लागा चुनरी में दाग़--भाग(२२) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(२२)

जब धनुष वहाँ से चला गया तो भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले....
"देखा! बिटिया! बिना खाए उठकर चला गया,देखना एक दिन इसकी हरकतें हमारी जान लेकर रहेंगीं",
"ऐसा ना कहें दादाजी! सब ठीक हो जाएगा",प्रत्यन्चा बोली...
"कुछ ठीक नहीं होगा बेटी! ये कभी सुधरने वाला नहीं है और हम यूँ ही एक दिन कुढ़ कुढ़कर मर जाऐगें", भागीरथ जी बोले....
"अब आप भला बिन माँ के बच्चे से कैंसी आशा रख सकते हैं,उनकी माँ होती तो दो थप्पड़ मारकर सुधार देती,उनकी माँ नहीं थी तो आप सभी ने भी उन्हें खूब छूट दे दी,इसलिए वो ऐसे हो गए हैं",प्रत्यन्चा बोली....
"तू उससे उम्र में इतनी छोटी होकर भी कितनी समझदार है बेटी! वो तुझसे उम्र में इतना बड़ा है फिर भी नासमझ है",भागीरथ जी बोले...
"दादाजी! जब समझाने के लिए कोई अपना नहीं होता तो इन्सान खुद से समझदार बन ही जाता है", प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! सही कहा तुमने,लेकिन हमारा धनुष कब समझदार बनेगा?" भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"जी! वे भी समझदार बन जाऐगें,बस उन्हें थोड़ा वक्त दीजिए",प्रत्यन्चा बोले....
"वक्त....वही ही तो नहीं है हमारे पास,ना जाने कब भगवान का बुलावा आ जाएंँ और हमें वहाँ जाना पड़े", भागीरथ जी बोले....
"चिन्ता मत कीजिए,अभी आपके लिए भगवान का बुलावा आने में वक्त हैं,क्योंकि अभी आपको धरती पर रहकर बहुत से काम जो निपटाने हैं",प्रत्यन्चा बोली...
प्रत्यन्चा और भागीरथ जी के बीच अभी बातें चल ही रहीं थीं कि तभी तेजपाल दीवान की मोटर दरवाजे पर आकर रुकी और वे उस में से उतरकर घर के भीतर आएँ,फिर उन्होंने विलसिया को आवाज़ देते हुए कहा....
"विलसिया! खाना लगा दो,क्लाइन्ट नहीं आया तो मीटिन्ग कैन्सिल हो गई,मैं अभी कपड़े बदलकर नीचे आता हूँ"
और ऐसा कहकर तेजपाल जी अपने कमरे की ओर जाने लगे तो भागीरथ जी उनसे बोले....
"आज खिचड़ी बनाई है प्रत्यन्चा ने,अगर तू खिचड़ी खा लेगा तो ठीक है नहीं तो कुछ और बनवा दूँ तेरे लिए"
"हाँ! ठीक है खिचड़ी से काम चल जाएगा"
और फिर तेजपाल जी ऐसा कहकर अपने कमरे की ओर चले गए,फिर कुछ देर के बाद वे कपड़े बदलकर डाइनिंग टेबल पर हाजिए हुए, डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए उन्होंने धनुष की प्लेट पर नजर डालते हुए कहा....
"ये किसकी प्लेट है,कोई और आया था क्या यहाँ "?
"हाँ! नवाबजादे आएँ थे यहाँ खाना खाने,मुझसे कुछ कहा सुनी हो गई तो गुस्से में खाना छोड़कर चले गए", भागीरथ जी बोले....
"वो आया था क्या यहाँ,बहुत दिन हो गए उसकी शकल ही नहीं देखी मैंने,वैसे कैसा है वो?", तेजपाल जी ने पूछा...
"और कैसा होगा,जैसा था वैसा ही है,बतमीज का बतमीज", भागीरथ जी बोले....
तभी प्रत्यन्चा तेजपाल जी के लिए प्लेट में खिचड़ी परोसने लगी तो तेजपाल जी बोले....
"इसे रहने दो,मैं धनुष की प्लेट में ही खा लूँगा"
"लेकिन चाचा जी! ये प्लेट तो जूठी है",प्रत्यन्चा बोली...
"तो क्या हुआ,वो मेरा बेटा है,मैं उसकी जूठी प्लेट में खाना नहीं खा सकता क्या?"
