टेढी पगडंडियाँ

(260)
  • 295.7k
  • 9
  • 128.3k

टेढी पगडंडियाँ “ चाची ! ओ चाची ! तुझे भापा बुला रहा है खेत में ट्यूवैल पे । जल्दी जा “ - नाइयों का बिल्लू दहलीज पर खङा मुस्कियों हँसता हुआ पुकार रहा था । किरणा ने छाबे में रखी रोटियों पर निगाह मारी । रोटियाँ काफी बन गयी थी । फिर पाँच रोटी निकाल कर एक साफ सुथरे पोने में लपेट ली । मेथी आलू की सब्जी डब्बे में डालकर माथे पर झलकता पसीना पोंछा । बाकी रोटियाँ वहीं छाबे में ढक कर रखके उठ खङी हुई । नलके पर जाकर हाथ मुँह रगङ रगङ कर धोया ।

नए एपिसोड्स : : Every Monday & Friday

1

टेढी पगडंडियाँ

टेढी पगडंडियाँ “ चाची ! ओ चाची ! तुझे भापा बुला रहा है खेत में ट्यूवैल । जल्दी जा “ - नाइयों का बिल्लू दहलीज पर खङा मुस्कियों हँसता हुआ पुकार रहा था । किरणा ने छाबे में रखी रोटियों पर निगाह मारी । रोटियाँ काफी बन गयी थी । फिर पाँच रोटी निकाल कर एक साफ सुथरे पोने में लपेट ली । मेथी आलू की सब्जी डब्बे में डालकर माथे पर झलकता पसीना पोंछा । बाकी रोटियाँ वहीं छाबे में ढक कर रखके उठ खङी हुई । नलके पर जाकर हाथ मुँह रगङ रगङ कर धोया । ...और पढ़े

2

टेढी पगडंडियाँ - 2

टेढी पगडंडियाँ 2 मंगर ने सुना तो मसखरी से पूछ बैठा , ये मेरी ही न । किसी और की तो नहीं । कहने को तो यह मजाक था पर उसकी शक्ल बता रही थी कि उसके मन में शक का कीङा कुलबुला रहा है । अगले दिन सुबह दिन निकलते ही वह कुलीनों की बस्ती के दो चक्कर काट आया कि कहीं बच्ची से मिलती जुलती शक्ल वाला कोई आदमी दीख जाये तो उसके सीने में अपना चाकू उतार दे पर उसके दोनों चक्कर बेकार गये । कहीं ऐसा कोई आदमी था ही नहीं तो ...और पढ़े

3

टेढी पगडंडियाँ - 3

टेढी पगडंडियाँ 3 स्कूल घर से थोङी दूरी पर था । बच्चे रास्ते में अटकते घूमते पहुँचते । रास्ते में लगी बेरियाँ और अमरूद उनका रास्ता रोककर खङे हो जाते । अब फल तोङकर जेबों में भरे बिना कोई आगे कैसे जा सकता था तो सब पहले पेङों की जङों में बस्ते जमाए जाते फिर वे सब पेङ पर चढ कर फल तोङते । जब अपने खजाने से संतुष्ट हो जाते तब स्कूल जाते । वैसे भी स्कूल में पढाने वाले मास्साब और बहनजी तो शहर से आने हुए , बस आएगी तभी आएंगे । और बस ...और पढ़े

4

टेढी पगडंडियाँ - 4

4 सारी सोच को वहीं छोङ वह चौंके में गयी और गुरजप के लिए एक थाली में , मेथी और रोटी डाली , साथ ही अपनी थाली में भी एक रोटी रख लाई । रोटी खाते खाते गुरजप को याद आया - मम्मी भुट्टे । मैंने भुट्टे खाने हैं । तूने कहा था न , खेत से आती हुई मेरे लिए भुट्टे लाएगी । भुट्टे कहाँ रख दिये । उफ ये बाईक पर आने के चक्कर में भुट्टे तोङना तो भूल ही गयी । ये गुरनैब भी न कुछ कहाँ याद रहने देता है । सामने ...और पढ़े

5

टेढी पगडंडियाँ - 5

टेढी पगडंडियाँ - 5 बसंत खेत में मुङ गया तो वह मुँह धोने नल पर चली गयी हाथ मुँह धोकर वह रसोई में गयी । कैन का दूध पतीले में उलटाकर उसने गैस पर चढा दिया । और परात खींच कर आटा छानने लगी । आटा छानते हुए वह फिर से सोचने लगी – अगर वह इस समय अपने घर पर होती तो माँ इस समय नमक डली बेसनी रोटियाँ बना रही होती और वह लस्सी के साथ गरम गरम रोटी खा रही होती । माँ मनुहार कर करके रोटियाँ खिलाती । उसका पेट भर जाता पर ...और पढ़े

