Teri Kurbat me - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरी कुर्बत में - (भाग-2)

दो दिन बीत चुके थे , लेकिन ऋषि स्कूल नहीं आया था । थे तो दोनों ही एक सब्जेक्ट के , मैथ्स ( साइंस ) । लेकिन दोनों की क्लास के साथ - साथ कोचिंग सेंटर भी अलग अलग थे । ऋषि नोएडा शहर के जाने माने जज बृज चौहान का बेटा था । मां शालिनी चौहान , प्रदेश की जानी मानी वकील थी । घर के बाकी सदस्य भी , ऐसे ही बड़े बड़े आधिकारिक पदों पर थे , जैसे बड़े इंजीनियर , बड़े डॉक्टर , आईपीएस , आईएएस । बस ऋषि की बड़ी बहन ही थी , जो कि उसके बड़े पापा की बेटी थी , वो बिजनेस टायकून थी , उसकी खुद की टेक्सटाइल कंपनी थी । ऋषि का भरा पूरा संयुक्त परिवार था । घर में ऋषि के अलावा और भी बच्चे थे । कुछ उससे छोटे थे , तो दो लोग उससे बड़े थे । ऋषि का भी अपना एक सपना था , करियर को लेकर , जिसके चलते वो हमेशा अपनी पढ़ाई में ही रमा रहता था ।

जबकि उसके उलट संचिता का उल्टा हाल था , घर परिवार के मामले में । वह अपनी मौसी , मौसा जी और उनकी बेटियों के साथ रहती थी । कहने को बस वही उसका परिवार था , जो उसकी स्कूल फीस से लेकर उसके हर खर्च भरता था । संचिता पढ़ने में बहुत होशियार थी , लेकिन वक्त के अनुसार अपने आपको ढालने और बात करने वाली लड़की थी । जिसका जो सुलूक होता था , उससे उसी तरह पेश आती थी , मात्र अपने घर वालों को छोड़ कर । उनके सामने वह वैसी ही रहती थी , जैसे आम लड़कियां रहती हैं , घर का पूरा काम करना , सबकी हेल्प करना , बड़ों के आगे हमेशा मौन रहना , छोटो का हमेशा खयाल रखना । ऐसी जिंदगी ही तो होती है एक आम लड़की की हमारे भारत में । और जो ऐसे नही रहती , उन्हें क्या क्या कहा जाता है और क्या नहीं...., इससे तो हर इंसान वाकिफ है , भले ही कोई इंसान अपने आखों से देखी हकीकत को सबके सामने झुठला क्यों न दे , लेकिन यही सच्चाई है और हमारे भारत देश के सो कॉल्ड समाज और घरों की हकीकत ।

दो दिन से ऋषि के स्कूल न आने की वजह से संचिता परेशान थी , क्योंकि उस दिन ऋषि की हालत ठीक नहीं थी , इसे संचिता ने महसूस किया था । वह उसके व्यवहार से भी भली भांति परिचित थी , इस लिए उसने भी ऋषि का उस वक्त उतना ही ख्याल रखा , जितने में ऋषि कंफर्टेबल हो सके और उसके दिमाग में संचिता को लेकर कुछ गलत न उभरे । पर कहीं अब ऋषि के साथ कुछ गलत न हो गया हो , लाइक बीमार पड़ गया हो , या फिर और कोई मुसीबत आ गई हो , जिसकी वजह से वह बंक कर रहा हो , यही सोचकर वो हद से ज्यादा परेशान थी । उसकी मजबूरी ये थी , कि वो इस बात को किसी से कह भी नही सकती थी , ऋषि से भी नहीं , और स्कूल से अपने घर जाने के अलावा उसे कहीं और जाने की इस वक्त इजाजत नहीं थी । वह परेशान सी आज भी उदास होकर घर लौट गई , बीते दो दिनों की तरह ।

अगले दिन ऋषि स्कूल आया था , पर संचिता नहीं आई थी । उसकी तबियत ठीक नहीं थी , मेंस्ट्रुएशन के दिन चल रहे थे । दिनभर वह सोती रही , एक यही पांच दिन होते थे , जब उसे कोई काम के लिए नहीं बुलाता था । क्योंकि उसके घर में आज भी वही परंपरा लागू थी , जब इस हालत में लड़कियों को सभी से अलग रहना पड़ता था । ऐसे वक्त पर लड़कियों का खाना पीना , से लेकर उनके जरूरत के समान की उपयोग की जाने वाली वस्तुएं भी अलग थलग रखी जाती थी , जिसे सिर्फ उस वक्त को जीने वाली लड़की ही उपयोग कर सकती थी । ये रिवाज़ सिर्फ उसपर ही नहीं , बल्कि घर की बाकी लड़कियों पर भी चलता था , खुद उसकी मौसी भी इस रिवाज को निभाती थी । जिसे हम आम तौर पर छुआ छूत कहते हैं । ये रिवाज़ जितना अनुचित है , उससे ज्यादा लड़कियों की दयनीय स्थिति का कारण भी है । जो कि आज भी कुछ घरों में बड़ी निर्भीकता और निर्दयता से निभाया जाता है । जबकि इस वक्त , बच्चियों को प्रेम, सहारे और केयर की अत्यधिक आवश्यकता होती है । लेकिन मजाल है , जो लोग रिवाजों से हट कर कभी ऐसा सोच सकें , कि उनकी बेटियों को इस वक्त सबसे ज्यादा खुश रहने की जरूरत है । खैर...., ये तो बदलते बदलते बदलेगा । शायद बहुत ज्यादा वक्त लगेगा , इसके लिए । कितना ....., ये तो कोई नहीं जानता । लेकिन इन सबमें जो मासूम बच्चियां पिसती हैं , उनके जीवन पर इसका बहुत गहरा असर पड़ता है । जिसका परिणाम ये होता है , कि बच्चियां खुद को असहाय, दूसरों पर निर्भर , और एकदम शांत स्वभाव की हो जाती हैं और ऐसी ही लड़कियां इस समाज को पसंद हैं , जो मुंह से एक शब्द न बोले , बस बकरी की तरह सिर हिलाकर समाज की , लोगों की सारी बातें माने , जिसमें समाज की बनाई हुई कुरीतियां भी शामिल होती हैं ।

