लागा चुनरी में दाग़--भाग(३३) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३३)

जब उस नवयुवक ने देखा कि भागीरथ जी पुलिस को बुलाने वाले हैं तो वो डर गया और उसने उनसे कहा....
"आप पुलिस को क्यों बुलाना चाहते हैं,ये हमारा निजी मामला है,इसे हम दोनों आपस में निपट लेगें"
उस नवयुवक की बात सुनकर प्रत्यन्चा गुस्से से बोली....
तब वो नवयुवक बोला....
"ऐ....कौन सा निजी मामला,मैं तो तुम्हें जानती भी नहीं,दादा जी! आप फौरन पुलिस को बुलाइए"
"ये तुम क्या कह रही हो प्रत्यन्चा! मैं तुम्हारा पति हूँ,क्यों सारी दुनिया के सामने मेरा तमाशा बना रही हो, अपना गुस्सा थूक दो,चलो ना घर चलते हैं,जो भी तुम्हें कहना सुनना है घर में कहना,यूँ सर-ए-बाज़ार मेरी इज्ज़त उछाल कर भला तुम्हें क्या मिलेगा ,झगड़ा तो सभी के घरों में होता है लेकिन किसी की पत्नी ऐसा नहीं करती ,जैसा कि तुम कर रही हो",
"ऐ....तुम्हारा दिमाग़ ठिकाने पर तो है ना! मान ना मान,मैं तेरा मेहमान,इतनी देर से मैं तुम्हारी नौटंकी देख रही हूँ ,अब आगे एक भी शब्द कहा तो मैं तुम्हारा मुँह तोड़ दूँगी समझे! अब तो यहाँ पुलिस जरूर आऐगी, जब पुलिस तुम्हें दो डण्डे लगाऐगी ना तभी तुम बताओगे कि तुम कौन हो",प्रत्यन्चा ने गुस्से में आकर उस नवयुवक से कहा....
"प्रत्यन्चा! माना कि शराब पीकर मैंने तुम पर हाथ उठा दिया था तो क्या तुम मुझे उसकी इतनी बड़ी सजा दोगी",वो नवयुवक फिर से बोला....
अब तो प्रत्यन्चा के गुस्से का पार ना था और उसने उस नवयुवक के पास जाकर उसके गाल में एक झन्नाटेदार झापड़ रसीद दिया,इसके बाद वो नवयुवक अपना गाल पकड़कर रह गया और तब प्रत्यन्चा के ऐसा करने से धनुष बहुत डर गया,उसे लगने लगा कि कहीं ऐसा ना हो कि अब सिद्धार्थ उसका नाम ले ले और वो फँस जाएँ इसलिए वो भागीरथ जी बोला...
"दादाजी! ये अच्छी बात नहीं है,किसी मासूम पर इतना अत्याचार शोभा नहीं देता"
"मासूम और ये.....धनुष बाबू! आपको ये इन्सान कहाँ से मासूम दिखाई देता है,ये तो मुझे छटा हुआ बदमाश दिखाई देता है",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली.....
इस चिल्लमचिल्ली के बीच अभी तक भागीरथ जी पुलिस को टेलीफोन नहीं कर पाएँ थे,वो तो उस नवयुवक को पुलिस का नाम लेकर यूँ ही धमका रहे थे,वे नहीं चाहते थे कि घर में पुलिस आएँ और बात का बतंगड़ बन जाएँ ,फिर तभी उसी चिल्लमचिल्ली के बीच तेजपाल जी अपने मेहमानों के साथ घर पर पधारे और घर का माहौल देखकर अवाक् रह गए ,तब उन्होंने सभी से पूछा....
"यहाँ चल क्या रहा है और ये लड़का कौन है"?
तभी उनके मेहमानों से एक ने उस नवयुवक से पूछा....
"अरे! सिद्धार्थ ! तुम ! यहाँ क्या कर रहे हो?",
"जी! डैडी! आप!",सिद्धार्थ बोला....
"हाँ! मैं तो यहाँ एक डील के सिलसिले में आया था लेकिन तुम यहाँ क्या करने आए हो?",उन मेहमान ने सिद्धार्थ से पूछा.....
तभी तेजपाल दीवान जी ने उन मेहमान से पूछा....
"अग्रवाल साहब! क्या ये आपका बेटा है?",
"जी! हाँ! ये मेरा ही कपूत है",अग्रवाल साहब बोले....
"लेकिन आप इसे कपूत क्यों कह रहे हैं"?,तेजपाल जी ने अग्रवाल साहब से पूछा....
तब अग्रवाल साहब बोले....
"नेक होता तो इसे मैं सपूत कहता लेकिन इसमें सपूतों वाले कोई गुण ही नहीं है,दिनभर आवारागर्दी, इस क्लब से उस क्लब,सैर-सपाटा,लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाना,शराब पीना और घर आकर मगरमच्छ की तरह बिस्तर पर पसर जाना और अगर कुछ बोलो तो ततैया की तरह गुस्से में भनभना जाना,तो बताइए मैं इसे कपूत ही कहूँगा ना! इसकी बेचारी माँ इसकी हरकतें देखकर मन ही मन में कुढ़ती रहती है,इसी की वजह से वो अकसर बीमार रहती है,लेकिन इसे तो उसकी भी परवाह नहीं है"
"ओह....तो ये बात है",तेजपाल जी बोले....
