लागा चुनरी में दाग़--भाग(५३) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५३)

प्रत्यन्चा की शादी की बात सुनकर जब धनुष कुछ देर तक कुछ नहीं बोला तो प्रत्यन्चा ने उससे पूछा...
"क्या हुआ? मेरी शादी की बात सुनकर अब आपको कोई सवाल नहीं पूछना मुझसे"
"ऐसी बात नहीं है,मैं कुछ सोच रहा था",धनुष बोला...
"अब ये बात सुनकर शायद आपको मुझसे नफरत होने लगी होगी",प्रत्यन्चा बोली...
"नहीं! ऐसा कुछ नहीं है",धनुष मायूस होकर बोला...
"ऐसा ही तो है,तभी तो आप कुछ बोल नहीं रहे हैं",प्रत्यन्चा बोली...
"मुझे कुछ समझ में नहीं रहा है कि अब मैं क्या बोलूँ तुमसे और क्या पूछूँ",धनुष ने कहा...
"आप और सवाल पूछिए मुझसे,आज मैं आपके सभी सवालों के जवाब दूँगीं",प्रत्यन्चा ने दृढ़ होकर कहा...
"अच्छा! तो ये बताओ कि तुम्हारे पति कहाँ है इस वक्त?",धनुष ने पूछा....
"वे भगवान के पास हैं,उनकी मृत्यु हो चुकी है",प्रत्यन्चा ने जवाब देते हुए कहा...
"तो उनका परिवार कहाँ हैं,कोई तो होगा तुम्हारे पति के परिवार में",धनुष ने पूछा...
"कोई नहीं बचा उनके परिवार में,सबकी मृत्यु हो चुकी है",प्रत्यन्चा ने दृढ़ता से जवाब दिया...
"और तुम्हारे माँ बाप"?,धनुष ने पूछा...
"उन्होंने मुझे अपने घर में रखने से इनकार कर दिया",प्रत्यन्चा बोली....
"तो तुमने आज तक ये बात हम सब से छुपाकर क्यों रखी",धनुष ने पूछा...
"मैं अपना दुखड़ा किसी के सामने नहीं रोती और अब वैसे भी मेरी सच्चाई जानने के बाद आपलोग मुझे अपने घर में रखने वाले नहीं है,ये मुझे अच्छी तरह से मालूम है",प्रत्यन्चा बोली...
"ऐसा तुमने कैंसे सोच लिया",धनुष ने कहा....
"एक ऐसी औरत जो कि शादी के चंद महीनों बाद विधवा हो गई हो,भला ऐसी कुलच्छनी को कौन अपने घर में पनाह देगा",
और यह कहकर प्रत्यन्चा फूट फूटकर रोने लगी,बाहर खड़ी विलसिया उन दोनों की बातें सुन रही थी,वो उस समय प्रत्यन्चा के लिए फल लेकर आई थी,फिर जब उसने प्रत्यन्चा की सच्चाई सुनी तो फौरन ही भीतर आकर बोली...
"बिटिया! हमने सब सुन लिया है,तुम ई घर को छोड़कर नाहीं जाओगी"
"लेकिन काकी! अब मेरे लिए इस घर में और रहना ठीक नहीं है" प्रत्यन्चा बोली...
"काहें ठीक नाहीं है,सब ठीक है बिटिया! तुम्हारा विधवा होना तो भाग्य की बात है,भला किस्मत का लिखा कौन बदल सकता है,अब ऊ सब पुरानी बातें भूलकर,नई जिन्दगी की शुरुआत करो,अगर डाक्टर बाबू तुम्हारी सच्चाई जानकर भी तुमसे शादी करने को राजी हो जाते हैं तो तुम उनके साथ घर बसा लेना, काहे से जिन्दगी ऐसे मौके बार बार नहीं देती", विलसिया बोली....
"लेकिन शादी,वो भी डाक्टर बाबू से,मैं उनसे शादी नहीं कर सकती", प्रत्यन्चा बोली...
तब विलसिया प्रत्यन्चा से बोली....
