लागा चुनरी में दाग

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शहर का सबसे बड़ा वृद्धाश्रम जिसका नाम कुटुम्ब है,जहाँ बहुत से वृद्धजन रहते हैं,उनमें महिलाएंँ और पुरुष दोनों ही शामिल हैं,सभी हँसी खुशी उस आश्रम में रहते हैं,किसी वृद्ध महिला को उसकी बहू ने घर से निकाल दिया है तो किसी के पास अपने बुजुर्ग पिता के लिए समय नहीं है,इसलिए उसने इस वृद्धाश्रम में अपने पिता को रख रखा है,किसी के बच्चे विदेश जाकर बस गए हैं तो कोई निःसंतान है,उस आश्रम में रहने के सबके अपने अपने कारण हैं,वो आश्रम सालों पहले प्रत्यन्चा माँ ने खोला था.... अब प्रत्यन्चा माँ लगभग पचासी वर्ष की हो चुकीं हैं,वे काफी दिनों से बीमार चल रही थी,अब उन्हें आस नहीं है कि वे और ज्यादा जी पाऐगी,इसलिए उन्होंने अपने गोद लिए बेटे को अपने पास बुलाकर लरझती आवाज़ में कहा.... "नकुल बेटा! लगता है भगवान का बुलावा आ गया है,तुम धनुष बाबू को फोन करके बुलवा लो,आखिरी बार उनके दर्शन हो जाते तो अच्छा रहता,मरते वक्त कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं रहनी चाहिए",

Full Novel

1

लागा चुनरी में दाग--भाग(१)

शहर का सबसे बड़ा वृद्धाश्रम जिसका नाम कुटुम्ब है,जहाँ बहुत से वृद्धजन रहते हैं,उनमें महिलाएंँ और पुरुष दोनों ही हैं,सभी हँसी खुशी उस आश्रम में रहते हैं,किसी वृद्ध महिला को उसकी बहू ने घर से निकाल दिया है तो किसी के पास अपने बुजुर्ग पिता के लिए समय नहीं है,इसलिए उसने इस वृद्धाश्रम में अपने पिता को रख रखा है,किसी के बच्चे विदेश जाकर बस गए हैं तो कोई निःसंतान है,उस आश्रम में रहने के सबके अपने अपने कारण हैं,वो आश्रम सालों पहले प्रत्यन्चा माँ ने खोला था.... अब प्रत्यन्चा माँ लगभग पचासी वर्ष की हो चुकीं हैं,वे काफी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(२)

ये सन् १९५९ की बात है,बाँम्बे जो अब मुम्बई कहा जाता है,वहाँ समुद्री रास्तों के जरिए तस्करी बहुत बढ़ थी,पुलिस के चौकन्ने रहते हुए भी लाखों करोड़ो का माल मुम्बई में आ जाता था,पुलिस महकमें की तो जैसे जान पर बन आई थी,आए दिन सोने के बिस्किट,हीरे,नशीले पदार्थ वगैरह आ जा रहे थे और वहाँ का सबसे कुख्यात तस्कर था पप्पू गोम्स,उसके माता पिता बँटवारे के समय पेशावर से भारत आकर यहीं बस गए थे,बँटवारे के समय उसका परिवार भूखा मर रहा था इसलिए उसने अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए छोटी मोटी चोरियाँ शुरु कर ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(३)

प्रमोद मेहरा जी को खामोश देखकर उस लड़की के पिता बोले..... "बेटी! इनकी बात सही है,पहले ये आए थे के पास" "तो क्या हुआ,लेकिन हम लोग जाऐगें इस ताँगे पर",लड़की बोली... "बेटी! जिद़ नहीं करते ,ये बाबू साहब परदेशी मालूम पड़ते हैं,पहले इन्हें जाने दो",लड़की के पिता बोले... "नहीं! कोई बात नहीं! अगर आपकी बच्ची इसी ताँगे से जाना चाहती तो आप लोग ही पहले चले जाइए",प्रमोद मेहरा जी बोले... "वैसे आपको कहाँ जाना है"?,लड़की के पिता ने पूछा... "जी! सिंगला गाँव जाना था",प्रमोद मेहरा जी बोले... "अरे! हम लोग भी वहीं जा रहे हैं,तो फिर दिक्कत वाली कोई ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(४)

उधर नहर पर प्रमोद मेहरा जी ने पहले नहरे के किनारे लगे खेतों के नजारे देखें,फिर नीम के पेड़ दातून तोड़कर उन्होंने अपने दाँत साफ किए,इसके बाद वे अपने सूखे हुए कपड़े एक टीले पर रखकर नहर में नहाने के लिए उतर पड़े ,वहाँ पर दो तीन ही सीढ़ियाँ थी,जो ऐसे ही दो चार पत्थरों को रखकर बना दी गईं थीं और उन पर लगातार पानी की हिलोरें आने से काई भी लग चुकी थीं,काई लगने से वे सीढ़ियाँ काफी फिसलन भरी हो चुकीं थीं और उस पर सबसे बड़ी बिडम्बना थी कि प्रमोद मेहरा जी को तैरना नहीं ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग-भाग(५)

प्रमोद जी के हँसने पर प्रत्यन्चा ने पूछा.... "अब इसमें इतना हँसने की क्या बात है?" "वो तो मैं नादानी पर हँस रहा था",प्रमोद मेहरा जी बोले... "क्यों भला? क्या मैं इतनी नादान हूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा... "हाँ! तुम सच में बहुत नादान हो",प्रमोद मेहरा जी बोले.... "तो ऐसा मैं क्या करूँ कि नादान ना दिखूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा... "तुम जैसी हो वैसी ही रहो,तुम्हें बदलने की जरूरत नहीं है",प्रमोद मेहरा जी बोले... और फिर वे प्रत्यन्चा से ऐसे ही बातें करते रहे,दिनभर ऐसे ही बीत गया और रात के खाने के बाद वे अपने दोस्त सुभाष और प्रत्यन्चा के पिता ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(६)

अभी सुबोध को घर आए दो चार दिन ही हुए थे और दीवाली आने में भी दो चार दिन थे और तभी प्रमोद मेहरा जी को पता चला कि तस्कर पप्पू गोम्स जेल से सुरंग के जरिए भाग गया है,पप्पू गोम्स के जेल से भागने पर पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया और पुलिस के बड़े अफ्सर ने प्रमोद जी को सावधान रहने को कहा,क्योंकि उन्होंने ही उसे जेल भेजा था और वे अब उसके बहुत बड़े दुश्मन बन चुके हैं,तब प्रमोद जी उनसे बोले कि... "सर! मैं अगर ऐसे डरने लगूँगा तो कभी भी पुलिस की नौकरी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(७)

