लागा चुनरी में दाग़--भाग(५६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५६)

प्रत्यन्चा आउटहाउस से घर आई और आज उसने गुस्से में आकर खाना खाना नहीं छोड़ा,उसने अपने लिए थाली परोसी और थाली परोसकर वो अपने कमरे में आ गई,फिर वो फर्श पर खाना खाने बैठ गई,एक निवाला मुँह में डालते ही उसे रोना आ गया,लेकिन उसने तब भी खाना खाना नहीं छोड़ा,रोते रोते वो मुँह में खाना ठूँसती जा रही थी और दुपट्टे से आँसू पोछती जा रही थी,उसे धनुष की हालत और उसकी बातों पर बहुत रोना आ रहा था,उससे धनुष की तकलीफ़ देखी नहीं जा रही थी,वो सोच रही थी कि अभी उनका ये हाल है और अगर वो इस घर से चली गई तो फिर ना जाने धनुष जी क्या करेगें,दादाजी और चाचाजी की तो वो सुनते ही नहीं है,फिर कैंसे क्या होगा उनका.....
यही सब सोचते सोचते उसने खाना खतम किया,जूठी थाली वो नीचे रखने नहीं गई,उसने वो थाली बाथरुम में ले जाकर धो ली,फिर वो अपने बिस्तर पर आकर लेट गई,लेकिन उसकी आँखों में नींद कहाँ,वहाँ तो केवल आँसू ही आँसू थे,लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो धनुष जी के लिए इतने आँसू क्यों बहा रही है,क्या फर्क पड़ेगा अगर वो धनुष जी से दूर हो जाऐगी,आखिर धनुष जी हमेशा उससे लड़ते ही तो रहते हैं,कहीं मैं भी तो उन्हें नहीं चाहने लगी.....नहीं...नहीं....ऐसा नहीं हो सकता,ये प्यार कैंसे हो सकता है भला! ,ये तो मानवता है,ये तो हमदर्दी है,तभी तो उन्हें दुखी देखकर मुझे फर्क पड़ता है.....
लेकिन ये सच में प्यार हुआ तो क्या मुझे डाक्टर बाबू से शादी करनी चाहिए,अगर शादी के बाद मेरा मन धनुष जी की ओर भटका तो फिर क्या करूँगी मैं,कहीं मैं डाक्टर बाबू से शादी करके बहुत बड़ी गलती करने तो नहीं जा रही हूँ,लेकिन मैं करूँ भी क्या अगर धनुष बाबू अपना मन खोलकर मेरे सामने रख देते तो ये नौबत कभी नहीं आती,खुद भी कुढ़ रहे हैं और मेरा जी भी जला रहे हैं,अब तो वो पहले की तरह शराब भी पीने लगें हैं,उन्हें दादाजी और चाचाजी की भी सुध नहीं रहती कि उनके ऐसा करने से उन दोनों को कैंसा लगता होगा और फिर यही सब सोचते सोचते प्रत्यन्चा कब सो गई उसे पता ही नहीं चला....
दूसरे दिन सुबह जब वो जागी तो उसका सिर भारी भारी सा था,शायद रोने से ऐसा हुआ होगा और फिर यही सब सोचकर वो जागकर नीचे आई और उसने सबके लिए चाय बनाई,सब नीचे आकर चाय पीने लगे तो तभी भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले....
"जा! उस नालायक को भी चाय दे आ!",
"मैं उन्हें चाय देने जाऊँगी",प्रत्यन्चा मुँह फुलाकर बोली...
"उसकी कोई जरुरत नहीं है,मैं खुद ही चाय पीने आ गया",धनुष उधर से आते हुए बोला...
फिर धनुष डाइनिंग टेबल पर बैठ गया और प्रत्यन्चा ने चाय की प्याली उसकी ओर बढ़ा दी,तब भागीरथ जी ने धनुष से कहा....
"तू आजकल ये सब उल्टी सीधी हरकतें क्यों करने लगा है,तू तो सुधर गया था ना!",
"बाबूजी! शराबी कभी नहीं सुधरा करते ,वे तो बस सबसे फरेब किया करते हैं",तेजपाल जी ने तीखे लफ्ज़ों में कहा...
"ऐसा मत बोल तेजपाल! हो आया होगा शराब पीने का मन तो दोस्तों के साथ बैठकर पी ली होगी", भागीरथ जी बोले...
"आज से नहीं पिऊँगा दादाजी! पुराने दोस्त मिल गए थे,उन्होंने बहुत जिद की इसलिए पीनी पड़ी", धनुष ने बात को सम्भालते हुए कहा...
"देखा! तेजा! हमें तो पता ही था कि ऐसा ही है,धनुष अब दोबारा वो सब गल्तियाँ नहीं दोहराएगा,वो सुधर चुका है",भागीरथ जी बोले...
"आप ही करते रहिए फरेबियों पर भरोसा,मुझे तो नहीं होता ऐसे लोगों पर भरोसा,मैं तैयार होने जा रहा हूँ जरूरी मीटिंग है,मुझे दफ्तर जाना है," और ऐसा कहकर तेजपाल जी अपने कमरे में चले गए...
फिर भागीरथ जी भी चाय पीकर बगीचे की ओर चले आए और प्रत्यन्चा उन दोनों की चाय पी हुई जूठी प्यालियाँ डाइनिंग टेबल से उठाने लगी,तब धनुष ने चाय पीते पीते प्रत्यन्चा से पूछा.....
"नाराज़ हो मुझसे?"
प्रत्यन्चा ने धनुष के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन ना के जवाब में सिर हिलाकर वो रसोईघर में वे जूठी प्यालियांँ रखने चली गई,तब धनुष भी रसोई में आ पहुँचा और प्रत्यन्चा से बोला...
