लागा चुनरी में दाग-भाग(२५) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग-भाग(२५)

दोपहर का वक्त बीत चुका था,सब आराम करके अपने अपने कमरों से बाहर आ चुके थे,फिर तेजपाल जी तैयार होकर किसी काम से बाहर निकल गए थे,अब घर में भागीरथ जी,विलसिया,प्रत्यन्चा और नौकर ही रह गए थे....
रही धनुष की बात तो वो अपने आउटहाउस में था,फिर शाम की चाय बनी तो भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले...
"जा! उसे भी बुला ला,उसे ये आलू के कटलेट बहुत पसंद हैं,खासकर विलसिया के हाथों के बने हुए,क्योंकि विलसिया बहुत अच्छे आलू के कटलेट बनाती है,उसने बहू से बनाने सीखे थे"
"दादा जी! आप के कहने पर मैं युद्ध के मैदान में युद्ध लड़ने चली जाऊँगीं,लेकिन आप मुझे धनुष बाबू को बुला लाने के लिए मत कहिए",प्रत्यन्चा बोली...
"मैं सनातन या पुरातन को भेजूँगा तो वो नहीं आऐगा,इसलिए जा के तू ही उसे बुला ला",भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से विनती करते हुए कहा...
"आप विलसिया काकी को क्यों नहीं भेज देते उन्हें बुलाने के लिए",प्रत्यन्चा बोली...
"अरे! वो उसकी भी नहीं सुनेगा",भागीरथ जी बोले....
"ठीक है जाती हूँ"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा सड़ा सा मुँह बनाकर धनुष को बुलाने चली गई,उसने देखा कि आउटहाउस का दरवाजा भीतर से बंद है,तो उसने दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा....
"धनुष बाबू! दरवाजा खोलिए"
फिर थोड़ी देर बाद धनुष ने दरवाजा खोला और जैसे ही उसने अपने सामने प्रत्यन्चा को देखा तो उससे बोला....
"तुम....तुम यहांँ क्या करने आई हो",
"चाय के लिए आपको बुलाने आई हूँ,विलसिया काकी ने आलू के कटलेट बनाएँ हैं इसलिए दादा जी ने आपको बुला लाने के लिए कहा",प्रत्यन्चा बोली....
"ओह...मैंने सोचा फिर से यहाँ मुझसे लड़ने आई हो",धनुष बोला...
"मुझे आपसे लड़ने का कोई शौक नहीं है,जल्दी से आइए चाय ठण्डी हो रही है"प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ....तुम चलो मैं आता हूँ",धनुष बोला...
और फिर प्रत्यन्चा वहाँ से चली आई, थोड़ी देर बाद उसके पीछे पीछे धनुष भी वहाँ चला आया,वो वहाँ पहुँचा तो भागीरथ जी ने उससे कहा...
"आओ...चाय पी लो "
"आप तो मुझसे बात ही मत कीजिए",धनुष भागीरथ जी से गुस्से में बोला...
"अब मैने क्या किया?", भागीरथ जी ने पूछा...
"अब ज्यादा बनने की जरूरत नहीं है,आग लगाने की शुरूआत तो आप ने ही की थी",धनुष बोला...
"अच्छा! अब गुस्सा छोड़! ले चाय पी और अपने मनपसन्द आलू के कटलेट खा"' भागीरथ जी बोले...
"ठीक है! अभी तो मैं चाय पी लेता हूँ लेकिन अब आगे से आप मुझ पर बिलकुल भी गुस्सा नहीं करेगें", धनुष बोला...
"हाँ...हाँ...नहीं करूँगा गुस्सा,अब चाय पी,ठण्डी हो रही है",भागीरथ जी बोले....
सब चाय ही पी रहे थे कि तभी चौकीदार भीतर आकर बोला...
"मालिक! कोई मिस ऐलेना आईं हैं,कहतीं हैं कि दीवान साहब से मिलना है"
"अरे! ऐलेना आई है,उससे भीतर आने को कहो",धनुष ने चौकीदार से कहा ...
फिर चौकीदार बाहर ऐलेना से धनुष का संदेशा कहने चला गया और तभी भागीरथ जी ने धनुष से पूछा...
"अब ये ऐलेना कौन है?",
"ये मैं आपको बाद में बताऊँगा,पहले मैं कपड़े बदलकर आता हूँ,वो मुझे इस नाइट गाउन में देखेगी तो पता नहीं क्या सोचेगी"
और ऐसा कहते हुए धनुष जल्दी से भागकर आउट हाउस की तरफ चला गया और तभी ऐलेना वहाँ आई ,उसने पफ वाला हेयर स्टाइल बना रखा था,जो किसी चिड़िया के घोसले से कम नहीं लग रहा था, आँखों में मोटा काजल,होंठों पर सुर्खी,गले में डाइमण्ड का हल्का सा नेकलेस,कानों में डाइमण्ड के छोटे छोटे एयरिंग्स,बाँईं कलाई में डाइमण्ड का ही ब्रेसलेट,बदन पर लाल सुर्ख रंग की घुटनों तक की टाइट ड्रेस और पैरों में हाइ हील्स पहनकर वो टक टक करते हुए भीतर दाखिल हुई और उसने भीतर आकर भागीरथ जी से पूछा....
"मिस्टर दीवान कहाँ हैं"?
"जी! मैं ही हूँ मिस्टर दीवान!",कहिए क्या काम है",भागीरथ जी बोले...
