धनुष प्रत्यन्चा से बदला लेने की नई तरकीब सोचने लगता है,लेकिन उसे कोई भी तरकीब ना सूझी, फिर वो रात के वक्त हताश होकर क्लब चला गया,वहाँ उसकी मुलाकात उसके पुराने दोस्त सिद्धार्थ से हुई, धनुष का उतरा हुआ चेहरा देखकर सिद्धार्थ ने उससे पूछा....
"क्या बात है भाई! तू तो हरदम खुश नज़र आता था,लेकिन आज तेरी शकल पर बारह क्यों बजे हुए हैं"
"मत पूछ यार! एक आफत गले पड़ गई है,बस उसी से पीछा छुड़ाने की तरकीब निकाल रहा हूँ,पिछली बार मैंने एक चाल चली थी उसके खिलाफ और मुँह के बल औंधा गिरा,ना जाने वो आफत कब मेरा पीछा छोड़ेगी और तो और उसने मेरे पापा और दादा जी पर भी जादू कर रखा है,वो जो चाहती है वही होता है मेरे घर में", धनुष बोला...
"ऐसा लगता है बहुत बुरी बला से पाला पड़ा है तेरा,कौन है वो जरा मुझे भी खुलकर बता",सिद्धार्थ ने कहा...
"भाई! ना जाने कौन है,उसके बारें में मैं कुछ नहीं जानता,उसे तो दादाजी सड़क से उठाकर लाएँ थे और घर में आते ही वो घर की मालकिन बनकर बैठ गई है,उसके आगे दादाजी मुझे कुछ भी नहीं समझते",धनुष बोला...
"ओह....तो ये है तेरी समस्या",सिद्धार्थ बोला....
"हाँ! यार! मैं उससे जल्द से जल्द पीछा छुड़ाना चाहता हूँ,वो समस्या नहीं समस्याओं की माँ है....माँ",धनुष बोला...
"लेकिन है कौन वो,किस गाँव से आई है,कोई रिश्तेदारहै उसका?",सिद्धार्थ ने धनुष से पूछा....
"भाई! ये सब मुझे कुछ नहीं मालूम,शायद ये सब तो दादाजी को भी नहीं पता,मुझे लगता है कि उसका अपना कोई नहीं है,क्योंकि जब उसे पिछली बार घर से निकाला गया था तो वो एक अनाथालय में चली गई थी, अगर उसका कोई अपना होता तो वो वहाँ क्यों जाती",धनुष बोला....
"इसका मतलब है कि वो बेसहारा है",सिद्धार्थ बोला....
"हाँ! मुझे तो ऐसा ही लगता है",धनुष बोला....
"तब तो तू चिन्ता मत कर,मैं तेरी आफत को तुझसे दूर कर सकता हूँ",सिद्धार्थ बोला....
"वो भला कैंसे?",धनुष ने पूछा....
"बस तू ये बता कि कल शाम तू क्या कर रहा है",सिद्धार्थ बोला...
"अभी तो कोई प्लान नहीं है कल शाम का,लेकिन तू मुझसे ये सब क्यों पूछ रहा है",धनुष ने सिद्धार्थ से कहा.....
"बस! तू मुझे बता कि उसकी उम्र कितनी है और वो देखने में कैंसी है",सिद्धार्थ ने पूछा....
"उसकी उम्र होगी कोई अठारह-उन्नीस,देखने में गोरी है और शक्ल भी बुरी नहीं है",धनुष बोला....
"तो अब बस तू तमाशा देख और देखना कि मैं क्या करता हूँ",सिद्धार्थ बोला....
"भाई! कोई ऐसी वैसी हरकत मत करना,माना कि मुझे उससे खुन्नस है ,लेकिन वो एक शरीफ़ लड़की है", धनुष बोला....
"मैं ऐसा वैसा कुछ भी नहीं करूँगा,बस तुझे उसकी सच्चाई पता चल जाऐगी",सिद्धार्थ बोला...
"तू करने क्या वाला है?",धनुष ने पूछा....