6

टेढी पगडंडियाँ - 6

टेढी पगडंडियाँ 6 ऐसे सैकङों किस्से जुङे हैं भाई की यादों से । इतने प्यारे भाई के में सोच कर मन उसके लिए प्यार से भर उठता है । अब बेचारा अकेला ही अपने आप से उलझ रहा होगा । पता नहीं किस हाल में होगा । शायद अब तक शादी भी हो गयी होगी । पूरे छ साल हो गये है उसे यहाँ इस गाँव में आये हुए । और सीरीं , वह इस समय अपनी ससुराल में होगी । जब उसकी शादी हुई थी , तब कितना मजा आया था । पूरे सात दिन उनके ...और पढ़े

7

टेढी पगडंडियाँ - 7

7 समाज में लङकी होकर जीना बहुत मुश्किल है । यह बात जो जीव लङकी बन कर होता है , वही समझ सकता है । घर में अगर चूहा कुतर कुतर कर लङकी की बोटियाँ खाता रहता है तो बाहर आवारा कुत्ते और खूंखार भेङिये अपना मुँह खोले पंजे तेज किये उसे कच्चा चबा जाने को तैयार बैठे रहते हैं । कब कोई लङकी अकेली दुकेली हाथ आय़े तो उसे अपना निवाला बना लें । और मजा यह है कि इनके ऊपर कोई सामाजिक बंधन नहीं है । कोई परदा कोई घूंघट इनके लिए नहीं बना । ...और पढ़े

8

टेढी पगडंडियाँ - 8

टेढी पगडंडियाँ 8 किरण को तीनकोनी से बसस्टैंड तक अकेले सफर करना पङता । रास्ता बेशक पाँच का ही था पर किरण की साँस ऊपर ही कहीं अटक जाती । अब तक किरण ने छोटे छोटे बसस्टैंड देखे थे । उसके गाँव वाले बस अड्डे पर तो मुश्किल से आठ दस लोग होते । वो भी वहाँ अड्डे पर बनी दो तीन दुकानों पर अखबार पढने या रेडियो पर खबरें सुनने आये लोग । ये लोग खबरें पढते , फिर आपस में उस पर चर्चा करते । कभी कभी वह चर्चा बहस में बदल जाती । लगता ...और पढ़े

9

टेढी पगडंडियाँ - 9

टेढी पगडंडियाँ अध्याय - 9 बीबीजी ओ बीबीजी , लीजिए छल्लियाँ ले आया हूँ – घेर के बीचोबीच खङा उसे पुकार रहा था । एक ये बसंत ही तो है जो लाख मना करने पर भी उसे बीबीजी कहकर संबोधित करता है । बाकी सब बङे उसे किरणा कहते हैं जिसकी नौबत कभीकभार ही आती है और बराबर के तथा छोटे सब कहते हैं चाची । चाची के नाम से ही वह इस गाँव में जानी जाती है । आजा भाई , ले आ – किरण ने बसंत को जवाब दिया । साथ ही उसने रिङकने से मक्खन ...और पढ़े

10

टेढी पगडंडियाँ - 10

टेढी पगडंडियाँ 10 उस पूरे दिन के लैक्चरों में किरण को न कुछ सुना , उसे कुछ समझ में आया । वह मूर्खों की तरह मुँह खोले इस माहौल को समझने की कोशिश करती रही । पूरे दो साल हो गये थे उसे शहर पढने के लिए आते हुए , पर एक तो वह सिर्फ लङकियों का कालेज था जहाँ सिर्फ और सिर्फ लङकियाँ पढती थी । मोटरसाइकिल या फिर साइकिल पर गेङियाँ मारते मनचले लङके और उनके सारे कमैंट हर रोज कालेज की चारदीवारी से बाहर ही रह जाते थे । दूसरे अपरिचय के कारण ...और पढ़े

11

टेढी पगडंडियाँ - 11

टेढी पगडंडियाँ 11 बठिंडा से दस किलोमीटर की दूरी पर छोटा सा गाँव है सुखानंद सरहंद नहर के साथ लगता गाँव । नहर का पानी लगने से धरती बेहद उपजाऊ हो गयी थी । चारो तरफ हरियाली ही हरियाली । दूर दूर तक फैले खेत । खेतों में भरपूर फसल होती । गाँव में करीब सौ घर होंगे । कुछ कच्चे कुछ पक्के । उन्हीं घरों में एक घर था बङे सरदारों का । बङे सरदार यानी अवतार सिंह का घर । आधे से ज्यादा गाँव की जमीन उनकी जायदाद थी । दस हलों की जोत ...और पढ़े

12

टेढी पगडंडियाँ - 12

टेढी पगडंडियाँ 12 गाङी तो चली गयी पर किरण उसी तरह बौखलायी सी सुधबुध खोए खङी रही । बसंत ने आकर पुकारा तो जैसे वह होश में आयी । बसंत उससे मुखातिब था – बीबी जी हाथ मुँह धो लीजिए और कमरे में चलकर आराम करिये । वह जैसे नींद से जागी और सीधी कमरे में भागी । अंदर पहुँचकर उसने पूरे जोर से दरवाजा बंदकर अंदर से सिटकनी लगा ली और दीवार के सहारे बैठ घुटनों में सिर दिये रोने लगी । पता नहीं कितनी देर उसी पोजीशन में बैठी रोती रही । एक घंटा ...और पढ़े