"मैं तुम्हारे जैसे बुढ़ऊ की बात नहीं कर रही हूँ,मिस्टर धनुष दीवान की बात कर रही हूँ,जो हैण्डम और स्मार्ट हैं" ऐलेना बोली...
ऐलेना की बात सुनकर प्रत्यन्चा चुप ना रह सकी और ऐलेना से बोली...
"लगता है आपको बुजुर्गों से बात करने की तमीज नहीं है"
"तुम कौन होती हो मुझे तमीज़ सिखाने वाली",ऐलेना प्रत्यन्चा से बोली...
"मैं जो भी हूँ पहले ये बता कि तू कौन है? जो यहाँ मुँह उठाकर चली आई",प्रत्यन्चा बोली...
"मैं धनुष की दोस्त हूँ,धनुष हर रोज मेरा कैबरे देखने आता है,वो कल रात नहीं आया तो मैं उससे मिलने खुद ही यहाँ चली आई",ऐलेना बोली...
"ओह...तो दोस्ती निभाने आई हो यहाँ",प्रत्यन्चा बोली...
"लेकिन तुम कौन होती हो मुझसे सवाल करने वाली",ऐलेना ने पूछा...
प्रत्यन्चा ऐलेना के सवाल का जवाब दे पाती कि उससे पहले ही धनुष वहाँ पर सूट बूट पहनकर हाजिर हो गया और ऐलेना से बोला...
"तुम आ गई ऐलेना!"
"हाँ! धनुष! तुम कल रात मुझसे मिलने नहीं आएँ तो मुझे तुम्हारी चिन्ता हो गई,इसलिए मैं ही तुमसे मिलने यहाँ चली आई",ऐलेना बोली...
"चलो ऐलेना! क्लब चलते हैं,वहीं चलकर बातें होगीं",धनुष बोला...
और फिर दोनों मोटरकार में बैठकर बाहर चले गए,धनुष और ऐलेना के जाने बाद भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले....
"देख रही हो बिटिया! कैंसे कैंसे लोगों के साथ संगत है इस लड़के की",
"हाँ! वो लड़की कम,सरकस का जोकर ज्यादा लग रही थी,दादा जी ! कैंसे लहरा लहराकर बातें कर रही थी, चुड़ैल कहीं की,मुझे तो वो बिलकुल अच्छी नहीं लगी,उसे आप इस घर की बहू कभी मत बनाइएगा,", प्रत्यन्चा बोली...
फिर प्रत्यन्चा की बात सुनकर भागीरथ जी हँस पड़े और फिर प्रत्यन्चा से बोले...
"अरे! बिटिया! मैं चिड़िया के घोसले वाली लड़की को कभी भी इस घर की बहू नहीं बनाऊँगा,उसके लिए तो कोई शीलवती,कलावती लड़की ढूढ़कर लाऊँगा,लेकिन पहले वो सुधर तो जाएँ, किसी बेचारी को कैंसे बाँध दूँ उसके साथ,उसके लक्षण देखें ना तुमने कि कैंसे हैं,पराई लड़की की ऐसे लड़के के साथ कैंसे निभेगी भला!"
"आपकी बात भी ठीक है दादाजी! ऐसे खड़ूस से भला कौन ब्याह करेगी,बेचारी आ जाऐगी तो एक ही काम करना पड़ेगा उसे यहाँ",प्रत्यन्चा बोली...
"कौन सा काम बिटिया?",विलसिया ने पूछा...
"बस एक यही काम कि शराब की बोतलें इकट्ठी करके कबाड़ी वाले को बेचती रहा करेगी",प्रत्यन्चा बोली...
प्रत्यन्चा ऐसा बोली तो भागीरथ जी फिर से ठहाका मारकर हँस पड़े और फिर बोले...
"बिटिया! कुछ भी हो,तेरे आने से घर का माहौल खुशनुमा हो गया है,भगवान तुझे हमेशा खुश रखे"
फिर ऐसे ही भागीरथ जी,विलसिया और प्रत्यन्चा के बीच बातें चलतीं रहीं और फिर ऐसे ही एक दो दिन बीते कि शाम का वक्त था और धनुष ऐलेना की कमर में हाथ डाले घर में हाजिए हुआ,उस समय वहाँ पर भागीरथ जी,विलसिया और प्रत्यन्चा मौजूद थे,तेजपाल जी हमेशा की तरह काम के सिलसिले में बाहर गए थे,दोनों हाँल में आएँ फिर धनुष प्रत्यन्चा से बोला...
"ऐ...लड़की हम दोनों आउटहाउस जा रहे हैं,हम दोनों के खाने पीने का इन्तजाम करो"
"जी! आप दोनों आउटहाउस में चलिए,मैं अभी चाय नाश्ता लेकर आती हूँ",प्रत्यन्चा बोली...
"ऐ...सुन! ये यहाँ चाय नाश्ता करने नहीं आई है,कुछ ऐसा नाश्ता लेकर आना जो शराब के साथ इस्तेमाल होता हो"
और फिर धनुष प्रत्यन्चा से ऐसा कहकर ऐलेना के साथ आउटहाउस चला गया,भागीरथ जी धनुष के इस रवैए से परेशान हो उठे,तब प्रत्यन्चा ने उन्हें उस वक्त शान्त रहने को कहा,फिर प्रत्यन्चा ने जल्दी जल्दी कुछ काजू और बादाम भूने और उन्हें लेकर वो आउटहाउस पहुँची,दरवाजा खुला था इसलिए वो अन्दर चली गई और वहाँ जाकर उसने देखा कि ऐलेना और धनुष सिगरेट के छल्ले बनाकर हवा में उड़ा रहे थे....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....