"बस! तू कल ही देखना कि मैं क्या करने वाला हूँ,वो तेरा घर यूँ चुटकियों में छोड़कर चली जाऐगी,बस तू वहाँ मौजूद मत रहना,मेरे आने के कुछ देर के बाद वहाँ आना",सिद्धार्थ बोला...
"तू कुछ भी कर लेकिन उसे घर से निकलवा दे,मैं जिन्दगी भर तेरे चरण धो धोकर पिऊँगा",धनुष बोला....
"तुझे मेरे चरण धो धोकर पीने की जरूरत नहीं है मेरे यार! तू तो बस मेरे साथ ये रम पी",
और फिर सिद्धार्थ के ऐसा कहने पर दोनो क्लब में बैठकर रम पीने लगे,उस रात धनुष आधी रात के बाद आउटहाउस लौटा और आकर सो गया....
और सुबह नाश्ते के बाद जब प्रत्यन्चा अपने कमरे में चली गई तो तेजपाल जी तैयार होकर दफ्तर जाने के लिए निकलने वाले थे,तब उन्होंने भागीरथ जी पूछा....
"वो लड़की कहाँ है?",
"क्यों? तुझे उससे क्या काम है?",भागीरथ जी ने पूछा...
"काम है तभी तो पूछ रहा हूँ कि वो कहाँ है"?,तेजपाल जी बोले....
"तुझसे कित्ती बार कहा है कि उसका नाम प्रत्यन्चा है,तो फिर तू उसे लड़की...लड़की कहकर क्यों पुकारता रहता है",भागीरथ जी बोले....
"अच्छा! तो बताइए प्रत्यन्चा देवी कहाँ है,माननीय बाबूजी!",तेजपाल जी ने भागीरथ जी से कहा...
"होगी अपने कमरे में,अगर तुझे उसकी जरूरत है तो आवाज़ देकर क्यों नहीं बुला लेता उसे,हम क्यों बुलाएँ उसे",भागीरथ जी बोले....
"बाबूजी! आप भी ना! किसी बच्चे से कम नहीं हैं,ठीक है! मैं ही बुला लेता हूँ उसे"
और ऐसा कहकर तेजपाल जी ने प्रत्यन्चा को आवाज़ लगाई....
"प्रत्यन्चा....ओ प्रत्यन्चा बिटिया!"
"जी! चाचाजी! अभी आई"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा अपने कमरे से बाहर आई,फिर सीढ़ियाँ उतरकर उसने तेजपाल जी के पास आकर पूछा....
"जी! चाचाजी! आपने मुझे बुलाया"
"हाँ! बेटा! शाम को कुछ मेहमान आने वाले हैं,व्यापार के मद्देनजर एक डील पक्की करनी हैं,मैंने उनसे रेस्तराँ में मिलने को कहा था,लेकिन वे लोग बोले कि रेस्तरांँ का खाना खा खाकर वो पक चुके हैं,वहाँ का खाना उनके गले नहीं उतरता,इसलिए मैंने उन्हें घर बुला लिया,तो क्या तुम शाम को दो चार लोगों के लिए अच्छा सा खाना बना लोगी?"
"जी! चाचाजी! मैं बना लूँगी,लेकिन ये बता देते कि क्या क्या बनाना है तो मुझे जरा सहूलियत हो जाती", प्रत्यन्चा बोली....
"इस मामले में तो तू खुद बहुत समझदार हैं,जो जी में आएँ तो अपनी समझ से बना लेना",तेजपाल जी बोले....
"ठीक है! मैं विलसिया काकी से पूछ लूँगी",प्रत्यन्चा बोली....
"ठीक है तो तुम उसी से पूछ लेना कि क्या क्या बनेगा,मैं अब चलता हूँ, शाम को सात बजे मिलते हैं,सब तैयार रहना चाहिए,मेरी नाक मत कटवाना सबके सामने", तेजपाल जी ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ प्रत्यन्चा के सिर पर रखते हुए कहा....
"जी! चाचाजी! आप इत्मीनान रखें,मैं वक्त पर सब तैयार कर लूँगी"प्रत्यन्चा बोली....