इधर प्रमोद मेहरा जी अपने परिवार के साथ टैक्सी पकड़कर रीगल सिनेमा से अपने घर वापस आ गए और गोम्स जैसे ही अपने अड्डे पर पहुँचा तो उसके साथी जग्गू ने उससे कहा... "भाई! उस मेहरा को हम लोग आज गोलियों से भूनकर रख देते,अच्छा मौका था बदला लेने का", "बदला तो लेना है उससे लेकिन ऐसे नहीं",पप्पू गोम्स बोला... "तो कैंसे बदला लोगे भाई! आज तो वो अपनी फैमिली के साथ था,सभी को एक साथ मौत के घाट उतार देते हम लोग, लेकिन आपने ना जाने क्यों मना कर दिया",कल्लू कालिया बोला... "उस समय उसकी खूबसूरती देखकर मेरी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(८)

प्रत्यन्चा के हाथ पैर बँधे हुए थे और वो उस समय खुद को छुड़ाने की पुरजोर कोशिश कर रही हाय री किस्मत वो ऐसा करने में नाकामयाब रही और पप्पू गोम्स उसकी ओर बढ़ता ही चला जा रहा था, जैसे ही पप्पू गोम्स उसके बहुत करीब आ गया तो प्रत्यन्चा उसके मुँह पर थूकते हुए बोली.... "आखिर मेरे परिवार ने तेरा क्या बिगाड़ा था जो तूने उन लोगों के साथ ऐसा किया", "कमीनी! मेरे मुँह पर थूकती है,तेरा भी वही अन्जाम होगा,जो तेरे घरवालों का हुआ था,उस हरामखोर मेहरा ने मुझे जेल भेजा था,इसलिए उसके किए की सजा तो ...और पढ़े

9

लागा चुनरी में दाग़--भाग(९)

अब प्रत्यन्चा और शौकत को भागते हुए सुबह हो चुकी थी,वे दोनों एक सड़क से पैदल गुजर ही रहे प्रत्यन्चा ने शौकत से पूछा.... "आपने मुझे बचाकर बहुत बड़ा एहसान किया है मुझ पर", "ये तो मेरा फर्ज था बहन!",शौकत बोला... "कुछ भी हो लेकिन मेरी चुनरी पर अब तो दाग़ लग ही चुका है,उन्होंने मेरे पूरे परिवार को खतम कर दिया, मेरी जिन्दगी बर्बाद हो गई",प्रत्यन्चा बोली... "ऐसा ना कहो बहन,जरा हौसला रखो,वो ऊपरवाला कभी कभी हमारा ऐसा इम्तिहान लेता है कि हमारी रुह काँप जाती है",शौकत बोला.... "ये कैसा इम्तिहान था भाई! मेरी अस्मत के साथ खिलवाड़,क्या ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(१०)

रेलगाड़ी आने में अभी थोड़ा वक्त था,इसलिए दोनों स्टेशन पर रेलगाड़ी के आने का इन्तज़ार करने लगे, तभी प्रत्यन्चा शौकत से कहा... "शौकत भाई! तुमसे एक बात पूछूँ", "मुझे मालूम है कि तुम मुझसे क्या पूछना चाहती हो",शौकत बोला... "भाई! तुमने कैंसे अन्दाजा लगा लिया कि मैं तुमसे क्या पूछना चाहती हूँ",प्रत्यन्चा बोली... "तुम शायद महज़बीन के बारें में जानना चाहती हो कि वो मेरी क्या लगती है",शौकत बोला... "हाँ! शौकत भाई! मैं तुमसे महज़बीन के बारें ही पूछना चाहती थी",प्रत्यन्चा बोली.... "महज़बीन मेरी कुछ भी नहीं है और मानो तो वही मेरी सबकुछ है",शौकत बोला... "ये कैसा रिश्ता ...और पढ़े

11

लागा चुनरी में दाग़--भाग(११)

दूसरे दिन शाम के वक्त मैं फिर से छत पर पहुँचा,मैं वहाँ बैठकर किताब पढ़ने लगा,तभी थोड़ी देर के वो अपनी छत पर आकर मुझसे बोली... "कैंसे हैं जनाब!", मैं ने अपना चेहरा किताब से हटाया और उसकी ओर देखकर बोला... "जी! बिल्कुल दुरुस्त हूँ,आप सुनाइए कि कैंसीं हैं", "जी! अल्लाह के फ़ज़्ल से मैं भी ठीक हूँ",वो बोली... "अपना नाम नहीं बताया आपने",मैंने उससे कहा... "जी! महज़बीन...महज़बीन नाम है मेरा और आपका",वो बोली... "जी! नाचीज़ को शौकत कहते हैं",मैंने उससे कहा.... और उस दिन के बाद हम दोनों की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा,वो शाम को छत पर ...और पढ़े

12

लागा चुनरी में दाग़--भाग(१२)

पप्पू गोम्स के साथ काम करते हुए ,मुझे महज़बीन की याद आई और मैं उससे मिलने पहुँचा तो मुझे चला कि उसका निकाह हो चुका है,जैसे तैसे मैं उसके घर का पता लगाते हुए वहाँ पहुँचा तो तब उस समय उसके घर में कोई नहीं था,उसने मुझे बड़े प्यार से खाना खिलाया और फिर मुझसे बोली.... "तुमने ऐसा क्यों किया था,वो खून तो मैंने किया था,फिर तुमने उसका इल्जाम अपने सिर क्यों लिया"? "मैंने तुमसे मौहब्बत की थी महज़बीन! इसलिए तुम्हें बचाना मेरा फर्ज था",मैंने कहा..... "लेकिन वो गलत था,तुमने अपनी जिन्दगी मेरे लिए बर्बाद क्यों कर दी",महज़बीन बोली... ...और पढ़े

13

लागा चुनरी में दाग़--भाग(१३)

शौकत भी उन सभी की बातें सुन रहा था,लेकिन वो बोला कुछ नहीं,क्योंकि वो नहीं चाहता था कि बात बढ़े,उसने मन में सोचा अगर इन में से किसी को ये भनक भी लग गई कि प्रत्यन्चा ही वही लड़की है तो उसका जीना दूर्भर कर देगें,क्या पता इस रेलगाड़ी से ही हम दोनों को उतरना ना पड़ जाएंँ,इसलिए चुप रहने में ही भलाई है,लेकिन वो सब सुनकर प्रत्यन्चा की आँखों से आँसू बह निकले,वो भला कब तक उन आँसुओं को आँखों में रोकती,आखिरकार दिल का दर्द लावा बनकर फूट ही पड़ा,उसकी आँखों में आँसू देखकर एक बुजुर्ग महिला बोलीं.... ...और पढ़े

14

लागा चुनरी में दाग़--भाग(१४)

प्रत्यन्चा और शौकत को जाता देख संजीव मेहरा जी दोबारा मधु से बोले... "अरे! रोक लो उसे,कहाँ जाऐगी बेचारी,जो उसमें उस बेचारी का क्या दोष था" "इतनी बड़ी दुनिया पड़ी है,कहीं भी मर खप रहेगी,लगता है तुम्हें समाज की फिकर नहीं है,तभी तो ऐसी बातें कर रहे हो,उसे घर में रखा तो बिरादरी से निकाल दिए जाओगे,कोई तुम्हारा छुआ पानी नहीं पिऐगा और भी बच्चे हैं हमारे,जरा उनके बारें में भी तो सोचो",मधु बोली.... "इतनी निर्दयी ना बनो,तुमने उसे जन्म दिया है,नौ महीने अपने गर्भ में रखा है,कुछ तो लिहाज करो", संजीव जी दोबारा बोले.... "नहीं! वो इस घर ...और पढ़े