13

टेढी पगडंडियाँ - 13

13 बसस्टैंड पर खङे लोगों में दहशत फैल गयी थी । दिनदहाङे इतने सारे लोगों बीच से एक लङकी उठा ली गयी । हे रामजी घोर कलयुग । राम राम कैसा जमाना आ गया है । लोग इतना डर गये थे कि कोई किसी की तरफ देखता तक न था । कोई किसी से बात भी न करता था । सब जङ हो गये थे । निंजा था ये । दो चार बंदे मारना उसका बायें हाथ का खेल था । साथ में भतीजा हो तो क्या कहने । जिधर निकल जाता , लोग पहले ही ...और पढ़े

14

टेढी पगडंडियाँ - 14

टेढी पगडंडियाँ 14 गाँव के एक आदमी ने कहा कि एक बार गाँव चलके देख हैं । शायद अब तक किरण लौट आई हो । सबके मन में उम्मीद जाग उठी । हाँ हो सकता है , कुछ काम हो गया हो और वह शहर में अटक गयी हो । अब आखिरी बस पकङ कर घर आ गयी हो । वे सब गाँव लौट पङे । मंगर के दिल की धङकन काबू में न थी । बाकी लोग क्या बातें कर रहे हैं , उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था । वह बार बार सारे ...और पढ़े

15

टेढी पगडंडियाँ - 15

टेढी पगडंडियाँ 15 सुबह रोज की तरह दिन निकला । सरदारनी चन्न कौर की सारी उसलवट्टे लेते बीती थी फिर भी वह अपने नियत समय पर उठ गयी । नित्य कर्म किया । स्नान करके जपजी साहब का पाठ किया । अरदास की । तब तक आसमान में सूरज की किरणें अपनी लाली बिखेरने लगी थी । दिन निकलते ही चन्न कौर ने जीप निकलवायी और खुद चलाती हुई घेर में जा पहुँची । घेर में सन्नाटा पसरा हुआ था । बसंत और देसराज पशुओं को चारा पानी खिला रहे थे । सरदारनी की आवाज सुनकर ...और पढ़े

16

टेढी पगडंडियाँ - 16

टेढी पगडंडियाँ 16 पूरा दिन सूरज ने जी भर कर आग उगली । लू भरी चलती रही । ऐसा लग रहा था आज दिन ढलेगा ही नहीं । इसी तरह करते करते आखिर पाँच बज गये । अब धीरे धीरे दोपहर ढलने लगी थी । सूरज ने अपना रथ पश्चिम की ओर मोङ लिया था पर धरती की तपन अभी ज्यों की त्यों बनी हुई थी । आसमान से जो आग अब तक गिरी थी , धरती उससे मुक्त न हुई थी । अवतार सिंह ने नौकरों चाकरों को बुलाया और डयोढी में पानी छिङकने को ...और पढ़े

17

टेढी पगडंडियाँ - 17

टेढी पगडंडियाँ 17 चन्न कौर हवेली के भीतर लौट चुकी थी । साथ ही उसकी भी । बीङ तलाब से आये लोग भी अपने गाँव लौट गये थे । बङे सरदार अवतार सिंह ने जीप में बैठकर चाबी घुमायी और वह भी बाहर चल पङा । चलिए बीबीजी , सब चले गये , अब हम भी चलें घेर में – बसंत ने पास आकर दोबारा उसे पुकारा तो वह मोहाविष्ट सी चुपचाप उसके पीछे चल पङी । रास्ते भर किरण चुप रही । गुमसुम । सिर झुकाए बसंत के पीछे चलती रही । उसका दिमाग सुन्न ...और पढ़े

18

टेढी पगडंडियाँ - 18

टेढी पगडंडियाँ 18 जैसे ही चन्न कौर ने दोनों को अपने कमरों में का आदेश दिया , अब तक असमंजस में पङे चाचे भतीजे को भाभी के हुक्म से जैसे सहारा मिल गया - हाँ जी भाभी , खाना खा लिया । बस अब जा ही रहे हैं । दोनों चाचा भतीजा थाली पर से उठे । हाथ मुँह धोकर अपने अपने कमरों में चले गये । सिमरन गुरनैब को देखते ही चारपाई छोङकर उठ बैठी – आज पंचायत में क्या हुआ जी , बताओ न । गुरनैब ने सिलसिलेवार पूरी घटना कह सुनायी । वो ...और पढ़े