"जवाब नहीं दिया मेरे सवाल का,नाराज हो या नहीं"
"कहा ना कि नाराज़ नहीं हूँ",प्रत्यन्चा बोली...
"मैं तुम्हें बहुत परेशान करता हूँ ना! बहुत रुलाता हूँ",धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा...
"मेरे पास आपसे बात करने की फुरसत नहीं है,मैं नहाने जा रही हूँ,चाचाजी को दफ्तर जाना है,उनके लिए नाश्ता तैयार करना होगा मुझे",प्रत्यन्चा बोली...
"आज विलसिया काकी नाश्ता तैयार कर देगीं उनके लिए",धनुष बोला...
लेकिन तब भी प्रत्यन्चा धनुष से कुछ ना बोली और वो सीढ़ियांँ चढ़ते हुए अपने कमरे की ओर चली गई,तो धनुष भी उसके पीछे पीछे उसके कमरे में चला आया,तब प्रत्यन्चा ने उससे पूछा...
"आप चाहते क्या हैं?"
"कुछ नहीं,बस तुमसे बात करनी थी",धनुष बोला...
"तो कहिए कि क्या कहना चाहते हैं आप मुझसे",प्रत्यन्चा बोली...
"यही कि कहीं तुम मुझसे नाराज तो नहीं हो,मुझे ठीक से तो याद नहीं है लेकिन कल रात मैंने तुम्हारे संग अच्छा बर्ताव नहीं किया था,क्योंकि आउटहाउस की हालत बता रही है कि कल रात मैंने किस तरह से खाना खाया और कितना फैलाया",धनुष बोला...
" बस कह दिया आपने जो कुछ कहना था आपको ,तो फिर अब जाइए यहाँ से",प्रत्यन्चा बोली...
"और भी कुछ कहना था मुझे तुमसे",धनुष बोला...
"तो कहिए...",प्रत्यन्चा खींझते हुए बोली...
"जाने दो फिर कभी" और ऐसा कहकर वो प्रत्यन्चा के कमरे से चला आया...
उसके चले जाने से इधर प्रत्यन्चा कुढ़कर रह गई,वो सोच रही थी कि शायद धनुष बाबू उससे अपने मन की बात कहने आएँ हैं,लेकिन बात वहीं पर अधूरी ही रह गई और धनुष वहाँ से चला गया,जब वो नाश्ता करने आया तो नाश्ते की टेबल पर उसे पता चला कि प्रत्यन्चा की जल्द ही सगाई होने वाली है और आज शाम प्रत्यन्चा डाक्टर सतीश की माँ के साथ शाँपिंग पर जाने वाली है,ये बात सुनकर वो कुढ़कर रह गया....
फिर नाश्ता करने के बाद वो डाइनिंग टेबल से उठते हुए बोला....
"प्रत्यन्चा! जब तुम नाश्ता कर लो तो आउटहाउस आ जाना,कल रात से वहाँ मेरी जूठी थाली और कल सुबह से चाय का कप पड़ा है,जरा सफाई कर दोगी वहाँ की"
"जी! मैं नाश्ता करके आती हूँ",प्रत्यन्चा ने धीरे से कहा...
धनुष आउटहाउस वापस आ गया और प्रत्यन्चा भी नाश्ता करके आउटहाउस की सफाई करने पहुँची,वो कपड़े से टेबल साफ करने लगी,वहाँ रात में धनुष ने बहुत खाना गिराया था,फिर वो जूठी थाली और कप उठाकर वापस आने लगी तो धनुष प्रत्यन्चा का हाथ पकड़ते हुए बोला....
"रुको! कहाँ जा रही हो,कुछ बात करनी है तुमसे"
"आपका फिर से वही नाटक शुरू हो गया,आपको मुझसे कोई बात नहीं करनी होती,फालतू में मेरा वक्त खराब करते हैं आप! छोड़िए मेरा हाथ, मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी",प्रत्यन्चा गुस्से में आकर बोली...
"बताया नहीं तुमने कि तुम्हारी सगाई होने वाली है",धनुष गुस्से से बोला...
"ये कोई बताने वाली बात नहीं थी",प्रत्यन्चा ऐसा कहकर अपना हाथ छुड़ाकर वापस आने लगी तो धनुष ने सामने से उसका रास्ता रोक लिया,तब प्रत्यन्चा उससे बोली...
"छोड़िए मेरा रास्ता"
"नहीं छोड़ूगा,क्या कर लोगी?"धनुष ने पूछा...
"किस हक़ से आप मेरा रास्ता रोक रहे हैं" प्रत्यन्चा ने पूछा...
"एक दोस्त के हक़ से",धनुष बोला...
"बस...दोस्ती का ही रिश्ता है हम दोनों के बीच",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"हाँ....और क्या?",धनुष बोला...
"तो फिर आप मेरे जाने के नाम से इतना दुखी क्यों होते हैं....बताइए मुझे",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम शायद पागल हो गई हो,तुम्हारे जाने से सब दुखी हैं,दादाजी,पापा,विलसिया काकी और घर के सभी नौकर,इसलिए मैं भी दुखी हूँ",धनुष बोला...
"बस यही बात है",प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! यही बात है",धनुष बोला....
"धनुष बाबू! शायद आप ना मेरी जान लेकर रहेगें",प्रत्यन्चा ये कहते कहते रो पड़ी और आउटहाउस से बाहर निकल गई....
और इधर धनुष धीरे से बुदबुदाया...
"प्रत्यन्चा! काश! मैं तुमसे कह पाता कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ"...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....