15

लागा चुनरी में दाग़--भाग(१५)

इधर प्रत्यन्चा को ये नहीं पता था कि पप्पू गोम्स मर चुका है और उसे शौकत की हालत के में कुछ पता नहीं था,इसलिए वो भागती रही...बस भागती रही,फिर कुछ देर के बाद वो थमी और एक जगह बैठकर वो सोचने लगी कि अब वो कहाँ जाएंँ,ना जाने शौकत भाई का क्या हुआ होगा,उसकी पोटली तो भागने के चक्कर में छूटकर कहीं गिर गई थी,लेकिन अब भी उसके दुपट्टे के किनारे पर वो रुपए बँधे हुए थे जो उसे नैना किन्नर ने दिए थे... इसलिए उसने उन पैसों से एक ताँगा पकड़ा और महज़बीन के घर जाने का फैसला ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(१६)

प्रत्यन्चा को कार से टकराता देख वे गुण्डे भाग खड़े हुए और प्रत्यन्चा मोटरकार से टकराते ही बेहोश हो वो मोटरकार भी रुक चुकी थी,जिससे प्रत्यन्चा टकराई थी,उस मोटर के मालिक ने ड्राइवर से पूछा..... "क्या हुआ रामानुज! कोई टकराया क्या हमारी मोटर से?" "जी! मालिक!",ड्राइवर रामानुज बोला.... "जरा मोटर से उतरकर तो देखो,कौन है?",मोटरकार के मालिक बोले.... इसके बाद उनका ड्राइवर मोटर से उतरकर बाहर आया और बोला.... "मालिक! कोई लड़की है" "लड़की है....ज्यादा चोट तो नहीं आई उसे",मोटर के मालिक ने पूछा... "पता नहीं मालिक! अभी तो बेहोश है"ड्राइवर रामानुज बोला... "हे! ईश्वर! ये क्या हो गया,ठहरो ...और पढ़े

17

लागा चुनरी में दाग़--भाग(१७)

फिर विलसिया प्रत्यन्चा को उसके कमरे में ले गई,जो कि ऊपर था और उससे बोली... "बिटिया! इ है तुम्हार लगा" "अच्छा है काकी!",प्रत्यन्चा बोली.... "तो अब तुम आराम करो,हम तब तक तुम्हरे खीतिर दूध लावत हैं", और ऐसा कहकर विलसिया दूध लाने चली गई,इसके बाद भागीरथ जी प्रत्यन्चा के पास आएँ और उससे बोले.... "बिटिया! कमरा ठीक ना लगे तो बता देना,हम दूसरे कमरे में तुम्हारे रहने का इन्तजाम करवा देगें", "जी! मुझे घर मिल गया,सिर ढ़कने को छत मिल गई और भला इससे ज्यादा मुझ अभागन को क्या चाहिए", प्रत्यन्चा बोली... "अब इसे अपना ही घर समझो और ...और पढ़े

18

लागा चुनरी में दाग़-भाग(१८)

प्रत्यन्चा अपने कमरे में आकर फूट फूटकर रोने लगी और ये सोचने लगी कि उसकी जान बचाने के लिए शौकत ने खुद को कुर्बान कर दिया,ऐसा तो उसका सगा भाई भी ना करता,उसने जो रिश्ता कायम किया था,उसे उसने अपनी जान देकर आखिरी तक निभाया,आज अगर मैं जिन्दा हूँ,सलामत हूँ तो ये उसी की देन है, लेकिन अब मुझे सारी पुरानी बातें भूलकर जिन्दगी में आगें बढ़ना होगा,अगर मैं अब भी अपने अतीत में अटकी रही तो सुकून से नहीं जी पाऊँगी, दिवान साहब ने मुझे बड़े विश्वास के साथ अपने घर में पनाह दी है, इसलिए मुझे भी ...और पढ़े

19

लागा चुनरी में दाग़--भाग(१९)

तेजपाल जी ने जब प्रत्यन्चा के खाने की तारीफ़ तो प्रत्यन्चा के चेहरे की खुशी देखने लायक थी,तब तेजपाल उसके चेहरे की ओर देखकर बोले.... "ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है,तुम ज्यादा दिन तक इस घर में टिकने वाली नहीं हो", तेजपाल जी की बात सुनकर प्रत्यन्चा का चेहरा उतर गया तो भागीरथ जी अपने बेटे तेजपाल से बोले.... "ये क्या तरीका हुआ किसी से बात करने का,उसने तेरे लिए इतने प्यार से खाना बनाया और तू उसे अकड़ दिखाता है, तू कौन होता है इसे घर से निकालने वाला,ये घर हमारा है और ये यहीं रहेगी", "वो ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़-भाग(२०)

प्रत्यन्चा जब भागकर अपने कमरे में चली गई तो वो नवयुवक गुस्से में बुदबुदाते हुए बोला... "दादा जी ने को बहुत सिर पर चढ़ा रखा है,इज्ज़त ही नहीं करते किसी की,मुझे थप्पड़ मारती है,अब तो मैं हर रोज यहीं खाना खाने आया करूँगा,देखता हूँ कब तक भाव खाती है,इसकी सारी अकड़ तो मैं निकालूँगा,मुझे अकड़ दिखाती है", तभी भागीरथ जी घर लौट आएँ और उन्होंने उस नवयुवक को बुदबुदाते हुए सुन लिया तो वे उससे बोले... "बर्खुरदार! किस की अकड़ निकालना चाहते हो,", "किसी की नहीं दादाजी! मैं तो बस ऐसे ही बड़बड़ा रहा था",वो नवयुवक बोला.... "भई! आज ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(२१)

प्रत्यन्चा जब नींचे पहुँची तो विलसिया ने उससे कहा... "ई लो बिटिया! तुम्हार सामान,ठीक से देख लेव सब है "मैं सामान बाद में देख लूँगी,पहले ये बताओ कि खाने में क्या बनाऊँ",प्रत्यन्चा विलसिया से बोली... "खाने का हम देख लेगें,तुम परेशान ना हो बिटिया!",विलसिया बोली.... "नहीं! काकी! तुम थककर आई हो,तुम आराम करो,खाने का मैं देख लूँगीं",प्रत्यन्चा बोली... "चलो! इस घर में कोई हमारी फिकर करने वाला तो आ गया,नहीं तो चाहे जितने थके होते हम ही को खटना पड़ता चूल्हे में",विलसिया बोली... "तो अब बता दो कि क्या बनाऊँ खाने में",प्रत्यन्चा ने पूछा... "बिटिया! तुम बड़े मालिक से ...और पढ़े

