लागा चुनरी में दाग़--भाग(१४) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(१४)

प्रत्यन्चा और शौकत को जाता देख संजीव मेहरा जी दोबारा मधु से बोले...
"अरे! रोक लो उसे,कहाँ जाऐगी बेचारी,जो हुआ उसमें उस बेचारी का क्या दोष था"
"इतनी बड़ी दुनिया पड़ी है,कहीं भी मर खप रहेगी,लगता है तुम्हें समाज की फिकर नहीं है,तभी तो ऐसी बातें कर रहे हो,उसे घर में रखा तो बिरादरी से निकाल दिए जाओगे,कोई तुम्हारा छुआ पानी नहीं पिऐगा और भी बच्चे हैं हमारे,जरा उनके बारें में भी तो सोचो",मधु बोली....
"इतनी निर्दयी ना बनो,तुमने उसे जन्म दिया है,नौ महीने अपने गर्भ में रखा है,कुछ तो लिहाज करो", संजीव जी दोबारा बोले....
"नहीं! वो इस घर में कभी नहीं आऐगी...जाने दो उसे",
और ऐसा कहकर मधु घर के भीतर चली गई,फिर संजीव जी भी कुछ ना कर सके,बस उनकी आँखों की कोरों से दो आँसू टपक गए,वे अपनी जाती हुई बेटी को तब तक देखते रहे जब तक कि वो उनकी आँखों से ओझल ना हो गई....
उधर शौकत और प्रत्यन्चा फिर से ताँगे पर सवार होकर रेलवे स्टेशन चले आए,उन्होंने रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ी के लिए पूछा तो उन्होंने बताया कि अब तो रात आठ बजे ही अगली रेलगाड़ी आऐगी,उस जमाने में रेलगाड़ियों की इतनी तादाद नहीं हुआ करती थी,छोटे स्टेशनों पर तो रेलगाड़ियांँ इक्का दुक्का ही चला करतीं थीं,ये सुनकर दोनों रेलवे स्टेशन के बाहर एक पेड़ के नीचे जा बैठे,दोनों परेशान थे,प्रत्यन्चा बस रोए ही जा रही थी,उसे अपनी माँ से ऐसी उम्मीद नहीं थी,शौकत उसे चुप कराने में लगा था,लेकिन उसकी आँखों के आँसू तो जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे,तभी वहाँ पर ताली बजाते हुए एक किन्नर आई और वो उन लोगों से बोली....
"ईश्वर! तुम्हारी जोड़ी सलामत रखे,लाओ निकालो दो चार आने"
"हम दोनों भाई बहन हैं",शौकत गुस्से से बोला....
"तो गुस्सा क्यों होता है बाबू! मैं कोई भीख थोड़े ही माँग रही है",किन्नर बोली...
"दिख नहीं रहा कि मेरी बहन रो रही है और तुम्हें पैसों की पड़ी है",शौकत बोला....
"क्या हुआ तेरी बहन को,कोई तकलीफ़ है इसे",किन्नर ने पूछा...
"है भी तो तुम्हें क्यों बताएँ",शौकत बोला...
"लगता है तकलीफ़ कुछ ज्यादा ही बड़ी है इसलिए तू बौखला रहा है",किन्नर बोला...
"अब जाओ यहाँ से और हमे हमारे हाल पर छोड़ दो",शौकत गुस्से से बोला....
"अब तो मैं तेरी तकलीफ़ सुने बिना यहाँ से नहीं जाऐगी",किन्नर बोली...
"अरे! कोई जबरदस्ती है क्या?",शौकत बोला...
"जबरदस्ती नहीं बाबू! इन्सानियत के नाते पूछ रही हूँ,वरना इस दुनिया में किसको किसकी पड़ी है",किन्नर बोली...
"ज्यादा गले पड़ने की जरूरत नहीं,हमारा मामला है हम निपट लेगें",शौकत बोला...
"बाबू! एक बात कहूँ, अगर कोई तुम्हारा हमदर्द बनना चाहे तो उसे अपना हमदर्द बना लेना चाहिए,क्या पता मैं तुम्हारे कोई काम आ जाऊँ",किन्नर बोली...
"तुम हमारा दुखड़ा जानकर क्या करोगी?",शौकत बोला...
"बस! यूँ ही सुना दो,शायद तुमलोगों का मन हल्का हो जाए",किन्नर बोली...
इसके बाद किन्नर की गुजारिश पर शौकत ने प्रत्यन्चा की पूरी रामकहानी उसे सुना दी,प्रत्यन्चा की कहानी सुनकर किन्नर प्रत्यन्चा से बोली....