ऋषि को संचिता के न आने से कोई फर्क तो नहीं पड़ा था , मगर संचिता को जरूर पड़ा था , क्योंकि अब वो उसे अगले और चार दिन तक देख नहीं पाएगी और शायद एक दो दिन और उससे ज्यादा भी । खैर....., ये कुछ छः सात दिन और बीत गए , जब ऋषि और संचिता की आपस में मुलाकात नहीं हुई । अगले दिन संचिता सुबह - सुबह स्कूल जा रही थी , वह अब पूर्णतः ठीक थी । उसने सुबह का अपने साथ - साथ अपनी बहनों के लिए भी टिफिन बनाया , साथ में मौसी मौसा जी के लिए सुबह का नाश्ता । बाकी की दोनों बहनों ने घर की पूरी साफ - सफाई रोज की तरह कर दी थी । तीनों ने अपना - अपना टिफिन लिया , और अपने - अपने स्कूल गई । सबका स्कूल अलग - अलग था , अलग - अलग क्लासेस थी ।

संचिता सुबह की असेंबली में शामिल हुई , तो उसे लड़कों के बीच में एक सीध की लाइन में खड़ा ऋषि दिखाई दिया । आह..., दिल से ये उसके आवाज़ आई , जैसे उसे सही सलामत देखकर संचिता के दिल को असीम सुकून की प्राप्ति हुई हो, जो कि इतने दिनो से बेतहाशा मचल रहा था । वह उसे ही देख रही थी , और असेंबली की प्रेयर शुरू हो चुकी थी । सबने आंखें बंद की हुई थी , इस लिए किसी का भी ध्यान संचिता पर नहीं गया और वो बेसुध लड़की , एक टक ऋषि को देखने में लगी थी , क्यों...., इसका जवाब वो भी नही जाती थी । असेंबली ओवर हुई और थॉट्स के लिए स्टूडेंट्स जाने लगे । उसी वक्त ऋषि की नज़र उसपर पड़ी , तो उसने संचिता को एक टक खुद को देखते पाया। पहले तो उसे समझ नही आया , कि संचिता ऐसा क्यों कर रही है । लेकिन अगले ही पल वह संचिता को देखते हुए मुस्कुरा दिया , क्यों...., ये वो भी नही जनता था । संचिता ने देखा , तो उसने शर्मा कर नजरें नीची कर ली। ऋषि को उसका ये व्यवहार बिल्कुल समझ नहीं आया , सीधी तरह से कहूं...., तो उसके दिमाग के ऊपर से चला गया संचिता का ऐसे मुस्कुराना। संचिता अब भी शर्माकर मुस्कुरा रही थी , जबकि ऋषि उससे नजरें फेर चुका था । संचिता को ऐसे शर्माते एक लेडी टीचर ने देखा , तो कहा ।

टीचर - क्या हुआ संचिता.... असेंबली के थॉट्स में मन नहीं लग रहा है क्या तुम्हारा...???

संचिता टीचर के सवाल पर हड़बड़ा गई , जैसे अब होश में आई हो । उसे समझ आ गया था , वो क्या बेबकुफों वाली हरकतें कर रही थी , जो इस वक्त बिलकुल भी जायज नहीं थी । लेकिन दिल कब समझा है , जायज और नाजायज की अंधाधुंध सौगातों को , उसके नियम कायदे कानूनों को । वो तो मनमानियां करने के लिए प्रसिद्ध है , जो कि कर चुका है अभी - अभी और उसकी वजह से बेचारी संचिता फंस गई है । संचिता को कुछ समझ नहीं आया , क्या बोले वह । टीचर ने सवाल फिर दोहराया , लेकिन तब तक असेंबली के थॉट्स खतम हो गए थे और सारे बच्चे अपनी - अपनी क्लासेस में जाने लगे थे । जब टीचर ने ये देखा , तो कहा ।

टीचर - जहां खड़ी हो संचिता , वहीं पर अपना ध्यान रखा करो , जो कि जरूरी है । कहीं और ध्यान रखोगी , तो तुम्हारे मूल उद्देश्य से तुम्हारा ध्यान पूर्णतः हट जायेगा । अब तुम जा सकती हो ।

टीचर ने क्या कहा , संचिता के कुछ समझ नहीं आया , शायद उसका दिमाग भी आज कुछ भी समझना नहीं चाहता था । लेकिन याद जरूर हो गई थी उसे अपनी टीचर की बात । वह अपनी क्लास में चली गई ....।

क्रमशः


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