22

लागा चुनरी में दाग़--भाग(२२)

जब धनुष वहाँ से चला गया तो भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले.... "देखा! बिटिया! बिना खाए उठकर चला गया,देखना दिन इसकी हरकतें हमारी जान लेकर रहेंगीं", "ऐसा ना कहें दादाजी! सब ठीक हो जाएगा",प्रत्यन्चा बोली... "कुछ ठीक नहीं होगा बेटी! ये कभी सुधरने वाला नहीं है और हम यूँ ही एक दिन कुढ़ कुढ़कर मर जाऐगें", भागीरथ जी बोले.... "अब आप भला बिन माँ के बच्चे से कैंसी आशा रख सकते हैं,उनकी माँ होती तो दो थप्पड़ मारकर सुधार देती,उनकी माँ नहीं थी तो आप सभी ने भी उन्हें खूब छूट दे दी,इसलिए वो ऐसे हो गए हैं",प्रत्यन्चा बोली.... ...और पढ़े

23

लागा चुनरी में दाग़--भाग(२३)

इसके बाद प्रत्यन्चा रसोईघर में नाश्ता बनाने चली गई,आज उसने आलू की तरी वाली सब्जी और पूरियाँ बनाई,साथ में सा हलवा भी बना लिया,जब नाश्ता तैयार हो गया तो उसने विलसिया काकी से भागीरथ जी और तेजपाल जी को बुला लाने के लिए कहा,वे दोनों जब तक डाइनिंग टेबल पर पहुँचे तब तक प्रत्यन्चा ने डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा दिया और फिर उन दोनों के आने पर वो उन दोनों की प्लेट में नाश्ता परोसने लगी..... दोनों नाश्ता करने लगे तो तेजपाल जी बोले.... "आज तो बढ़िया नाश्ता बना है,तरी वाली आलू की सब्जी के साथ पूरी खाने ...और पढ़े

24

लागा चुनरी में दाग़--भाग(२४)

फिर खाना खाते हुए धनुष बोला.... "खाना तो बहुत अच्छा बना है,खासकर ये कढ़ी पकौड़ी,वैसे किसने बनाया खाना", "मैं ही बनाया है",प्रत्यन्चा बोली... "मैंने तुम्हारे साथ इतना बुरा बर्ताव किया और तुम तब भी मुझे खाना खिलाने आ गई",धनुष ने पूछा... "हाँ! दादाजी के कहने पर आना पड़ा,नहीं तो मैं तो आपके लिए कभी खाना ना लाती",प्रत्यन्चा बोली... "वैसे तुम्हारा घर कहाँ है?",धनुष ने खाना खाते हुए पूछा... "मेरा कोई घर नहीं है,मैं इस दुनिया में बिलकुल अकेली हूँ",प्रत्यन्चा बोली... "मतलब! अनाथ हो",धनुष बोला... "हाँ! ऐसा ही कुछ समझ लीजिए",प्रत्यन्चा बोली... "तब तो बड़ी मुश्किल जिन्दगी है तुम्हारी",धनुष बोला... ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग-भाग(२५)

दोपहर का वक्त बीत चुका था,सब आराम करके अपने अपने कमरों से बाहर आ चुके थे,फिर तेजपाल जी तैयार किसी काम से बाहर निकल गए थे,अब घर में भागीरथ जी,विलसिया,प्रत्यन्चा और नौकर ही रह गए थे.... रही धनुष की बात तो वो अपने आउटहाउस में था,फिर शाम की चाय बनी तो भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले... "जा! उसे भी बुला ला,उसे ये आलू के कटलेट बहुत पसंद हैं,खासकर विलसिया के हाथों के बने हुए,क्योंकि विलसिया बहुत अच्छे आलू के कटलेट बनाती है,उसने बहू से बनाने सीखे थे" "दादा जी! आप के कहने पर मैं युद्ध के मैदान में युद्ध ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(२६)

लेकिन प्रत्यन्चा उन दोनों को सिगरेट पीता हुआ देखकर कुछ ना बोली और वो भुने हुए काजू और बदाम रखकर वहाँ से आने लगी तो धनुष उससे बोला... "ऐ...कहाँ जा रही हो,फ्रिज से वियर की बोतल निकालकर जा!" फिर प्रत्यन्चा ने शान्तिपूर्वक फ्रिज से वियर की बोतल निकालीं और जाने लगी तो ऐलेना प्रत्यन्चा से बोली... "ऐ...लड़की ! कहाँ भाग रही है,मेहमानों की खातिरदारी करनी नहीं आती क्या तुझे,वियर को गिलास में पलटकर जा!" अब प्रत्यन्चा ने वियर की बोतल से काँच के दोनों गिलास भी भर दिए और फिर वो जाने लगी तो ऐलेना प्रत्यन्चा से फिर से ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(२७)

उस दिन धनुष तेजपाल जी के कमरे जाकर चेक ले आया,फिर उस दिन के बाद वो आउट हाउस से नहीं आया,ना जाने उसके मन में कौन सी खुराफात चल रही थी,इसके बाद ऐसे ही एक दो दिन गुजरे और एक शाम वो आउटहाउस से घर आया और हाँल में आकर उसने हल्ला मचाना शुरू कर दिया कि मेरे कमरे की अलमारी से चोरी हुई है,उसकी सोने की हीरे जड़ी अँगूठी और कुछ रुपए उसके कमरे से गायब है,ये सुनकर भागीरथ जी बोले.... "ऐसे कैंसे हो सकता है,तेरे आउटहाउस में तो कोई आता जाता भी नहींं" "इसलिए तो मैं भी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(२८)

फिर डाक्टर सतीश राय ने दीवान साहब की मोटर के नजदीक जाकर भागीरथ जी की जाँच की और वे से बोले.... "लगता है इनका ब्लड प्रेशर बढ़ गया तभी इनके साथ ऐसा हुआ,फौरन ही इन्हें भीतर लेकर चलते हैं" और डाक्टर सतीश राय ने फौरन ही स्ट्रेचर मँगाया फिर भागीरथ जी को अस्पताल के भीतर ले जाया गया,इसके बाद कुछ देर के इलाज के परिणामस्वरूप अब भागीरथ जी ठीक थे,इसी बीच घर के नौकरों ने तेजपाल जी के दफ्तर फोन करके ये कह दिया था कि बड़े मालिक की बहुत ज्यादा तबियत खराब हो गई थी और उन्हें अस्पताल ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(२९)

धनुष तेजपाल जी और भागीरथ जी की बात मानकर प्रत्यन्चा को ढूढ़ने चला तो गया लेकिन उसका बिलकुल भी नहीं था कि प्रत्यन्चा घर में दोबारा लौटकर आएँ,लेकिन प्रत्यन्चा को ढूढ़ना उसकी मजबूरी थी,नहीं तो उसे भी घर में घुसने नहीं दिया जाएगा,उस पर रात भी हो चुकी थी इसलिए उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो प्रत्यन्चा को कहाँ ढूढ़े.... अगर वो उसे ढूढ़ भी लेता है तो क्या प्रत्यन्चा उसके साथ घर वापस आऐगी,यही सवाल उसके मन में चल रहा था,इसी सवाल के साथ वो प्रत्यन्चा को ढूढ़ने में जुट गया..... और इधर प्रत्यन्चा का ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३०)