19

टेढी पगडंडियाँ - 19

टेढी पगडंडियाँ 19 अवतार सिंह और चन्न कौर ने जंगीर और सतबीर को शांत करने भरसक कोशिश की । भई होनी को कौन बदल सकता है । शायद यही सब होना किस्मत में लिखा था । जो होना था , सो हो गया । पर देखो , निरंजन जसलीन का पूरा ख्याल रखता है । हर समय उसी के पास होता है । तुम यह समझो कि घेर की साफ सफाई के लिए एक नौकरानी रख ली है । बाकी हम हैं न जसलीन का ध्यान रखने के लिए । उसे शिकायत का कोई मौका नहीं ...और पढ़े

20

टेढी पगडंडियाँ - 20

टेढी पगडंडियाँ 20 किरण उस दिन पूरी खुश थी । हर औरत का होता है एक घर जिसे वह अपने तरीके से सजा सके , सँवार सके और आज उसका यह सपना पूरा हो गया था । आज वह इस कोठी की मालकिन हो गयी थी । उसके पैर जमीन पर नहीं पङ रहे थे । उसकी तकदीर इस तरह चमकेगी , आज से पाँच महीने पहले उसने सोचा न था । वह एक एक चीज को छू कर देखती । उसे कई कई बार कपङे से पौंछती । यहाँ से उठाकर वहाँ करती नाचती फिर ...और पढ़े

21

टेढी पगडंडियाँ - 21

टेढी पगडंडियाँ 21 रात अपने अंतिम पङाव पर थी । चांद अपनी यात्रा पूरी कर चुका था । नीले आसमान का रंग राख जैसा हुआ पङा था । तारे गायब हो चुके थे । पर सूरज ने अपनी किरणें बिखेरनी शुरु नहीं की थी । शबनम की बूंदें सारी धरती पर बिछी हुई थी तो घास गीली थी । पेङों की पत्तियाँ कोहरे में लिपटी हुई ऐसे लग रही थी जैसे काले रंग के घोल में से निकालकर सूखने डालने के लिए पेङों पर लटका दी गयी हों । गुरद्वारे में पाठी ने पाठ करना शुरु ...और पढ़े

22

टेढी पगडंडियाँ - 22

टेढी पगडंडियाँ 22 निरंजन जो कङियल जवान था । निरंजन जो यारों का यार था निरंजन जो साहसी और धाकङ था । निरंजन जो चलता तो धरती हिलती । बोलता तो आसमान लरजता था । निरंजन जब सजधज के निकलता तो लोग अश अश कर उठते थे । हर जगह जिसके चर्चे थे , उस निरंजन का ऐसा अंत होगा , किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था । हवेली मातम में डूब गयी थी । जो सुनता , हवेली की ओर चल देता । अवतार सिंह एक ही दिन में ऐसा हो गया था ...और पढ़े

23

टेढी पगडंडियाँ - 23

टेढी पगडंडियाँ 23 बसंत, इक्कीस साल का गबरु जवान इस समय छोटे बच्चे की तरह ऊँचे स्वर में रोये चला जा रहा था । घबराई हुई किरण को समझ नहीं आया कि वह बसंत को कैसे चुप कराये । वह बार बार पूछे जा रही थी – क्या हुआ , कुछ बताओ तो सही । तुम लोग घेर लावारिस छोङकर कहाँ चले गये थे ? देसराज कहाँ है ? रो क्यों रहे हो ? बोलो तो सही कुछ ? बोल क्यों नहीं रहे हो पर बसंत किसी बात का कोई जवाब दे ही नहीं रहा था ...और पढ़े

24

टेढी पगडंडियाँ - 24

टेढी पगडंडियाँ 24 गुरजप अपने ब्लाक निकालकर खेल में मगन हो गया था । किरण पीढा बिछाकर चूल्हे के पास बैठ गयी । चूल्हे पर चढाई हुई खीर खौलने लगी तो वह सब्जी की जुगाङ में लग गयी । हाथ काम में व्यस्त थे और मन अपने घोङे भगाने में लीन था । निरंजन को उसके हाथ के करेले कितने पसंद थे और कटहल की सब्जी तो वह पूरे चटकारे ले लेकर खाता था । ब्रैड को अंडों में डुबोकर जब वह शैलो फ्राई करती तो वह सूंघता हुआ सीधा चौके में ही चला आता और ...और पढ़े

25

टेढी पगडंडियाँ - 25

टेढी पगडंडियाँ 25 किरण को सामने बैठा कर रोटी खिलाने से गुरनैब को लगा कि चाचे की रूह को शांति मिली होगी । मरते मरते भी उसे किरण की चिंता जरूर हुई होगी । आखिर ये उसके इश्क का मामला था । मिर्जे को साहिबां ने ही अपने भाइयों से मरवा दिया था पर यह बात अभी पक्की न थी । साहिबाँ यहाँ कोठी में फकीरनी हो गयी थी और उधर एक और साहिबां हवेली में आराम से रह रही थी ।उस दिन के बाद से गुरनैब हर रोज कोठी आने लगा था । जब भी ...और पढ़े