"मेरी अच्छी बेटी!",
ऐसा कहकर तेजपाल जी दफ्तर की ओर निकल गए और भागीरथ जी प्रत्यन्चा के प्रति तेजपाल का व्यवहार देखकर मंद मंद मुस्कुरा दिए....
इसके बाद प्रत्यन्चा फौरन ही विलसिया काकी को बुलाने उनके सर्वेन्ट क्वार्टर पहुँच गई और उनसे शाम के खाने के लिए सलाह लेने लगी कि क्या क्या बनेगा....
फिर प्रत्यन्चा दोपहर से खाना बनाने में लग गई और शाम होने से पहले पहले वो खाना तैयार कर भी चुकी,उसने खाने में मलाई कोफ्ता,भरवाँ बैंगन,दम आलू,बेसन गट्टे की सब्जी,दाल मक्खनी,पुलाव,दो तरह की चटनी,उड़द दाल कचौरियांँ,दही बड़े,सलाद,पूरियाँ,पापड़ और मीठे में गुलाब जामुन बनाएँ,इतना सबकुछ तैयार करके वो तेजपाल जी के आने का इन्तजार करने लगी और तभी घर के भीतर एक नवजवान घुसा और वो प्रत्यन्चा....प्रत्यन्चा....करके पुकारने लगा,जब प्रत्यन्चा उसे दिखाई ना दी वो जोर जोर से कहने लगा....
"प्रत्यन्चा....कहाँ हो तुम,क्या कोई ऐसे रुठकर घर छोड़ देता है,पता है मैं कब से तुम्हें ढूढ़ रहा हूँ,अब जाकर पता लगा कि तुम तो यहाँ रह रही हो"
और तभी भगीरथ जी वहाँ आएँ और उन्होंने उस नवजवान से पूछा....
"बरखुर्दार! कौन हो तुम और कहाँ घुसे चले आ रहे हो,चौकीदार ने तुम्हें भीतर कैंसे आने दिया"?
"जी! मैं प्रत्यन्चा को लेने आया हूँ",वो नवजवान बोला....
"ये क्या कह रहे हो तुम,तुम्हारा प्रत्यन्चा से क्या रिश्ता है"?,भागीरथ जी ने पूछा...
"जी! वो मेरी सबकुछ है",वो नवजवान बोला....
"वो तुम्हारी सबकुछ है........क्या मतलब है तुम्हारे कहने का",भागीरथ जी ने पूछा....
"जी! वो मेरी पत्नी है और मैं उसे लेने आया हूँ",वो नवजवान बोला...
"ये क्या बकते हो तुम,भला ! प्रत्यन्चा तुम्हारी पत्नी कैंसे हुई",भागीरथ जी ने पूछा....
"एक रात हम दोनों का झगड़ा हुआ और वो घर छोड़कर ना जाने कहाँ चली गई,तब से मैं उसे ढूढ़ रहा हूँ",वो नवजवान बोला...
"अभी हम प्रत्यन्चा को बुलाकर पूछते हैं कि क्या बात है",भागीरथ जी बोले....
और फिर प्रत्यन्चा को बुलाया गया और प्रत्यन्चा ने साफ साफ इनकार कर दिया कि वो उस इन्सान को नहीं जानती और उससे उसका कोई रिश्ता नहीं है,तब तक धनुष वहाँ पर आ पहुँचा और वो भागीरथ जी से बोला....
"देखा! दादाजी! अब इसकी सच्चाई सबके सामने आ गई ,तो ये अपने पति के साथ जाने से इनकार करती है",
"ये मेरा पति नहीं है",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली....
"हाँ! अब कोई इतना ऐश-ओ-आराम छोड़कर थोड़े ही जाना चाहेगा यहाँ से",धनुष बोला...
"तू चुप कर! तेरी वजह से एक बार हम इस बच्ची को खोते खोते बचे हैं, अब फिर से वही गलती नहीं दोहराऐगें,हम अभी पुलिस को यहाँ बुलाते हैं,सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा"
और ऐसा कहकर भागीरथ जी पुलिस को टेलीफोन लगाने लगे....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा....