लागा चुनरी में दाग़--भाग(२६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(२६)

लेकिन प्रत्यन्चा उन दोनों को सिगरेट पीता हुआ देखकर कुछ ना बोली और वो भुने हुए काजू और बदाम वहीं रखकर वहाँ से आने लगी तो धनुष उससे बोला...
"ऐ...कहाँ जा रही हो,फ्रिज से वियर की बोतल निकालकर जा!"
फिर प्रत्यन्चा ने शान्तिपूर्वक फ्रिज से वियर की बोतल निकालीं और जाने लगी तो ऐलेना प्रत्यन्चा से बोली...
"ऐ...लड़की ! कहाँ भाग रही है,मेहमानों की खातिरदारी करनी नहीं आती क्या तुझे,वियर को गिलास में पलटकर जा!"
अब प्रत्यन्चा ने वियर की बोतल से काँच के दोनों गिलास भी भर दिए और फिर वो जाने लगी तो ऐलेना प्रत्यन्चा से फिर से बोली....
"जरा! इनमें बर्फ के टुकड़े तो डाल देना"
अब प्रत्यन्चा ने फ्रिज खोलकर बर्फ निकाली और बारी बारी से दोनों गिलासों में बर्फ के टुकड़े डाले,फिर एक गिलास उठाकर उसने ऐलेना के चेहरे वो वियर पलट दी,जिससे ऐलेना तिलमिला उठी और उसे थप्पड़ मारने को आगें बढ़ी तो प्रत्यन्चा उसका हाथ पकड़कर बोली....
"ओ...मेम साहब! अगर मैंने तुझे थप्पड़ मार दिया ना तो तेरी सारी की सारी बत्तीसी टूटकर बाहर बिखर जाऐगी,बहुत ताकत है मेरे इन हाथों में ,क्योंकि गाँव का असली घी दूध खाया है मैंने,तेरी तरह शराब और वियर नहीं दौड़ती मेरी रगों में समझी!"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा जाने लगी तो धनुष ने उसका हाथ पकड़ लिया और उससे बोला....
"तुम्हारी हिम्मत कैंसे हुई मेरी दोस्त की बेइज्जती करने की"
"क्योंकि आपकी दोस्त इसी लायक है",प्रत्यन्चा बोली...
"मेरे घर में रहकर मुझसे ही बदसलूकी करती है,तेरी इतनी हिम्मत!",धनुष बोला....
"ये घर आपका नहीं है और ना ही आप इस घर के मालिक हैं,समझे आप!",प्रत्यन्चा अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली...
"देखा धनुष! दो कौड़ी की नौकरानी होकर तुम से कैंसे बात कर रही है",ऐलेना बोली...
"हाँ! वही देख रहा हूँ मैं!",धनुष बोला....
"अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो इसी वक्त इसे इस घर से धक्के मारकर बाहर निकाल देती",ऐलेना बोली...
"तब प्रत्यन्चा बोली...
"ओ.....अंग्रेजी मैंम! ज्यादा जुबान मत चला,बड़ी आई मुझे इस घर से निकालने वाली,ये घर धनुष बाबू का नहीं है,दादाजी का घर है ये,जब दादाजी मुझे इस घर से निकालेगें तब जाऊँगी मैं यहाँ से और ये धनुष बाबू....ये तो अपने बाप दादा की दौलत पर पल रे हैं...उसी पर अय्याशी कर रहे हैं,वरना दो कौड़ी की भी औकात नहीं है इनकी और जो तू इनके पीछे पीछे अपनी दुम हिलाते हुए घूमती रहती हैं ना! तो वो सब इनकी दौलत का ही कमाल है,नहीं तो तू इन्हें कभी घास ना डालती,इसलिए मुझसे उलझने की कोशिश मत कर नहीं तो छठी का दूध याद दिला दूँगीं, समझी"
"ये मेरी बेइज्जती पर बेइज्जती करे जा रही है और तुम खड़े खड़े देख रहे हो,जा रही हूँ मैं यहाँ से और आज के बाद मेरा तुमसे कोई वास्ता नहीं"
और ऐसा कहकर ऐलेना तुनकती हुई चली गई तो प्रत्यन्चा उसकी चाल देखकर मुस्कुरा पड़ी,तब धनुष फिर से उसका हाथ पकड़कर बोला...
"आखिर चाहती क्या हो तुम! मुझे चैन से क्यों नहीं जीने दे रही हो,तुमसे मेरा खुश रहना बरदाश्त क्यों नहीं होता"
तब प्रत्यन्चा बोली...
"मैं आपकी खुशियों की दुश्मन नहीं हूँ धनुष बाबू! आप अपनी खुशियों के दुश्मन खुद हैं,जरा एक बार ठण्डे दिमाग से सोचकर देखिएगा कि इस घर में कौन कौन गलत है,आप...दादाजी...चाचाजी या फिर मैं,आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल जाऐगें और आप जो ये घड़ी घड़ी मेरा हाथ पकड़ लेते हैं वो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है,आपकी जगह कोई और होता ना तो मैं उसका मुँह तोड़ देती"
और फिर प्रत्यन्चा की बात सुनकर धनुष ने खुदबखुद उसका हाथ छोड़ दिया और उससे बोला....
"घर में सभी को ये क्यों लगता है कि मैं ही गलत हूँ"
"क्योंकि आप ही गलत हैं"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा वहाँ से चली आई....
जब वो हाँल में पहुँची तो भागीरथ जी ने उसके चेहरे की ओर देखा,जो काफी उखड़ा हुआ था,इसलिए उन्होंने उससे पूछा...
"क्या हुआ बिटिया! कोई बात हो गई क्या?"
फिर एक ही पल में प्रत्यन्चा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और वो भागीरथ जी से बोली....
"दादा जी! वो तो गुस्सा होकर मटकते हुए चली गई"
"कौन...ऐलेना..",भागीरथ जी बोले...
"जी! वही",प्रत्यन्चा मुस्कुराते हुए बोली...
"कहीं तू ही तो वजह नहीं है उसके गुस्सा होकर यहाँ से जाने की ",भागीरथ जी ने पूछा...
"हाँ....लेकिन थोड़ी थोड़ी",प्रत्यन्चा बोली...
"तब तो धनुष तेरा दुश्मन बन बैठा होगा",भागीरथ जी बोले...
"मैंने उन्हें भी सुधार दिया",प्रत्यन्चा बोली...
"बेटी! ये तूने ठीक नहीं किया,अभी तू धनुष को जानती नहीं है,वो बदला जरूर लेकर रहता है", भागीरथ जी बोले...
"ना चाहते हुए भी हो गया दादाजी! वो ऐलेना इतनी बतमीजी जो कर रही थी मेरे साथ",प्रत्यन्चा बोली...
"चलो! कोई बात नहीं,अब आगे से जरा सोच समझकर उलझना उससे",भागीरथ जी बोले...
"जी! आगे से ध्यान रखूँगीं", और इतना कहकर प्रत्यन्चा अपने काम पर लग गई...
और इधर धनुष बदले की आग में झुलस रहा था,उस पर ऐलेना ने उस आग में घी डालने का काम किया और एक दिन उसने धनुष से कहा.....
"तुम कैंसे इन्सान हो धनुष! उसने मेरी और तुम्हारी इतनी बेइज्जती की फिर भी तुम उस से अब तक बदला नहीं ले पाएँ,अगर तुमने कुछ नहीं किया ना तो देख लेना एक दिन वो सारे घर पर कब्जा कर लेगी और फिर तुम्हारे दादाजी तो पहले से ही उसकी मुट्ठी में हैं और अगर अब उसने तुम्हारे पापा पर भी अपना जादू चला दिया तो ना तुम कहीं के नहीं रहोगे"
ऐलेना की बात सुनकर धनुष को बहुत जोर का झटका लागा और वो प्रत्यन्चा को सबके सामने नीचा दिखाने का मौका ढूढ़ने लगा और आखिरकार उसे प्रत्यन्चा को नीचा दिखाने की एक तरकीब सूझ ही गई और अब वो प्रत्यन्चा से सबके सामने अच्छा व्यवहार करने लगा और फिर उसने एक दिन भागीरथ जी और सभी नौकरों के सामने प्रत्यन्चा से कहा....
"प्रत्यन्चा! अगर तुम्हें एतराज़ ना हो तो क्या तुम मेरे कमरे की सफाई कर सकती हो? ,पूरा आउट हाउस अस्त व्यस्त पड़ा है खासकर मेरा कमरा,तुम ही उसे ठीक से व्यवस्थित कर सकती हो और कोई नहीं कर पाऐगा ये काम,इसलिए तुमसे कह रहा हूँ"
"हाँ! कर दूँगी,भला! मुझे क्या दिक्कत होगी सफाई करने में,शाम तक आपका कमरा और आउटहाउस साफ कर दूँगी मैं",प्रत्यन्चा धनुष से बोली...
और फिर शाम को प्रत्यन्चा आउटहाउस की सफाई करने चली गई,इसी तरह दो चार दिन बीत गए और एक शाम जब प्रत्यन्चा और विलसिया रसोई में थे और भागीरथ जी लाँन में टहल रहे थे ,तो तभी धनुष प्रत्यन्चा के कमरे में पहुँचा और जब वो उसके कमरे से वापस आ रहा था तो तब सीढ़ियांँ उतरते वक्त उसका सामना तेजपाल जी से हो गया,तो धनुष उनसे नजरें चुराने लगा,तब तेजपाल जी ने धनुष से पूछा...
"तुम! यहाँ क्या कर रहे हो?"
"मैं आपको ही ढूढ़ रहा था,मुझे कुछ रुपयों की सख्त जरूरत है",धनुष बोला...
"लेकिन मेरा कमरा तो उस तरफ है,तो तुम इधर क्या कर रहे थे,इस कमरे में तो वो लड़की रहती है", तेजपाल जी ने कहा...
"हाँ! मैं उसे भी ढूढ़ रहा था,चाय पीनी थी इसलिए",धनुष बोला...
"ठीक है! तो तुम मेरे कमरे में चलो,मैं अभी तुम्हें चेक काटकर दिए देता हूँ" तेजपाल जी बोले...
और फिर धनुष तेजपाल जी के साथ उनके कमरे की ओर चला गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...