26

टेढी पगडंडियाँ - 26

टेढी पगडंडियाँ 26 सिमरन इस बीच बेहद घबराई पङी थी । उसे हरपल गुरनैब की की फिक्र रहती । कहीं गुरनैब को कुछ हो न जाये । निरंजन जैसे कद्दावर जट्ट की अन्यायी मौत उसकी आँखों के सामने नाचती रहती । एक एक मिनट गिन कर उसने ये तेरह दिन निकाले थे । गुरनैब किसी काम से भी बाहर जाता तो उसका दिल डूबने लगता । जबतक वह वापिस नहीं आता , पता नहीं किस किस देवी देवते को याद करती रहती और जब लौट आता तो दिल ही दिल में सौ शगन मनाती । उसे ...और पढ़े

27

टेढी पगडंडियाँ - 27

टेढी पगडंडियांँ 27 अगले दिन सुबह सिमरन पौने चार बजे ही उठ गयी चौंके में जाकर उसने गोभी की सब्जी बनाई । आटा गूंथा । फिर चाटी में दही डालकर मट्ठा बिलोने लगी । रई चलने की आवाज सुनकर जसलीन की नींद खुली । वह आधी सोई आधी जागी पलंग पर आँखें बंद किये लेटी हुई थी । उसने ध्यान से आवाज सुनने की कोशिश की । नहीं , यह सपना नहीं था । आवाज नीचे रसोई से ही आ रही थी । वह एकदम बिस्तर छोङकर उठ बैठी और रसोई में जा पहुँची । ये ...और पढ़े

28

टेढी पगडंडियाँ - 28

टेढी पगडंडियाँ 28 सुबह के सात बजे होंगे जब गुरनैब की नींद टूटी । उसने छोङी और पैर में जूती फँसाकर हवेली के बाहर निकल आया । सूरज में अभी ताप नहीं उतरा था । हवा में ठंडक उतर आई थी पर उसे वह हवा अच्छी लगी । लगा , तन मन के साथ आत्मा को सुकून मिल गया । वह खेतों की ओर चल पङा । एक पल के लिए उसका मन डगमगाया । इससे पहले कभी अकेले घर से निकला न था । वह जहाँ भी जाता , हमेशा निरंजन ढाल की तरह उसके ...और पढ़े

29

टेढी पगडंडियाँ - 29

टेढी पगडंडियाँ 29 उस दिन वह पूरा दिन गुरनैब ने इधर उधर भटकते हुए बिताया तपती हवा के साथ साथ वह यहाँ से वहाँ घूमता रहा । धीरे धीरे दोपहर ढलने लगी । फिर शाम उतर आई । सूरज अपने घर लौटने लगा था । सूरज की किरणें पेङ की ऊँची फुनगी पर जा बैठी । चरने गये पशु , गाय भैंसे अपने ठिकानों पर लौट आये । पक्षियों ने अपने घोंसलों की ओर मुङना और चहचहाना शुरु किया । खेतों में काम करते हुए किसान और दिहाङी करने गये मजदूर अपने घरों में लौटने शुरु ...और पढ़े

30

टेढी पगडेडियाँ - 30

टेढी पगडंडियाँ 30 सिमरन कुछ देर तो गुमसुम खङी रही फिर उसने अलमारी खोलकर सर्टिफिकेट फाइल टिकाई । मुँह हाथ धोकर कपङे बदले । फिर रसोई में जाकर हारे में उपले डालकर आग सुलगाई और साबुत मूँग की दाल चढा दी । उसका चाय पीने का मन हो रहा था पर अकेले अपने लिए कैसे बनाए । ये गुरनैब तो नाराज होकर न जाने कहाँ निकल गया । उसे अपनेआप पर गुस्सा आया – बेकार में ही उसे नाराज कर दिया । अब कई दिन यूँ ही रूठा रहेगा । ऊपर से एक दो दिन की ...और पढ़े

31

टेढी पगडंडियाँ - 31

टेढी पगडंडियाँ 31 रात के आठ बज चुके थे । आसमान की चादर में ढेर तारे आ टंके थे । उनकी टिमटिमाहट से भर पूरा वातावरण भर गया था । चाँद अभी अपने घर से सैर पर निकला नहीं था । सङक पर गहरा अंधेरा छाया था । उससे गहरा अंधेरा इस समय गुरनैब के मन पर तारी था । एक अजीब सी उदासी उस पर हावी हो रही थी । पिछले पंद्रह दिनों में घटी घटनाएँ बार बार उसकी आँखों के सामने से गुजर जाती । जंगीर भाइयों का अचानक घर पर आना , चाचा ...और पढ़े

32

टेढी पगडंडियाँ - 32

टेढी पगडंडियाँ 32 गुरनैब जब तक दिखता रहा , किरण वहीं खङी उसे जाता देखती फिर वह भीतर आकर धम्म से चारपायी पर ढेर हो गयी । जिंदगी क्या से क्या हो गयी थी । कितना प्यारा था उसका बचपन । एक खूबसूरत प्यारी सी बच्ची जो पूरे टोले की लाडली थी । जो अपने भाई बीरे की जान थी । माँ बाप की उम्मीद थी । बहन सीरीं की दुलारी । पढाई में सबसे तेज । मन लगा कर पढती और हमेशा अव्वल आती । उसकी शिक्षिकाएँ अक्सर कहती , अगर ऐसे ही पढती रही ...और पढ़े

