Teri Kurbat me - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरी कुर्बत में - (भाग-14)

संचिता और ऋषि के प्री बोर्ड एग्जाम फिनिश हो चुके थे और रिजल्ट आने वाला था । ये एग्जाम्स जनवरी के फर्स्ट और सेकंड वीक में ही शुरू होकर खत्म हो चुके थे और उसके बाद सारे स्टूडेंट्स मेन एग्जाम्स की तैयारी में लग गए थे । आज प्री बोर्ड का रिजल्ट अनाउंस हो चुका था । संचिता काफी खुश थी , लेकिन ऋषि के चेहरे पर पिछले बार वाली खुशी नहीं थी , बल्कि वह बहुत ही ज्यादा खिन्न सा दिख रहा था । अपना रिजल्ट सर्टिफिकेट और मेन एग्जाम का एडमिट कार्ड लेकर संचिता ऋषि के पास आई और उसकी तरफ खुशी से हाथ बढ़ाते हुए कहा ।

संचिता - कॉग्रेट्च्यूलेशंस ऋषि । तुमने तो इस बार मुझे पीछे कर दिया ।

ऋषि ने एक नज़र उसे देखा और फिर उदासी से नज़रें नीची कर लीं। उसने संचिता से हाथ भी नहीं मिलाया । काफी अचंभित हुई संचिता उसका ये रिएक्शन देखकर । असल में उन दोनों का रिजल्ट हर बार की तरह अच्छा आया था, पूरी क्लास में टॉप पर , लेकिन इस बार संचिता ऋषि से एक नंबर से पीछे हो गई थी , जबकि हर बार ऋषि उससे एक नंबर से पीछे रहता था । संचिता उसे इसी के लिए बधाई दे रही थी , लेकिन ऋषि उसे कोई रिस्पांस नहीं दे रहा था , बल्कि काफी उदास था ।

संचिता - हुआ क्या है ऋषि??? क्या मुझे तुम्हें टॉप पर आने की बधाई नहीं देनी चाहिए थी???

ऋषि ( उसकी तरफ देखकर ) - मैंने ऐसा कहा तुमसे????

संचिता - नहीं। लेकिन तुम उदास क्यों हों , तुम्हें तो खुश होना चाहिए न।

ऋषि - मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा ।

संचिता - अरे..., लेकिन क्यों???

ऋषि - तुम मुझसे पीछे हो गई संचिता और तुम्हारा , मेरी सबसे अच्छी फ्रेंड का मुझसे पीछे होना , मुझे कोई खुशी नहीं , बल्कि गुस्सा दिला रहा है ।

संचिता ( हैरानी से अपनी बड़ी बड़ी आंखें कर बोली ) - क्या..!!?? तुम पागल हो क्या ऋषि ???? अपने टॉप आने पर कोई गुस्सा करता है भला???

ऋषि - मैं ....., मैं करता हूं । किसी और को पीछे कर टॉप पर आया होता , तो मुझे इतना फर्क नहीं पड़ता , लेकिन तुम्हें पीछे कर मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा ।

संचिता ( ऋषि के कंधे पर हाथ रख बोली ) - ऋषि....। ( ऋषि उसकी तरफ देखता है ) इतना मानते हो तुम मुझे ।

ऋषि ( उसकी तरफ देखकर ) - हां ....। ( संचिता ये सुनकर बहुत ज्यादा खुश हो जाती है , ऋषि आगे कहता है ) हां...., बहुत मानता हूं तुम्हें मैं । एक ही दोस्त मिली है मुझे , जिसने मुझे दोस्ती के सच्चे मायने बताए , मुझे खुलकर बात करना सिखाया , दोस्त बनाना सिखाया । तो भला मैं उसके पीछे होने पर , खुश कैसे हो सकता हूं । और खासकर तब , जब तुम्हें पीछे करने वाला खुद मैं हूं ।

संचिता कुछ पल पहले जितनी खुश हुई थी , अब उसकी खुशी थोड़ी सी कम हो चुकी थी । उसे ऋषि के बातों के जिक्र में , उसके लिए सिर्फ दोस्ती के नाते इतना सोचना , कहीं न कहीं कचोट रहा था , शायद वह इससे ज्यादा कुछ सुनना चाहती थी , पर क्या....?? ये वो नहीं जानती थी । उसने खुद के इस अनकहे जज्बातों को संभाला , जिनका मतलब वह अभी सिर्फ खोज ही रही थी । और खुद के मन के हाल को संभाले उसने ऋषि से कहा ।