" ऐसे घबराते नहीं है बेटा! तुम नारी हो,जिसे धैर्य और त्याग की प्रतिमा कहा गया है,जो नारी एक जीव का सृजन कर सकती है,वो क्या कुछ नहीं कर सकती,तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ लेकिन इस बुरे को तुम ही भलाई में बदल सकती हो,ऐसे डरोगी,रोओगी और गिड़गिड़ाओगी तो ये दुनिया वाले तुम्हारा तमाशा बनाकर रख देगें,तुम्हें कुचल देगें शायद अन्त में मिटा ही दें,लेकिन याद रहें तुम्हें मिटना नहीं है,जब जन्म देने वालों ने नहीं अपनाया तो फिर तुम इस दुनिया में किससे उम्मीद करोगी भला,इसलिए मजबूत बनो,खुद को टूटने मत दो, याद रखना जो झुकता है दुनिया उसी को झुकाती है"
"लेकिन समाज से बहिष्कृत औरत कर भी क्या सकती है",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम बहिष्कार की बातें मेरे सामने कर रही हो,उसके सामने जिसे पैदा होते ही बहिष्कृत कर दिया गया,मैं भी बहिष्कृत हूँ लेकिन मैंने जीना तो नहीं छोड़ दिया ना!",किन्नर बोली....
"मैं कैंसे सामना करूँगीं इस दुनिया का,मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा है",प्रत्यन्चा बोली...
"पहले तुम दोनों लोग मेरे घर चलो,वहाँ मुझ जैसी और भी रहतीं हैं,घर चलकर नहाधोकर खा पीकर आराम करो,फिर रात को रेलगाड़ी के समय पर यहाँ आ आना",वो किन्नर बोली....
इसके बाद उस किन्नर की तसल्ली भरी बातों से प्रत्यन्चा के दिल को काफी राहत पहुँची,वो किन्नर जिसका नाम नैना था ,वो उन दोनों को अपने साथ अपने घर ले गई और उसने अपने जैसी और भी किन्नरों को उन दोनों से मिलवाया,उन सभी ने बड़े प्यार से प्रत्यन्चा के सिर पर अपना हाथ रखा,उसे दिलासा दिया,उसके आँसू पोछे और बेटी समझकर अपने सीने से भी लगाया,इसके बाद उन्होंने दोनों से स्नान करने को कहा,बहुत बड़ा घर था उन लोगों का,आँगन में कुआँ,पक्का गुसलखाना और भी बहुत सी सुख सुविधाएंँ थीं उनके घर में,उन लोगों ने बड़े प्यार से दोनों को खाना खिलाया,फिर दोनों से आराम करने को कहा,जब दोनों जागे तो उन लोगों से उन्होंने फिर से ढ़ेर सारी बातें की और फिर रेलगाड़ी के आने के समय तक दोनों को खुशी खुशी अपने घर से रवाना किया,शगुन के तौर पर उन्होंने प्रत्यन्चा को ये कहकर कुछ रुपए भी दिए कि बेटी माँओं के घर से खाली हाथ नहीं जाया करती,पराए लोगों से इतनी हमदर्दी और प्यार पाकर प्रत्यन्चा का मन भर आया....
दोनों रेलवे स्टेशन आएँ और फिर रेलगाड़ी आने पर उस में बैठकर अपनी मंजिल की ओर चल पड़े, सुबह मुँह अँधेरे वो बम्बई के स्टेशन फिर से पहुँच गए,वे अभी प्लेटफार्म पर उतरे ही थे कि उन दोनों को वहाँ पप्पू गोम्स दिख गया,जो कि उन दोनों को ही खोज रहा था,शौकत ने उसे देखा तो प्रत्यन्चा से फुसफुसाकर बोला...
"यहाँ से जल्दी निकलो,हम लोगों को पप्पू ढूढ़ रहा है"
अब प्रत्यन्चा और शौकत दोनों प्लेटफार्म से उतरकर पटरियों पर आ गए,दोनों ने सोचा उस तरफ वाले प्लेटफार्म पर आसानी से चले जाऐगे,फिर शौकत प्रत्यन्चा को महज़बीन के घर छोड़कर रुपए का इन्तजाम कर लेगा,इसके बाद दोनों दिल्ली चले जाऐगें,लेकिन ऐसा हो नहीं पाया,पप्पू ने दोनों को खोज लिया,दोनों भाग ही रहे थे कि पप्पू ने शौकत को पीछे से धर दबोचा और उसकी पीठ पर बड़ा सा चाकू घोंप दिया, लेकिन शौकत भी हठीला था,उसने पप्पू पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और प्रत्यन्चा से बोला....
"भाग...प्रत्यन्चा...भाग"
फिर क्या था प्रत्यन्चा भागने लगी और भागकर वो फिर से प्लेटफार्म पर चढ़ गई,पप्पू ने खुद को शौकत की पकड़ से छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो खुद को छुड़ा ना पाया,पप्पू के घाव से लगातार खून रिस रहा था,लेकिन तब भी शौकत ने पप्पू को नहीं छोड़ा,तब पप्पू शौकत से बोला....
"हरामजादे! तेरी मासूका के घर भी गया था मैं,उससे पूछा तेरे बारें में लेकिन वो मुँह ही नहीं खोल रही थी,बस इतना बताया कि तू रेलवे स्टेशन आया है,इतना जानने के बाद मैंने उसका और उसके शौहर का भी काम तमाम कर दिया,अब तू किसके लिए जीना चाहता है"
शौकत ने जब ये सुना तो उस में ना जाने कौन सी अजीब सी ताकत आ गई और उसने पप्पू को पीछे से आ रही रेलगाड़ी के सामने फेंक दिया,जिससे पलक झपकते ही पप्पू के शरीर के परखच्चे उड़ गए और शौकत बेहोश होकर वहीं गिर पड़ा....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....