लागा चुनरी में दाग़--भाग(५२) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५२)

प्रत्यन्चा उस रात सो ना सकी,एक तो वो भूखी थी, उस पर से डाक्टर सतीश से शादी की बात को लेकर भी वो परेशान थी और आज तो धनुष भी उसे खाना खिलाने उसके कमरे में नहीं पहुँचा था,इसलिए वो और भी ज्यादा उदास थी,उसे पक्का यकीन था कि धनुष बाबू उसे जरूर खाना खिलाने आऐगें और वो उनसे अपने मन की सारी बातें कहकर अपना मन हल्का कर लेगी और उधर धनुष ये सोचकर प्रत्यन्चा को खाना खिलाने नहीं गया था क्योंकि वो सोच रहा था कि अगर अभी इसी वक्त वो प्रत्यन्चा के पास गया तो वो कहीं भावनाओं में बहकर अपने मन की बात प्रत्यन्चा से ना कह दे,क्योंकि उसे अभी ये ठीक से पता नहीं है कि प्रत्यन्चा उसे पसंद करती भी या नहीं,फिर मेरी बात सुनकर ना जाने प्रत्यन्चा कैंसी प्रतिक्रिया दे....
दोनों ही अपनी अपनी उलझनों में उलझे हुए मन को समझाने की कोशिश कर रहे थे,प्रत्यन्चा के मन में ये विचार आ रहा था कि अब उसे इस घर से चले जाना चाहिए,अगर वो अब यहाँ और रही थी तो फिर कोई नया बखेड़ा खड़ा हो जाऐगा.....
और उधर जब डाक्टर सतीश अस्पताल से अपने घर पहुँचे तो शीलवती जी ने उनसे कहा....
"आज मैं दीवान साहब के घर गई थी"
"किसलिए",डाक्टर सतीश ने अपना कोट उतारकर अलमारी में टाँगते हुए कहा...
"तेरे लिए प्रत्यन्चा का हाथ माँगने",शीलवती जी बोली...
शीलवती जी की बात सुनकर डाक्टर सतीश गुस्से से आगबबूला होकर उनसे बोले...
"माँ! ये क्या किया तुमने,मुझसे बिना कोई सलाह लिए तुम प्रत्यन्चा जी का हाथ माँगने चली गई",
"तो क्या गलत किया मैंने,तू अभी तक शादी कर लेता तो मुझे ऐसा नहीं करना पड़ता ना!",शीलवती जी गुस्से से बोली...
तो फिर दीवान साहब ने क्या कहा...
"उन्हें इस रिश्ते से कोई एतराज़ नहीं",शीलवती जी बोलीं...
"और प्रत्यन्चा जी!",डाक्टर सतीश ने पूछा...
"उसने तो मना कर दिया",शीलवती जी बोलीं...
"साफ साफ मना कर दिया क्या उन्होंने",डाक्टर सतीश ने पूछा...
"हाँ! बोली कि मैं ये शादी नहीं कर सकती और ऐसा कहकर वो अपने कमरे में चली गई",शीलवती जी बोलीं...
"जब वो ये शादी नहीं करना चाहती तो तुम क्यों खामख्वाह में उनके पीछे पड़ी हो",डाक्टर सतीश बोले...
"लेकिन बेटा! क्या पता उसकी कोई मजबूरी रही हो,तभी उसने इनकार किया हो,तू चिन्ता मत कर,मैं उसे मना लूँगीं",शीलवती जी बोलीं...
"माँ! अब ये सब फालतू बातें मत करो,बहुत भूख लग रही है मुझे,जल्दी से खाना परोसो" डाक्टर सतीश अपनी माँ से बोले...
फिर दोनों माँ बेटे खाना खाने लगे....

दूसरे दिन सुबह हो चुकी थी और प्रत्यन्चा आज अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थी,सब हैरान थे कि प्रत्यन्चा आखिर अपने कमरे से बाहर क्यों नहीं निकली,तब विलसिया प्रत्यन्चा के कमरे के पास जाकर दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोली....