"काहें नहीं करोगी उनसे शादी,बड़े नेक इन्सान है वो और उनकी माताजी भी बहुत अच्छी हैं, बिटिया! अकेली औरत का जीवन काटना बहुत कठिन होता है,उसे हमेशा पुरुष के सहारे की जरूरत होती है,वरना ये दुनियावाले उसका जीना दूर्भर कर देते हैं,हमका देखो,हमरे ऊपर तो बड़े मालिक का हाथ रहा,ऐही से हमार जीवन अकेले कट गया,लेकिन तुम्हारे तो माँ बाप भी तुम्हार साथ ना दिए,ऐही से डाक्टर बाबू से शादी करे मा ही तुम्हार भलाई है",
"नहीं! काकी! मुझसे शादी करके उनकी जिन्दगी बरबाद हो जाऐगी",प्रत्यन्चा विलसिया से बोली....
"नाहीं बिटिया! ऐसा ना कहो,तुमसे ब्याह करके उनकी जिन्दगी बरबाद नहीं सँवर जाऐगी,भला तुमसे अच्छी नेकदिल लड़की उन्हें कहाँ मिलेगी",विलसिया बोली...
"काकी! ये ठीक नहीं है",प्रत्यन्चा बोली...
"ये ही ठीक है बिटिया! अबहीं हम बड़े मालिक से जाकर सब कहते हैं और शाम को सतीश बाबू और उनकी माँ को घर बुलवाकर रिश्ता पक्का करवाएँ देते हैं"
और ऐसा कहकर विलसिया जल्दी से नीचे पहुँची और उसने सबकुछ भागीरथ जी को बता दिया,पहले तो भागीरथ जी प्रत्यन्चा के बारें में सुनकर थोड़े हैरान हुए लेकिन फिर उन्होंने बात को बारीकी से समझा और फिर विसलिया से बोले....
"प्रत्यन्चा सीने में इतना बड़ा दर्द छुपाकर जी रही थी,इतनी सी उम्र में इतना बड़ा दुखो का पहाड़ टूट पड़ा उस पर,अब हम उसे और दुख उठाने नहीं देगें,क्या हुआ जो उसके माँ बाप ने उसे नहीं अपनाया,अब हम उसे अपनी बेटी बनाकर उसकी शादी करके इसी घर से विदा करेगे,देखना दुनिया देखती रह जाऐगी",
"भगवान आपका भला करे बड़े मालिक! ईश्वर ने आपको हम जैसी अबलाओं की मदद करने के लिए ही धरती पर भेजा है,अगर प्रत्यन्चा बिटिया की दोबारा शादी हो जाऐगी तो उसकी जिन्दगी सँवर जाऐगी", विलसिया बोली....
"हम अभी डाक्टर सतीश को टेलोफोन करते हैं कि शाम को अपनी माँ को लेकर हमारे घर आ जाएँ" भागीरथ जी बोले...
"हाँ! बड़े मालिक! उन्हें बिटिया की सारी सच्चाई बताकर फौरन ब्याह पक्का कर दीजिए",विलसिया बोली..
"हाँ! अब यही होना चाहिए,हम तेजपाल के दफ्तर में भी टेलीफोन कर देते हैं कि वो शाम को जल्दी घर आ जाएँ,भागीरथ जी बोले...
उधर नीचे विलसिया और भागीरथ जी के बीच बातें चल रहीं थीं और इधर धनुष प्रत्यन्चा से बोला...
"अगर डाक्टर सतीश ने तुम्हारी सच्चाई जानकर तुमसे शादी के लिए हाँ कर दी तो तुम उनसे शादी कर लोगी"
"मालूम नहीं",प्रत्यन्चा बोली...
"मालूम नहीं का क्या मतलब होता है,साफ साफ जवाब क्यों नहीं देती मेरे सवाल का",धनुष गुस्से से बोला...
"नहीं...मालूम ना.... बार बार ये सवाल पूछ कर आप मेरी जान क्यों खा रहे हैं"प्रत्यन्चा गुस्से पर काबू ना रख सकी...
"मैं तुम्हारी जान खा रहा हूँ....या तुम मेरी जान खा रही हो,एक सवाल ही तो पूछा है मैंने तुमसे ,उसका भी जवाब नहीं दिया जा रहा",धनुष गुस्से से बोला...
"क्या जवाब दूँ मैं आपके सवाल का.....बोलिए ना क्या जवाब दूँ,कह तो चुकी हूँ कि अभी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ....लेकिन नहीं ...फिर भी...", प्रत्यन्चा गुस्से से बोली....