33

टेढी पगडंडियाँ - 33

टेढी पगडंडियाँ 33 आशा के विपरीत सिमरन थोङी देर में ही तैयार हो कर आ । आज उसने फिरोजी रंग का गुलाबी कढाई और गुलाबी दुपट्टे वाला सूट पहन रखा था जिसमे वह बहुत प्यारी लग रही थी । लंबे बालों को उसने परांदे में बाँध रखा था । गुरनैब ने उसे नजर भर कर देखा तो वह शर्मा गयी । बात बदलने के लिए उसने कहा - तू अब तक तैयार नहीं हुआ । अब तक गुरनैब ननी के साथ ही खेल रहा था । ननी ने थोङा थोङा बोलना सीख लिया था । वह ...और पढ़े

34

टेढी पगडंडियाँ - 34

टेढी पगडंडियाँ 34 सिमरन के हाँ कहते ही गुरनैब को लगा कि वह फूल भी हलका हो गया है । कब से किसी को यह बात बताने को वह बेचैन हुआ पङा था । इतनी बङी खबर उससे अकेले हजम कैसे होती । आज चाचा जिंदा होता तो वह मरासियों को बुलाके ढोल बजवाता हुआ घर आता । अभी चाचा को गये पंद्रह दिन नहीं हुए । घर से मातम खतम नहीं हुआ । हर तरफ उदासी छाई है फिर भी खबर तो मन को ठंडक देने वाली हुई न । उसके सगे चाचे का अंश ...और पढ़े

35

टेढी पगडंडियाँ - 35

टेढी पगडंडियाँ 35 दस बजते न बजते बिशनी दाई ने हवेली के दरवाजे पर आकर आवाज लगाई - ओ सरदारनी , ल्या कोई सुच्ची सूट , कोई गुङ का थाल , कोई झांझर का जोङा । कोई टूम छल्ला । खोल रूपयों की थैली का मुँह । तेरी वेल बढे । हवेली और हवेली वालों के भाग जगे रहें । आ बिशनिए आजा । आ बैठ । चन्न कौर ने रसोई से ही आवाज दी । बिशनी अंदर आ गयी । और आँगन में आकर खङी हो गयी ।चन्न कौर ने लस्सी का गिलास भरा । कटोरी में ...और पढ़े

36

टेढी पगडंडियाँ - 36

'टेढी पगडंडियाँ 36 बिशनी ने सिर पर परात रखी । परात में ढेर सारा गुङ , रोटियाँ सब्जी का पतीला टिकाकर आँचल में पाँच पाँच सौ के दो नोट बाँध कर जब गली में पाँव रखा तो खुशी के मारे धरती पर पैर सीधे न पङ रहे थे । चेहरा का कालापन सलोना होकर दमक रहा था । आँखों में अनोखी चमक थी । अपने ही ध्यान में मगन होकर सोचती जा रही थी कि बङे घरों की बातें ही बङी होती हैं । अभी तो किरण के माँ बनने की खबर ही मिली है तो सरदारनी ...और पढ़े

37

टेढी पगडंडियाँ - 37

टेढी पगडंडियाँ 37 सिमरन ने कामर्स की लैक्चरार यानि कि पी जी टी के पर जवाहर नवोदय विद्यालय में काम करना शुरु कर दिया था । उसे रहने केलिए सैमीफर्नीशड क्वाटर मिल गया । खाना वह मैस में ही खा लेती । यहाँ कैम्पस में करीब तीस लोग रहते थे । ज्यादातर परिवार थे तो यहाँ किसी किस्म का भय न था । उसके बिल्कुल साथ वाले घर में मिस्टर और मिसेज शर्मा रहते थे । उनकी दो बेटियाँ और एक बेटा थे । ननी जल्दी ही इस परिवार से हिल गयी । जब सिमरन पढाने ...और पढ़े

38

टेढी पगडंडियाँ - 38

टेढी पगडंडियाँ - 38 किरण को अस्पताल से दूसरे दिन शाम को छुट्टी मिल गयी और वह लौट आयी । वह बेहद खुश थी । अब वह अकेली नहीं थी । उसका अकेलापन बाँटने उसका अपना अंश उसकी बगल में लेटा था । हाँ थोङी थोङी देर में उसे अपनी माँ , अपना मायका गाँव याद आ जाता और वह उदास हो जाती । सुरजीत यह सब देखती और एक ठंडी साँस लेकर रह जाती । बच्चा बिल्कुल निरंजन का ऱूप था । वही ऊँचा माथा , बङी बङी आँखें , चौङे कंधे , लंबी बाहें , ...और पढ़े