और प्रत्यन्चा को देखते ही उन्होंने उससे पूछा.... "आप और यहाँ" लेकिन प्रत्यन्चा के पास उनके सवाल का कोई ना था,वो भला कहती भी क्या कि उस पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाकर उसे दीवान साहब ने अपने घर से निकाल दिया है,इसलिए वो कुछ ना बोली,उसकी खामोशी ही उसके सारे सवालों का जवाब थी,ये देखकर अनुसुइया देवी ने डाक्टर सतीश से पूछा.... "सतीश! क्या तुम प्रत्यन्चा को जानते हो?" "जी! हाँ!",डाक्टर सतीश बोले... तब डाक्टर सतीश की माँ शीलवती जी ने भी अपने बेटे से पूछा... "सतीश! तुम इस लड़की को कैंसे जानते हो?" तब डाक्टर सतीश अपनी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३१)

रात का वक्त,डाक्टर सतीश राय की माँ शीलवती जी रात का भोजन परोसते हुए उनसे बोलीं.... "वैसे प्रत्यन्चा है सुन्दर" "हाँ! ठीक है",सतीश राय बोले.... "और व्यवहार कुशल भी जान पड़ती है,भागीरथ जी ने बातों बातों में बताया था कि वो खाना भी बहुत अच्छा बनाती है",शीलवती जी बोलीं... "हाँ! तो होगी,लेकिन तुम्हें क्या लेना देना इन बातों से",डाक्टर सतीश राय ने अपनी माँ शीलवती जी से पूछा... "मेरे कहने का मतलब है कि बहू ऐसी ही सर्वगुण सम्पन्न होनी चाहिए",शीलवती जी बोलीं.... "माँ! जब देखो तब तुम्हारी घड़ी की सुई बहू पर ही आकर क्यों अटक जाती है",डाक्टर ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३२)

धनुष प्रत्यन्चा से बदला लेने की नई तरकीब सोचने लगता है,लेकिन उसे कोई भी तरकीब ना सूझी, फिर वो के वक्त हताश होकर क्लब चला गया,वहाँ उसकी मुलाकात उसके पुराने दोस्त सिद्धार्थ से हुई, धनुष का उतरा हुआ चेहरा देखकर सिद्धार्थ ने उससे पूछा.... "क्या बात है भाई! तू तो हरदम खुश नज़र आता था,लेकिन आज तेरी शकल पर बारह क्यों बजे हुए हैं" "मत पूछ यार! एक आफत गले पड़ गई है,बस उसी से पीछा छुड़ाने की तरकीब निकाल रहा हूँ,पिछली बार मैंने एक चाल चली थी उसके खिलाफ और मुँह के बल औंधा गिरा,ना जाने वो आफत ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३३)

जब उस नवयुवक ने देखा कि भागीरथ जी पुलिस को बुलाने वाले हैं तो वो डर गया और उसने कहा.... "आप पुलिस को क्यों बुलाना चाहते हैं,ये हमारा निजी मामला है,इसे हम दोनों आपस में निपट लेगें" उस नवयुवक की बात सुनकर प्रत्यन्चा गुस्से से बोली.... तब वो नवयुवक बोला.... "ऐ....कौन सा निजी मामला,मैं तो तुम्हें जानती भी नहीं,दादा जी! आप फौरन पुलिस को बुलाइए" "ये तुम क्या कह रही हो प्रत्यन्चा! मैं तुम्हारा पति हूँ,क्यों सारी दुनिया के सामने मेरा तमाशा बना रही हो, अपना गुस्सा थूक दो,चलो ना घर चलते हैं,जो भी तुम्हें कहना सुनना है घर ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३४)

उस दिन अपनी चाल में कामयाब ना होने के बाद धनुष काफी हतोत्साहित हो चुका था, प्रत्यन्चा को घर निकालने की उसकी कोई भी चाल अब कामयाब नहीं हो पा रही थी,इसलिए वो प्रत्यन्चा से अब और भी ज्यादा चिढ़ने लगा था,जब उसकी नजरों के सामने प्रत्यन्चा पड़ती तो उसकी आँखों में प्रतिशोध की ज्वाला जलने लगती और उसके मन में प्रत्यन्चा के लिए नफरत और भी बढ़ जाती,लेकिन वो मजबूर था,उसका वश चलता तो वो फौरन ही प्रत्यन्चा को घर से निकालकर बाहर करता.... और एक रात वो प्रत्यन्चा के लिए अपने मन में यूँ ही नफरत भरकर ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३५)

जब भोर हुई तो विलसिया ,सनातन,पुरातन और प्रत्यन्चा ड्राइवर रामानुज के साथ अस्पताल की ओर चल पड़े,वे सभी अस्पताल तो पता चला कि धनुष को अभी तक होश नहीं आया है,भागीरथ जी ने बहुत मायूस होकर सबसे ये बात कही.... तब विलसिया भागीरथ जी से बोली.... "बड़े मालिक! दुखी होबे की जरूरत नाहीं है,हमार छुटके बाबू का कुछु ना होई,देखिओ तनिक देर मा हम सबही का खुशखबरी मिल जाई कि हमार छोटे बाबू एकदम ठीक हैं" "आशा तो यही है विलसिया! हमने तो खुद को सम्भाल लिया है लेकिन उसके बाप को तो देखो,कैंसा परेशान दिख रहा है,रात भर ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३६)

तेजपाल जी मंदिर पहुँचे फिर उस दिन उन्होंने भगवान की विधिवत पूजा की और भगवान का आभार प्रकट किया उनके बेटे धनुष को कोई गम्भीर चोट नहीं आई,इसके बाद दोनों मंदिर से लौटे तो तेजपाल जी ने प्रत्यन्चा से कहा.... "बेटी! जल्दी से नाश्ता बना लो,फिर मुझे अस्पताल भी जाना है" "जी! चाचाजी!" और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा नाश्ता बनाने में जुट गई,नाश्ता करने के बाद तेजपाल जी भागीरथ जी से बोले... "बाबूजी! आप घर पर आराम कीजिए,आप रातभर से सोएं नहीं है आप यही रहिए,मैं अस्पताल होकर आता हूँ" "तू अकेला क्यों जा रहा है,प्रत्यन्चा को साथ लेता जाता",भागीरथ ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३७)