संचिता - गार्डन चले , अपनी उसी फेवरेट जगह ।

ऋषि ने एक नज़र उसे देखा और फिर हां में सिर हिलाया । दोनों गार्डन में अपनी उसी जगह पर आकर बैठ गए , जहां ये दोनों अक्सर बैठा करते थे , हां वहीं...., जहां इन्होंने पहली बार साथ में लंच किया था , दूसरी बार में एक दूसरे से दोस्ती की थी । भले ही ऋषि का संचिता को सिर्फ दोस्त कहना , संचिता के दिल में कचोट रहा था , लेकिन वह एक तरफ खुश भी थी , ऋषि को इतनी शिद्दत से दोस्ती निभाते देख । संचिता से उसकी उदासी बर्दास्त नहीं हो रही थी , उसने ऋषि को समझाने के इरादे से कहा ।

संचिता - ऋषि...., ये एक नंबर से आगे पीछे होना तो जिंदगी भर चलता रहेगा , ये नंबर हमारी किस्मत थोड़ी न तय करते हैं , ये तो सिर्फ हमारी तैयारी को प्रदर्शित करते हैं । और क्या हुआ , अगर इस बार मैं एक नंबर से पीछे हो भी गई तो , हर बार तो तुम ही रहते थे न , तो इस बार मैं ही सही ।

ऋषि - तुम्हें इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता होगा संचिता , पर मुझे पड़ता है । मैं अपनी दोस्त को खुद से पीछे होते कभी नहीं देखना चाहता , बल्कि हमेशा आगे ही देखना चाहता हूं ।

संचिता - और अगर कभी किस्मत ने जिंदगी की लड़ाई में मुझे तुमसे पीछे कर दिया तो??? तब भी क्या ऐसे ही उदास बैठ जाओगे ??? या फिर किस्मत से लड़ने पहुंच जाओगे???

ऋषि ( तपाक से बोला ) - मैं आज के बाद दोबारा ऐसा कभी होने ही नहीं दूंगा, तो लड़ाई और उदास बैठने की तो कोई बात ही नहीं होगी ।

संचिता उसकी बात पर हंस पड़ी , तो ऋषि बोला ।

ऋषि - सच्ची ....। मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा ।

संचिता ( मुस्कुराकर ) - अच्छा ठीक है , ये सब जब होगा तब देखा जायेगा , लेकिन अभी तो ऐसे उदास मत बैठो । मेन एग्जाम में हम दोनों सेम सेम नंबर से पास हो जायेंगे , तो सेम पोजीशन और रैंक बनेगी हमारी ।

ऋषि - बट बोर्ड एग्जाम में ऐसा नहीं होता यार ।

संचिता - कोशिश करने में क्या हर्ज़ है ऋषि ???? और हम अभी से रिजल्ट की सोचकर अपनी तैयारी को ऐसे ही तो ज़ाया नहीं जाने दे सकते न ???

ऋषि ( झुंझलाकर ) - तो मैं क्या करूं , तुम ही बताओ ।

संचिता ( मुस्कुराकर ) - कुछ नहीं , बस इस रिजल्ट के नंबर्स को यहीं छोड़कर मुस्कुरा दो । क्योंकि आधे से ज्यादा टेंशन और उदासी मुस्कुराने से भाग जाती है , ऐसा मैंने कहीं सुना है ।

ऋषि - वैसे ये बात मेरी मां भी कहती हैं । ( वह मुस्कुरा देता है ) सही कहा तुमने , मुस्कुराने से अब थोड़ा बैटर फील हो रहा है ।

संचिता उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी । कुछ देर तक वो दोनों अपनी स्टडीज की तैयारियों की बातें करते रहे । फिर ऋषि ने संचिता से कहा ।

ऋषि - मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं ।

संचिता - क्या बताना चाहते हो??? लगभग सब तो जानती हूं मैं तुम्हारे बारे में ।

ऋषि - नहीं संचिता...। कुछ है ऐसा , चाहे तो सीक्रेट कह लो , जो कि किसी को नहीं पता । सिर्फ मेरे छोटे भाई अनुज को छोड़, वो भी नालायक को गलती से पता लग गया था । उस सीक्रेट को मैं आज तुमसे शेयर करना चाहता हूं ।

संचिता ( थोड़ी हैरान हो ) - सिर्फ मुझसे ही क्यों ऋषि???

ऋषि उसकी बात पर चुप हो जाता है ।

क्रमशः


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