"क्या फिर भी....बताओ ना कि क्या फिर भी...ये क्यों नहीं कहती कि तुम उन्हें पसंद करती हो,वे तुम्हारी नज़रों में वे एक अच्छे इन्सान हैं,मेरी तरह लड़कीबाज़ और शराबी नहीं हैं",धनुष गुस्से से बोला....
"अगर आपको यही लगता है तो यही सही है,हाँ...वे हैं एक अच्छे इन्सान",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"मतलब तुम भी उन्हें पसंद करती हो",धनुष ने पूछा...
"मैंने ऐसा तो नहीं कहा",प्रत्यन्चा बोली...
"जब वो अच्छे इन्सान हैं तो फिर कर लो उन्हीं से शादी",धनुष गुस्से से बोला...
"हाँ...अब मैं उन्हीं से शादी करूँगी, इस घर से चली जाऊँगीं तो कम से कम से आपसे पीछा तो छूटेगा मेरा,जब देखो तब झगड़ा...झगड़ा...तंग आ गई हूँ मैं आपसे",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"मुझसे तंग आ गई हो तो जाओ फिर मरो उसी डाक्टर सतीश के साथ...खामख्वाह में मेरी वजह से तुम्हारी खुशियों में खलल पड़ रहा है",धनुष गुस्से से बोला...
"हाँ...मैं अब उन्हीं के साथ मरूँगी....और बोलो क्या कर लेंगे आप", इतना कहकर प्रत्यन्चा रोने लगी...
"अब ये घड़ियाली टेसूएँ बहाने से कोई फायदा नहीं,मैं तुम्हारी सच्चाई जान चुका हूँ कि तुम कैंसी लड़की हो", धनुष ने गुस्से से कहा...
"कैंसी सच्चाई...बोलिए..कि कैंसी सच्चाई",ऐसा पूछते वक्त प्रत्यन्चा की आँखों से आग बरस रही थी...
"मुझे नहीं मालूम", और ऐसा कहकर धनुष प्रत्यन्चा के कमरे से जाने लगा तो प्रत्यन्चा बोली...
"पूरी बात तो बताकर जाइए...."
लेकिन फिर धनुष उसके कमरे में नहीं रुका और बिना मुड़े ही वो प्रत्यन्चा के कमरे से चला गया...
और फिर शाम को डाक्टर सतीश और उनकी माँ भागीरथ जी के घर आएँ,तब भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा की सारी सच्चाई उन दोनों को बता दी,तब शीलवती जी भागीरथ जी की बात सुनकर बोलीं....
"बस इतनी सी बात के लिए प्रत्यन्चा ने शादी के लिए मना कर दिया,दीवान साहब! मैं ये सब दकियानूसी बातें नहीं मानती,वो विधवा हो गई तो उसमें उस बेचारी का क्या दोष,जीवन मरण तो सब ईश्वर के हाथ में हैं,लेकिन मुझे ये जानकर ताज्जुब हो रहा है कि ऐसी संस्कारी बच्ची को उसके माँ बाप क्यों ना अपना सकें"
"और डाक्टर साहब! आपकी क्या राय है,आपकी माता जी के फैसले पर", तेजपाल जी ने डाक्टर सतीश से पूछा...
"जिसमें माँ खुश तो मैं भी खुश",डाक्टर सतीश बोले...
"मतलब! आपको ये रिश्ता मंजूर है",भागीरथ जी ने पूछा...
"लेकिन मैं भी आपलोगों से एक सच बताना चाहता हूँ",डाक्टर सतीश ने कहा...
"वो क्या?",भागीरथ जी ने पूछा...
"जी! मैं पहले एक लड़की को पसंद करता था,हमारी सगाई भी होने वाली थी,लेकिन वो किसी कारणवश मुझे छोड़कर विलायत चली गई",डाक्टर सतीश ने कहा...
"जी! हमें कोई एतराज़ नहीं",भागीरथ जी बोले...
"ये बात प्रत्यन्चा को भी पता है",शीलवती जी बोलीं....
और फिर क्या था,उस शाम डाक्टर सतीश और प्रत्यन्चा का रिश्ता तय हो गया,डाक्टर सतीश ने धनुष को मिठाई खिलाई जो कि धनुष ने गैरमन से खाई और वो भीतर ही भीतर कुढ़कर रह गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....