फिर प्रत्यन्चा की बात सुनकर भागीरथ जी तेजपाल जी से बोले.... "अब से हर वक्त हम रहेगें धनुष के अस्पताल में,भला! हम भी देखते हैं कि वो सिगरेट को कैंसे हाथ लगाता है" "हाँ! मेरे ख्याल से यही सही रहेगा",प्रत्यन्चा बोली... "तो चलो खाना खाकर हम दोनों अस्पताल चलते हैं", भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले.... "दादाजी! मैं तो धनुष बाबू के सामने बिलकुल ना जाऊँगी,मैं तो उनकी दुश्मन पहले से ही हूँ और आज जो अस्पताल में हुआ तो उस बात के लिए मैंने उनकी अच्छे से खबर ले ली,जिससे वो मुझसे और भी ज्यादा चिढ़ गए होगें,अगर मैं ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३८)

भोर हो चुकी थी और प्रत्यन्चा आज एक नई उमंग के साथ जागी थी,क्योंकि कल रात जो धनुष के उसकी बातें हुईं थीं उससे उसे लगा था कि अब शायद धनुष सुधर जाऐगा और उसके सुधरने से दादाजी और चाचाजी को बहुत खुशी मिलेगी,अगर ऐसा होता है तो घर के हालात बदल जाऐगें,वो यही सब मन में सोच रही थी,अभी तक वो अपने बिस्तर पर ही बैठी थी और भागीरथ जी के जागने का इन्तजार कर रही थी,फिर कुछ देर बाद भागीरथ जी भी जाग उठे और वो प्रत्यन्चा से बोले.... "जाग गई बिटिया! चल अब घर चलते हैं ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३९)

प्रत्यन्चा धनुष को खिचड़ी खिला रही थी और धनुष सकुचाते हुए खिचड़ी खा रहा था और मन ये सोच था कि कैंसी लड़की है ये,गलत बात पर बस खून पीने वाली चण्डी बन जाती और जब सेवा करने पर आती है तो ये नहीं सोचती कि सामने वाला इसके साथ कैंसा बर्ताव कर चुका है,क्या कुछ नहीं किया मैंने इसे जलील करने के लिए, घर से निकालने के लिए,लेकिन ये वो सब बातें भूलकर मेरी मदद करने बैठ गई,मेरे लिए खुद खिचड़ी बनाकर लाई और अब खिला भी रही है..... ये सोचते सोचते धनुष प्रत्यन्चा के चेहरे की ओर ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४०)

इसके बाद प्रत्यन्चा ने सबसे पहले धनुष को दाल चावल खिलाया फिर उसने भागीरथ जी के लिए खाना परोसा,उनको के बाद प्रत्यन्चा ने खुद खाना खाया और खाना खाने के बाद वो शरतचन्द्र चटोपाध्याय का चरित्रहीन लेकर पढ़ने बैठ गई...... उसे पढ़ने में उसका बहुत मन लग रहा था और ये बात धनुष को अच्छी नहीं लग रही थी,भागीरथ जी अब आराम कर रहे थे,इसलिए धनुष से बातें करने वाला कोई नहीं था,धनुष सोच रहा था कि प्रत्यन्चा किताब ना पढ़कर उससे बातें करे,इसलिए उसने प्रत्यन्चा से पूछा... "किताब क्या इतनी दिलचस्प है,जो तुम पढ़े जा रही हो" "पढ़ने ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४१)

अब प्रत्यन्चा धनुष को जैसा करने को कहती वो बिना नानुकुर के वैसा ही करता,धनुष में आई तब्दीलियांँ देखकर जी को थोड़ी राहत मिलती,इसी तरह एक रात धनुष को नींद नहीं आ रही थी,उसे बहुत बैचेनी हो रही थी,पता नहीं क्या सोचकर वो बिस्तर से उठा और उठकर अपने कमरे से बाहर आ गया,फिर वो घर के दरवाजे खोलकर आउटहाउस की ओर चल पड़ा...... उसे कमरे से जाते हुए भागीरथ जी ने देख लिया था लेकिन वे उससे बोले कुछ नहीं चुपचाप अपनी आँखें बंद किए बिस्तर पर लेटे रहे,वे भी देखना चाहते थे कि आखिर धनुष करने क्या ...और पढ़े

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लागा चुनरघ में दाग़,--भाग(४२)

अनुसुइया जी के जाने के बाद प्रत्यन्चा भागीरथ जी से बोली.... "कल बहुत मज़ा आने वाला है दादाजी! इतने बच्चे,खूब हल्ला गुल्ला मचेगा", "हाँ! बेटी!",सच कहा तूने,लगता है तुझे हल्ला गुल्ला बहुत पसंद है",भागीरथ जी बोले... "हाँ! मुझे लोगों से मिलना जुलना बहुत पसंद है",प्रत्यन्चा बोली... तब उन दोनों की बात सुनकर धनुष बोला.... "मैं नहीं जाऊँगा वहाँ" "लेकिन क्यों?",प्रत्यन्चा ने पूछा... "मैं क्या करूँगा,बच्चों के बीच जाकर",धनुष बोला.... "अरे! चलिएगा! बहुत मज़ा आऐगा आपको बच्चों की शरारतें देखकर",प्रत्यन्चा बोली.... "तुम्हें देखकर तो ऐसा मालूम होता है कि जैसे तुम्हारा ही जन्मदिन हो",धनुष बोला.... "ऐसा ही कुछ समझ लीजिए", ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४३)

अब प्रत्यन्चा और धनुष के बीच का झगड़ा खतम हो चुका था,फिर से प्रत्यन्चा धनुष के खाने पीने और का ख्याल रखने लगी थी,ऐसे ही एक दो दिन बीते थे कि एक शाम डाक्टर सतीश के साथ उनकी माँ शीलवती जी भागीरथ जी के घर आईं और उनसे बोलीं.... "दीवान साहब! कल सतीश के पिता जी की बरसी है,तो उनकी आत्मा की शान्ति के लिए पूजा और भोज रखा है,आप लोग आऐगें तो हमें अच्छा लगेगा" "जी! हम जरूर आऐगें",भागीरथ जी बोले.... "एक बात और कहनी थी आपसे,लेकिन कहते हुए संकोच सा हो रहा है",शीलवती जी भागीरथ जी से ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४४)

डाक्टर सतीश प्रत्यन्चा को पीछे से बहुत देर तक देखते रहें,लेकिन उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि है वो और उस के पास जाकर भी उसे देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी उनकी ,तभी एकाएक प्रत्यन्चा पलटी तो डाक्टर सतीश की नजर उस पर ठहर गई,बिना पलके झपकाएंँ मुँह खोलकर वे उसे देखते ही रह गए,तभी डाक्टर सतीश की माँ शीलवती उनके पास आकर बोलीं.... "मुँह तो बंद करो डाक्टर साहब!" तब डाक्टर सतीश अपनी माँ से बोले... "माँ!....ये तो प्रत्यन्चा जी हैं" "बच्चू! खा गए ना धोखा,देख ! आज उसे मैंने तैयार किया है,लग रही ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४५)

फिर धनुष भी अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया और प्रत्यन्चा के बारें में सोचने लगा.... " कैंसी लड़की ये,जब देखो तब नाक पर गुस्सा रखा रहता है,अगर मैं गुस्से में था तो क्या वो नर्मी से बात नहीं कर सकती थी,लेकिन नहीं महारानी साहिबा जाने अपनेआप को क्या समझती है,मैं भी अब उससे पहले से बात नहीं करूँगा,देखता हूँ भला कब तक रुठी रहती है मुझसे,गलती खुद करती है और गुस्सा मुझ पर करती है,अब मैं भी आगें से बात करने वाला नहीं" और ये सब सोचते सोचते धनुष सो गया.... और इधर डाक्टर सतीश और उनकी माँ ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग--भाग(४६)

फिर जब विलसिया प्रत्यन्चा को बुलाने उसके कमरे में पहुँची तो प्रत्यन्चा ने उससे कहा... "काकी! आज भूख नहीं आराम करने को जी चाहता है" "कुछ तो खा लो बिटिया!",विलसिया बोली... "नहीं! काकी! बिलकुल भी मन नहीं है,कुछ भी खाने का",प्रत्यन्चा बोली... "अगर बिटिया! तुम्हें भूख नाहीं लाग रही है तो फिर ऐहका मतलब है कि नज़र लागी हुई,नीचे चलो हम तुम्हारी नज़र उतार देते हैं",विलसिया ने प्रत्यन्चा से कहा... "काकी! भला! मुझे किसकी नज़र लग सकती है",प्रत्यन्चा ने विलसिया से बोली... "ऐसन होत है बिटिया! मालिक कहत रहे कि काल तुम साड़ी पहनी रही हो,सो लाग गे हुई ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४७)

जब प्रत्यन्चा खाना खा चुकी तो उसने धनुष से सौहार्दपूर्ण शब्दों में कहा... "मैंने खाना खा लिया है,अब आप कमरे में जा सकते हैं" "जो हुकुम महारानी साहिबा!", और ऐसा कहकर धनुष प्रत्यन्चा के कमरे से चला आया... वो जब अपने कमरे में पहुँचा तो तब भागीरथ जी जाग रहे थे और उन्होंने धनुष से सवाल किया... "बरखुरदार! कहाँ से आ रहे हो"? "जी! उस चुड़ैल को खाना खिलाने गया था,वरना रात भर भूखी पड़ी रहती"धनुष ने जवाब दिया... "सो खाया उसने या रुठी पड़ी है अब तक",भागीरथ जी ने पूछा... "मैं भी आपका पोता हूँ,उसे खाना खिलाकर ही ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४८)

डाक्टर सतीश और उनकी माँ नाश्ता ही कर रहे थे कि तभी डाक्टर सतीश ने धनुष से कहा.... "धनुष आपके माथे की चोट तो अब बिलकुल से ठीक हो चुकी है और आपकी हथेली में प्लास्टर लगे अब करीब करीब पन्द्रह-बीस दिनों से ज्यादा हो चुका है,तो ऐसा कीजिए कल आप अस्पताल आ जाइए, आपकी हथेली का एक्सरे उतरवाकर देख लेते हैं कि हथेली की हड्डियों की स्थिति कहाँ तक पहुँची है,अगर सब सामान्य रहा तो फिर परसों आपकी हथेली का प्लास्टर कटवा देते हैं" "जी! बहुत अच्छा! मैं भी यही चाहता हूँ कि मेरी हथेली का प्लास्टर जल्द ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४९)

दोनों रेस्तराँ में पहुँचे तो प्रत्यन्चा इतना बड़ा रेस्तरांँ देखकर थोड़ी असहज सी हो गई क्योंकि वो पहली बार बड़े रेस्तराँ में खाना खाने आई थी,उस पर वहाँ आई लड़कियांँ जो कि माँडर्न ड्रेस में थीं और प्रत्यन्चा साड़ी में इसलिए उसे वहाँ और भी असहज लग रहा था,लेकिन धनुष उसके मन में चल रहे विचारों के आवागमन को भाँप गया और उसके लिए कुर्सी खिसकाते हुए उससे बोला.... "क्या सोच रही हो प्रत्यन्चा!,बैठो ना!" "जी!" ऐसा कहकर प्रत्यन्चा कुर्सी पर बैठ गई... इसके बाद धनुष ने प्रत्यन्चा से पूछा.... "अब बताओ,पहले क्या लोगी,सूप या कुछ स्नैक्स वगैरह" "जी! ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५०)

दोनों घर पहुँचे तो दोनों का फूला हुआ चेहरा देखकर भागीरथ जी समझ गए कि ये दोनों फिर से गए हैं, लेकिन तब उन्होंने बात को तह तक जानने की कोशिश की और दोनों से मज़ाक में कहा... "क्या हुआ,खाना नहीं मिला क्या दोनों को या फिर ये धनुष बटुआ ले जाना भूल गया था,कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि दोनों खाना खा चुके हो और रेस्तराँ का बिल चुकाने के लिए रुपए ना हो इसलिए रेस्तराँ के मालिक ने तुम दोनों से उसके एबज में जूठे बरतन धुलवा लिए हों" "नहीं! दादाजी! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,बस यूँ ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५१)

दोनों अस्पताल पहुँचे और प्रत्यन्चा ने शीलवती जी से पूछा.... "अब आप कैंसीं हैं चाची जी!", "ठीक हूँ!",शीलवती जी "लेकिन इन्होंने यहाँ का नाश्ता करने से इनकार कर दिया,जब ये खाऐगीं नहीं तो अच्छी कैंसे होगीं", डाक्टर सतीश बोले... "ये गलत बात है,आप ने नाश्ता क्यों नहीं किया",प्रत्यन्चा बोली... "मुझसे नहीं खाया गया बेटी!",शीलवती जी मुँह बनाते हुए बोलीं... "यहाँ का खाना कोई खा भी कैंसे सकता है,मुझसे भी नहीं खाया गया था,जब मैं अस्पताल में था", धनुष बोला... "लेकिन ये अच्छी बात नहीं है",प्रत्यन्चा बोली... "तो तुम ही क्यों नहीं कुछ बना लाती चाची जी के लिए,जैसे मेरे ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५२)

प्रत्यन्चा उस रात सो ना सकी,एक तो वो भूखी थी, उस पर से डाक्टर सतीश से शादी की बात लेकर भी वो परेशान थी और आज तो धनुष भी उसे खाना खिलाने उसके कमरे में नहीं पहुँचा था,इसलिए वो और भी ज्यादा उदास थी,उसे पक्का यकीन था कि धनुष बाबू उसे जरूर खाना खिलाने आऐगें और वो उनसे अपने मन की सारी बातें कहकर अपना मन हल्का कर लेगी और उधर धनुष ये सोचकर प्रत्यन्चा को खाना खिलाने नहीं गया था क्योंकि वो सोच रहा था कि अगर अभी इसी वक्त वो प्रत्यन्चा के पास गया तो वो कहीं ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५३)

प्रत्यन्चा की शादी की बात सुनकर जब धनुष कुछ देर तक कुछ नहीं बोला तो प्रत्यन्चा ने उससे पूछा... हुआ? मेरी शादी की बात सुनकर अब आपको कोई सवाल नहीं पूछना मुझसे" "ऐसी बात नहीं है,मैं कुछ सोच रहा था",धनुष बोला... "अब ये बात सुनकर शायद आपको मुझसे नफरत होने लगी होगी",प्रत्यन्चा बोली... "नहीं! ऐसा कुछ नहीं है",धनुष मायूस होकर बोला... "ऐसा ही तो है,तभी तो आप कुछ बोल नहीं रहे हैं",प्रत्यन्चा बोली... "मुझे कुछ समझ में नहीं रहा है कि अब मैं क्या बोलूँ तुमसे और क्या पूछूँ",धनुष ने कहा... "आप और सवाल पूछिए मुझसे,आज मैं आपके सभी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५८)

धनुष जैसे ही प्रत्यन्चा के कमरे से सामान रखकर वापस आने लगा तो प्रत्यन्चा ने उससे कहा... "कहाँ जा हैं,रुकिए ना थोड़ी देर," "मैं क्या करूँगा यहाँ रुककर,जब तुम्हें मेरी परवाह ही नहीं",धनुष ने ताना मारते हुए कहा... "ये आपने कैंसे सोच लिया",प्रत्यन्चा ने पूछा... "आज तुम दोपहर का खाना लेकर आउटहाउस नहीं आई तो इसका मतलब तो वही होता है",धनुष ने कहा... "आप कोई छोटे बच्चे हैं जो मैं रोज रोज आपको खाना खिलाने वहाँ आऊँ",प्रत्यन्चा बोली... "अच्छा! अब मैं जा रहा हूँ,ऐसा लगता है कि जैसे तुम्हारा मुझसे झगड़ा करने का मन है",धनुष बोला... "ऐसा कुछ नहीं ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५४)

प्रत्यन्चा की शादी डाक्टर सतीश से तय तो हो गई लेकिन प्रत्यन्चा शायद खुश नहीं थी,क्योंकि अभी उसने अपनी सच्चाई सबको नहीं बताई थी और इसके अलावा भी एक बात और थी उसके मन में और वो बात थी धनुष का उदास होना, वो धनुष को दुखी करके ये शादी नहीं करना चाहती थी,उसने धनुष का चेहरा देखा था, वो शायद इस रिश्ते से बिलकुल भी खुश नहीं था.... उस रात धनुष ने खाना नहीं खाया और वो आज घर में नहीं ठहरा आउटहाउस चला गया,ये सब प्रत्यन्चा को अच्छा नहीं लगा,लेकिन वो भला क्या बोलती,वो उससे कुछ कहती ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५७)

प्रत्यन्चा वापस आकर रोई नहीं,अब कि बार उसने अपना मन पक्का कर लिया,वो भी अब धनुष को दिखा देना थी कि जैसे उन्हें उसकी परवाह नहीं है तो मुझे भी उनकी कोई परवाह नहीं, मैंने क्या दुनिया भर की परवाह करने का ठेका ले रखा है,सब अपने अपने मन की करते हैं तो मैं भी अपने मन की क्यों ना करूँ.... कुछ देर के बाद उसने नीचे आकर दोपहर का खाना बनाया और सबको खाना खिलाकर अपने कमरे में चली गई,धनुष खाना खाने नहीं आया था लेकिन प्रत्यन्चा आज उसे खाना खिलाने आउट हाउस नहीं गई,लेकिन उसने कड़ा मन ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५६)

प्रत्यन्चा आउटहाउस से घर आई और आज उसने गुस्से में आकर खाना खाना नहीं छोड़ा,उसने अपने लिए थाली परोसी थाली परोसकर वो अपने कमरे में आ गई,फिर वो फर्श पर खाना खाने बैठ गई,एक निवाला मुँह में डालते ही उसे रोना आ गया,लेकिन उसने तब भी खाना खाना नहीं छोड़ा,रोते रोते वो मुँह में खाना ठूँसती जा रही थी और दुपट्टे से आँसू पोछती जा रही थी,उसे धनुष की हालत और उसकी बातों पर बहुत रोना आ रहा था,उससे धनुष की तकलीफ़ देखी नहीं जा रही थी,वो सोच रही थी कि अभी उनका ये हाल है और अगर वो ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५५)

प्रत्यन्चा धनुष को आउटहाउस से खाना खिलाकर वापस आ गई, लेकिन फिर वहाँ से वापस आकर उससे खाना नहीं गया,वो इसके बाद अपने कमरे में चली आई और धनुष की बातों को सोच सोचकर रोती रही, उसने मन में सोचा कितना चाहते हैं धनुष बाबू उसे,लेकिन वे अपनी चाहत को जाहिर क्यों नहीं करते, उन्होंने खुद को इतना बेबस क्यों बना रखा है,अगर वे मुझसे अपने दिल की बात कह दें तो शायद मैं भी.... प्रत्यन्चा ये सब अभी सोच ही रही थी कि तभी भागीरथ जी उसे खोजते हुए उसके कमरे में आएँ और उससे बोले... "बेटी! अभी ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५९)

धनुष उस रात प्रत्यन्चा से बहुत कुछ कह चुका था लेकिन धनुष प्रत्यन्चा से वो बात नहीं कह पाया जो वो कहना चाहता था,ऐसे ही दिन बीत रहे थे,सबको अब डाक्टर सतीश और प्रत्यन्चा की सगाई का इन्तजार था और फिर सगाई के दो दिन पहले ही शीलवती जी दीवान साहब के घर आईं और उनसे बोलीं... "दीवान साहब! मैं यहाँ आपसे कुछ जरूरी बात करने आई थी" "जी! कहिए",भागीरथ जी ने कहा... "जी! मैं चाहती थी कि सगाई एकदम सादे तरीके से और मेरे घर पर हो",शीलवती जी बोलीं... "जी! अगर आप ऐसा चाहतीं हैं तो ऐसा ही ...और पढ़े

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लागा चुनरी में दाग़--(अन्तिम भाग)

और जब डाक्टर सतीश ने अमोली को वहाँ देखा तो वो उससे बोले... "अमोली! तुम और यहाँ" "हाँ! सतीश! ही हूँ",अमोली सतीश से बोली... "लेकिन तुम तीन चार सालों से कहाँ थी"?,सतीश ने अमोली से पूछा.... "मैं अपना इलाज करवा रही थी सतीश!",अमोली बोली... "किस रोग का इलाज करवा रही थी तुम वहाँ?",सतीश ने पूछा... "तपैदिक का,मैं तुम्हें ये सब नहीं बताना चाहती थी ,इसलिए तुम्हें बिना बताएँ ही अपना इलाज करवाने विलायत चली गई",अमोली बोली... "तुम जब विलायत से लौटी तो मुझसे मिलने क्यों नहीं आई अमोली!",सतीश ने पूछा... "मैं तुमसे मिलने आई थी सतीश! लेकिन तुम्हारी माँ ...और पढ़े

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