39

टेढी पगडंडियाँ - 39

टेढी पगडंडियाँ 39 किरण के बेटे के जन्म की बात सुनते ही सिमरन उदास हो गयी उसे तुरंत जसलीन चाची याद आ गयी । अल्हङ उम्र की चाची लंबी , भरवें शरीर की तीखे नैन नक्शों वाली औरत थी । काम करने में माहिर । सारे कामे कामियों को रोटी चाय देना उसी की जिम्मेदारी थी । थकना तो वह जानती ही न थी । हमउम्र होने की वजह से दोनों में सास बहु वाला रिश्ता न होकर सहेलियों जैसा प्यार था । करोङों में खेलती चाची अब एकदम फकीरनी हो गयी थी । न ससुराल में ...और पढ़े

40

टेढी पगडंडियाँ - 40

टेढी पगडंडियाँ 40 गुरनैब ने अभी आधा ही रास्ता पार किया था कि हल्की हल्की शुरु हो गयी । अभी कुछ देर पहले तो चारों ओर सुनहरी धूप खिली थी कि अचानक पता नहीं कहाँ से उङती हुई बदली छा गयी । कोई और समय होता तो गाङी की छत पर बूँदों की टप टप का संगीत उसे अच्छा लगना था पर इस मनस्थिति में उसका गुस्सा भङक गया । इस बादल के टुकङे को भी अभी आना था । उसने मन लगाने के लिए रेडियो आन कर लिया । वहाँ गाना बज रहा था – ...और पढ़े

41

टेढी पगडंडियाँ - 41

टेढी पगडंडियाँ 41 गुरनैब एकटक किरण को देखे जा रहा था । किरण बेहद थी , कोई अप्सरा पर आज से पहले इतनी सौंदर्य की मलिका कभी नहीं लगी थी । उसका रंग हल्दी और केसर मिला दूधिया रंग हो गया था । लेटी हुई किसी बादशाह की बेगम से कम न लगी । ऊपर से उसका यूँ शर्माना गजब ढा रहा था । काफी देर तक वह हथेलियों में मुँह छिपाये रही फिर धीरे धीरे अपनी ऊँगलियाँ सरकाई तो जैसे चाँद बदली से बाहर आ गया । उसके चेहरे की मुस्कान अलग चाँदनी की तरह ...और पढ़े

42

टेढी पगडंडियाँ - 42

टेढी पगडंडियाँ 42 अब तक आप लोगों ने पढा कि गाँव के सबसे जमींदार के खानदान के चिराग निरंजन और गुरनैब वैसे तो चाचा भतीजा हैं पर दोनों हमउम्र होने के चलते भाई और दोस्त ज्यादा है । एक दिन बठिंडा घूमते हुए वे बस स्टैंड पर किरण को देखते हैं । किरण बीङतलाब के चमारटोले से कालेज पढने आती है । दोनों किरण की खूबसूरती देख ठगे रह जाते हैं । उसके ललकारने से जोश में आकर निरंजन उसे जबरदस्ती कार में बैठा लेता है और दोनों उसे अपने घेर में ले आते हैं । इकबाल ...और पढ़े

43

टेढी पगडंडियाँ - 43

टेढी पगडंडियाँ 43 साफ सफाई से निपट कर किरण ने घङी देखी , छोटी सुई एक को छूने चली । दोपहर अपने शिखर पर थी । बाहर आग बरस रही थी । गुरजप आने वाला होगा । गाँव के ही एक प्राइवेट स्कूल में उसे नर्सरी में दाखिल करवाया है । थोङा बङा हो जाय तो शहर भेजने के बारे में सोचा जाए । अभी के लिए ये प्राइवेट स्कूल ही ठीक है । सरकारी स्कूल में सौ बच्चे हैं पर मास्टर एक ही है । वह भी पास के गाँव गिल पत्ती का होने की वजह से टिका ...और पढ़े

44

टेढी पगडंडियाँ - 44

टेढी पगडंडियाँ 44 उस दिन सारी दोपहर गुरजप तो शांत सोया रहा पर किरण का वह सारा दिन सोचों उलझते सुलझते बीता । जबसे ये चाचा भतीजा उसे जबरन उठाकर इस घेर में ले आये थे , ये सवाल उसे हर दूसरे तीसरे दिन परेशान करता रहा था कि उसका समाज में क्या अस्तित्व है । क्या हैसीयत है उसकी इस गाँव में । हवेली में आज तक उसने जाकर नहीं देखा । जबसे वह इस गाँव में लाई गयी है , अब तक सिर्फ एक बार गयी थी वह हवेली । वह भी बाहर डयोढी के फाटक तक ...और पढ़े