फिर प्रत्यन्चा कुछ ना बोली और भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा की ओर इशारा करते हुए कहा कि खाने दे उसे उसी प्लेट में,फिर प्रत्यन्चा ने तेजपाल जी के लिए अलग से प्लेट नहीं लगाई,दोनों बाप बेटे ने खिचड़ी खाई और अपने अपने कमरे में सोने चले गए,इसके बाद प्रत्यन्चा,विलसिया और घर के नौकरों ने भी खाना खाया और रसोई साफ करके वे सब भी अपने अपने कमरे में चले गए,जब प्रत्यन्चा अपने बिस्तर पर लेटी तो वो धनुष के बारें में सोचने लगी कि कितना बिगड़ैल लड़का है,अपने बाप और दादा का खून पी रखा है इसने,घर की खुशियों को इसने अपनी अय्याशी की भेंट चढ़ा दिया है,वैसे नालायक तो है तभी तो उसने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया था.....
अब लगता है कि दादा जी की खुशी के लिए मुझे ही इस लड़के को सुधारना होगा,इतना तो मैं दादाजी के लिए कर ही सकती हूँ,उन्होंने मुझे इस घर में आसरा दिया,प्यार दिया ,अपनापन दिया,उनके एहसानों का बदला तो मैं नहीं चुका सकती,लेकिन इस लड़के को लाइन पर लाकर दादाजी की खुशी को तो बढ़ा ही सकती हूँ,वैसे कितना अकड़ू है वो,मैं उसे सुधारूँगी कैंसे,ये समझ में नहीं आ रहा,वैसे आज चाचाजी जी के व्यवहार को देख कर भी पता चल गया कि वे भी अपने बेटे से बहुत प्यार करते हैं,तभी तो उसकी जूठी प्लेट में ही खाना खा लिया....
और यही सब सोचते सोचते प्रत्यन्चा की आँख कब लग गई ,उसे पता ही नहीं चला.....
फिर सुबह वो चिड़ियों की चहचहाहट से जागी,कुछ देर के लिए वो बगीचे में टहलने के लिए चली गई ,फिर वहाँ से आकर उसने भागीरथ जी और तेजपाल जी के लिए चाय बनाई और उसने वो सनातन के हाथों उनके कमरों में भिजवा दी,चाय बनाकर वो नहाने चली गई,नहाने के बाद वो पूजा करने के लिए मंदिर की ओर चली गई, तो उसे वहाँ आउटहाउस के पास धनुष दिखा जो कि नाइट गाउन में था वो लाँन में पड़ी कुर्सी पर बैठा था,छोटी सी टेबल पर शराब की एक बोतल रखी थी और उसने अपने हाथ में शराब का गिलास पकड़ रखा था,वो उसे अनदेखा करके पूजा करने मंदिर चली गई और जब वो वहाँ से पूजा करके वापस लौट रही थी तो धनुष ने उसे रोकते हुए कहा.....
"ऐ.....ऐ...लड़की! कल रात तेरी वजह से मैं भूखा रह गया और तेरी ही वजह से मुझे दादाजी ने इतनी खरीखोटी सुना दी,मैं कल रात से यहाँ बैठकर शराब पी रहा हूँ,भूख लगी थी मुझे इसलिए शराब पीकर पेट भर रहा हूँ,तूने मुझसे मेरे दादाजी छीन लिए,तू अपने आप को समझती क्या है,मालकिन है तू इस घर की,सब पर हुकुम चलाऐगी,लेकिन एक बात मेरी भी कान खोलकर सुन ले,तू दादाजी और पापा को तो अपने वश में कर सकती है लेकिन मुझे तू अपने वश में नहीं कर पाऐगी,समझी तू!"
चूँकि उस समय धनुष नशे में था ,इसलिए प्रत्यन्चा धनुष की बात को अनदेकखा करते हुए आगे निकल आई ,क्योंकि वो बात को बढ़ाना नहीं चाहती थी,तो धनुष उससे दोबारा बोला....
"ऐ....कहाँ जा रही है तू! अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है"
"मुझे आपकी बात सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है",ऐसा कहकर प्रत्यन्चा फिर से आगे बढ़ गई....
"अभी जा यहाँ से....लेकिन इतना याद रखना,धनुष दीवान किसी की अकड़ बरदाश्त नहीं करता और तेरी अकड़ भी बरदाश्त नहीं करेगा",
प्रत्यन्चा फिर भी धनुष से कुछ नहीं बोली और वो घर आ गई,फिर घर आकर वो सबको प्रसाद बाँटने लगी,आज तो उसने तेजपाल जी को भी प्रसाद दिया,जब तेजपाल दीवान ने प्रत्यन्चा को अपनी माँ की साड़ी में देखा तो उन्हें अपनी माँ की याद आ गई,लेकिन वे उससे बोले कुछ नहीं बस प्रत्यन्चा से प्रसाद लेकर उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोले....
"हमेशा खुश रहो"
तेजपाल का प्रत्यन्चा के प्रति ऐसा व्यवहार देखकर भागीरथ जी को बहुत प्रसन्नता हुई.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...