तेरी कुर्बत में - (भाग-7) ARUANDHATEE GARG मीठी द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तेरी कुर्बत में - (भाग-7)

ऋषि की उत्सुकता को भांप संचिता ने खुद के आसूं साफ किए और कहना शुरू किया ।

संचिता - महज़ चार साल की थी मैं , जब बच्चे ढंग से कुछ समझते भी नही हैं, कई बच्चे तो बोलना तक नहीं सीख पाते , उस उम्र में मैने अपने पिता को खोया है ।

ऋषि को इतनी छोटी उम्र में संचिता के अपने पापा को खोने की बात सुनकर बहुत बुरा लगा । संचिता ने आगे कहना शुरू किया ।

संचिता - आर्मी में थे पापा । मेजर की न्यू पोस्ट मिली थी उन्हें । एक खतरनाक मिशन पर भेजा गया था उन्हें , जिसे वे खुद लीड कर रहे थे । उसी मिशन में एक सिपाही को बचाने के चक्कर में खुद पर गोली खा ली और....., ( रोने लगी दोबारा संचिता ) और हमने उन्हें खो दिया । मम्मी पापा , अपने शादी के समय से परिवार से दूर रहते थे , क्योंकि दोनों ने लव मैरिज की थी , और उस मैरिज को दोनों घरों के परिवारों ने कभी एक्सेप्ट नहीं किया । लास्ट के एक साल ही हुए थे , जब मम्मी पापा मुझे मम्मी के ससुराल लेकर आए । यहां हम दोनों की अच्छे से देखभाल होगी , यही सोचकर पापा ने हमें वहां छोड़ा था । क्योंकि उन्हें लगता था , कि उनके अपसेंस में उनके घर वाले हमें कभी किसी चीज की कोई कमी नहीं होने देंगे , चाहे वे खुद के लड़के से कितने भी नाराज़ हों । उन दिनों घर वालों की नाराजगी कम भी हो गई थी । इस लिए वे लोग हमारा अच्छे से खयाल रखते थे । लेकिन ठीक एक साल बाद ये सब हो गया । पूरा देश उनकी बहादुरी के किस्से गा रहा था , उनके शहीदी की कहानियां सुनाई जा रही थी , और हमारे घर में....., हमारे घर में इकलौते बेटे को खोने के गम में मातम छाया हुआ था ।

मां तो जैसे होश ही खो बैठी थीं । बहुत प्यार करती थीं उनसे , वादा लिया था उन्होंने पापा से , कि "जब तक वे खुद इजाजत न दें , तब तक पापा उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकते " । लेकिन हुआ उसके ठीक उलट , क्योंकि जीना मरना हम इंसानों के वादों पर निर्भर नहीं होता । वो तो ऐसी सज़ा और दवा है , जो कब आए और कब जाए , कोई नही जानता । पापा को घर लाया गया , उनका अंतिम संस्कार हुआ , उसके साथ ही मम्मी की सारी सुहाग की निशानी उनके जिस्म से मिटा दी गईं , लेकिन मम्मी को होश ही नहीं था , जो कुछ उनके साथ हो रहा था उसका । वे पापा के अंतिम संस्कार से पहले पापा को देखती रहीं और फिर अंतिम संस्कार के बाद , उनकी तस्वीर लेकर बैठ गईं । उनके माथे का सिंदूर , गले का मगरसूत्र , हाथों की भरी - भरी लाल चूड़ियां, पैरों के बिछुए सब निकाल दिए गए थे । लेकिन उन्होंने कोई विरोध नहीं किया । पर जब से वो तस्वीर लेकर बैठी , तब से उन्होंने सारा साज श्रृंगार अपने कबर्ड से , ड्रेसिंग से , तिजोरी से निकाला , और सज धज कर बैठ गई और ठीक वैसे ही पापा का इंतजार करने लगीं , जैसे पापा के ड्यूटी पर जाने के बाद करती थीं, रोने का मन करता था उनका , तब भी आसूं नही बहाती थीं , क्योंकि पापा को उनका रोना पसंद नहीं था । उन्हें सदमा लगा था , पापा की मौत का , जिसमें उन्हें ये तक याद न रहा , कि उनकी एक छोटी सी बेटी भी है।

पापा के अंतिम संस्कार के बाद , उनके घर वाले मां को कोसने लगे , जाने क्या - क्या कहने लगे । मुझे उनकी बातें तब समझ नही आती थी , लेकिन जब समझने लगी , तो खुद को सज़ा देने लगी , कि मैं लोगों के कड़वे बोलों को अपनी मां तक पहुंचने से पहले रोक क्यों नही पाई । पापा की शहीदी का जिम्मेदार मेरी मां को बताया उनके ससुराल वालों ने । धीरे - धीरे घर वालों के शब्दों को सुन - सुनकर मैं समझने लगी , कि सभी मां को गलत बोलते हैं , पर सिर्फ समझ ही पाती थी , कभी कह नही पाई कुछ कर नही पाई मां को उन सबसे बचाने के लिए । पापा का धुंधला सा चेहरा ही याद है मुझे , क्योंकि उन्हें बहुत कम ही देख पाती थी , लेकिन मां उन चार पांच सालों तक सामने रही मेरे , तो उन्हें रोज देखने की आदत हो गई थी , इसी कारण उन्हें कभी नहीं भूल पाई ।