45

टेढी पगडंडियाँ - 45

45 गुरजप दीन दुनिया से बेखबर पलंग पर उल्टा हुआ सोया पङा था , बिल्कुल निरंजन की तरह । भी इसी तरह सोया करता था । गुरजप के गुलाबी होंठ गुलाब की पंखुङियों की तरह बार बार सांस लेने के लिए खुल जाते । अगले ही पल बंद हो जाते । वह एकटक उसे देखती रही । तभी वह डर गयी । कहीं गुरजप को नजर लग गयी तो ... । यह ख्याल आते ही वह रसोई में गयी । डिब्बे से सात साबुत लाल मिरचें निकाली । फिर दूसरे डिब्बे से साबुत नमक निकाला । बंद मुट्ठी में ...और पढ़े

46

टेढी पगडंडियाँ - 46

टेढी पगडंडियाँ 46 गुरनैब आज बहुत खुश था । इतना ज्यादा खुश कि उसे समझ ही नहीं आ रहा कि इस खुशी को व्यक्त करने के लिए क्या करे । नाचे या गाये । उसने किरण को गोद में उठा लिया । और उसे उठाये उठाये पूरी कोठी के दो तीन चक्कर लगा लिए । किरण चिल्ला रही थी – अरे, उतारो । उतारो नीचे । मैं गिर जाऊँगी । चोट लग जाएगी । छोङ दो प्लीस । छोङो न । छोङ भी दो । गुरनैब ने उसे पलंग पर गिरा दिया और बेतहाशा चूमने लगा । किरण ने ...और पढ़े

47

टेढी पगडंडियाँ - 47

टेढी पगडंडियाँ 47 माँ मुझे कहानी सुनाओ न । वही सिंड्रैला वाली । बहुत दिन से सुनाई नहीं तुमने आज तो सुन कर ही सोऊँगा – गुरजप ने मचलते हुए कहा । ठीक है । आँखें बंद कर , सुनाती हूँ । सुन । एक थी सिंड्रैला ... । एक दिन उसका भाई उसे मेला दिखाने ले गया । ये क्या कह रही हो । सिंड्रैला के भाई तो था ही नहीं । माँ बाप भी नहीं थे । एक सौतेली माँ थी और दो बहनें वे भी सौतेली । तुमने उस दिन तो ऐसे सुनाया था । हाँ ...और पढ़े

48

टेढी पगडंडियाँ - 48

टेढी पगडंडियाँ 48 सपने सपने होते हैं । न सपनों का न कोई धर्म होता है , न वर्ण न स्थान । ये कब किसी के दिल में बस जांयें , कहना कठिन है । दिल में बसे तो फिर भी ठीक पर दिल से होते हुए दिमाग पर चढ बैठें तो दुनिया में कुछ भी हो सकता है और कहीं भी हो सकता है । सिर पर सवार ये सपने जब किसी की आँखों में बस जाते हैं तो दिन का चैन और रात की नींद उङा ले जाते हैं । बावरा हुआ मन दिन रात उन उङते ...और पढ़े

49

टेढी पगडंडियाँ - 49

टेढी पगडंडियाँ 49 सुखानंद में कालेज के निर्माण का काम युद्ध स्तर पर चल रहा था । कई राजमिस्त्री सैकङों मजदूर काम पर जुटे थे । गुरनैब खुद कई कई चक्कर लगाता हुआ काम की निगरानी कर रहा था । एक से एक बढिया सामान मंगवाता । किसी भी चीज में समझौता उसे मंजूर नहीं था । और आखिर एक दिन कालेज की इमारत बनकर तैयार हो गयी । मुख्य सङक पर ही एक बहुत बङा और भव्य द्वार । उस द्वार पर चमचमाता हुआ कालेज का नाम – निरंजन सिंह सिद्धू कालेज फार वुमैन । नीले रंग की ...और पढ़े

50

टेढी पगडंडियाँ - 50

टेढी पगडंडियाँ 50 मंगर जब भी किरण को याद करता , उसका मन गर्व से भर उठता । सही था न वह , यह लङकी तो इस दुनिया की है ही नहीं , किसी और ही दुनिया से उतरी है और अचानक उनके घर आ गयी वरना कहाँ परियों जैसी किरण और कहाँ उनकी टूटी फूटी झोंपङी । कभी लगता ही नहीं था कि वह उनकी बेटी है । पढाई में कितनी होशियार थी , हमेशा फर्सट आती । सबसे ज्यादा नम्बर लेकर पास होती । दोनों बहन भाइयों की जान बसती थी उसमें । सीरीं के साथ कितना ...और पढ़े

51

टेढी पगडंडियाँ - 51

51 जसलीन गुरजप को देर तक देखती रही । हूबहू निरंजन । रंग उसने गुरनैब का लिया था पर नक्श कद काठ पूरे का पूरा निरंजन का । उसने गुरजप को ढेर सारा प्यार किया ।कस कर गले से लगा लेती । उससे अलग होती फिर से गले लगा लेती । किरण उनका मिलन देखती रही । अगर तुमने हमें माफ कर दिया हो तो हमारे साथ चल कर हवेली में रहो बहन जी । पापाजी और बी जी बिल्कुल अकेले पङ गये हैं । सारा दिन उदास रहते हैं । तुम आ जाओगी तो उन्हें जीने का सहारा ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प