"लेकिन एक बात समझ नहीं आई,ये यहाँ कैंसे",अग्रवाल साहब बोले....
"शायद! आपका कपूत मेरे कपूत से मिलने आया होगा",तेजपाल जी बोले....
तभी भागीरथ जी बीच में मज़ा लेते हुए बोल पड़े....
"नहीं...नहीं....अग्रवाल साहब! ये धनुष से मिलने नहीं आया था,ये तो आपकी रुठी हुई बहू को मनाने आया था"
"बहू....लेकिन अभी तो इसकी शादी भी नहीं हुई तो बहू कहाँ से आ गई",अग्रवाल साहब बोले...
"अब ये तो हमें नहीं मालूम कि बिना शादी के बहू कहाँ से आ गई,शायद आपके सवाल का जवाब आपका कपूत ही ठीक से दे पाऐगा,आप ये सवाल उसी से क्यों नहीं पूछ लेते",भागीरथ जी मुस्कुराते हुए बोले....
तब अग्रवाल साहब ने सिद्धार्थ से पूछा....
"तो अब बोलो बरखुरदार! तुमने शादी कब की"?
तब सिद्धार्थ ने एक डरी हुई मुस्कुराहट के साथ अग्रवाल साहब के सवाल का जवाब देते हुए कहा...
"डैडी!....वो....तो बस ऐसे ही,मैं और धनुष दोनों मिलकर प्रत्यन्चा के साथ थोड़ा सा मज़ाक कर रहे थे"
"मज़ाक....ये कैंसा बेहूदा मज़ाक हुआ भला! किसी भली लड़की के साथ ऐसा मज़ाक,क्या तुम्हें ये सब शोभा देता है",अग्रवाल साहब गुस्से से बोले....
तब बात को सम्भालते हुए धनुष अग्रवाल साहब से बोला....
"हाँ! अंकल! हम दोनों तो प्रत्यन्चा से केवल मज़ाक कर रहे थे बस,हमें क्या मालूम था कि हमारे मज़ाक से इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो जाऐगा",
ये सब सुनकर तेजपाल जी का गुस्सा ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा और वे धनुष से बोले....
"धनुष! मुझे नहीं मालूम था कि तुम इस बच्ची को नीचा दिखाने के लिए इस हद तक गुजर सकते हो,तुम इसे घर से बाहर निकालने में कामयाब नहीं हो पाएँ तो तुमने अपने दोस्त के साथ मिलकर ऐसा नाटक रच डाला, कभी कभी तो मुझे ये सोचकर शर्म आती है कि तू मेरी औलाद है,अब यहाँ क्या खड़ा है जा यहाँ से और अपने इस वफादार दोस्त को भी अपने साथ ले जाना मत भूलना"
अब वक्त की नजाकत को देखते हुए धनुष ने वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी ,फिर उसने सिद्धार्थ का हाथ पकड़ा और वो उसे भी अपने संग आउट हाउस ले गया,आउट हाउस पहुँचकर सिद्धार्थ ने धनुष से कहा....
"अपने साथ साथ आज तूने मेरी भी फजीहत करा दी,डैडी ने मुझे सबके सामने जलील किया सो वो अलग और डैडी का ये अलाप अब महीने पल भर तक चलता रहेगा कि मैं दूसरों के घर जाकर ऐसी हरकतें करता हूँ,वो महीने भर मुझे चैन से नहीं जीने देगें,उस पर अगर माँ को कुछ पता चल गया तो वो और भी ज्यादा बीमार हो जाऐगी"
तब धनुष सिद्धार्थ की बात सुनकर बोला....
"तू कल तो बहुत बड़ी बड़ी डींगें हाँक रहा था मुझसे,कह रहा था कि चिन्ता मत कर, मैं सब सम्भाल लूँगा और अब क्या हो गया,आज निकल गई ना तेरी सारी हेकड़ी,उस पिद्दी सी लड़की के आगे फुस्स हो गया ना तू!"
"सच भाई! वो लड़की नहीं आफत है....आफत,अब मैं उससे कभी ना उलझूँगा,तेरा मामला है तू ही सम्भाल, मुझे बख्श दे मेरे भाई!,उसने जो झन्नाटेदार झापड़ मारा था ना मेरे गाल पर तो अभी तक जल रहा है,क्या तगड़ा हाथ पड़ा था,कहीं वो पहले पहलवान तो नहीं थी ",सिद्धार्थ खौंफ खाते हुए बोला...
"हाँ! सच कहा तूने,गाँव की लड़की है,असली घी दूध खाई,मुझे भी झापड़ धर चुकी है पहले,उस लड़की से जीतना इतना भी आसान नहीं,हमेशा फँस जाता हूँ मैं ,उसे फँसाने के चक्कर में",धनुष बोला...
"तो मत उलझ उससे,बताएँ देता हूँ फिर से फँसेगा"सिद्धार्थ बोला...
"नहीं! यार! मैं आसानी से हार नहीं मानूँगा,उसे घर से निकालकर ही दम लूँगा",धनुष बोला...
"तू अगर नहीं सुनना चाहता है मेरी बात, तो फिर कर ले अपने मन की,फिर बाद में मत कहना कि मैंने तुझे समझाया नहीं",सिद्धार्थ बोला...
"हाँ! नहीं कहूँगा",सिद्धार्थ बोला....
और दोनों के बीच यूँ ही बातें चलतीं रहीं....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....