"बिटिया! दरवाजा खोलो"
और फिर प्रत्यन्चा जैसे तैसे बिस्तर से उठी और दरवाजा खोलकर फिर से बिस्तर पर जा लेटी,विलसिया ने उसके पास जाकर पूछा...
"का हुआ बिटिया! नीचे नाहीं आई अब तक",
"लगता है बुखार हो गया है,हिम्मत ही नहीं हुई बिस्तर से उठने की",प्रत्यन्चा बोली...
"जरा हम तुम्हारा माथा तो देखें ",और ऐसा कहकर जैसे ही विलसिया ने प्रत्यन्चा का माथा छुआ तो उससे बोली...
"ताप तो बहुत तेज है बिटिया! अंगारे के समान शरीर तप रहा है तुम्हारा तो ,तुम आराम करो,हम नीचे जाते हैं,",
इसके बाद नीचे आकर विलसिया ने सबको बताया कि प्रत्यन्चा को तो बहुत तेज बुखार है,विलसिया की बात सुनकर सभी परेशान हो उठे और धनुष दौड़ा दौड़ा प्रत्यन्चा के पास पहुँचा और उसके पास जाकर उसने उसका माथा छुआ,सच में उसे बहुत तेज बुखार था,फिर उसने प्रत्यन्चा से कहा...
"बुखार तो बहुत तेज है,मैं अभी डाक्टर साहब को टेलीफोन करके बुलाता हूँ"
इसके बाद डाक्टर सतीश आए और उन्होंने प्रत्यन्चा की नब्ज देखी,आँखें देखी और बोले...
"लगता है मौसमी बुखार है,मैं कुछ दवाएँ दिए देता हूँ,बस इन्हें आराम करने दीजिए",
और फिर डाक्टर साहब दवाएँ देकर चले गए,इसके बाद भागीरथ जी और विलसिया भी नीचे चले गए,तब धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा....
"चलो! हाथ मुँह धुल लो,मैं तब तक तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाता हूँ"
"मेरा कुछ भी खाने का मन नहीं है",प्रत्यन्चा बोली...
"ऐसे कैंसे खाने का मन नहीं है,रात को भी नहीं खाया तुमने,खाओगी नहीं तो ठीक कैंसे होगी",धनुष बोला...
"अब आप मेरे ज्यादा हितैषी बनने की कोशिश मत कीजिए,अगर इतनी चिन्ता होती आपको मेरी तो आप मेरे लिए कल रात खाना लेकर नहीं आ जाते",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"अच्छा! तो इस बात से नाराज़ होकर तुमने खुद को बुखार चढ़ा लिया",धनुष ने मज़ाक में कहा..
"मज़ाक करने का मन नहीं है मेरा, मैं जब से यहाँ आई हूँ तब से मैंने आपको कभी भूखा नहीं रहने दिया, चाहे आप मुझसे कितने भी खफ़ा हों,मैंने हमेशा आपके खाने का ख्याल रखा है,लेकिन कल रात देख ली मैंने आपकी दोस्ती,पता चल गया मुझे कि आपको मेरी कितनी चिन्ता है",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"मैं तुम्हारे लिए खाना लेकर आना तो चाहता था लेकिन कुछ सोचकर नहीं आया",धनुष ने कहा...
"क्या सोचा आपने ,यही सोचा होगा कि भूखा मरने दो चुड़ैल को",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"नहीं! ऐसा मत बोलो,अब इतना भी बेरहम नहीं हूँ मैं,खैर छोड़ो अब मैं तुम्हारी वैसे ही सेवा करूँगा,जैसे कि तुमने मेरी सेवा की थी",धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा...
"नहीं! मुझे आपकी सेवा की कोई जरुरत नहीं है",प्रत्यन्चा बोली....
"अब तो मैं नहीं ,डाक्टर सतीश करेगें तुम्हारी सेवा,उनसे तुम्हारी शादी जो होने वाली है",धनुष ने मज़ाक करते हुए कहा...
"आप भी यही चाहते हैं क्या कि मेरी शादी उनसे हो जाएँ",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"मैं तो मज़ाक कर रहा था,तुम तो बुरा मान गई",धनुष ने कहा....
"हाँ! आप सबने मेरा मज़ाक ही तो बना रखा है,आप दोस्त होकर दोस्ती नहीं निभाते और जिसका मन करता है तो मुँह उठाकर रिश्ते की बात करने चला आता है,मैं क्या इन्सान नहीं हूँ,मुझे क्या तकलीफ़ नहीं होती, कोई भी मेरा दिल दुखाने में कसर नहीं छोड़ता"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा रोने लगी,तब धनुष ने उसे चुप कराते हुए कहा....
"मैं कल रात खाना खिलाने नहीं आया तो तुम्हें इतना बुरा लग गया",
"हाँ! लग गया बुरा",प्रत्यन्चा रोते हुए बोली...
"अच्छा! अब चुप हो जाओ,आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा",धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा....
"मैं कल रात परेशान थी,सोचा था आप मेरे पास आकर मेरी बात सुनेगें,लेकिन आप नहीं आएँ",प्रत्यन्चा गुस्सा होकर बोली...
"इतना गुस्सा मत करो,नहीं तो तबियत और बिगड़ जाऐगी",धनुष ने कहा...
"मैं मर भी जाऊँ,इससे आपको क्या मतलब है",प्रत्यन्चा बोली....
"मतलब कैंसे नहीं है,अगर तुम मर जाओगी तो फिर मैं झगड़ा किससे करूँगा",धनुष मुस्कुराते हुए बोला...
फिर धनुष की बात सुनकर प्रत्यन्चा रोते रोते मुस्कुरा पड़ी,तब धनुष उससे बोला...
"अच्छा! देवी! चलो अब गुस्सा छोड़ो,हाथ मुँह धो लो,मैं तब तक तुम्हारे खाने के लिए कुछ लेकर आता हूँ",
"ठीक है!,मैं हाथ मुँह धोकर आती हूँ",
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा बाथरुम की ओर चली गई,फिर धनुष प्रत्यन्चा के लिए नाश्ता लेकर आ गया और नाश्ता खिलाकर उसने प्रत्यन्चा को दवा दी,इसके बाद उससे आराम करने को कहा,लेकिन प्रत्यन्चा आराम नहीं करना चाहती थी,वो धनुष से बोली कि आप यहीं बैठिए,मुझे आपसे बातें करनी हैं,फिर धनुष अपना नाश्ता प्रत्यन्चा के कमरे में ले आया और नाश्ता करते करते धनुष ने यूँ ही प्रत्यन्चा से पूछ लिया....
"तुम डाक्टर सतीश से शादी क्यों नहीं करना चाहती प्रत्यन्चा! क्या तुम्हारे मन में कोई और है?
अब प्रत्यन्चा के पास धनुष के सवाल का कोई जवाब नहीं था और धनुष ने प्रत्यन्चा से ये सोचकर ऐसा सवाल किया था कि शायद प्रत्यन्चा अपने मन की बात उसे बता दे,क्योंकि धनुष तो प्रत्यन्चा को पसंद करने लगा था और अगर प्रत्यन्चा भी ये कह दे कि मुझे आप पसंद हैं तो फिर तो धनुष के वारे न्यारे हो जाऐंगे, लेकिन प्रत्यन्चा कुछ नहीं बोली,वो तो चुप्पी साधकर रह गई थी और प्रत्यन्चा की चुप्पी ने धनुष को असमंजस में डाल दिया था...
तब धनुष ने प्रत्यन्चा से दोबारा कहा...
"तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया प्रत्यन्चा!"
"मेरे पास आपके सवाल का कोई जवाब नहीं है",प्रत्यन्चा ने गुस्से से कहा....
"तो मैं इसका क्या मतलब समझूँ कि शायद तुम किसी और को चाहती हो", धनुष ने कहा...
"क्योंकि मेरी पहले शादी हो चुकी है" प्रत्यन्चा अचानक से बोल पड़ी....
प्रत्यन्चा की बात सुनकर धनुष को धक्का सा लगा और वो उससे बोला...
"तुम मज़ाक कर रही हो ना! प्रत्यन्चा!"
"नहीं! ये सच है",प्रत्यन्चा बोली....
अब प्रत्यन्चा की बात सुनकर धनुष स्तब्ध सा रह गया....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...