मां का सदमा था, कि कम होने का नाम ही नही ले रहा था , वो वैसे ही सुहागन की तरह श्रृंगार कर , पापा का इंतजार करती रहीं। मुश्किल से दस महीने ही बीते थे , कि एक दिन मां का सदमा उन पर हावी हुआ , उन्हें हार्ट अटैक आया और वे मुझे छोड़ कर पापा के पास चली गईं , हमेशा - हमेशा के लिए। अब क्योंकि मां , पापा की बरसी से पहले ही उनके पास चली गई थीं , इस लिए उन्हें उसी श्रृंगार के साथ विदा किया गया , जैसे वो पापा के जाने के बाद भी रहीं थीं, उनके माथे का न सिंदूर मिटाया गया और न ही मंगलसूत्र हटाया गया , बल्कि मेरे हाथों उनकी मांग सजवाई गई, अच्छे याद है मुझे वो पल , जब मैंने अपनी मां को अंतिम विदाई दी थी ।

मां के जाने के बाद , मौसी मुझे नाना - नानी के यहां ले आईं , क्योंकि मां के बाद उनके ससुराल वालों ने मुझे टारगेट कर कोसना शुरू कर दिया था। नाना - नानी को ये सब बर्दास्त नही हुआ , क्योंकि भले वे अपनी बेटी के लव मैरिज करने से नाराज़ थे , पर अपनी बेटी के ऊपर आई विपत्तियों को देख उनका मन पसीज गया था , सारी नाराजगी भूल वे अपनी बेटी की अच्छे की कामना करते थे , लेकिन हुआ उनकी प्रार्थनाओं से उल्टा , उनकी बेटी उन्हें छोड़ कर चली गई । तब नाना ने मुझे मौसी को उनके पास लाने को कहा। मौसी मुझे उनके पास छोड़ गई ।

अपनी बेटी की मौत से नाना नानी इतने आहत थे , कि मां के जाने के महज दो महीने बाद नाना और उनकी तेरहवीं के चार दिन पहले नानी हम हम सबको छोड़ के चले गए । मैं एक बार फिर से अनाथ हो गई , लेकिन अब मैं पांच साल की हो गई थी , और जिंदगी ने इतने रंग मुझे दिखाए थे , कि एक के बाद एक को लगातार खोने के बाद , मैं सब कुछ समझने लगी थी। नाना नानी के जाने के बाद, पापा के घर वालों ने मुझे खुद के पास रखने से साफ मना कर दिया था । तब मौसा जी और मौसी ने मुझे ऑफिशियली गोद लिया और खुद की संतान की तरह पालने लगे । उन्होंने मुझे अपने बच्चों की तरह ही प्यार किया , लेकिन वो दोनों कभी मेरे मन में मेरे मां - पापा की जगह न ले सके। क्योंकि जिस बच्चे ने अपने मां पापा के प्यार , उनके एहसास को करीब से पहचाना हो , महसूस किया हो , उसके लिए सारे जहां की खुशियां ही क्यों न उसके कदमों में रख दी जाए , लेकिन वो कभी उन खुशियों की तुलना , अपने मां पापा के प्यार से नही कर पायेगा , हमेशा कमतर ही लगेंगी उसे वो खुशियां । फिर मैंने तो उन्हे खुद की आखों के सामने मरते देखा था , कैसे भूल जाती उन्हें ?

आज भी रात में मां की हालत मेरी आखों के सामने किसी फिल्म की तरह सजीव हो तैर जाती है , मैं उठ जाती हूं , फिर सो नहीं पाती । मौसी मौसा जी ने कभी कोई कमी नहीं रखी , हां...., मौसी थोड़ा सा पुराने विचारों को जरूर मानती हैं , पर दिल की बुरी नहीं हैं, बहुत प्यार करती हैं मुझे । मेरे सारे डॉक्युमेंट्स में मौसी और मौसा जी का नाम रजिस्टर्ड है , दुनिया की नजरों में वे ही मेरे मां पापा हैं , लेकिन मैं चाहकर भी उन्हें कभी वो स्थान नहीं दे पाई , जो मेरे दिल में मेरे मां पापा का है । बाद में पापा को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था , मां के रहते ही , लेकिन उन्हें तो होश ही नहीं था इन सबका। उनके घर वालों ने वो सम्मान लिया , लेकिन फिर भी उनका मेरी मां को कोसना बंद न हुआ । मैं उनसे अब नफरत करती हूं , कभी उस घर में दोबारा कदम भी नही रखा मैंने । ( ऋषि की तरफ देखकर ) बस इतनी सी थी मेरी कहानी । मेरी मां के पापा के प्रति प्रेम ने , मां को मुझसे दूर कर दिया , और पापा के देश प्रेम ने उन्हें हमसे दूर कर दिया । बुरा तो उन्हें भी लगा होगा हमें छोड़ कर जाने में , लेकिन शायद एक सिपाही के लिए देश सबसे ऊपर होता है , और मेरे पापा के लिए देश हमेशा सर्वोपरि ही रहा ।

