहा तो अच्छा नहीं होगा,जब वो तुझे चाहता ही नहीं है तो फिर क्यों तू उसके पीछे पड़ी है",वो लड़की बोली....
"तो आप उसकी माँ से मिलने क्यों गईं,आपको तो उस लड़के से मिलने जाना चाहिए था",धनुष बोला...
"जी! मैं उसी से मिलने गई थी,लेकिन वो घर में नहीं था,सोचा था कि तीन चार साल के बाद वो मुझे देखकर खुश होगा,लेकिन सब मेरी सोच के विपरीत हुआ",वो लड़की बोली...
"पूरा माजरा तो बताइए,मुझे कुछ समझ नहीं आया,क्योंकि आपने कहा कि तीन चार साल के बाद आप उससे मिलने गईं थीं,तो इतने सालों आप थी कहाँ",धनुष ने उस लड़की से पूछा...
तब वो लड़की बोली...
"जी! मैं सब बताती हूँ आपको,दरअसल बात ये है कि मुझे तपैदिक हो गया था और ये बात मैंने अपने प्रेमी से छुपाई,मैं उसे बिना बताएँ तपैदिक (उस जमाने में तपैदिक बड़ी बीमारी समझी जाती थी) का इलाज करवाने विलायत चली गई,क्योंकि यहाँ के डाक्टरों पर मुझे भरोसा नहीं था,सोचा था अगर पूरी तरह से ठीक हो गई तो वापस लौट आऊँगी और अगर ठीक नहीं हुई तो वहीं मर जाऊँगी,मुझे जब अपने ठीक हो जाने की पूरी तसल्ली हो गई तो वहाँ से इलाज कराकर मैं परसों रात को वापस लौटी और कल मैं खुशी खुशी उसके घर गई"
तो उसकी माँ ने मुझे जलील करके घर से निकालते हुए कहा....
"अब मेरे बेटे को तेरी जरूरत नहीं है,उसने कोई और लड़की पसन्द कर ली है और एक दिन के बाद उसकी सगाई है,इसलिए अपनी मनहूस सूरत लेकर यहाँ से चली जा,अच्छा हुआ था कि तू विलायत भाग गई थी,तू मुझे वैसे भी बिलकुल भी पसंद नहीं थी,मुझे नौकरीपेशा लड़की को अपनी बहू नहीं बनाना था"
उनकी बात सुनकर मैं दंग रह गई और वहाँ से रोते हुए वापस चली आई....
"तो मतलब है कि इस प्रेमकहानी में हीरो की माँ ही खलनायिका निकली",धनुष मुस्कुराते हुए बोला...
"हाँ! शायद यही सच है",वो लड़की बोली....
"लेकिन आपने ये तो बताया नहीं कि उस लड़के के दिल में अभी भी आपके लिए जगह है या नहीं",धनुष ने पूछा...
"ये बात तो मुझे भी नहीं मालूम क्योंकि मैं इतने सालों से उससे मिली ही नहीं",वो लड़की बोली...
"तो फिर आपको उस लड़के से मिल लेना चाहिए",धनुष बोला...
"उसी से तो मिलने गई थी उसके घर ,लेकिन वो मुझे मिला ही नहीं और मुझे ये पता ही नहीं है कि वो कहाँ किस अस्पताल में डाक्टरी कर रहा है",वो लड़की बोली...
"अच्छा! तो वो डाक्टर है",धनुष बोला...
"हाँ! जब हम दोनों रिश्ते में थे तब वो डाक्टरी पढ़ रहा था",वो लड़की बोली...
"अच्छा! मुझे उसका नाम बताइए,शायद मैं आपकी कोई मदद कर पाऊँ",धनुष ने उस लड़की से पूछा...
"जी! उसका नाम सतीश राय है",वो लड़की बोली...
डाक्टर सतीश का नाम सुनकर धनुष हक्का बक्का रह गया और वो उस लड़की से बोला....
"जी! डाक्टर सतीश,उन्हें तो मैं अच्छी तरह से जानता हूँ,कहीं उनकी माँ का नाम शीलवती तो नहीं",धनुष ने पूछा...
"जी! यही नाम है उनकी माँ का",वो लड़की बोली...
"और आपका नाम?",धनुष ने पूछा...
"मेरा नाम अमोली है",उस लड़की ने कहा....
"अच्छा तो अमोली....नाम है आपका,हाँ...मुझे प्रत्यन्चा ने बताई थी ये बात,कल शाम आप मेरे घर आ जाइएगा मैं आपको डाक्टर सतीश के घर ले चलूँगा",धनुष ने अमोली से कहा....
"लेकिन अभी तक आपने अपना नाम नहीं बताया",अमोली ने कहा...
"जी! मैं धनुष दीवान हूँ और डाक्टर सतीश हमारे अस्पताल में ही काम करते हैं",धनुष ने उस लड़की से कहा...
"ओह....तब तो आप मेरी मदद कर सकते हैं",अमोली बोली...
"जी! हाँ! आपकी मदद करने से मुझे भी तो फायदा है",धनुष बोला...
"वो भला कैंसे?",अमोली ने धनुष से पूछा...
"वो इसलिए कि डाक्टर सतीश की जिस लड़की से सगाई होने वाली है,मैं उस लड़की को चाहता हूँ",धनुष अमोली से बोला....
"ओह...मतलब ईश्वर भी यही चाहते हैं ,तभी तो उन्होंने हमें मिलाया ताकि हम एकदूसरे के सहारे अपनी अपनी मौहब्बत को पा सकें",अमोली बोली...
"शायद सही कहा आपने",धनुष अमोली से बोला....
और इस तरह से धनुष और अमोली की परेशानी दूर हो गई,फिर दूसरे दिन शाम को धनुष अमोली को लेकर डाक्टर सतीश के घर पहुँच गया,तब तक सगाई का कार्यक्रम अभी शुरु नहीं हुआ था,लेकिन सबलोग वहाँ मौजूद हो चुके थे.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....