आंसुओं ने फिर से अपना रास्ता बना लिया और संचिता दोबारा फूट - फूट कर रो पड़ी । आज से पहले उसने हमेशा इन सबसे दूरी बनाकर रखी थी , कभी किसी को इस सच से रूबरू नहीं करवाया था । लेकिन आज उसने ऋषि के सामने अपने अतीत की सारी परतें खोल दी थी , जिसे उसके मौसी के बच्चे भी नही जानते थे। उन्हें बस ये ही पता था, कि संचिता उनकी बड़ी मौसी की बेटी है , इससे ज्यादा वो दोनों कुछ नही जानती थी । उन्होंने हमेशा उसे अपनी बड़ी बहन की तरह ही प्यार किया था और संचिता भी उन्हें उसी तरह लाड़ करती थी । ऋषि से संचिता का सच जानने के बाद कुछ कहते ही नही बन रहा था , वह बस चुप सा वहां बैठा रह गया । संचिता से अपने इमोशंस कंट्रोल नही हो रहे थे , उसने ऋषि की तरफ देखकर कहा ।

संचिता - तुम्हें पता है ऋषि , मैंने अपने मां पापा से प्रोमिस लिया था , आज भी याद है मुझे । जब पापा उस मिशन के लिए जा रहे थे , तब मैंने मां पापा दोनों से कहा था , मुझे अपने साथ खेलने के लिए कोई चाहिए , जैसे मेरे बाकी के फ्रेंड्स के पास उनके भाई बहन थे , उसी तरह मुझे भी भाई या बहन चाहिए थे । पापा ने मुझसे प्रोमिस भी किया था, कि वो मुझे दिलाएंगे भाई या बहन । उस मिशन के बाद पापा को लंबी छुट्टी मिलने वाली थी , बताया था मां ने। हम दोनों बहुत ज्यादा खुश थे , कि हम लोग एक लंबी छुट्टी में हॉलीडेज पर जायेंगे । और मेरी जिद पर मां ने ये तक कहा , कि वे दोनों मुझे होलीडेज के बाद एक छोटा सा भाई या बहन देंगे । कितने सारे सपने थे हम दोनों की आखों में , जिन्हें हम पापा के आने के बाद पूरा करना चाहते थे । लेकिन......, लेकिन पापा तो आए ...., पर उनकी आत्मा हम सबसे दूर हो गई , सिर्फ शरीर आया उनका , हमें अंतिम विदाई देने । सारे सपने चूर हो गए हमारे । कहां हम सब आने वाली खुशियों की प्रतीक्षा में थे और कहां सब कुछ हमारा उजड़ गया । जब मुझे इतना दुख होता था इस बात का बचपन में , तो मां तो होश हवास में थीं अपने , उन्हें जाने कितनी तकलीफ न हुई होगी !!!! ( कुछ पल रूककर ) मेरे पापा ने एक आर्मी मैन के रूप में , देश की , अपने साथियों की रक्षा की , मिशन को सफल बनाया , देश का नाम रोशन किया ...., लेकिन खुद की जिंदगी को वे खो बैठे , अपने परिवार को खो बैठे और हम उन्हें...। एक आर्मी मैन ने अपनी देश की जिम्मेदारी तो पूरी इमादारी से निभाई , लेकिन उसका खुद का परिवार उजड़ गया । पता है ऋषि...., मुझे याद है आज भी धुंधला - धुंधला सा..., जब पापा की बॉडी लेकर आर्मी वाले आए थे , तब पापा के चेहरे पर तेज़ था , मुस्कुरा रहे थे वो , खुश थे शायद अपने मिशन के सफल होने पर , और खुद के देश के लिए शहीद होने का गौरव पाकर । लेकिन...., उनके जाते ही मां की जिंदगी उजड़ गई थी । पापा के जाने के बाद से मैंने, जब तक मां हम सबके साथ रहीं , तब तक उनके चेहरे पर एक झूठी मुस्कान तक नही देखी थी ।

संचिता फिर से अपने शब्दों को विराम देकर रोने लगी थी । ऋषि की हिम्मत तक नहीं हो रही थी , कि वह संचिता के आसूं साफ कर उसे संभाल सके। वो खुद सच्चाई जानकर अंदर तक हिल गया था .....।

क्रमशः